मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Nitish Kumar और लालू यादव दोस्त से कैसे बन गए थे दुश्मन, क्या था बिहार भवन कांड?

Nitish Kumar और लालू यादव दोस्त से कैसे बन गए थे दुश्मन, क्या था बिहार भवन कांड?

Nitish Kumar और Lalu Prashad की दोस्ती, पहली मुलाकात कब हुई? 56 साल की पूरी कहानी

प्रवीण कुमार
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>शरद यादव के निवास में लालू प्रसाद यादव के साथ नीतीश कुमार</p></div>
i

शरद यादव के निवास में लालू प्रसाद यादव के साथ नीतीश कुमार

(फोटो: Hindustan Times)

advertisement

नीतीश-लालू (Nitish Kumar - Lalu Yadav) की दोस्ती भी इस रीयूनियन के साथ फुल सर्कल पर पहुंच चुकी है. छात्र आंदोलन के साथी ..सियासत में साथ बढ़े लेकिन फिर एक दूसरे कट्टर दुश्मन बन गए.. पलट, पलट कर देश की सियासी तस्वीर बदलते रहे..इसमें दोस्ती, दुश्मनी का फुल ट्विस्ट और ड्रामा है.

कहानी शुरु होती है पटना से. दोनों ही अपने शहर से पढाई के लिए पटना यूनिवर्सिटी आए. लालू प्रसाद यादव गोपालगंज से आकर पटना यूनिवर्सिटी के बीएन कॉलेज में दाखिला लिया और बाद में लॉ किया तो नीतीश कुमार बख्तियारपुर से आकर पटना यूनिवर्सिटी के साइंस कॉलेज से होते हुए बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचे. अशोक राजपथ से शुरु हुआ दोनों का ही सफर 1 अन्ने मार्ग तक पहुंचा

पटना यूनिवर्सिटी ऑफिस

(फोट:Hindustan Times)

लालू प्रसाद यादव

(फोटो सौजन्य: heritagetimes.in)

नीतीश पटना आए 1966 में . पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद कैंपस के बाहर एक हॉस्टल में रहने लगे. कुछ दिनों तक कृष्णा लॉज में रहने के बाद पटेल हॉस्टल चले गए. फिर नीतीश इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचे. लालू ने भी उस वक्त तक पटना यूनिवर्सिटी में एक दबंग और धाकड़ नेता के तौर पर अपनी पहचान बना ली थी. दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई. नीतीश बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज छात्र यूनियन के अध्यक्ष बने. और जब लालू ने पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के लिए लड़ाई लड़ी तो नीतीश ने लालू यादव को पूरी मदद की. जोरदार कैंपेन उन्होंने की. लेकिन लालू को नीतीश ने उस तरह से कभी पसंद नहीं किया. लेकिन नीतीश की दोस्ती उस वक्त शिवानंद तिवारी, रविशंकर प्रसाद, सरजू राय से ज्यादा रही और लालू से वैसी केमिस्ट्री नहीं थी.

लालू, नीतीश और जेपी

1974 में छात्र आंदोलन हुआ तो कैंपस में महंगाई को लेकर मूवमेंट ने जोर पकड़ा . लालू और नीतीश फिर साथ थे. स्टेज और स्ट्रीट में लालू की करिश्माई कारनामों से नीतीश ने ये मान लिया कि लालू पिछड़ों के बड़े नेता बनेंगे. फिर उनकी दोस्ती आगे और मजबूत होती गई. लालू खुद को नीतीश का दोस्त और सीनियर बताने लगे. दोनों की जोड़ी ने छात्रों का जबरदस्त आंदोलन बिहार में खड़ा किया। लालू लेकिन इसके हीरो बन गए। कुछ कुछ अपने अंदाज और भीड़ खींचू नेतागिरी से. नीतीश इंट्रोवर्ट और पढ़ालिखा टाइप थे. इसलिए जेपी को भी थोड़ी हिचकिचाहट उनको लेकर रही.

