अंबेडकर जन्म से हिंदू थे पर मरना हिंदू के रूप में नहीं चाहते थे. वो हमेशा कहा करते थे कि हिंदूओं को समझना चाहिए कि वे भारत के बीमार लोग हैं और ये भी कि उनकी बीमारी दूसरे भारतीयों के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए घातक है. उन्होंने धर्म परिवर्तन का फैसला किया. पहले वो मुसलमान बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने इस्लाम के बारे में गहरा अध्ययन किया. बाबा साहब की महात्मा गांधी से कभी नहीं बनी. एक बार तो उन्होंने संविधान को जलाने की बात तक कह दी थी. जिस संविधान को उन्होंने खुद बनाया था. आखिर ऐसा उन्होंने क्यों कहा था, और उनकी गांधी से क्यों नहीं बनी. इसके साथ ही ये भी जानेंगे की कि वो मुसलमान क्यों नहीं बने?
भारत की दो महान शख्सियतों भीमराव आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच कई मुलाकातें हुईं, लेकिन वो अपने मतभेदों को कभी पाट नहीं पाए. 14 अगस्त 1931 को गांधी से उनकी मुलाकात हुई, तो गांधी ने उनसे कहा कि मैं अछूतों की समस्याओं के बारे में तब से सोच रहा हूं जब आप पैदा भी नहीं हुए थे. मुझे ताज्जुब है कि इसके बावजूद आप मुझे उनका हितैशी नहीं मानते?"
धनंजय कीर आंबेडकर की जीवनी 'डॉक्टर आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन' में लिखते हैं, "आम्बेडकर ने गांधी से कहा अगर आप अछूतों के खैरख्वाह होते तो आपने कांग्रेस का सदस्य होने के लिए खादी पहनने की शर्त की बजाए अस्पृश्यता निवारण को पहली शर्त बनाया होता. किसी भी व्यक्ति को जिसने अपने घर में कम से कम एक अछूत व्यक्ति या महिला को नौकरी नहीं दी हो या उसने एक अछूत व्यक्ति के पालनपोषण का बीड़ा न उठाया हो या उसने कम से कम सप्ताह में एक बार किसी अछूत व्यक्ति के साथ खाना न खाया हो, उसे कांग्रेस का सदस्य बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी. आप ने कभी भी किसी जिला कांग्रेस पार्टी के उस अध्यक्ष को पार्टी से निष्कासित नहीं किया जो मंदिरों में अछूतों के प्रवेश का विरोध करते देखा गया हो."
बीबीसी से बात करते हुए अंबेडकर ने गांधी को लेकर साफ शब्दों में कहा था कि मुझे इस बात पर काफी हैरानी होती है कि पश्चिम के देश गांधी में इतनी दिलचस्पी क्यों लेते हैं?' जहां तक भारत की बात है तो वो देश के इतिहास का एक हिस्सा भर हैं, नए युग का निर्माण करने वाले व्यक्ति नहीं. गांधी की यादें इस देश के लोगों के जहन से जा चुकी हैं.
जब अंबेडकर धर्म परिवर्तन की बात सोच रहे थे, तब उन्होंने कई धर्मों को अपनाने पर विचार किया था. इस्लाम भी उनमें से एक था. धर्म परिवर्तन से पहले उन्होंने इस्लाम के बारे में भी गहरा अध्ययन किया था. वो जातिवाद और दलितों की स्थिति के मामले में इस्लाम को हिंदू धर्म से बहुत अलग नहीं मानते थे. अंबेडकर इस्लाम धर्म की कई कुरीतियों के खिलाफ थे. वो मानते थे कि इस्लाम में भी हिंदू धर्म की तरह ऊंची जातियों का बोलाबाला है और यहां भी दलित हाशिये पर हैं. भीमराव अंबेडकर मानते थे कि दलितों की जो दशा है उसके लिए दास प्रथा काफी हद तक जिम्मेदार है. इस्लाम में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है. अंबेडकर मानते थे कि मुसलमानों में भी जो हैसियत वाला वर्ग है वो हिंदू धर्म के ब्राह्मणों की तरह ही सोचता है. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश का भाग्य तब बदलेगा जब हिंदू और इस्लाम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त हो पाएंगे.
19 मार्च 1955 को अंबेडकर चौथे संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए सदन पहुंचे थे. इस दौरान ही राज्यसभा सांसद डॉ. अनूप सिंह ने अबेडकर के बयान को मुद्दा बना दिया और सवाल किया कि आपने संविधान को जलाने की बात क्यों कही. दरअसल, अंबेडकर ने कहा था कि “मेरे मित्र कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है. लेकिन, मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि संविधान को जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा. मुझे इसकी जरूरत नहीं है. यह किसी के लिए अच्छा नहीं है.”
