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Gestational Hypertension Warning Signs: जेस्टेशनल हाइपरटेंशन, प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली एक आम कॉम्प्लिकेशन है. अगर प्रेग्नेंट महिला का ब्लड प्रेशर पहले नॉर्मल था और प्रेगनेंसी के दौरान या उसके बाद ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और 140/ 90 से ऊपर आता है, तो उसको जेस्टेशनल हाइपरटेंशन कहा जाता है.
6 से 8% प्रेगनेंसी मामलों में ये देखी जाती है और किसी-किसी मामले में ये समस्या खतरनाक भी हो जाती है.
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के शुरुआती लक्षण क्या हैं? जेस्टेशनल हाइपरटेंशन होने पर क्या करें? जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के इमरजेंसी संकेत क्या हैं? क्या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन प्रसव के बाद ठीक हो जाता है? क्या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन गर्भ में पल रहे शिशु को भी प्रभावित करता है? इन सारे जरुरी सवालों के एक्सपर्ट जवाब यहां पढ़ें.
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन या प्रेगनेंसी-इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन (पीआईएच) अक्सर प्रेगनेंसी के दौरान कई कारणों से होता है:
प्लेंसेंटल डिस्फंक्शन: प्लेसेंटा में क्षतिग्रस्त ब्लड वेसल्स के कारण हाइपरटेंशन हो सकता है.
हार्मोनल बदलाव: इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन का अधिक लेवल होने से ब्लड वेसल फंक्शन पर असर पड़ता है.
जेनेटिक कारण: फैमिली हिस्ट्री या पिछली प्रेगनेंसी में हाइपरटेंशन होने के कारण रिस्क बढ़ सकता है.
पहले से मौजूद कंडीशंस: क्रोनिक हाइपरटेंशन, डायबिटीज, किडनी रोग या ऑटोइम्यून डिसॉर्डर की वजह से भी रिस्क बढ़ता है.
पहली या मल्टीपल प्रेगनेंसी: शुरुआती प्रेगनेंसी या मल्टीपल प्रेगनेंसी होने से भी जोखिम बढ़ जाता है.
उम्र और मोटापा: 20 साल से कम या 40 साल से अधिक उम्र और प्रेगनेंसी से पहले से ही मोटापे की शिकार महिलाओं में भी जोखिम अधिक रहता है.
डॉ. आस्था दयाल बताती हैं कि जेस्टेशनल हाइपरटेंशन का पहला लक्षण यह है कि ब्लड प्रेशर की रीडिंग 140 /90 से ऊपर आना. ज्यादातर मामलों में यह 20 हफ्तों के बाद आता है या एकदम आखिरी के दो-तीन महीना में आता है
सिरदर्द: लगातार या तेज सिरदर्द, जिसके साथ विजुअल डिस्टरबेंस होना.
मितली या उल्टी: सामान्य तौर पर होने वाली मॉर्निंग सिकनेस के अलावा, लगातार मितली या उल्टी आने की गंभीर शिकायत बनी रहना.
सूजनः इडीमा काफी आम होता है, लेकिन एकाएक या अत्यधिक सूजन और साथ ही, तेजी से वजन बढ़ने की समस्या, पीआईएच का लक्षण हो सकता है.
हाई ब्लड प्रेशर: रूटीन चेकअप के दौरान, 140/90 mmHg से अधिक बीपी रीडिंग्स, हाई ब्लड प्रेशर की ओर इशारा करता है, और यह भी पीआईएच का लक्षण हो सकता है.
यूरिन कम हो जाना
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन हो गया है, तो आपको यह ध्यान रखना होता है कि ब्लड प्रेशर नियमित तौर पर नापे और अगर ब्लड प्रेशर बढ़ता जा रहा है, तो अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें. इसके अलावा अगर आपके डॉक्टर ने कोई ब्लड प्रेशर की दवा दी है, तो वह आपको लेते रहनी चाहिए.
डॉ. पवन कुमार गोयल कहते हैं कि प्रेगनेंसी-इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन (पीआईएच) को मैनेज करने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ-साथ मेडिकल इंटरवेंशन जरूरी होता है, जिससे ब्लड प्रेशर और दूसरे संबंधित जोखिमों को कम करने में मदद मिलती है.
