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बुधवार 16 जून को न्यूज़ एजेंसी ANI ने यह रिपोर्ट किया कि 'नए आईटी नियमों का अनुपालन करने में असफल' रहने के कारण ट्विटर (Twitter) को आईटी एक्ट के तहत प्राप्त 'लीगल प्रोटेक्शन' (Legal Protection) को सरकार ने समाप्त कर दिया है .केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी ट्विटर पर बयानों की सीरीज पोस्ट करते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि माइक्रो ब्लॉगिंग साइट टि्वटर के 'लीगल प्रोटेक्शन' को वापस लेने के पीछे सरकार का क्या तर्क है.
केंद्रीय मंत्री का यह बयान ट्विटर पर गाजियाबाद पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के घंटों बाद आया. यह पहली ऐसी घटना है और इसमें ट्विटर पर यह आरोप लगाया गया है कि उसने 72 वर्षीय मुस्लिम बुजुर्ग अब्दुल समद सैफी को लोनी में बुरी तरह मारे जाने से जुड़े ट्वीट्स को डिलीट नहीं किया था.
आईटी अधिनियम का सेक्शन 79 इंटरमीडियरीज को किसी भी ऐसे दायित्व से कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है जो किसी यूज़र द्वारा उस प्लेटफार्म पर पोस्ट किए गए कंटेंट से उत्पन्न हो सकता है.सेक्शन 79 के तहत प्राप्त कानूनी सुरक्षा इंटरमीडियरीज के लिए केंद्र सरकार और अदालतों द्वारा जारी नियमों एवं दिशानिर्देशों का पालन अनिवार्य करता है.
'इंटरमीडियरी' टर्म की परिभाषा आईटी एक्ट के सेक्शन 2(W) के अंतर्गत दी गई है.इसके अलावा आईटी नियमों का रूल 2(1)(V) 'सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरी'. (SSMI) को ऐसे सोशल मीडिया इंटरमीडियरी के रूप में परिभाषित करता है जिसपर भारत में रजिस्टर्ड यूजर्स की संख्या केंद्र सरकार द्वारा बताये गये सीमा के ऊपर हो.
आईटी नियमों का रूल 4, CCO को यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार बनाता है कि SSMI उचित नियमों और आईटी अधिनियम का अनुपालन कर रहा हो. नियमों में आगे प्रावधान है कि अगर CCO ऐसा करने में असफल रहता है तो उस पर अदालती कार्यवाही की जा सकती है.
टेक लॉ और पॉलिसी थिंक टैंक- सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC) ने 'द क्विंट' को बताया कि रूल 4 पर हर तरफ से चिंता जाहिर की जा रही है क्योंकि इससे भारत में सक्रिय सोशल मीडिया जॉइंट के कर्मचारियों पर आपराधिक दायित्व लागू किया जा सकेगा.
आईटी नियमों का रूल 7 यह प्रावधान करता है कि अगर कोई इंटरमीडियरी नियमों को मानने में असफल रहता है तो सेक्शन 79 के अंतर्गत प्राप्त 'लीगल प्रोटेक्शन' को वह खो देगा. अगर सरकार को यह लगे कि इंटरमीडियरी आवश्यक नियमों का पालन करने में विफल रहा है तो यह प्रावधान सरकार को इंटरमीडियरी के खिलाफ आईटी अधिनियम या भारतीय दंड संहिता(IPC) के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देता है.
हालांकि कानूनी कार्यवाही शुरू करने का मतलब यह नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खुद ब खुद सेक्शन 79 के तहत प्राप्त 'लीगल प्रोटेक्शन' खो देगा बल्कि इंटरमीडियरी के पास किसी भी अदालती कार्यवाही में अपने 'लीगल प्रोटेक्शन' को डिफेंड करने का विकल्प मौजूद होता है.
इसलिए केंद्र सरकार केवल नियमों को कथित तौर पर नहीं मानने के लिए ट्विटर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरु कर सकती है. वह एकतरफा रुप से इंटरमीडियरी का स्टेटस या ट्विटर को प्राप्त 'लीगल प्रोटेक्शन' को रद्द नहीं कर सकती.
टेक लॉ एक्सपर्ट और 'द डायलॉग' के फाउंडिंग डायरेक्टर काज़िम रिज़वी का मानना है कि ट्विटर ने अपना 'लीगल प्रोटेक्शन' खो दिया है या नहीं,यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर केवल न्यायपालिका के द्वारा दोनों पक्षों (ट्विटर और सरकार) के दलीलों को ध्यान में रखते हुए दिया जा सकता है .
आईटी नियमों के रूल 7 के अनुसार कोई इंटरमीडियरी अपना 'लीगल प्रोटेक्शन' खो सकता है और उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है, बशर्ते वह नियमों का पालन करने में असफल रहा हो. बावजूद इसके किसी इंटरमीडियरी ने अपना 'लीगल प्रोटेक्शन' खो दिया है या नहीं ,इसका फैसला न्यायपालिका द्वारा किया जाएगा ना कि सरकार के द्वारा.
इसके अलावा लीगल प्रोटेक्शन खो देने के बाद इंटरमीडियरी की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए और उस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं, यहअभी अदालत द्वारा तय किया जाता है ना कि सरकार के द्वारा.
रिज़वी का मानना है कि आईटी नियम ,2021 (जो पहले ही विभिन्न हाई कोर्टों के सामने लंबित है) के कुछ प्रावधानों की वैधता और संवैधानिकता पर अदालत की राय का भी ट्विटर के मामले पर फर्क पड़ेगा.
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