अंबेडकर ने अपने ही बयान पर बड़े ही बेबाकी से जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि "हम मंदिर बनाते हैं ताकि भगवान उसमें आएं और रहने लगें. लेकिन, भगवान के आने से पहले अगर दानव आकर रहने लगें तो मंदिर को नष्ट करने के अलावा क्या रास्ता बचेगा. यह सोचकर कोई मंदिर नहीं बनाता है कि उसमें असुर आकर वास करने लगें. सभी चाहते हैं कि उस मंदिर में देवों का वास हो. यही कारण है कि उन्होंने संविधान को जलाने की बात की थी."
इस पर एक सांसद ने कहा था कि मंदिर को नष्ट करने के बजाय दानव को खत्म करने की बात क्यों नहीं करनी चाहिए. तब आंबेडकर ने इसका तीखा जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि "आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. हम में इतनी ताकत ही नहीं है. अगर आप ब्राह्मण और शतपथ ब्राह्मण पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि असुरों ने देवों को हमेशा पराजित किया. उनके पास ही अमृत था जिसे युद्ध में जीवित रहने के लिए देवों को लेकर भागना पड़ा था. आंबेडकर ने कहा था कि अगर संविधान को आगे लेकर जाना है तो एक बात याद रखनी होगी. उन्हें समझना होगा कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों हैं. अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है."
बाबा साहब आंबेडकर अपने ज़माने में भारत के संभवत: सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे. उन्होंने मुंबई के मशहूर एलफ़िस्टन कॉलेज से बीए की डिग्री ली थी. बाद में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थी. शुरू से ही वो पढ़ने, बागवानी करने और कुत्ते पालने के शौकीन थे. कहा जाता है कि उस जमाने में उनके पास देश में क़िताबों बेहतरीन संग्रह था. मशहूर किताब 'इनसाइड एशिया' के लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि "1938 में जब राजगृह में आंबेडकर से मेरी मुलाकात हुई थी तो उनके पास आठ हजार किताबें थीं. उनकी मौत के दिन तक ये संख्या बढ़ कर 35,000 हो चुकी थी."
करतार सिंह पोलोनियस ने चेन्नई से प्रकाशित होने वाले 'जय भीम' के 13 अप्रैल, 1947 के अंक में लिखा था, "एक बार मैंने बाबा साहेब से पूछा था कि आप इतनी सारी किताबें कैसे पढ़ पाते हैं. उनका जवाब था, लगातार किताबें पढ़ते रहने से उन्हें ये अनुभव हो गया था कि किस तरह किताब के मूलमंत्र को आत्मसात कर उसकी फिजूल की चीजों को दरकिनार कर दिया जाए. उन्होंने मुझे बताया था कि तीन किताबों का उनके ऊपर सबसे अधिक असर हुआ था. पहली थी 'लाइफ ऑफ टॉलस्टाय', दूसरी विक्टर ह्यूगो की 'ले मिजराब्ल' और तीसरी थॉमस हार्डी की 'फार फ्रॉम द मैडिंग क्राउड.' किताबों को लेकर उनका प्यार इस हद तक था कि वो सुबह होने तक किताबों में ही लीन रहते थे."
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना आज परवान चढ़ता दिख रहा है, लेकिन अंबेडकर इसे खतरा मानते थे. डॉक्टर आंबेडकर ने 1940 में ही धर्म आधारित राष्ट्र पाकिस्तान की मांग पर आगाह करते हुए कहा था कि अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा. हिंदू कुछ भी कहे, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक खतरा है. इस आधार पर लोकतंत्र के लायक नहीं है. हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए.
दरअसल, अंबेडकर द्वारा हिंदू राष्ट के विरोध का कारण केवल हिंदुओं का मुसलमानों के प्रति नफरत तक सीमित नहीं था. बल्कि वह 'हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों की तुलना में हिंदुओं के लिए ज्यादा खतरनाक मानते थे. वे हिंदू राष्ट्र को दलितों और महिलाओं के खिलाफ मानते थे.
उन्होंने साफ कहा था कि जाति व्यवस्था को बनाए रखने की अनिवार्य शर्त है कि महिलाओं को अंतरजातीय विवाह करने से रोका जाए. इसी स्थिति को तोड़ने के लिए उन्होंने हिंदू कोड बिल पेश किया था. उनके 'हिंदू राष्ट्र' को भारी खतरा मानने के पीछे, जातीय व्यवस्था से पैदा हुई असमानता एक बड़ा कारण थी, जो स्वतंत्रता, बराबरी, भाईचारे और लोकतंत्र का निषेध करती है. उनका मानना था कि इस असानता के रहते न तो वास्तविक स्वतंत्रता कायम हो सकती, न समता, स्वतंत्रता, समानता और ना ही किसी सामाजिक भाईचारे की कल्पना ही की जा सकती है.
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