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उत्तर प्रदेश में हुई लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) की घटना के लिए सीधे तौर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे को कसूरवार बताया जा रहा है. उनके ऊपर नामजद एफआईआर तक दर्ज हो चुकी है लेकिन अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई है. जबकि कुछ लोग इस घटना के लिए केंद्रीय मंत्री को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, क्योंकि बीते 25 सितंबर को उन्होंने किसानों को देख लेने और दो मिनट में दिमाग ठिकाने लगाने की धमकी दी थी. उनका एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो प्रदर्शनकारियों को चिढ़ाते हुए नजर आ रहे थे.
दावा है कि उनके इसी बयान के खिलाफ 3 अक्टूबर को किसान लखीमपुर खीरी के तिकुनिया पहुंचकर प्रदर्शन कर रहे थे. जब प्रदर्शनकारियों को पीछे से गाड़ी से रौंद दिया गया और फिर वहां हिंसा भड़क उठी. हालांकि पुलिस ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र पर अब तक कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया है, यहां तक कि इलाके की पुलिस इस मामले में कुछ भी खुलकर बोलने से बच रही है.
दरअसल बीजेपी मंत्री अजय मिश्र पर पहले भी हत्या का मुकदमा चल चुका है. चुनाव आयोग को दी गई एफिडेविट में मंत्री ने बताया है कि 8 जुलाई, 2000 को तिकुनिया में प्रभात गुप्ता की हत्या के आरोप में उनपर धारा 302 के तहत करीब 4 साल तक हत्या का मुकदमा चला. हालांकि मार्च, 2004 में उन्हें सेशन कोर्ट से ही बरी कर दिया गया. वैसे अजय मिश्र को छोड़ भी दें तो मोदी कैबिनेट में कई दागी मंत्री हैं.
2019 लोकसभा चुनाव के बाद मोदी मंत्रिमंडल में शामिल 57 मंत्रियों में से 22 मंत्रियों (39 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, जबकि 16 मंत्रियों (28 फीसदी) पर गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे थे. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक देश के गृह मंत्री अमित शाह पर ही 4 आपराधिक मामले अभी भी लंबित हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर भी कई गंभीर धाराओं में आपराधिक मामले चल चुके हैं.
2014 में विकास के मुद्दे पर सरकार में आने बाद बनाए गए मोदी मंत्रिमंडल में 20 दागी मंत्री (31 फीसदी) शामिल किए गए थे, इनमें से 11 मंत्रियों (17 फीसदी) पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज था. 2014 में 31 फीसदी दागी मंत्रियों की संख्या 2019 में बढ़कर 39 फीसदी हो गई और 2021 के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद ये आंकड़ा 42 फीसदी तक पहुंच गया. यानी इन 7 सालों में दागी मंत्रियों का विकास जरूर हुआ है.
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में चुने गए लोकसभा सांसदों में से 233 सांसदों (43 फीसदी) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से बीजेपी के 116, कांग्रेस के 29 और जेडीयू के 13 सांसद शामिल हैं. कुल 157 सांसदों (29 फीसदी) पर हत्या, बलात्कार, हत्या की कोशिश और महिलाओं के खिलाफ जैसी गंभीर अपराधों की धाराओं में मुकदमा दर्ज है. रिपोर्ट बताती है कि 2014 में दागी सांसदों की संख्या 185 (34 फीसदी) थी, जबकि 2009 में आपराधिक मामले झेल रहे सांसदों की संख्या 162 (30 फीसदी) थी.
जिस संसद में कानून बनाए और लागू किए जाते हैं, अगर वहां ही लगभग आधे सांसद दागी हों तो देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने और लखीमपुर खीरी जैसी घटना की पुनरावृत्ति न होने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा?
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Published: 06 Oct 2021,06:09 PM IST