पीआईएच से प्रभावित प्रेग्नेंट महिलाओं के लाइफस्टाइल में बदलाव के कुछ महत्वपूर्ण उपाय इस प्रकार हैं:
नियमित प्रीनेटल केयर: ब्लड प्रेशर और दूसरे महत्वपूर्ण लक्षणों की नियमित मॉनिटरिंग के लिए समय-समय पर चेकअप करवाएं.
सेहतमंद खुराक: फलों, सब्जियों, और लीन प्रोटीन से भरपूर बैलेंस्ड मील्स लें लेकिन खुराक में नमक की मात्रा सीमित करें.
हाइड्रेशन: ब्लड प्रेशर मेंटेन करने और डिहाइड्रेशन से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें.
कैफीन से परहेज करें: इससे ब्लड प्रेशर और हाइड्रेशन लेवल प्रभावित होता है.
एक्सरसाइज करें: अपने डॉक्टर की सलाह से लो-इंपैक्ट एक्टीविटीज करते रहें ताकि सर्कुलेशन में सुधार हो और वेट को भी मैनेज किया जा सके.
स्ट्रेस मैनेजमेंट: रिलैक्सेशन तकनीकों जैसे प्राणायाम या प्रीनेटल योग करें जिससे स्ट्रेस कम किया जा सके.
धूम्रपान से बचें: स्मोकिंग और सेकंड हैंड स्मोक से बचें.
पर्याप्त आराम करें: भरपूर नींद लें और दिनभर रिलैक्स करें.
वजन पर रखें निगरानी: प्रेगनेंसी के दौरान हेल्दी वेट मैनेजमेंट के लिए डॉक्टरी सलाह का पालन करें.
मेडिकल सलाह का पालन करें: डॉक्टरी सलाह के मुताबिक दवाओं का सेवन करें और समय-समय पर डॉक्टर से मिलते रहें.
डॉ. आस्था दयाल जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के इमरजेंसी संकेत के बारे में बताते हुए कहती हैं,
वहीं डॉ. पवन कुमार गोयल कहते हैं कि प्रेगनेंसी-इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन (पीआईएच) तब खतरनाक हो जाता है जब यह प्रीक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया में बदल जाता है. ऐसे में तत्काल मेडिकल अटेंशन जरूरी है वरना यह मां और शिशु दोनों के लिए गंभीर रूप से खतरा हो सकता है.
इमरजेंसी संकेतों में शामिल हैं:
तेज सिरदर्द: लगातार सिरदर्द जिससे कोई राहत नहीं मिल रही हो और साथ ही, विजुअल डिस्टरबेंस भी हो.
हाई ब्लड प्रेशर: आराम करने और दवाओं के सेवन के बावजूद ब्लड प्रेशर रीडिंग 160/110 mm Hg रहना.
विजुअल डिस्टरबेंसः नजर धुंधलाना, धब्बे या अस्थायी रूप से दिखायी नहीं देने की शिकायत.
तेज पेट दर्द: खासतौर से दायीं तरफ, जो लिवर के प्रभावित होने और HELLP सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है.
पेशाब की मात्रा में कमी: यह किडनी या किसी गंभीर जटिलता का सूचक हो सकता है.
सांस फूलना: खासतौर से लेटे हुए भी सांस फूलना पल्मोनरी एडिमा का लक्षण हो सकता है.
दौरे पड़नाः एक्लेम्पसिया का लक्षण होता है और ऐसा होने पर तत्काल मेडिकल अटेंशन जरूरी होती है.
लिवर फंक्शन में बदलाव: लिवर एंजाइम लेवल का असामान्य होना लिवर संबंधी जटिलताओं जैसे HELLP सिंड्रोम का सूचक होता है.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर आपको पहली प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर आया है, तो ज्यादातर मामलों में यह डिलीवरी के बाद ठीक हो जाता है लेकिन अगर आपको प्रेगनेंसी में हाई ब्लड प्रेशर की ज्यादा दिक्कत आती है, तो कई बार डिलीवरी के बाद भी ब्लड प्रेशर की रेगुलर मॉनिटरिंग और दवाइयां की जरूरत पड़ती है.
