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एक ऐसा दौर जब कांग्रेस के नेताओं के पार्टी छोड़ने, बीएसपी का बंटाधार होने और आरजेडी में झगड़े की खबरें स्वाभाविक लगने लगी हैं, लेकिन देश में विराट बहुमत के साथ विराजमान बीजेपी में भी पुरजोर कलह है. विचित्र किंतु सत्य, ये कलह काफी व्यापक है. बीजेपी में अंतर्कलह कहां-कहां है और क्यों है ये समझिए...
कुछ समय पहले हुए पंचायत चुनावों और कोविड महामारी में हुई मौतों को लेकर उत्तरप्रदेश में सियासी खींचतान शुरु हुई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ बैठक भी की. माना जाता है कि संघ की दखल के बाद मामला कुछ शांत हुआ.
अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सीएम चेहरे के लिए अभी से सवाल उठने लगे हैं. प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक सवाल के जवाब में पत्रकारों से कहा है कि चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ही मुख्यमंत्री तय करेगा. इससे पहले बीते भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने एटा में दावा किया था कि पार्टी अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ेगी. वहीं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पिछले सप्ताह बरेली में था कहा कि राज्य का आगामी विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा, यह पार्टी का संसदीय बोर्ड तय करेगा. जाहिर है यूपी के बीजेपी लीडर एक पेज पर नहीं हैं. इससे पहले कोरोना से कराहते मरीजों को लेकर संतोष गंगवार समेत राज्य के कई बीजेपी नेता योगी सरकार के कामकाज पर सवाल उठा चुके हैं.
कुछ महीने पहले पीएम नरेन्द्र मोदी के खास माने जाने वाले अरविंद कुमार शर्मा अपने रिटायरमेंट से पहले ही इस्तीफा देकर यूपी पहुंचे. आनन-फानन में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाकर सदन में भेज दिया गया. राजनीतिक जानकारों ने यह तक कहा कि अरविंद शर्मा मुख्यमंत्री भी बनाए जा सकते हैं. लेकिन उनके डिप्टी सीएम या फिर गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ कैबिनेट मंत्री बनने की चर्चाएं अधिक विश्वसनीय तरीके से की गईं.
5 महीने बीत जाने के बावजूद अरविंद शर्मा को न तो मंत्रिपरिषद में जगह दी गई और न ही कोई अन्य महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई. आखिरकार उन्हें उत्तरप्रदेश में बीजेपी का पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया. शर्मा को उपाध्यक्ष बना देने का साफ मतलब है कि फिलहाल उन्हें किनारे कर दिया गया है. कांग्रेस ने तो चुटकी भी ली है कि पीएमओ छोड़कर क्यों आए थे, प्रदेश उपाध्यक्ष बनने?
राजस्थान बीजेपी के अंदर चलने वाली जंग अब जुबानी हो गई है. इससे पहले वहां पोस्टर वार भी देखने को मिला था. यहां सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे खेमे के बीच खींचतान चल रही है. बीजेपी के पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत और प्रहलाद गुनेल, प्रताप सिंह सिंघवी के साथ पूर्व सांसद बहादुर सिंह कोली ने सार्वजनिक रूप से राजे को रेगिस्तानी राज्य में अपना एकमात्र नेता घोषित किया है. अपने बयानों में उन्होंने कहा कि राजस्थान में राजे ही बीजेपी हैं और बीजेपी ही राजे है. दरअसल इससे पहले बीजेपी के पोस्टर से वसुंधरा राजे की तस्वीर हटा दी गई थी. जिसको लेकर राजे समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया है. अब समर्थक कह रहे हैं कि राजस्थान में वसुंधरा का अभी तक कोई विकल्प नहीं है यह राज्य वसुंधरा के बिना अधूरा है.
वहीं राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया और राजस्थान में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा है कि, “पार्टी का संविधान सर्वोपरि है, जिसके लिए हमारे सभी कार्यकर्ता दिन-रात काम करते हैं, कोई भी व्यक्ति पार्टी से बड़ा नहीं है.”
पश्चिम बंगाल में चुनाव हारने के बाद बीजेपी का दामन कई नेता और कार्यकाताओं ने छोड़ दिया. BJP प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि उन्होंने टिकट वितरण और चुनाव प्रबंधन में टीएमसी दलबदलुओं को ज्यादा प्रमुखता दी थी. बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार मुकुल रॉय अपने बेटे शुभ्रांसु के साथ हाल ही में टीएमसी में दोबारा शामिल हो गए हैं.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के अंदर जारी घमासान की एक तस्वीर यह भी है कि वहां बीजेपी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय का विरोध शुरू हो गया है. कुछ दिन पहले कोलकाता में बीजेपी मुख्यालय के सामने ‘गो बैक टीएमसी सेटिंग मास्टर' के पोस्टर लगाए गए थे. ये पोस्टर किसने लगाए थे यह सामने नहीं आया है लेकिन विरोध तो स्पष्ट दिख रहा है. अलीपुर द्वार के जिलाध्यक्ष टीएमसी में आए. कई और बीजेपी विधायकों के पार्टी छोड़ने की चर्चा है.
त्रिपुरा में सीएम बिपल्व देव से उनकी ही पार्टी के नेता नाखुश हैं. कुछ विधायकों ने दिल्ली पहुंचकर सीएम के खिलाफ आवाज भी उठाई थी उसी का नतीजा रहा कि त्रिपुरा में चल रहे असंतोष को शांत कराने की जिम्मेदारी पार्टी महासचिव बीएल संतोष को सौंपी गई है. पार्टी में बगावत की आशंका के चलते संतोष कुछ दिन पहले त्रिपुरा दौरे पर गए थे. 2017 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए सुदीप रॉय बर्मन त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बिप्लब देब को चुनौती दे रहे हैं.
वहीं पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को झटका देने के बाद अब तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा में बीजेपी के बागियों को पार्टी में शामिल करने का प्रयास कर रही है. इसकी जिम्मेदारी हाल ही में भाजपा छोड़कर वापस टीएमसी में आने वाले मुकुल रॉय को दी गई है.
कर्नाटक बीजेपी में अंतर्कलह और मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को हटाने जाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. एमएलसी ए एच विश्वनाथ ने खुलेआम येदियुरप्पा को हटाने की मांग की थी और मुख्यमंत्री के छोटे बेटे बी वाई विजयेंद्र पर भ्रष्टाचार और प्रशासन में दखल देने के आरोप लगाए थे. वहीं येदियुरप्पा के मुख्य विरोधियों में से एक, हुबली-धारवाड़ पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र के BJP विधायक अरविंद बेलाड ने गुरुवार को कहा कि उनका ‘विश्वास' है कि उनका फोन टैप किया जा रहा है और उनका लगातार पीछा किया जा रहा है.
इन सबके बीच राज्य के प्रभारी और बीजेपी महासचिव अरुण सिंह ने मुख्यमंत्री और विधायकों से बातचीत की है. इससे यह स्पष्ट होता है कि कर्नाटक बीजेपी में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
कुछ दिनों पहले एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बीजेपी के सीनियर लीडर प्रभात झा और कैलाश विजयवर्गीय मुलाकात की. इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय की मुलाकात केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल हुई, फिर मध्यप्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा और सुहास भगत ने दिल्ली आकर प्रहलाद पटेल से भेंट की. इसके बाद से एमपी में सियासी गर्मी बढ़ गई है. 2018 विधानसभा चुनाव शिवराज के नेतृत्व में लड़ा गया था, जिसमें पार्टी चुनाव हार गई और 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई, लेकिन कुछ ही महीनों बाद मार्च 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों ने कांग्रेस की सरकार से हाथ खींच लिया जिससे सरकार गिर गई थी. इसके बाद एक बार फिर प्रदेश में शिवराज सरकार आई लेकिन इस बार दबाव के साथ आई. दबाव सिंधिया का. हाल ही में हुए दमोह उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. इससे भी शिवराज पर दबाव बना है.
बता दें कि कुछ दिन पहले ही मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने शिवराज सरकार की कैबिनेट मीटिंग के बीच में ही नर्मदा घाटी विकास परियोजनाओं में बजट से ज्यादा छूट दिए जाने के प्रस्ताव का विरोध किया था. विरोध इस कदर बढ़ा कि कुछ विधायक नरोत्तम के पाले में, तो वहीं कुछ विधायक शिवराज सिंह की तरफ से बोलने लगे थे.
वहीं अब दिल्ली से लेकर भोपाल तक मध्यप्रदेश की राजनीति के दिग्गजों का उठना-बैठना और मिलना-मिलाना जारी है. बैठक करने वाले इन सारे नेताओं को शिवराज विरोधी गुट माना जाता रहा है. इन सब घटनाओं को देखें तो यह कहा जा सकता है कि एमपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
उत्तराखंड में अंतर्कलह के बाद ही भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री को बदला है. हाल ही में उत्तराखंड में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच एक दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई देखने को मिली है. मौजूदा मुख्यमंत्री ने कुंभ मेले के दौरान फर्जी कोविड-19 परीक्षण घोटाले के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये सब उनके पद संभालने से पहले हुआ था और उन्होंने इसकी जांच के आदेश दिए हैं. वहीं इस मामले पर त्रिवेंद्र सिंह ने पलटवार करते हुए न्यायिक जांच की मांग की है. उन्होंन कहा है कि ‘मैं विशेष एसआईटी के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन लोगों का अदालत पर अधिक विश्वास है.
गुजरात में प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. गुजरात के विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का समय बचा है. ऐसे में पार्टी ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है लेकिन रूपाणी बनाम पाटिल के बीच चल रही सियासी खींचतान उसे मुश्किल में डाल सकती है. हाल ही में 19 मई को पीएम मोदी गुजरात दौरे पर आए थे और उन्होंने रूपाणी के साथ ताउते तूफान से प्रभावित राज्य के इलाकों का हवाई सर्वे किया था. इसके बाद मोदी ने सीआर पाटिल के साथ अलग से बैठक की और इससे रूपाणी को दूर रखा गया. इससे कहीं न कहीं यह राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की गई कि पाटिल की मोदी तक सीधी राजनीतिक पहुंच है और मोदी का समर्थन भी उन्हें हासिल है.
बीते अप्रैल को जब सीआर पाटिल ने रेमेडिसिवर इंजेक्शन के 5 हजार वाइल बांटे थे तो इसे लेकर काफी हंगामा हुआ था. इस बारे में जब सीएम रूपाणी से पूछा गया कि पाटिल के पास इतने सारे वाइल कहां से आए तो उन्होंने कहा कि वे लोग पाटिल से ही पूछें.
गोवा में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे के बीच हालात सामान्य नहीं हैं. दोनों नेताओं के बीच कोविड महामारी के दौरान से ही खींचतान चल रही है. बता दें कि गोवा में जब 4 दिन के भीतर 75 मौतें हुई थीं तब गोवा सरकार पर सवाल उठे थे. लेकिन उस समय यह बातें भी सामने आई थीं कि यह सब कुछ इसलिए हुआ क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बीच तालमेल नहीं है. सावंत ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन राणे बोले कि ऑक्सीजन की कमी से GMC में मौतें हो रही हैं. उस समय जेपी नड्डा ने दोनों नेताओं से बात कर उन्हें अपने बीच के मतभेदों को भुलाकर राज्य की स्थिति नियंत्रित करने की सलाह भी दी थी. राणे 2017 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे.
