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साल 2021 में भारत में 45,026 महिलाओं की आत्महत्या से मौत हुई; तकरीबन हर 9 मिनट में 1.
इनमें से आधे से ज्यादा– 23,178– हाउस वाइव्स (housewives) थीं. भारत में 2021 में हर रोज औसतन 63 हाउस वाइव्स की आत्महत्या से मौत हुई.
बीते एक साल में भारत में महिलाओं की तुलना में ज्यादा पुरुष (1,18,979) आत्महत्या से मरे, मगर पैटर्न में फर्क 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों में देखा गया, जहां महिलाओं में आत्महत्या की घटनाएं ज्यादा थीं. खास वजह– पारिवारिक समस्याएं, प्रेम संबंध, और परीक्षा में नाकामी वगैरह थीं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा सालाना रिपोर्ट कुछ गंभीर रुझानों पर रौशनी डालती है, जो भारत में महिलाओं की मेंटल हेल्थ और सोशल स्टेटस को लेकर फिक्र बढ़ाने वाली है.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) में प्रोफेसर डॉ. राखी दंडोना ने द क्विंट को बताया, “शिक्षा और फाइनेंशियल आत्मनिर्भरता के बावजूद महिलाएं अभी भी उतनी ताकतवर नहीं हुई हैं, जितना हम मान लेना चाहते हैं. जेंडर के आधार पर भेदभाव अभी भी जारी है, और यह दिमाग में बसा पूर्वाग्रह महिला आत्महत्याओं की बड़ी संख्या में जाहिर होता है.”
साल 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो 2020 के मुकाबले 7.2 फीसद ज्यादा हैं. इन मौतों का एक बड़ा हिस्सा हाउस वाइफ हैं– 2021 में कुल आत्महत्याओं का 14.13 फीसद हिस्सा– यह दिहाड़ी कामगारों के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है.
साल 2121 में आत्महत्या करने वाली अलग-अलग वर्गों की महिलाएं
हाउसवाइफः 23,178
स्टूडेंटः 5,693
प्रोफेशनल/सेलरीड महिलाएंः 1,752
दिहाड़ी कामगारः 4,246
खेती से जुड़ी महिलाएंः 653
सेल्फ इम्पलाइड: 1,426
डेटा स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2021
डॉ. राखी दंडोना चिंताजनक आंकड़ों की व्याख्या करते हुए कहती हैं, भारत में महिलाओं में हाउस वाइव्स का हिस्सा ज्यादा है, और इसकी वजह जाहिर है.
भारतीय महिलाओं में आत्महत्याओं पर लैंसेट की एक प्राथमिक पब्लिक हेल्थ स्टडी (2018) में अंदाजा लगाया गया है कि महिलाओं की आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या महिलाओं में बढ़ती शिक्षा और सशक्तिकरण और भारतीय समाज में उनकी लगातार कमतर स्थिति के बीच संघर्ष से जुड़ी हो सकती है.
ध्यान देने वाली बात है कि महिलाएं आर्थिक रूप से ज्यादा ताकतवर होती हैं, तो आत्महत्याओं की संख्या कम होती जाती है.
साल 2121 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं का आय वर्ग
1 लाख रुपये से कमः 32,397
1-5 लाख रुपयेः 10,973
5-10 लाख रुपयेः 1,234
10 लाख रुपये से अधिकः 422
डेटा स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2021
बाल रोग विशेषज्ञ और जन स्वास्थ्य सहयोग (JSS) के संस्थापक डॉ. योगेश जैन द क्विंट से बातचीत में कहते हैं, “कम आमदनी वाले व्यक्तियों के लिए स्वाभाविक रूप से सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा कम है. उनकी हेल्थ केयर तक पहुंच भी कम है.”
साल 2020 में आत्महत्या के मामलों की संख्या (44,498) के मुकाबले 2021 में महिला आत्महत्याओं में 1.17% की बढ़त देखी गई है.
NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिला आत्महत्याओं के पीछे पारिवारिक समस्याएं, बीमारियां और शादी से जुड़े झगड़े, सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं.
साल 2121 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं का वजह के हिसाबसे वर्गीकरण
पारिवारिक समस्याः 15,769
बीमारीः 9,426
शादी से जुड़े मामलेः 4,069
परीक्षा में नाकामीः 682
लव अफेयरः2,894
नपुंसकता/बांझपनः 222
कंगाली/ कर्ज का बोझः 482
डेटा स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2021
शादी से जुड़ी आत्महत्याओं में 1,503 दहेज से जुड़ी थीं, जबकि 217 तलाक से जुड़ी थीं. लगभग 67.5 % – 2,757– शादी से जुड़े झगड़ों पर आत्महत्याएं करने वाली महिलाएं 30 साल से कम उम्र की थीं.
9,426 महिलाओं ने बीमारियों की वजह से आत्महत्या की, जिनमें से 43.25 फीसद– 4,077 ने– मानसिक समस्या की वजह से जान दी.
भारत में साल 2021 में 18 साल से कम उम्र की 5,655 लड़कियों की आत्महत्या से मौत हुई– यह आंकड़ा इसी आयु वर्ग के 5,075 पुरुष आत्महत्याओं से थोड़ा ज्यादा है. यह दूसरे आयु वर्गों में देखे गए पैटर्न से अलग है, जहां पुरुषों की संख्या ज्यादा है.
इसी तरह 2020 में भी आत्महत्या से मरने वाली 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या लड़कों (5,392) के मुकाबले ज्यादा (6,004) थी. असल में पिछले कुछ सालों में लगातार यह फर्क देखा गया है– और कमोबेश इस खास आयु वर्ग में यह सामान्य घटना बन गया है.
पिछले साल भारत में लड़कियों की आत्महत्या से होने वाली मौतों के पीछे पारिवारिक समस्याएं, बीमारी, लव अफेयर और परीक्षा में नाकामी मुख्य वजहें रहीं.
साल 2121 में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की आत्महत्या का कारण
परीक्षा में नाकामीः 397
पारिवारिक समस्याएंः 1,603
शादी से जुड़े मामलेः 126
बीमारीः 812
लव अफेयरः 910
डेटा स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2021
भारत में स्टूडेंट सुसाइड का बड़ा हिस्सा परीक्षा में नाकामी के चलते होने वाली आत्महत्याएं होती हैं. साल 2021 में कम से कम 13,089 स्टूडेंट ने ‘परीक्षा के तनाव’ के चलते आत्महत्या कर ली, जो पांच साल में सबसे ज्यादा है.
ग्रामीण भारत में आत्महत्या पर शोध करने वाले डॉ. योगेश जैन कहते हैं, “आंकड़ों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि जेंडर सबसे बड़ी भूमिका नहीं निभाता है, और18 साल से कम उम्र भी सबसे बड़ा जोखिम नहीं है.”
वह कहते हैं, “जॉब छूट जाने का डर, परीक्षा में पास न होने का डर भी इस आयु वर्ग में आत्महत्या से जुड़ी वजहें हैं.”
हालांकि यह उम्मीद की जाती है कि शिक्षा के साथ आत्महत्या की घटनाएं कम होंगी, मगर आंकड़े बताते हैं कि ऐसा होना जरूरी नहीं है. स्कूली शिक्षा का स्तर बढ़ने पर महिला आत्महत्याएं बढ़ती हैं, और फिर ऊंची शिक्षा के बाद इसमें गिरावट आती है.
साल 2121 में महिलाओं की आत्महत्या का शिक्षा के स्तर के अनुसार वर्गीकरण
अशिक्षितः 5,774
प्राइमरी शिक्षा (5वीं कक्षा तक): 7,552
मिडिल (8वी कक्षा तक): 8,501
मैट्रीकुलेट/सेकेंडरी (10वीं कक्षा तक): 10,079
इंटरमीडिएट/हायर सेकेंडरी (12वीं तक): 7,011
ग्रेजुएट और इससे ज्यादाः 2,070
प्रोफेशनल डिग्रीः 161
डेटा स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2021
डॉ. योगेश जैन कहते हैं, “हमने यह भी देखा कि कुछ दक्षिणी राज्यों में जहां साक्षरता दर ज्यादा है, वहां आत्महत्या की दर भी काफी ज्यादा है. हम अंदाजा लगा सकते हैं कि शिक्षा के साथ आने वाली ज्यादा जागरूकता ज्यादा आत्महत्याओं की ओर ले जा सकती है, या ऊंची पढ़ाई के साथ साइकियाट्रिक कोमार्बिटीज ज्यादा आम हो सकती हैं. जॉब की ख्वाहिश या कोई खास किस्म का मौका भी शिक्षा के साथ बढ़ता है.”
NCRB की रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग दो-तिहाई– 63.69 फीसद(28,680)– आत्महत्या करने वाली महिलाओं की शादी हो चुकी थी. गैर-शादीशुदा महिलाएं कुल मिलाकर 24 फीसद थीं, 0.6 फीसद तलाकशुदा थीं, और2.2 फीसद विधवा थीं.
जाहिर है भारत में महिला आत्महत्या (female suicides in India) की समस्या काफी गंभीर है और इसके कई आयाम हैं. आंकड़े इस समस्या का कोई साफ हल नहीं सुझाते हैं– सिर्फ शिक्षा, आमदनी, शादी से सुरक्षा कवच नहीं मिल जाता है.
भारत में महिला आत्महत्याओं पर 2018 की लैंसेट स्टडी रिपोर्ट तैयार करने में शामिल रही डॉ. दंडोना का मानना है कि आत्महत्या से होने वाली मौतों की समस्या में सुधार के वास्ते अपनाए जाने वाले तरीकों के असर को समझने के लिए ज्यादा गहराई से रिसर्च की जरूरत है.
“हमारे पास कोई रिसर्च या आंकड़े नहीं है जिससे हम पक्के तौर पर इस सवाल का जवाब दे सकें. उदाहरण के लिए– अगर शिक्षा महिलाओं में आत्महत्या से होनेवाली मौतों को घटाने का उपाय है, तो दक्षिण भारत में मौत की दर कम होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. दंडोना का कहना है, “भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों की वजह” को समझने के लिए कायदे की गहरी स्टडी की जरूरत है.
विशेषज्ञ इस बात पर एक राय हैं कि स्कूल और कॉलेज की शुरुआत के स्तर पर दखल देना जरूरी है. नौजवानों के लिए बनाए गए हर पोर्टल पर काउंसिलिंग का मौका हो और नौजवानों के लिए हेल्पलाइन सेंटर बनाए जाने चाहिए. डिप्रेशन और आत्महत्या के बारे में ज्यादा बातचीत करने की जरूरत है, और इसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल करना होगा.
सपोर्ट सिस्टम– परिवार में, कम्युनिटी में और सरकार के स्तर पर भी जरूरी है.
हमें भारत में आत्महत्याओं की बड़ी संख्या के मामलों से निपटने के लिए बेहतर सिस्टम की जरूरत है. और हमें महिला आत्महत्याओं की विशाल समस्या को ठीक करने के लिए ज्यादा रिसर्च-आधारित, जेंडर के आधार बनाई स्ट्रेटजी पर जोर देने की जरूरत है.
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