डॉ. आस्था दयाल कहती हैं,
प्रसव के बाद इन बातों का रखें ख्याल:
प्रसव के बाद जांच: हेल्थकेयर प्रोवाइडर नियमित रूप से ब्लड प्रेशर और दूसरे जांच से पोस्ट-डिलीवरी हेल्थ चेकअप करते हैं.
दवाओं में बदलाव: प्रसव के बाद ब्लड प्रेशर रीडिंग्स के अनुसार दवाओं में बदलाव या उन्हें बंद करने की सलाह दी जा सकती है.
लक्षणों को जानें: सिरदर्द, विजुअल बदलाव, पेट में दर्द, सूजन या सांस लेने में कठिनाई महसूस करें, तो तत्काल अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर को बताएं.
हेल्दी आदतों को अपनाएं: संतुलित खानपान, पर्याप्त हाइड्रेशन, हल्का-फुल्का व्यायाम, स्ट्रेस मैनेजमेंट, और स्मोकिंग-अल्कोहल से परहेज काफी मददगार होता है.
स्तनपान संबंधी सावधानियां: पर्याप्त मात्रा में पोषण और पानी का सेवन करें, यह आपकी सेहत के लिए अच्छा और इससे स्तनपान में भी आसानी होगी.
प्रसव के बाद देखभाल और गर्भनिरोध: अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से प्रसव के बाद के केयर और गर्भनिरोधक उपायों/विकल्पों के बारे में चर्चा करें.
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन से मां और गर्भ में पल रहे शिशु को कभी-कभी ये समस्याएं होती हैं:
इंट्रायूटराइन ग्रोथ रेस्ट्रिक्शन (आईयूजीआर): पीआईएच के कारण प्लेसेंटा में ब्लड फ्लो में कमी आने से कई बार भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषण कम मिलता है, जो भ्रूण के विकास के लिए नुकसानदायक होता है और ऐसे में प्रसव के समय शिशु का वजन सामान्य से कम हो सकता है.
प्रीटर्म बर्थः पीआईएच के कारण, सामान्य अवधि से पहले ही प्रसव (प्रीटर्म डिलीवरी) का रिस्क भी बढ़ सकता है, जो रेस्पिरेट्री डिस्ट्रैस सिंड्रोम, स्तनपान में कठिनाई, और नवजात के विकास में मुश्किलें बढ़ा सकता है.
प्लेंसेंटा में रुकावट: गंभीर पीआईएच, खासतौर से प्रीक्लेम्पसिया के कारण कई बार डिलीवरी से पहले ही प्लेंसेंटा भ्रूण से अलग हो जाती है, जिससे भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषण न मिलने की शिकायत होती है और मां भी जीवनघाती ब्लीडिंग की शिकार बन सकती है.
फीटल डिस्ट्रेस: प्लेसेंटा में ब्लड फ्लो पर्याप्त न होने के कारण भ्रूण की हृदय गति प्रभावित होती है, जो फीटल डिस्ट्रेस का कारण बनती है और ऐसे में जटिलताओं से बचने के लिए इमरजेंसी डिलीवरी करवानी पड़ सकती है.
स्टिलबर्थः गंभीर पीआईएच या अन्य संबंधित जटिलताओं की वजह से मृत शिशु (स्टिलबर्थ) का जन्म भी हो सकता है, हालांकि यह काफी दुर्लभ घटना होती है और ऐसा प्लेंसेंटा के पर्याप्त तरीके से काम न करने या फीटल डिस्ट्रेस की वजह से होता है.
नवजात में जटिलताएंः प्रेग्नेंसी-इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन (पीआईएच) प्रभावित माताओं के नवजातों में कई बार रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस, जॉन्डिस, हाइपोग्लाइसीमिया और इलैक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस जैसी परेशानियां होती हैं, जिनके उपचार के लिए मेडिकल अटेंशन और नियोनेटल केयर की जरूरत होती है.
स्वास्थ्य संबंधी लोंग टर्म रिस्क: कई बार गर्भवती महिलाओं की हाइपरटेंशन की समस्या के चलते उनके शिशुओं को भी भविष्य में हाइपरटेंशन, कार्डियोवास्क्युलर रोग और मेटाबोलिक डिसऑर्डर बढ़ सकते हैं.
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