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जवाहर लाल नेहरू को PM बनाने में मदद करने वाले कृपलानी उनके खिलाफ क्यों हुए थे?

JB Kripalani Death Anniversary: जब गांधी जी के स्वागत के लिए जे.बी. कृपलानी ने पेड़ पर चढ़कर तोड़ा था नारियल

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>जवाहर लाल नेहरू और जे.बी. कृपलानी</p></div>
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जवाहर लाल नेहरू और जे.बी. कृपलानी

(फोटोः उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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अप्रैल 1917, रात के करीब साढ़े नौ बजे. बिहार के मुजफ्फरपुर के डिग्री कॉलेज में इतिहास का एक युवा प्रोफेसर उम्र 29 साल. वह जब क्लब से अपने हॉस्टल लौटता है तो अपनी मेज पर एक टेलिग्राम रखा पाता है. जिसमें लिखा होता है कि अब से कुछ ही घंटे बाद महात्मा गांधी वहां ट्रेन से पहुंचने वाले हैं. युवा प्रोफेसर यह समझ नहीं पाता है कि इतने बड़े आदमी का स्वागत किस तरह से किया जाए. तब तक उसका एक छात्र यह सलाह देता है कि इतने बड़े आदमी का स्वागत आरती उतार कर करना चाहिए. आसपास के बगीचों से फूल इकट्ठा किए जाते हैं, आरती के लिए हर चीज जमा होती है सिवाय नारियल के. रात इतनी हो गई थी कि बाजार से मंगाना भी मुमकिन न था, क्योंकि दुकानें भी बंद हो गई थीं. तब तक युवा प्रोफेसर की नजर अपने बगीचे के एक नारियल के पेड़ पर पड़ती है. वह झट से नारियल के पेड़ पर चढ़ जाता है और गांधी के स्वागत के लिए पेड़ से नारियल तोड़ लाता है. बाद में इस युवा प्रोफेसर ने अपनी आत्मकथा, 'माई टाइम्स' में इसका जिक्र किया है.

गांधी के स्वागत के लिए पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ लाने वाले युवा प्रोफेसर आचार्य जेबी कृपलानी थे. सियासत में आज बात उन्हीं की.

इस आर्टिकल में ये भी जानेंगे की नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने में मदद करने वाले जेबी कृपलानी आखिर नेहरू के खिलाफ ही अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आए? और आजाद भारत के पहले कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपलानी ने आखिर कांग्रेस क्यों छोड़ी? इसके साथ ये भी जानेंगे कि उन्हें सुचेता कृपलानी को लेकर ताने क्यों देते थे और गांधी, जेबी कृपलानी और सुचेता कृपलानी के विवाह के खिलाफ क्यों थे?. लेकिन, कहानी को आगे बढ़ाने से पहले एक अपील है. अगर आपको सियासत की मेरी कहानियां अच्छी लगती हैं, तो आप क्विंट मेंबर बनिए और हमें सपोर्ट कीजिए. इसके कई फायदे भी हैं, जिन्हें आप इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में देख सकते हैं.

जब पहली बार गांधी जी से मिले थे जे.बी. कृपलानी

15 अप्रैल,1917, रात के करीब एक बजे मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर पटना से आई एक ट्रेन रुकती है, जिसमें महात्मा गांधी सवार रहते हैं. गांधी के स्वागत के लिए जेबी कृपलानी अपने छात्रों के साथ पहले से ही आरती की थाली और एक लालटेन लेकर स्टेशन पर मौजूद रहते हैं. ट्रेन जैसे ही रूकती है, वह लालटेन लेकर पहले दर्जे के डिब्बे की तरफ गांधी जी को ढूंढने के लिए भागते हैं, लेकिन गांधी तीसरे दर्जे के डिब्बे में सफर कर रहे होते हैं. गांधी की आरती उतारी जाती है और नारियल फोड़ा जाता है. महात्मा गांधी और जेबी कृपलानी की ये पहली मुलाकात थी. कृपलानी अपनी किताब महात्मा गांधी में लिखते हैं कि उन्होंने महात्मा गांधी के बारे में बहुत सुना था और पत्रों के जरिए ही परिचित थे. इससे पहले वो कभी मिले नहीं थे. महात्मा गांधी के साथ उनकी ये पहली साक्षात मुलाकात थी.

गांधी से मिलने के बाद कृपलानी इतने प्रभावित हुए कि धीरे-धीरे उनका झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की तरफ होने लगा. चंपारण सत्याग्रह में कृपलानी ने गांधी जी के निकट सहयोगी के रूप में काम किया. उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया. इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी.

जे.बी कृपलानी और सुचेता के विवाह के खिलाफ क्यों थे गांधी?

गांधी जी के आश्रम में ही आचार्य जे.बी. कृपलानी की मुलाकात सुचेता कृपलानी से हुई थी. जब गांधी को इन दोनों की नजदीकियों का पता चला तो वह बहुत नाराज हुए. क्योंकि, आचार्य एक निष्ठावान गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे. गांधी जी को उम्मीद थी कि आचार्य कृपलानी केवल देश को ही प्राथमिकता देंगे. गांधी जी को लग रहा था कि अगर आचार्य गृहस्थ जीवन में पड़ गए तो वह देश को प्राथमिकता देना छोड़ देंगे. और दूसरा कारण ये था कि आचार्य और सुचेता की उम्र में भी काफी ज्यादा अंतर था. लेकिन, सुचेता गांधी को ये कहकर मनाने में सफल रहीं कि "अगर मैं आचार्य से शादी नहीं करूंगी, तो ये उनके साथ धोखा होगा. आपको परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है. अब आपको दो-दो कर्मचारी और मिल जायेंगे." गांधी की सहमति के बाद आचार्य जेबी कृपलानी और सुचेता कृपलानी शादी के बंधन में बंधे.