लालू के चाणक्य नीतीश

पटना यूनिवर्सिटी में लालू खुद को नीतीश का सीनियर मानते रहे. इमरजेंसी के बाद एक्टिव पॉलिटिक्स में भी वो उनके सीनियर बन गए. हालांकि दोनों की दोस्ती अब थोड़ी बढ़ गई थी. इमरजेंसी विरोधी लहर में साल 1977 में लालू यादव छपरा से चुनाव लड़े और जीते. इस कैंपेन में नीतीश कुमार समेत कई दोस्त नीतीश के साथ थे.

हालांकि ये लोकसभा जल्द भंग हो गई और फिर वो हार गए..लेकिन फिर 1980 में ही लालू छपरा से विधानसभा पहुंच गए. लेकिन चुनावी लड़ाई में छोटा भाई पीछे रह गया.

हरनौत से जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने डेब्यू किया लेकिन वो हार गए. लेकिन फिर 1985 में नीतीश ने विधानसभा का टिकट पक्का किया. विधानसभा में नेता के तौर पर एक तेज तर्रार छवि नीतीश की भी बनने लगी.बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर के बाद कौन की लड़ाई में बड़े भाई और छोटे भाई की बात चलने लगी. 1989 आते आते वीपी सिंह की सरकार आई तो दोनों ही भाइयों की किस्मत ने नया टर्न लिया. नीतीश को दिल्ली जाना था ... लेकिन तब बिहार में नेता विपक्ष की लड़ाई शुरू हो गई थी। इस वक्त छोटे भाई ने बड़े भाई की पूरी मदद की।

अपनी किताब सिंगल मैन में पत्रकार और लेखक संकर्षण ठाकुर लिखते हैं – नीतीश ने सिर्फ अहम भूमिका ही नहीं निभाई बल्कि लालू को नेता विपक्ष बनाने में सबसे ज्यादा रोल उनका था. नीतीश जानते थे कि नेता बनने के लिए जो कास्ट समीकरण और गणित चाहिए वो उनके पक्ष में नहीं है, इसलिए उन्होंने लालू की मदद करने की सोची.

हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि नीतीश सोचते थे कि रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में होगा. कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद नीतीश की मदद से लालू नेता विपक्ष बन गए और खुद वीपी सिंह सरकार में कृषि मंत्री.

तब नीतीश को लालू का चाणक्य कहा जाने लगा था.फिर जब 1990 का चुनाव हुआ तो जनता पार्टी चुनाव जीती और लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने. सियासत के जानकार कहते हैं दिल्ली में लालू यादव के पक्ष में पूरा माहौल और पैरवी करने वाले नेता नीतीश कुमार ही थे.

शरद यादव के निवास में लालू प्रसाद यादव के साथ नीतीश कुमार

(फोटो: Hindustan Times)

पटना के गांधी मैदान में लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. छोटे भाई नीतीश भी इस ताजपोशी में शामिल हुए.सियासी पंडित बताते हैं कि नीतीश अपनी बड़े भाई के फैसलों में शामिल होते थे और बड़ा भाई भी अपने छोटे भाई यानि नीतीश कुमार से बड़े मसलों पर सलाह मशविरा करते थे. लेकिन अक्सर जैसा होता है भाई –भाई की लड़ाई होती है... सत्ता का नशा लालू के सिर चढ़ने लगा और फिर खटपट शुरू हुई. सबसे पहला दरार आया दिल्ली के बिहार भवन में..जब नीतीश को लगा अब इनके साथ चलना संभव नहीं है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

दोस्ती में टर्निगं प्वाइंट और बिहार भवन कांड

लालू यादव लोकप्रियता के शिखर पर बढ़ते जा रहे थे। बिहार की जातीय राजनीति पर उनकी पकड़ बढ़ गई थी. नीतीश कुमार भी अब तक अपनी कोइरी-कुर्मी वोट बैंक के साथ धीरे धीरे जाति के नेता बन गए थे. 1989 का बाढ़ लोकसभा चुनाव जीतकर नीतीश ने भी धमाका कर दिया था. वो केंद्र में मंत्री भी बन गए.

