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G20 के चीफ कोऑर्डिनेटर हर्ष वर्धन श्रृंगला दार्जिलिंग से लड़ेंगे लोकसभा चुनाव?

Darjeeling Loksabha Seat: दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर BJP ने करीब-करीब हमेशा ही बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.

मधुश्री गोस्वामी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>G20 के मुख्य समन्वयक हर्ष वर्धन श्रृंगला (बाएं से पहले) शनिवार, 9 सितंबर को नई दिल्ली के भारत मंडपम में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक प्रदर्शनी-सह-बिक्री, G20 शिल्प बाजार का दौरा करते हुए.</p></div>
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G20 के मुख्य समन्वयक हर्ष वर्धन श्रृंगला (बाएं से पहले) शनिवार, 9 सितंबर को नई दिल्ली के भारत मंडपम में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक प्रदर्शनी-सह-बिक्री, G20 शिल्प बाजार का दौरा करते हुए.

(फोटो: PTI)

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पिछले हफ्ते वरिष्ठ पत्रकार अनीता कात्याल ने एक ओपिनियन कॉलम में यह बात रखी कि किस तरह रिटायर्ड डिप्लोमैट ब्यूरोक्रेट्स, खासतौर से पूर्व डिप्लोमैट, “स्पष्ट रूप से नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के सबसे पसंदीदा लोग हैं.”

उन्होंने यह भी कहा कि एस. जयशंकर, हरदीप सिंह पुरी, आरके सिंह और अश्विनी वैष्णव जैसे ब्यूरोक्रेट्स को सरकार में शामिल करने के बाद राजधानी में इस बात की जोरदार चर्चाएं हैं कि बीजेपी पूर्व विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में दार्जिलिंग सीट से मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है.

यह खबर ऐसे समय पर आई है जब श्रृंगला G20 के चीफ कोऑर्डिनेटर के तौर पर आज के समय में सबसे चर्चित शख्सियत हैं.

जैसा कि शोभा डे ने 'द वीक' में एक कॉलम में लिखा है, “अपने आप में सिमटे रहने वाले एक ताकतवर शख्स के लगातार और असरदार उत्थान के मामले में कुछ भी “भाग्य से” नहीं हुआ है. उन्होंने भारतीय विदेश सेवा से जुड़ने के समय से ही भारत की नीति को हर तरह से सही दिशा में आगे बढ़ाया है.”

लेकिन क्या भारत के सबसे प्रतिष्ठित राजनयिकों में से एक का ‘उदय’ BJP के लिए चुनावी फायदे में भी तब्दील होगा?

'प्रतिष्ठित पारिवारिक पृष्ठभूमि वाला एक सच्चा गोरखा छोरा'

अनीता कात्याल ने लिखा है कि BJP ने किस तरह दार्जिलिंग और सिक्किम इलाके से आने वाले श्रृंगला को चुना– जो घर पर नेपाली भाषा बोलते हुए बड़े हुए हैं. उनके पिता सिक्किमी बौद्ध हैं, जबकि मां नेपाली हिंदू हैं.

दार्जिलिंग के सेंट जोसेफ कॉलेज में जनसंचार और पत्रकारिता के असिस्टेंट प्रोफेसर विक्रम राय क्विंट हिंदी से कहते हैं, “श्रृंगला के परिवार का दार्जिलिंग के साथ-साथ सिक्किम में भी बहुत सम्मान है. हर्ष वर्धन को एक सच्चे गोरखा छोरा (son of the Gorkhas) के रूप में देखा जाता है. देश के इस इलाके से बहुत ही कम लोग उन ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं, जहां वह पहुंचे हैं.”

श्रृंगला की जीवनी नॉट एन एक्सिडेंटल राइज लिखने वाली दीपमाला रोका ने क्विंट हिंदी से कहा कि उनके परिवार का समाजसेवा और कारोबार के क्षेत्र में बहुत सम्मान है.

श्रृंगला के दादा एक सफल कारोबारी थे, जिन्होंने दार्जिलिंग शहर और यहां के स्कूलों और दूसरे संस्थानों में प्रोसेस्ड फूड्स से लेकर फलों और सब्जियों तक की सप्लाई करने वाला बड़ा कारोबार खड़ा किया. उनके दादा के भाई दार्जिलिंग के होटल विंडमेयर के मालिक थे, जो आज भी नामी होटलों में से एक है.

श्रृंगला परिवार भारत के उन दो परिवारों में से एक है, जिसने देश को एक से ज्यादा विदेश सचिव दिए हैं.

मार्च 2001 और जून 2002 के बीच श्रृंगला की चाची चोकिला अय्यर भारत की पहली महिला विदेश सचिव थीं. यह गौरव हासिल करने वाला सिर्फ एक और भारतीय परिवार मशहूर मेनन परिवार है (केपीएस मेनन भारत के पहले विदेश सचिव थे, केपीएस मेनन [जूनियर] भारत के 15वें विदेश सचिव थे, और शिवशंकर मेनन भारत के 27वें विदेश सचिव थे).
दीपमाला रोका

विक्रम राय बताते हैं, “हर्षवर्धन को उनके विनम्र स्वभाव और जमीन से जुड़ाव के चलते ज्यादा पसंद किया जाता है. वह जमीन से जुड़े राजनयिक हैं– और उन्होंने कई बार दार्जिलिंग के लोगों की मदद की है. हाल ही में कोविड-19 ​​महामारी के दौरान उन्होंने भारत के बाहर दूसरे देशों में फंसे लोगों की मदद की और उनकी सुरक्षित स्वदेश वापसी कराई."

हालांकि, 'गोरखा छोरा' असल में कभी दार्जिलिंग में नहीं रहा या उनका जन्म भी वहां नहीं हुआ. उनका जन्म मुंबई में हुआ था, उन्होंने राजस्थान के अजमेर में मेयो स्कूल से पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की.

दीपमाला रोका बताती हैं, "लेकिन वह हमेशा दार्जिलिंग में अपनी जड़ों से जुड़े रहे. छुट्टियों का मतलब हमेशा दार्जिलिंग का दौरा होता था. ठीक उसी तरह जैसा कि इस पहाड़ी शहर की धार्मिक संस्कृति बौद्ध और हिंदू धर्म घरों में तालमेल के साथ दिखती है, श्रृंगला और उनके भाई का पालन-पोषण उसी संस्कृति में हुआ. उनके पिता बौद्ध थे, लेकिन बौद्ध धर्म की ही तरह हिंदू धर्म का भी पालन करते थे. उनकी मां हिंदू थीं. घर में दोनों परंपराओं के लिए सम्मान का था."

श्रृंगला का कद बढ़ाने का कोशिश

दार्जिलिंग में श्रृंगला के सामाजिक कद को बढ़ाने वाली बात इस साल की शुरुआत में अप्रैल में दार्जिलिंग में हुई तीन दिवसीय G20 टूरिज्म बैठक थी. यह इस इलाके में अपनी तरह का पहला आयोजन था– और इसके पीछे श्रृंगला को ही इसे बढ़ावा देने वाले शख्स के तौर पर देखा गया.

अप्रैल 2023 में दार्जिलिंग के राजभवन में दूसरे देशों के प्रतिनिधियों के साथ श्रृंगला और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस.

(फोटो: फेसबुक/हर्ष वी श्रृंगला)

सिलीगुड़ी में एक वरिष्ठ नेपाली पत्रकार ने नाम न छपने की शर्त पर क्विंट हिंदी से कहा, "आपको यहां होने वाले ऐसे आयोजन के राजनीतिक महत्व को समझना होगा. 60, 70 और 80 के दशक की शुरुआत में दार्जिलिंग पहाड़ियों की खुशहाल अर्थव्यवस्था टूरिज्म और शिक्षा पर निर्भर थी. इसे इस बात से बढ़ावा मिला कि कई बॉलीवुड फिल्में (जैसे आराधना और मेरा नाम जोकर) यहां के शानदार नजारों को दर्शाते हुए फिल्माई गई थीं. मगर 1986 में अलग राज्य गोरखालैंड के लिए हिंसक आंदोलन शुरू होने के बाद हमारे लिए हालात तेजी से बदतर होते चले गए, जिससे हम कभी उबर नहीं पाए.

वह कहते हैं, “हम इस बड़े झटके से उबरने ही वाले थे कि 2007 में अलग राज्य गोरखालैंड के लिए नए सिरे से आंदोलन शुरू हो गया, जिसका नतीजा अंत में 2017 में 104 दिनों की हड़ताल में रूप में सामने आया– और इन सबके साथ कोविड​​-19 के बाद हमारे उद्योग लगभग खत्म हो गए, जिनमें चाय उद्योग भी शामिल है.”

इसलिए G20 जैसे कार्यक्रम की मेजबानी करने का फैसला एक संकेत था कि क्षेत्र में चीजें धीरे-धीरे ठीक हो रही हैं. और चीफ कोऑर्डिनेटर होने के नाते दार्जिलिंग में इस तरह का एक बड़ा कार्यक्रम करने के फैसले के पीछे श्रृंगला का दिमाग माना जा रहा था, जिससे लोगों की क्षमता पर उनके भरोसे की पुष्टि हुई.
वरिष्ठ नेपाली पत्रकार

असल में श्रृंगला के प्रोफाइल को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ महीनों में सचेत कोशिशें की जा रही हैं. पहाड़ियों में तीन दिवसीय बैठक के कुछ दिनों बाद दार्जिलिंग में श्रृंगला की जीवनी, नॉट एन एक्सिडेंटल राइज लॉन्च की गई.

दार्जिलिंग में अपनी चाची चोकिला अय्यर (बाएं) के साथ ‘नॉट एन एक्सिडेंटल राइज’ किताब के लॉन्च के मौके पर हर्ष वर्धन श्रृंगला (पारंपरिक नेपाली टोपी पहने हुए).

(फोटो: फेसबुक/हर्ष वी श्रृंगला)

दार्जिलिंग में एक खास कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहां अंग्रेजी संस्करण के साथ नेपाली भाषा में किताब का डिजिटल संस्करण जारी किया गया. बंगाली अनुवाद पर भी काम चल रहा है.

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BJP में 'बाहरी' लोगों को टिकट देने का ट्रेंड

दार्जिलिंग पहाड़ियों ने साल 2009 में BJP को पश्चिम बंगाल से अपना पहला सांसद दिया था, जब राजस्थान के बाड़मेर के रहने वाले जसवंत सिंह ने बिमल गुरुंग की अगुवाई वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के समर्थन से सीट जीती थी.

BJP ने 2014 के चुनाव में इस सीट से केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया को मैदान में उतारा. इस चुनाव में भी GJM ने "गोरखालैंड की मांग पर विचार करने के वादे" पर BJP का साथ दिया और अहलूवालिया को महत्वपूर्ण सीट जीतने में मदद की.

अहलूवालिया ने पूर्व भारतीय फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया को हराया, जो उस समय TMC में थे. हालांकि, अहलूवालिया को पहाड़ में 104 दिनों के बंद के दौरान और उसके बाद अपने चुनाव क्षेत्र से “गैरहाजिर” रहने के लिए बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा. बंद में गोरखालैंड समर्थक आंदोलनकारियों और राज्य के सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं और कम से कम 14 लोग मारे गए.

BJP ने 2019 में उद्योगपति राजू सिंह बिस्ता को मैदान में उतारा. मणिपुर में जन्मे बिस्ता हालांकि नेपाली भाषी हैं, फिर भी दार्जिलिंग पहाड़ियों में बहुत से लोग उन्हें “बाहरी शख्स” ही मानते हैं.

GJM ने उनका समर्थन किया था. लेकिन 2020 के अंत में, पार्टी सुप्रीमो बिमल गुरुंग ने ऐलान किया कि वह BJP की अगुवाई वाले NDA से रिश्ता तोड़ रहे हैं.

