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निकाय चुनावों (Nikay Chunav) में ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) का मुद्दा गरमाया हुआ है. ताजा मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बिना ओबीसी आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले के तहत आरक्षण तय करने में अब समय लगेगा, इसलिए सरकार तत्काल बिना आरक्षण ही चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दे. हालांकि, योगी सरकार बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने के मूड में नहीं है.
उत्तर प्रदेश के नगरीय निकायों का कार्यकाल 12 दिसंबर 2022 से 19 जनवरी 2023 के बीच समाप्त हो रहा है. सूबे में 760 नगरीय निकायों में चुनाव होना है. इसके मद्देनजर 5 दिसंबर को प्रदेश की योगी सरकार ने चुनाव को लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी. लेकिन कुछ लोग इसके खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए. हाई कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि योगी सरकार ने निकाय चुनाव में आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का इस्तेमाल नहीं किया है.
वहीं इस मामले में सरकार ने कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए. इसी सर्वे को ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट माना जाए. लेकिन कोर्ट ने इसे नकार दिया है.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब निकाय चुनाव में OBC आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकारों को झटका लगा है. इससे पहले बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में भी निकायों में OBC आरक्षण का पेंच फंस चुका है. लेकिन योगी सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया और बिना ट्रिपल टेस्ट के ही आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी.
चलिए अब आपको बताते हैं कि निकाय चुनाव में आरक्षण का ये ट्रिपल टेस्ट क्या है? सुप्रीम कोर्ट 2010 से इस बात पर जोर दे रहा है कि शिक्षा और रोजगार में लागू होने वाले आरक्षण के विपरीत चुनावों में ओबीसी कोटे को आरक्षण आंकड़ों के आधार पर दिया जाना चाहिए.
मार्च 2021 में महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण की वैधता पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन-स्तरीय परीक्षण निर्धारित किया - जिसे ट्रिपल टेस्ट भी कहा जाता है.
पहले चरण में सरकार को एक समर्पित आयोग का गठन करना होता है. जो ये तय करता है कि आरक्षण देने से लाभार्थियों पर क्या असर पड़ेगा? जिसके लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा उसे इसकी आवश्यकता है भी या नहीं?
दूसरे चरण में आयोग की सिफारिश लागू करने से पहले स्थानीय निकायों के बीच आरक्षण प्रतिशत विभाजित करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. जिससे की किसी के साथ कोई भेदभाव न हो और किसी को कोई शिकायत भी न रहे.
इसके बाद तीसरे चरण को अपनाया जाता है. जिसमें यह ध्यान रखा जाता है कि SC-ST और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी से ज्यादा न हों.
हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब निगाहें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं. योगी सरकार बिना आरक्षण के निकाय चुनाव कराने के मूड में नहीं है. हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी. इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा.
बिहार (Bihar) के 224 शहरी निकायों में दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं. 18 दिसंबर को पहले चरण के लिए मतदान हुआ और 20 दिसंबर को नतीजे घोषित हुए. 28 दिसंबर को दूसरे चरण के लिए वोटिंग हो रही है. 30 दिसंबर को इसके नतीजे आएंगे.
बिहार निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मामले को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. राज्य निर्वाचन आयोग ने 10 और 20 अक्टूबर को दो चरणों में नगर निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था, लेकिन ओबीसी आरक्षण को लेकर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई. इस पर कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए चुनाव को स्थगित कर दिया.
इसके बाद बिहार सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के लिए आनन-फानन में अति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया. आयोग ने दो महीने से भी कम समय में अपनी रिपोर्ट सौंप दी और दोबारा चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गई.
महाराष्ट्र (Maharashtra) में भी नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का पेंच फंसा था. दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने 92 नगर परिषद और 4 नगर पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी की गई थी. लेकिन राज्य सरकार ने ओबीसी के आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट का पालन नहीं किया था.
मामला अदालत में पहुंचा तो हाई कोर्ट ने निकाय चुनाव में आरक्षण रद्द कर सभी सीटों को सामान्य घोषित कर दिया था. इसके बाद सरकार आरक्षण लागू करने को लेकर अध्यादेश लेकर आई. इसे सुप्रीम कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया.
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि पहले घोषित हो चुके चुनावों में प्रत्याशियों को इस निर्णय का लाभ नहीं मिलेगा.
ओबीसी आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश सरकार को भी कोर्ट से फटकार लग चुकी है. दरअसल, राज्य सरकार ने पंचायत और निकाय चुनाव में बिना ट्रिपल टेस्ट के ही ओबीसी आरक्षण दे दिया था और राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की घोषणा भी कर दी थी.
मामला हाई कोर्ट में पहुंच गया. इसके बाद जबलपुर हाई कोर्ट ने सरकार को बिना आरक्षण चुनाव कराने का फैसला दिया.
इसके बाद शिवराज सरकार ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के जरिए एक रिपोर्ट तैयार करवाई. इस रिपोर्ट में प्रदेश के सभी 52 जिलों के आंकड़े जुटाए गए. जिसे सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया गया. इस रिपोर्ट को मानते हुए शीर्ष अदालत ने चुनाव करने की अनुमति दी, जिसके बाद चुनाव संपन्न हुए.
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