यहां तक सब ठीक ही था लेकिन बिहार में लालू सरकार में नीतीश के पुराने सहयोगियों की कुछ चल नहीं रही थी. ठेकेदारी हो या दूसरे मलाईदार विभाग, सब पर लालू के राजदारों का कब्जा हो गया था. लालू और नीतीश में दूरी आने लगी थी. कटुता के ऐसे ही माहौल में एक बार फिर नीतीश कुमार ने अपने दोस्त के साथ करीब होने की कोशिश की. बिहार भवन में लालू यादव से मिलने नीतीश कुमार लल्लन सिंह के साथ पहुंचे. वहां पर बैठक में क्या बात हुई ये तो किसी को पता नहीं लेकिन लालू ने लल्लन सिंह को उठाकर फेंकने के लिए अपने बॉडी गार्ड्स को कह दिया. बात संभाली गई और फिर नीतीश वहां से निकल गए.

मामला पार्टी के आलाकमान तक पहुंची की लालू यादव कम से कम नीतीश से माफी मांगें . लेकिन तब तक नीतीश समझ चुके थे कि अब बिगाड़ हो चुका है और इनके साथ चलना संभव नहीं है और यहीं से बिहार में लालू से अलग उनका रास्ता होने लगा. यहां तक 1992 में तो लगभग बातचीत बंद हो गई.

खतों की राजनीति और दोस्ती में दूरी

कभी पक्के यार रहे नीतीश और लालू के रास्ते इतने दूर हो जाएंगे इसका अंदाजा किसी को नहीं था. नीतीश और लालू में बातचीत बंद हो गई. नौबत ये आ गई कि नीतीश अपनी बात कहने के लिए लालू को चिट्टी लिखने के लिए मजबूर हो गए. 1992 में नीतीश की लिखी चिट्ठी अब एक दस्तावेज बन गई है.

‘आपके साथ चलना मुश्किल है..आपके साथ रहना व्यर्थ’

बिहार कांड के लिए नीतीश से लालू माफी मांगने को तैयार थे लेकिन नीतीश ने ठान लिया कि अब उनके साथ चलना नहीं है. 1994 कुर्मी चेतना रैली से बिहार की राजनीति और नीतीश कुमार के अध्याय की शुरुआत हुई. पटना के गांधी मैदान में 1994 में 12 फरवरी को कुर्मी चेतना रैली हुई. लालू को मालूम था कि नीतीश उनसे खफा हैं..लेकिन लोहियावादी समाजवादी नीतीश कुर्मी चेतना रैली में जाते हैं या नहीं इस पर उनकी कड़ी नजर बनी हुई थी.

नीतीश कुमार के साथ जॉर्ज फर्नांडिस और अब्दुल गफूर

(सोर्स: Hindustan Times)

‘आया जी नीतीशवा’

लालू अपने इंटेलिजेंस विभाग के अफसरों से जानना चाहते थे कि ‘नीतीशवा आया कि नहीं’. आखिर नीतीश पहुंचे. उन्होंने एलान किया जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है वो सत्ता में नहीं रहती है. अब यहीं से अधिकारिक तौर पर दोस्त, और भाई-भाई में तलवारें खिंच गई. फिर नीतीश ने लालू को मिटाने के लिए खूंटा गाड़कर बिहार में राजनीति करने का एलान किया.

समता पार्टी और नीतीश कुमार

फोटो में शरद यादव और जॉर्ज फर्नांडिस

शरद यादव- जॉर्ज फर्नांडिस

नीतीश और लालू अलग हो गए, नीतीश ने जॉर्ज फर्नाडिंस के साथ मिलकर लालू को उखाड़ने के लिए समता पार्टी बनाई और सभी सीटों पर 1995 में लालू से भिड़े..लेकिन यहां राजनीति के सीनियर लालू ने नीतीश को जबरदस्त पटखनी दे दी. 1995 की इस हार के बाद नीतीश को अपने दोस्त को हराने में दस साल का लंबा वक्त लग गया.