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जे.बी. कृपलानी ने नेहरू के पीएम बनाने में कैसे मदद की?

अब आया 1946. आंग्रेजों ने आजादी से एक साल पहले ही भारतीय हाथों में सत्ता दे दी थी. भारत में अंतरिम सरकार बननी थी. तय हुआ था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री बनेगा. उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे. वो पिछले छह साल से इस पद पर बने हुए थे.

महात्मा गांधी ने 20 अप्रैल 1946 को मौलाना को पत्र लिखकर कहा कि वे एक वक्तव्य जारी करें कि अब वह अध्‍यक्ष पद पर बने नहीं रहना चाहते हैं. अब तय हुआ कि 29 अप्रैल 1946 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाएगा जो अंतरिम सरकार में भारत का प्रधानमंत्री बनेगा. उस समय कृपलानी पार्टी के महासचिव थे.

परपंरा के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थीं और 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था. बची तीन कमेटियों ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था. किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने अध्यक्ष पद के लिए नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया था.

पार्टी के महासचिव कृपलानी ने पीसीसी के चुनाव की पर्ची गांधी की तरफ बढ़ा दी. पर्ची देखने के बाद गांधी ने कृपलानी की तरफ तिरछी नजर से देखा. कृपलानी समझ गए कि गांधी क्या चाहते हैं. उन्होंने नया प्रस्ताव तैयार कर नेहरू का नाम प्रस्तावित कर दिया. अब अध्यक्ष पद के लिए दो नाम आमने सामने थे. एक जवाहर लाल नेहरू और दूसरे सरदार पटेल. लेकिन, अंतिम चर्चा में गांधीजी ने पटेल को भी राजी कर लिया कि वो अपना नाम वापस ले लें.  इसके बाद कृपलानी ने ऐलान किया कि नेहरू को निर्विरोध अध्यक्ष चुना जाता है.

जब जे.बी. कृपलानी को चुना गया कांग्रेस अध्यक्ष

जब अध्यक्ष होने के नाते नेहरू का नाम पीएम पद के लिए चला गया तो अगला अध्यक्ष चुना जाना था. लिहाजा, जेबी कृपलानी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. लेकिन, एक साल बाद ही सरकार और संगठन के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कृपलानी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू से ली थी. कांग्रेस का अध्यक्ष बनना उनके लिए गौरव की बात थी. लेकिन, सरकार में बैठे कांग्रेस नेताओं की उपेक्षा से उनको निराशा हुई.

रामबहादुर राय, अपनी किताब शाश्वत विद्रोही राजनेता आचार्य जेबी कृपलानी में आचार्य के हवाले से लिखते हैं कि उनको सबसे ज्यादा निराशा सरदार पटेल से हुई. नेहरू और पटेल, दोनों सरकार के नीतिगत मामलों में कांग्रेस अध्यक्ष से कोई सलाह नहीं लेते थे. इसलिए संबंध तनाव पूर्ण हो गए थे. नेहरू और पटेल की देखादेखी दूसरे मंत्री भी कांग्रेस अध्यक्ष को महत्व नहीं देते थे.

सरदार पटेल अलग तरह से सोचते थे कि लोकतंत्र में सरकार केवल संसद के प्रति जवाबदेह होती है. लेकिन, कृपलानी चाहते थे कि आजादी के पहले कांग्रेस जैसी थी वैसी ही बनी रहे और हर मामले में सरकार, पार्टी से परामर्श ले. यही कारण था कि जेबी कृपलानी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अपनी नई पार्टी बनाई.

जब जे.बी. कृपलानी ने नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया

भारत की लोकतांत्रिक परम्पराओं के इतिहास में आचार्य कृपलानी का नाम इसलिए भी लिया जाता है क्योंकि वह पहले व्यक्ति थे जो पंडित नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इससे पहले कभी किसी विपक्षी नेता ने इस बारे में सोचा तक नहीं था. इस अविश्वास प्रस्ताव को संसद में आचार्य कृपलानी ने चीन का युद्ध हारने के बाद पेश किया था. हालांकि कांग्रेस का बहुमत होने के नाते वो गिर गया था, लेकिन सांकेतिक तौर पर इसका असर काफी गहरा था.

पंडित नेहरू के बाद कृपलानी इंदिरा के भी उतने ही विरोधी थे, जितने जेपी और राम मनोहर लोहिया थे.  इंदिरा का उन्होंने भी कई मौकों पर विरोध किया और इमरजेंसी के दौरान उनकी भी गिरफ्तारी हुई, बाद में  1982 में इलाहाबाद में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत पर तत्कालीन राष्ट्रपति एन संजीव रेड्डी ने कहा था कि "आचार्य जेबी कृपलानी की मौत से देश ने गांधीयुग के एक मसीहा को खो दिया."

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