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Hari Dev Joshi: राजस्थान का वह मुख्यमंत्री जिसने कभी 'हार' का मुंह नहीं देखा

Rajasthan Politics: जब हरिदेव जोशी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोक दिया गया

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Hari Dev Joshi: राजस्थान का वो मुख्यमंत्री जिसने कभी 'हार' का मुंह नहीं देखा</p></div>
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Hari Dev Joshi: राजस्थान का वो मुख्यमंत्री जिसने कभी 'हार' का मुंह नहीं देखा

फोटोः (उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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राजस्थान का वह मुख्यमंत्री जिसका एक हाथ नहीं था, लेकिन उसकी सियासत पर पकड़ इतनी मजबूत थी कि उसने 10 बार चुनाव लड़ा और हर बार जीत हासिल की. राजस्थान का तीन बार मुख्यमंत्री बना, लेकिन दुर्भाग्य कहें या कुछ और वो कभी भी 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. एक बार तो उसे ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोक दिया गया. आज इस वीडियो में इसी नेता के बार में बताएंगे कि कैसे इंदिरा गांधी की नापसंद होते हुए भी उसने राजस्थान की गद्दी पर बड़े-बड़े धुरंधरों को पीछे छोड़ खुद को स्थापित किया.

साल 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. राजस्थान से कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी. इस बात को लेकर राजीव गांधी बहुत नाराज थे. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर और प्रदेश अध्यक्ष अशोक गहलोत से इस्तीफा मांग लिया. अभी एक साल पहले ही राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को हटाकर शिवचरण माथुर को राजस्थान की कमान सौंपी थी और हरिदेव जोशी को यहां से हटाकर असम का राज्यपाल बना दिया था.

लेकिन, चुनाव परिणामों से नाराज राजीव गांधी ने दोबारा राजस्थान की कमान हरिदेव जोशी के हाथों में सौंपने की सोची. क्योंकि, कुछ ही महीनों बाद राजस्थान विधानसभा के चुनाव होने थे. इसलिए हरिदेव जोशी को असम के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिलवाकर राजस्थान बुलाया गया. तय हुआ कि 3 दिसंबर को हरिदेव जोशी तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. नए मुख्यमंत्री की शपथ की तैयारी पूरी हो चुकी थी.

हरिदेव जोशी अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेने से पहले कांग्रेस ऑफिस पहुंचे तो उनका तिलक लगाकर स्वागत किया गया. निर्वाचित मुख्यमंत्री वहां से शपथ के लिए रवाना हो गए. तभी राजभवन के मुख्य सचिव ने एक एनाउंसमेंट की कि मुख्यमंत्री के शपथ का समारोह किसी कारणवश स्थगित किया जाता है और अगले कार्यक्रम की सूचना आपको जल्दी ही दी जाएगी. इस एनाउंसमेंट की आवाज जैसे ही वहां बैठे लोग के कानों तक पहुंची वो अवाक रह गए.

दरअसल, हुआ ये था कि हरिदेव जोशी ने असम के राज्यपाल पद से इस्तीफा तो दे दिया था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमण ने इस्तीफा स्वीकर नहीं किया था. इसके बाद हरकत में आए आलाकमान ने तुरंत राष्ट्रपति से संपर्क साधा, फिर शाम तक हरिदेव जोशी का इस्तीफा स्वीकर कर लिया गया. फिर 4 दिसंबर साल 1989 को हरिदेव जोशी राजस्थान के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.
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हरिदेव जोशी का जन्म राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में 17 दिसंबर साल 1921 में खांदू गांव में हुआ था. ये इलाका आदिवासी इलाका है, तब ये डूंगरपुर रियासत के अधीन आता था. करीब 10 साल की उम्र में हरिदेव का बांया हाथ टूट गया था. गांव के आस-पास डॉक्टर नहीं था तो घरवालों ने देसी इलाज करवाया. बांस की खपच्चियों से हाथ सीधा करवा दिया गया. लेकिन, उनके हाथ में हमेशा दर्द रहता था.

फिर, घरवाले इलाज के लिए शहर लेकर गए तो पता चला कि दवाइयों के अभाव में जोशी के हाथ में जहर फैल गया है. डॉक्टर ने कहा कि हाथ काटना पड़ेगा, नहीं तो रिस्क है. इसके बाद हरिदेव का बायां हाथ काट दिया गया. लेकिन, एक हाथ वाले हरिदेव जोशी ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने सियासत करने की सोची और कांग्रेस में सक्रिय हो गए.

साल 1950 में वह राजस्थान के प्रदेश महासचिव बनाए गए. फिर सूबे में पहला चुनाव हुआ तो हरिदेव जोशी डूंगरपुर सीट से लड़े और जीतकर विधायक बन गए. इसके बाद वो लगातार 10 बार विधायक चुनकर सदन पहुंचे. साल 1965 में उन्हें मोहनलाल सुखाड़िया की सरकार में मंत्री बनाया गया. जोशी साल 1971 की बरकतुल्लाह खान की सरकार में सबसे सीनियर मंत्री थे.

जब साल 1973 में बरकतुल्लाह खान की हार्ट अटैक से मौत हुई तो, सीनियर के नाते उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन, सबकी निगाहें इंदिरा गांधी की तरफ थीं. इंदिरा गांधी ने संदेश भेजा कि विधायक दल खुद अपना नेता चुने. क्योंकि, इंदिरा गांधी हरिदेव जोशी को लेकर भरोसेमंद नहीं थीं. उन्हें याद था कि जब राष्ट्रपति चुनाव के फेर में कांग्रेस दो फाड़ हुई थी, तब जोशी विरोधी खेमे में थे. हालांकि, बाद में वह इंदिरा कैंप में लौट आए थे. इसलिए इंदिरा गांधी नरम रूख अपनाए रखीं.

इंदिरा चाहती थीं कि विधायक दल के नेता रामनिवास मिर्धा चुने जाएं. अब रामनिवास मिर्धा और हरिदेव जोशी आमने-सामने थे. विधायक दल की वोटिंग से ऐन वक्त पहले कांग्रेस के विधायकों का एक गुट मिर्धा के पाले से खिसक लिया. कहा जाता है कि तब के दूसरे जाट नेता रहे परसराम मदेरणा और शीशराम ओला को हरिदेव जोशी ने साध लिया था. इसकी वजह से मिर्धा 13 वोट से विधायक दल के नेता के रूप में चुनाव हार गए.

हरिदेव जोशी को विधायक दल का नेता चुना गया. इसके बाद हरिदेव जोशी आलाकमान का आशीर्वाद पाने दिल्ली कूच कर गए. इंदिरा गांधी से मिले और इंदिरा ने अपनी सहम्मति जता दी और हरिदेव जोशी राजस्थान के पहली बार मुख्यमंत्री चुने गए.

अब आया साल 1977, जनता पार्टी की बदलाव की आंधी में राजस्थान से भी कांग्रेस का किला खिसक गया. हरिदेव जोशी अब पूर्व मुख्यमंत्री हो गए. साल 1980 के चुनाव में दोबारा कांग्रेस सत्ता में लौट आई, लेकिन तब तक राजस्थान का दूसरा नेता जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी का खास बन गया था. लिहाजा, राजस्थान की कमान जगन्नाथ पहाड़िया को सौंपी गई. इस बीच जून में संजय गांधी की एक हादसे में मौत हो गई. संजय गांधी की मौत के एक साल बाद ही पहाड़िया के हाथ से राजस्थान की कमान खिसक गई. फिर शिवचरण माथुर राजस्थान के नए मुख्यमंत्री बने. क्योंकि, शिवचरण माथुर इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के भी बहुत खास थे. लेकिन, इस बीच एक ऐसी घटना घटी की शिवचरण माथुर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

दरअसल हुआ ये कि 7 बार के विधायक रहे भरतपुर रियासत के पूर्व राजा मानसिंह का दिनदहाड़े एनकाउंटर कर दिया गया. इसके बाद आरोप लगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की शह पर ही पुलिस ने राजा की हत्या की है. मानसिंह की मौत के बाद पूरा भरतपुर जल उठा था. इसकी तपिश मथुरा, आगरा और पूरे राजस्थान में महसूस की गई थी. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी सिटिंग विधायक का दिनदहाड़े एनकाउंटर किया गया था. लिहाजा, शिवचरण माथुर की राजनीतिक बलि चढ़ गई.

इसके बाद हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया. जब, 1985 में विधानसभा के चुनाव हुए तो राजस्थान में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में वापस लौटी. तब राजीव गांधी ने राजस्थान की कमान हरिदेव जोशी के हाथों में सौंपी और फिर से हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री बने. लेकिन, हरिदेव जोशी ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाए. 4 सितंबर साल 1987 को एक ऐसी घटना घटती है कि वो पूरे देश को झकझोर कर रख देती है.

दरअसल, सीकर जिले के दीरावली गांव में एक 18 साल की विवाहिता रूप कंवल अपने पति की मौत के बाद उसके साथ ही चिता पर बैठ जाती है और उसकी जलकर मौत हो जाती है. इस रूप से कंवर सती कांड ने देश को हिला कर रख दिया था. इस मामले को लेकर विपक्ष इतना हमलावर हुआ कि विरोध बढ़ता देख हरिदेव जोशी को इस्तीफा देना पड़ा था.

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