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"हम एक अर्से से ये शोर सुन रहे हैं. हिंदुस्तान को इस चीज़ से बचाओ. उस चीज़ से बचाओ, मगर वाक़िया ये है कि हिन्दुस्तान को उन लोगों से बचाना चाहिए जो इस क़िस्म का शोर पैदा कर रहे हैं. हिंदुस्तान को इन लीडरों से बचाओ जो मुल्क की फ़िज़ा बिगाड़ रहे हैं और अवाम को गुमराह कर रहे हैं."
कलम के ये बोल बेखौफ उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) के हैं, जिनको झूठी दुनिया का सच्चा अफ्साना-निगार कहा गया. एक ऐसे अफ्साना-निगार, जिन्होंने जिंदगी को एक बाजी की तरह खेला और हार कर भी जीत हासिल की. लोग उर्दू शायरी (Urdu Poetry) को अगर गालिब (Mirza Ghalib) के हवाले से जानते हैं, तो फिक्शन के लिए सआदत हसन मंटो का नाम सबसे पहले आता है. वो हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे (India-Pakistan Partition) पर सबसे बेहतरीन लिखने वालों में से एक रहे, लेकिन उसके बाद भी सआदत हसन मंटो को एक बदनाम और बेशर्म लेखक क्यों कहा गया?
11 मई 1912 को पंजाब के लुधियाना में जन्मे सआदत हसन को एक बदनाम, बेशर्म और बेखौफ लेखक कहा गया. इसकी वजह थी कि उन्होंने अपनी कलम हमेशा सीधी रखी और कभी किसी के तारीफों के पुल नहीं बांधे. इंकलाब के अफसाने लिखे, बंटवारे की त्रासदी के क़िस्से लिखे और औरत से लेकर मजलूमों के दुःख-दर्द और उनकी मजबूरियां भी उनकी कहानियों का हिस्सा हैं.
मंटो ने हिंदुस्तान के बंटवारे की तारीख को अपनी कलम से बेहद शानदार तरीके के बयान किया है. वो लिखते हैं...
सआदत हसन मंटो के ऊपर कई कहानियों को लेकर मुकदमे भी चले. इस लिस्ट में उनकी कहानी 'काली सलवार', 'ठंडा गोश्त', 'बू', 'धुआं' और 'ऊपर, नीचे और दरमियां' शामिल हैं. उन पर कई बार अश्लीलता के मुकदमे चले और पाकिस्तान में 3 महीने की कैद और 300 रुपया ज़ुर्माना भी हुआ.
कहा जाता है कि मंटो एक ही बैठकी में एक कहानी पूरी कर देते थे. उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में 270 अफसाने यानी कहानियां, 100 से ज्यादा ड्रामे, फिल्मों की कहानियां, संवाद और ढेरों नामवर और गुमनाम शख्सियात के रेखा चित्र लिखे.
मंटो ने 'ठंडा गोश्त' पर चलने वाले मुकदमे की पूरी जानकारी 'ठंडा गोश्त' नाम से छपने वाले कहानी संग्रह की प्रस्तावना में 'ज़हमत मेहर दरख़्शां' के नाम से लिखा है.
मंटो कहते हैं कि "वह सब कुछ जो अविभाजित भारत में लिखा गया है, उसका मालिक कौन है? क्या इसका भी बंटवारा किया जाएगा? क्या भारतीयों और पाकिस्तानियों की बुनियादी समस्याएं एक जैसी नही हैं? क्या हमारा देश धार्मिक देश है? देश के तो हम हर हाल में वफादार रहेंगे, लेकिन क्या हमें सरकार की आलोचना करने की इजाजत होगी? क्या आजादी के बाद, यहां के हालात गोरों की सरकार के हालात से अलग होंगे?"
कहा जाता है कि मंटो, जलियांवाला बाग में घंटों बैठकर अंग्रेजी हुकूमत के तख्तापलट के ख्वाब देखा करते थे. इसकी वजह ये थी कि मंटो ने सात साल की उम्र में जलियांवाला बाग खूनी नरसंहार का नजारा देखा और उसको अंदर ही अंदर कहीं महसूस किया. वक्त गुजरा और बदला लेकिन शायद मंटो के अंदर से वो दर्द नहीं निकल सका. जब उन्होंने कलम उठाई तो इसी पर आधारित पहली कहानी ‘तमाशा’ लिखी.
'तमाशा' में वो लिखते हैं...
हिंदी सिनेमा के कलाकार सुंदर श्याम चड्ढा और मंटो के बीच अच्छी दोस्ती थी. उनकी दोस्ती के किस्से आज भी सुने जाते हैं.
सआदत हसन मंटो ने अपने दोस्त की मौत पर तो लिखा ही, इसके अलावा उन्होंने अपने मौत के साल पहले ही खुद की कब्र पर लिखने के लिए लाइनें लिखीं, जो दर्दभरी होते हुए भी बहुत प्यारी थी...इसमें वो लिखते हैं...
सआदत हसन मंटो को और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने बात की JCB अवार्ड से सम्मानित उर्दू उपन्यासकार और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में उर्दू के प्रोफेसर खालिद जावेद (Khalid Jaweb) से. वो कहते हैं कि सआदत हसन मंटो ना सिर्फ उर्दू कहानी का सबसे बड़ा और इंकलाबी नाम है बल्कि भारत की जितनी जबाने हैं उन सबमें रिच कहानीकार हैं. किसी भी भाषा ने इतना अजीबोगरीब कहानी लिखने वाला नहीं पैदा किया.
प्रोफेसर खालिद जावेद आगे कहते हैं कि मंटो के अफसाने में ये है कि वो वैश्या आपकी बहन, बेटी, बीवी और मां भी हो सकती है. जो कहानियां मंटो ने विभाजन पर लिखी है, वो हमें झगझोर देती हैं.
प्रोफेसर खालिद जावेद आगे कहते हैं कि मंंटो के जमाने में लोग उन्हें नहीं पढ़ते थे. उनकी किताब लोग आलमारी में छिपा के रखते थे और अखबार में लपेटकर रखते थे. लेकिन आज ये हाल है कि मंटो के बिना लोग निवाला नहीं तोड़ सकते हैं. आज मंटो एक इंडस्ट्री बन गए हैं. मंटो की इंसानों से हमदर्दी और मोरल सिस्टम पर सवाल खड़ा करना और मोरल वैल्यू को कटघरे में खड़ा कर देना, जिसमें में हम अपने गुनाहों को याद करने लगते हैं. सआहद हसन मंटो एक अकेले ऐसे अफ्साना-निगार या कहानीकार हैं, जिनको पढ़कर हमें अपने गुनाह याद आ जाते हैं, दूसरों के नहीं.
सआदत हसन मंटो ने साल 1955 की 18 जनवरी को आखिरी सांस ली. उनको गुजरे हुए जमाने बीत गए लेकिन वो अपनी बातों और बागी लहजे के आज भी हमारे बीच जिंदा हैं.
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