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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) चाहते हैं कि उनकी सरकार भारतीय युवाओं को 'उम्मीद की किरण' देने के लिए भर्ती की होड़ में लग जाए. लेकिन, इससे पहले कि हम बहुत उत्साहित हों, आइए कुछ नंबरों पर नजर दौड़ाते हैं.
बजट के स्टेटमेंट 22 में (व्यय लेखा-जोखा या एक्सपेंडिचर प्रोफाइल में) सरकार के सिविलियन कर्मचारियों की क्षमता के बारे में नंबर्स दर्शाए जाते हैं. इनमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) जैसे सीआरपीएफ और रक्षा मंत्रालय के सिविलियन कर्मचारी शामिल होते हैं. लेकिन सशस्त्र बलों में कार्यरत सर्विसमेन को इस गिनती में शामिल नहीं किया जाता है.
वर्ष 2022 के लिए केंद्र सरकार की कुल सिविलियन कर्मचारियों की क्षमता 34.65 लाख बताई गई है. वहीं 2020 और 2021 में कर्मचारियों की संख्या क्रमशः 31.80 लाख और 34.53 लाख थी. 2021 में जो विस्तार देखने को मिला है वह काफी हद तक टैक्सेशन डिपार्टमेंट्स में था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि उनकी सरकार हायरिंग (भर्ती) की होड़ में आ जाए.
वैकेंसी कहां हैं? बड़े पैमाने पर भर्ती करने के जिस अभियान की चर्चा है क्या सरकार उसमें सफल होगी?
रेलवे और डाक विभागों की वार्षिक रिपोर्ट में रिक्तियों का उल्लेख नहीं किया जाता है.
वाकई में सरकार को एक बिजनेस प्रोसेसिंग रीइंजीनियरिंग एक्सरसाइज (BPR) की जरूरत है.
10 लाख वैकेंसियों को भरने का मिशन फंक्शनल मामले में काफी कमजोर है. इसकी पूर्ति भी गंभीर रूप से संदेहास्पद है.
बजट 2022 के अनुसार वर्ष भर में केवल 11 हजार 827 कर्मचारियों की मामूली सी वृद्धि का अनुमान जताया गया था. हालांकि यह आंकड़ा नाटकीय तौर पर बदलने को तैयार है. 14 जून प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को यह निर्देश दिया है कि वे आगामी 18 महीनों में 10 लाख नए कर्मचारियों की नियुक्ति करें.
2015 में केंद्र सरकार की स्टाफ क्षमता 35.98 लाख थी. तब से कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है, जिससे समग्र कर्मचारियों की संख्या को प्रभावित हो. जैसे किसी विभाग को सार्वजनिक क्षेत्र के निगम के रूप में विभाजित करना या उसे दूसरा रूप प्रदान करना.
पिछले आठ साल में सरकारी कर्मचारियों की संख्या में 1.33 लाख की कमी आई है. इस ट्रेंड को उलटते हुए नई योजना का लक्ष्य 10 लाख नियुक्तियां करने का है. यह आंकड़ा (10 लाख) कुल केंद्रीय स्टाफ की संख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा है.
घोषण में जिस संख्या (10 लाख नियुक्ति) का जिक्र किया गया उसको देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मोदी सरकार भर्ती करने वाले किसी जिन्न को बाहर निकालने वाली है.
वैकेंसी कहां हैं? बड़े पैमाने पर भर्ती करने के जिस अभियान की बात हो रही है क्या सरकार उसमें सफल होगी?
क्या यह सरकार का गेमचेंजर प्लान है या फिर राजनीतिक चाल है?
सरकार ने इस बात पर कोई प्रकाश नहीं डाला कि आखिर 10 लाख वैकेंसी कहां हैं? सार्वजनिक तौर पर भी इस बारे में कोई जानकारी सहजता से उपलब्ध नहीं है. ऐसे में हम अनुमान लगाते हैं.
भारत सरकार के तीन विभाग मिलकर 27.66 लाख लोगों को रोजगार दे रहे हैं. यह आंकड़ा 2022 में केंद्र सरकार के कुल कर्मचारियों की संख्या का लगभग 80 फीसदी है.
यहां अलग-अलग विभागों की स्थिति को ऐसे समझिए :
रेलवे 12.02 लाख
गृह (बड़े पैमाने पर सीएपीएफ) 11.43 लाख
डाक 4.22 लाख
शेष 85 विभागों में बाकी के 7 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं.
विगत तीन दशकों से भी ज्यादा समय से रेलवे और डाक का आकार कम होता जा रहा है. 2020 की रेलवे की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 1990-91 में उनके कर्मचारियों की संख्या 16.52 लाख से घटकर 2019-20 में 12.54 लाख पर आ गई है. वहीं डाक विभाग ने 1990-91 में 5.92 लाख लोगों को नौकरी दी थी (इसमें 2.99 लाख अतिरिक्त विभागीय कर्मचारी शामिल हैं जो बाद में ग्रामीण डाक सेवकों में परिवर्तित हो गए). लेकिन अब वह संख्या घटकर 4.22 लाख रह गई है.
इन दोनों में से किसी भी विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में रिक्तियों का उल्लेख नहीं है. पिछले तीन दशकों में इन दोनों विभागों ने लगभग 6 लाख पदों को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है. क्या सरकार इन पदों को रिक्तियों (वैकेंसी) के तौर पर देख रही है?
2000 से सीएपीएफ की ताकत में लगातार वृद्धि हुई है. वर्ष 2000 में 5.88 लाख थी जो 2015 तक बढ़कर 11.47 लाख हो गई. इसके बाद से इसमें कोई नेट वृद्धि नहीं हुई. ऐसे में क्या सरकार सीएपीएफ की संख्या में भारी वृद्धि करने की प्लानिंग कर रही है?
बाकी की सरकार बड़े पैमाने पर क्लर्कों, अकाउंटैंट्स, स्टेनो और चतुर्थ श्रेणी (जिसे अब MTS कहा जाता है) से बनी है. डिजिटलीकरण के दौर में इसमें से ज्यादातर पद अप्रचलित या निरर्थक हो गए हैं. परिणामस्वरूप उनकी रिक्तियां (शायद 2 लाख से अधिक) पिछले कई वर्षों से नहीं भरी गई हैं. ऐसे में क्या सरकार का इरादा इन अप्रचलित या निरर्थक पदों के लिए लोगों को नियुक्त करने का है?
सरकार को रिक्तियों के बारे में बनी इस उधेड़बुन भरी स्थिति को साफ करना चाहिए. स्पष्टता के अभाव में संभावित आवेदकों में निराशा पैदा होने की संभावना है.
वाकई में सरकार को एक बिजनेस प्रोसेसिंग रीइंजीनियरिंग एक्सरसाइज (BPR) की जरूरत है.
चूंकि सरकार सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराने का कार्य करती है, इसलिए उसे इन कार्याें को कराने के लिए योग्य कर्मचारियों को नियुक्त करने की जरूरत है. इसके अलावा सरकार रेलवे और डाक जैसी कई वाणिज्यिक सेवाएं भी प्रदान करती है. ये दोनों (रेलवे और डाक) संगठन निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने में समर्थ नहीं हैं और सरकार के वित्त पर एक बड़ा बोझ हैं.
यदि इन दोनों संगठनों के पास एक पेशेवर बीपीआर है, तो कई और नौकरियां बेमानी हो जाएंगी. सरकार को इन विभागों की "रिक्तियों" को भरने के बजाय और भी कईयों को बाहर करना चाहिए. इसी तरह एमटीएस, क्लर्क, स्टेनोग्राफर और एकाउंटेंट की भर्ती भी पूरी तरह से गैर-जरूरी है.
जस्टिस, पर्यावरण और प्रदूषण की सफाई, श्रमिकों को कौशलवान बनाना, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं का विस्तार, बैक-स्टॉप बेरोजगारी बीमा और इसी तरह से ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां सरकार को और ज्यादा करने की जरूरत है. एक विस्तृत बीपीआर एक्सरसाइज से पता चलेगा कि इन क्षेत्रों में कितनी नौकरियों को सृजित करने की जरूरत है.
हालांकि, वहां भरने के लिए फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं हैं.
यहां पर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या इस मिशन से सरकारी लागत या खर्च काफी बढ़ जाएगा?
इसका जवाब है- हां, ऐसा होगा.
10 लाख वैकेंसी भरने वाले इस मिशन का वित्तीय प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार आगामी 18 महीनों में कितनी रिक्तियों को भरने में सक्षम है. 18 महीने की ये समय सीमा अब से लेकर अगले लोकसभा चुनाव (2024) से पहले तक की टाइमिंग से मेल खाती है.
मौजूदा सरकार ने हर साल औसतन एक लाख से भी कम लोगों की भर्ती की है. इस सरकार ने अपने नियोक्ताओं जैसे कर्मचारी चयन आयोग (स्टाफ सिलेक्शन कमीशन SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड RRB) आदि के फाइनल कैंडिडेट का चयन करने से पहले ऑनलाइन कॉमन एलिजिबिल्टी टेस्ट (सीईटी) आयोजित करने के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी NRA) को लाने का फैसला लिया.
अभी भी एनआरए को अस्तित्व में लाने की प्रक्रिया चल रही है और इसके टेस्टिंग प्रोटोकॉल का पता लगाना बाकी है.
20% 'रिक्तियों' को भी भरना काफी चुनौती भरा काम होगा. इस बात की पूरी संभावना है कि भर्ती एजेंसियां एक बड़ी बाधा साबित होंगी.
2022-23 में केंद्र सरकार का एस्टेब्लिशमेंट एक्सपेंडिचर (मुख्य तौर पर वेतन और पेंशन) बजट लगभग 7 लाख करोड़ रुपये का है.
स्टेटमेंट 22 के मुताबिक सरकार 2022-23 में 'वेतन', 'भत्ते' और 'यात्रा' पर 4.22 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी. इस हिसाब से 34.65 लाख कर्मचारियों के लिए सरकारी खजाने पर 12.2 लाख रुपये प्रति कर्मचारी खर्च आता है.
इस वजह से अगर केंद्र सरकार 10 लाख कर्मचारियों की भर्ती करने में सफल होती है, तो इसकी वजह से उसका सालाना एस्टेब्लिशमेंट बिल 1.22 लाख करोड़ रुपये बढ़ जाएगा.
सरकार पेंशन पर 1.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करती है. एनपीएस के दायरे में आने वाले नए कर्मचारी सरकारी पेंशन के लिए पात्र नहीं हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों ने गैर-जिम्मेदाराना तरीके से एनपीएस को बंद करना शुरू कर दिया है. एक जोखिम यह भी है कि केंद्र सरकार को भी यह रोग लग जाए और वह लोकलुभावन काम करते हुए समाजवादी बन जाए. अगर ऐसा हुआ तो पेंशन देनदारी (pension liabilities) भी अचानक से आसमान छू जाएगी.
'10 लाख रिक्तियों को भरने वाले' इस मिशन का फंक्शनल केस यानी कि कार्यात्मक मामला काफी कमजोर है. इसकी पूर्ति भी गंभीर तौर पर संदेहास्पद है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह मिशन स्पष्ट तौर पर करोड़ों बेरोजगार युवाओं में एक बड़ा उत्साह पैदा करेगा.
2024 के चुनाव को देखते हुए शायद असली मंशा यही है.
(सुभाष चंद्र गर्ग सुभंजलि के मुख्य नीति सलाहकार, द 10 ट्रिलियन ड्रीम के लेखक और भारत सरकार के वित्त और आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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