'दार्जिलिंग में BJP का समर्थन घट रहा है'

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “बाहरी होने के चलते, इन सभी सांसदों को गोरखालैंड के मुद्दे पर, जो कि पहाड़ में बहुसंख्यक लोगों की मांग है, ज्यादा सहानुभूति नहीं रखने वाले शख्स के तौर पर देखा जाता है. BJP के खिलाफ काफी असंतोष भी है. ऐसा खासकर इसलिए है क्योंकि पार्टी ने 2019 के घोषणापत्र में दार्जिलिंग के लिए स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा किया था, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हुआ है.”

दार्जिलिंग के पड़ोसी हिल स्टेशन कलिम्पोंग के विधायक रह चुके और पहाड़ में राजनीतिज्ञों के बीच बुद्धिजीवी के रूप में पहचान रखने वाले सेवानिवृत्त हाई स्कूल शिक्षक हरका बहादुर छेत्री भी वरिष्ठ पत्रकार की बात का समर्थन करते हैं.

BJP ने जनता की सहानुभूति खो दी है क्योंकि लोग समझ चुके हैं कि स्थायी राजनीतिक समाधान की उनकी बात जुमला के सिवा कुछ नहीं है. BJP के शीर्ष नेताओं के बार-बार सफाई देने के बावजूद कि वे पश्चिम बंगाल के बंटवारे के खिलाफ हैं, को राजनीतिक नेतृत्व और दार्जिलिंग के लोगों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है.
हरका बहादुर छेत्री

23 साल बाद हाल ही में कलिम्पोंग और दार्जिलिंग जिले में हुए दो स्तरीय पंचायत चुनाव शायद इसी असंतोष का इशारा देते हैं. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (BGPM) इस क्षेत्र में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरा है, जिसके उम्मीदवारों ने दोनों जिलों में बड़ी संख्या में पंचायत सीटें जीतीं हैं. गांवों के चुनावों में BGPM के खिलाफ आठ दलों का संयुक्त गोरखा गठबंधन बनाने के बावजूद BJP हार गई.

BGPM ने दार्जिलिंग जिले की 70 ग्राम पंचायतों में से 598 सीटों में से 349 सीटें जीतीं. वहीं, BJP की अगुवाई वाले यूनाइटेड गोरखा गठबंधन को केवल 59 सीटें मिलीं. BGPM ने दार्जिलिंग में 156 पंचायत समिति सीटों में से 96 सीटें जीतीं, जबकि BJP ने केवल 19 सीटें जीतीं. कलिम्पोंग में BGPM ने 42 ग्राम पंचायतों में 281 सीटों में से 168 सीटें जीतीं, जबकि BJP ने 29 सीटें जीतीं.

तो क्या श्रृंगला को मैदान में उतारने से BJP को दार्जिलिंग सीट फिर से जीतने में मदद मिलेगी?

श्रृंगला भले ही दार्जिलिंग और कलिम्पोंग की पहाड़ियों में लोकप्रिय हों, सिलीगुड़ी, नक्सलबाड़ी और चोपड़ा में रहने वाली मैदानी इलाकों की जनता के एक बड़े हिस्से ने उनके बारे में नहीं सुना है. मगर, लोग तो राजू बिस्ता या अहलूवालिया को भी नहीं जानते थे, फिर भी वे इस सीट से जीतने में कामयाब रहे.
विवेक छेत्री, वरिष्ठ पत्रकार

दार्जिलिंग लोकसभा सीट में सात इलाके शामिल हैं– दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, कुर्सियांग, माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, फासीदेवा और चोपड़ा.

दार्जिलिंग सीट से श्रृंगला को मैदान में उतारने के बारे में BJP ने अभी तक क्विंट हिंदी के सवालों पर जवाब नहीं दिया है.

पूर्व विधायक छेत्री का कहना है, “इसके अलावा, BGPM (जिसे TMC का समर्थन हासिल है) पहाड़ों में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है– और BJP को कड़ी लड़ाई लड़नी होगी.”

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