‘जात गंवाए और स्वाद भी ना पाए’

दरअसल बिहार में लालू के खिलाफ नीतीश ने आंदोलन खड़ा किया.. लालू हटाओ रैलियां की . इस बीच केंद्र में अटल जी की सरकार में वो मंत्री थे. मौका कुछ ऐसा आया साल 2000 के विधानसभा चुनाव के बाद जब लालू को पूरा बहुमत नहीं था. फिर केंद्र की मदद से लालू को पटखनी देकर नीतीश ने सत्ता हथिया ली। बाद में अपने इस फैसले पर नीतीश खुद पछतावा भी करते रहे..’सबको लगा था कि लालू को हटाने का ये मौका है. केंद्र में सरकार अपनी थी. जनादेश में लालू की सरकार को अल्पमत में ला दिया था, इसले अटेम्पट कर लिए ..लेकिन ठीक नहीं हुआ.. वक्त नहीं आया था.’ लालू की नीति से नीतीश यहां मात खा गए.. लालू ने कांग्रेस को अपने साथ जोड़कर नीतीश के किनारे लगा दिया .

नीतीश का टाइम जब आया...

साल 2000 में 7 दिनों के मुख्यमंत्री बनने और फिर हटने से नीतीश को अपनी गलती का अहसास हो गया... लेकिन तब उनको समझ गया था कि संघर्ष, संघर्ष और संघर्ष ही लालू को बिहार से उखाड़ने का उपाय है. इसलिए उन्होंने फिर बिहार में खूंटा गाड़कर राजनीति करने की बात कही. फिर बीजपी के साथ दोस्ती करके नीतीश ने साल 2005 में अपने दोस्त लालू का सत्ता का नशा तोड़ दिया. अब जवानी में दोस्ती, छोटा- बड़ा भाई अपने मिडिल एज तक एक दूसरे के दुश्मन बन गए.

लालू का विषपान और बिहार में नीतीशे कुमार

लालू प्रसाद यादव के साथ नीतीश कुमार

(फोटो: Financial Express)

नरेंद्र मोदी का जब देश की राजनीति में उभार हुआ तो सेकुलर छवि वाले नीतीश कुमार ने एक बार खुद को बीजेपी से अलग कर लिया. लेकिन वो जानते थे कि जमीनी हकीकत उनके पक्ष में नहीं है. बिहार में अंकगणित और जातीय गणित में उनको वैशाखी चाहिए. बीजेपी को छोड़ने के बाद फिर से टीम बदल ली. पुराने दोस्त लालू काम आए. वो खुद लालू के घर गए और महागठबंधन की बात बन गई. लालू ने दिल बड़ा करते हुए अपने छोटे भाई को कैप्टन बना दिया. नीतीश के पेट में दांत है कहने वाले लालू ने कहा नीतीश मेरा छोटा भाई है और अगर वो मेरी गोद में मूत भी देगा तो मैं क्या करूंगा. दोस्ती फिर से परवान चढ़ी.

2015 में बिहार में लालू ने सत्ता पर अपने बेटों को बढ़ा दिया. चचा नीतीश और भतीजे तेजस्वी की सरकार बनी. लेकिन दोनों में बात बहुत ज्यादा बनी नहीं और साल 2017 में एक बार फिर लालू परिवार के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश उनसे अलग हो गए. बीजेपी के पास चले गए.

अब पलट की ये कहानी फिर पलट गई है. अब एक बार फिर लालू-नीतीश साथ हैं. इस बार ट्रिगर बना है बीजेपी का कथित ऑपरेशन लोटस और महाराष्ट्र कांड. वजूद बचाने के लिए नीतीश कुमार ने लालू के साथ हाथ मिलाकर गठबंधन किया है. एक तरह से फिर से ये रीयूनियन हो गया है. नीतीश ने अपने लिए एक बात कही थी ..हुक और क्रूक सत्ता प्राप्त करूंगा लेकिन सत्ता मिलने के बाद जनता के कल्याण में काम करूंगा. नीतीश कुमार किसी का उधार नहीं रखते. लालू-नीतीश की दोस्ती के इस चैप्टर की रीयल पॉलिटिक्स 2024 में पता चलेगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 10 Aug 2022,04:42 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT