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भारत और चीन ने सीमा तनाव को कम करने की दिशा में पहला कदम उठाया है. हालांकि, दोनों देशों की तरफ से जारी आधिकारिक बयान को ध्यान से पढ़ने पर कई सवाल खड़े होते हैं.
चीनी विदेश मंत्री वांग यी, जो चीन-भारत बाउंड्री क्वेश्चन पर चीनी प्रतिनिधि भी हैं, ने कहा कि वो “भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ सीमा की स्थिति को आसान बनाने पर सकारात्मक समझौते पर पहुंचे हैं.” अपने बयान में, चीन ने मौजूदा स्थिति को आसान बनाने पर गंभीर चर्चा की बात कही. दोनों बयानों- विदेश मंत्रालय और चीन में- सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के महत्व के बारे में बात की गई.
एक्सपर्ट्स ने भारत और चीन के बयान में अंतर को लेकर चिंता जाहिर की है.
सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने दो ऐसे उदाहरण दिए, जहां चीन के बयान से भारत का बयान गायब था.
उन्होंने लिखा, “चीन के बयान से भारत का ये दावा गायब है कि दोनों पक्ष ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का कड़ाई से पालन’ करने पर सहमत हुए हैं और ‘स्थिति को बदलने के लिए कोई एकतरफा कार्रवाई नहीं करेंगे. भारत की तरफ से जो ‘डी-एस्केलेशन’, ‘earliest’, "expeditiously टर्म इस्तेमाल किए गए हैं, ऐसे शब्द चीन के बयान में नहीं मिलते. केवल “पीछे हटने” शब्द का इस्तेमाल चीन द्वारा जारी किए गए बयान में किया गया था, और वो भी आखिरी लाइन में बयान “ disengagement of frontline troops as early as possible” के साथ खत्म किया गया.
ब्रह्मा चेलानी ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा, “LAC के भारत की तरफ में ‘बफर जोन’ से सहमत होकर और, गलवान और श्योक नदियों के संगम के पश्चिम में भारतीय पैट्रोलिंग को प्रतिबंधित कर, भारत गलवान घाटी से बाहर रहेगा, इससे चीन के पूरी गलवान घाटी पर ताजा दावे को बल मिलेगा. इसके भारत के पक्ष में होने की संभावना कम है.”
चीन में पूर्व राजदूत और डायरेक्टर ऑफ इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज, अशोक कांता ने द हिंदू से कहा, “डोकलाम में हमारे लिए सीख ये है कि LAC पर तनाव को खत्म करने के लिए पीछे हटना काफी नहीं है. ये जरूरी है कि हम बताएं कि कहां तक सैनिकों का पीछे हटना जरूरी है और यथास्थिति की बहाली के बिना कोई समझौता नहीं होना चाहिए.” भारत को क्यों ‘क्विक फिक्स’ का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए, इस बारे में बात करते हुए, उन्होंने जोर देकर कहा कि सिर्फ पीछे हटना काफी नहीं था.
द हिंदू ने रिपोर्ट में कहा है, “सूत्रों ने कहा कि पीएलए ने भूटान के साथ विवादित क्षेत्र के अंदर दो डामर सड़कें बनाई हैं, जो पूर्व और दक्षिण में दो चीनी सड़कों का विस्तार हैं.”
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन का बयान पूरे मुद्दे के लिए भारत पर उंगली उठा रहा है. अपने बयान में चीन इस बात का जिक्र नहीं कर रहा है कि पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) ने पहले मई में एक सैनिक योजना शुरू की थी.
लेह स्थित 14 कॉर्प्स के पूर्व जनरल ऑफिसर, लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा ने बयानों में कोई भी फिक्स टाइम नहीं होने की बात पर गौर किया. इंडिया टुडे से शर्मा ने कहा, “दोनों बयानों में टाइमलाइन को लेकर ‘जल्द से जल्द’ ही एक इशारा मिलता है. दोनों बयानों में एक फिक्स टाइमलाइन नहीं है, जो कि काफी नकारात्मक बात है.”
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