असम में इस बार बीजेपी ने अपने सिटिंग सीएम सर्बानंद सोनोवाल को दूसरा मौका न देकर हेमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया है. बीजेपी के लिए यह निर्णय आसान नहीं था क्योंकि हेमंत कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे. ऐसे में अन्य राज्यों में भी बगावत करने वाले नेताओं के मुखर होने के दरवाजे खुल गए हैं. हेमंत को सीएम बनाने का फैसला BJP के लिए जरूरी और मजबूरी रहा. अगर पार्टी हेमंत को सीएम नहीं बनाती तो असम में बगावत होने की आशंका होती. अब हेमंत अपने रुतबे से नॉर्थ-ईस्ट में पार्टी का बड़ा चेहरा बन गए है.
असम में 2016 के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कहा था कि चुनावों के बाद असम में सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में सर्वत्र आनंद और स्वर्णमय असम होगा. लेकिन अबकी बार हेंमत बिस्वा सरमा के आगे क्या BJP झुक गई?
कुछ महीने पहले बजट पर चर्चा कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी दिल्ली से रायपुर पहुंचे थे. बीजेपी प्रदेश मुख्यालय में कार्यक्रम था. लेकिन पार्टी के ही बड़े नेता और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को इसकी जानकारी नहीं थी. जब वो इस कार्यक्रम में पहुंचे तो पूर्व हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन भूपेन्द्र सवन्नी से उनकी तनातनी हो गई. चमचागीरी करने का आरोप लगाया गया इसके बाद कांग्रेस की ओर कहा गया कि भाजपा में गुटबाजी सतह पर आ चुकी है. कांग्रेस की ओर से इस घटना का वीडियो भी ट्वीट किया गया था. कांग्रेस के मंत्री रविंद्र चौबे ने भारतीय जनता पार्टी में आंतरिक कलह की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. भारतीय जनता पार्टी में वन मैन शो के आधार पर काम हो रहा है. इसी वजह से पार्टी के तमाम जनप्रतिनिधि, बड़े नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं.
मामला सिर्फ अंदरूनी लड़ाई का नहीं है. कुछ राज्यों में बीजेपी का सहयोगी दलों से भी मनमुटाव है.
बिहार में जदयू और बीजेपी के बीच विरोध दिखने लगा है. हाल ही में बीजेपी एमएलसी टुन्ना पांडेय ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने कहा कि मैं नीतीश कुमार जिंदाबाद नहीं कहूंगा. नीतीश परिस्थितियों के सीएम हैं. टुन्ना ने कहा कि नीतीश हमारे नेता नहीं हैं, हां वह एनडीए का हिस्सा हैं और बिहार के मुख्यमंत्री जरूर हैं. मेरे लिए सिवान की जनता ही सबकुछ है. टुन्ना ने कहा था कि पिछले साल संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जनता ने तेजस्वी यादव को सबसे अधिक मत देकर चुना था, लेकिन नीतीश कुमार ने सरकार तंत्र का इस्तेमाल करते हुए सत्ता पा ली. टुन्ना पर पार्टी ने एक्शन लिया लेकिन एक वर्चुअल मीटिं में टुन्ना नजर आए.
वहीं जदयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि जो नीतीश कुमार पर सवाल करेगा उसकी अंगुली काट लेंगे.
लेकिन मामला सिर्फ टुन्ना का नही. चुनाव के वक्त जब LJP ने JDU का विरोध किया तो यही विश्लेषण हुआ कि ‘हनुमान’ चिराग को बीजेपी के प्रभुओं का आशीर्वाद है. नीतीश की सीटें बहुत घट गईं तो यही कहा गया कि BJP ने उन्हें छोटा आई बना दिया,
पंजाब की राजनीति में 22 वर्षों तक BJP के साथ रहने वाले शिरोमणि अकाली दल ने पिछले साल NDA से अलग होने का फैसला किया था. गठबंधन से अलग होने के पहले अकाली दल की ओर मंत्री हरसिमरत कौर ने मोदी सरकार की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. BJP का साथ छोड़ने की मुख्य वजह कृषि कानून थे.
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Published: 23 Jun 2021,08:25 AM IST