ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार निकाय चुनाव: मंत्री की मां-MP की पत्नी हारीं, 90% नए चेहरों से क्या संदेश?

Bihar Nagar Nikay Chunav: मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद की पत्नी चुनाव हार गईं.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

बिहार नगर निकाय चुनाव (Bihar Nagar Nikay Chunav) के पहले चरण का परिणाम घोषित हो गया है. 156 निकायों के नतीजों को देखें तो इस बार वोटर्स ने परिवारवाद को नकार दिया है. कहीं मंत्री की मां तो कहीं सांसद की पत्नी को हार का सामना करना पड़ा है. वहीं 90 फीसदी सीटों पर नए चेहरे जीतकर आए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मंत्री से सांसद तक के रिश्तेदार हारे

छपरा के दिघवारा में बिहार सरकार में मंत्री सुरेंद्र राम (Surendra Ram) की मां वार्ड पार्षद का चुनाव हार गईं. इसके साथ ही उनके बड़े भाई की बहू को भी मुख्य पार्षद पद पर हार झेलनी पड़ी है. मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद (Ajay Nishad) की पत्नी रमा देवी वार्ड पार्षद का चुनाव हार गईं. सुपौल के त्रिवेणीगंज में पूर्व मंत्री अनुप लाल यादव की बहू रंभा देवी को भी हार का सामना करना पड़ा है. वहीं इस सीट पर 2010 में जेडीयू की विधायक रहीं अमला देवी की भी हार हुई है.

पश्चिम चंपारण के बगहा में JDU MLC भीष्म साहनी अपनी साख नहीं बचा सके. भीष्म साहनी की पत्नी और बहू को हार का सामना करना पड़ा है. हाजीपुर में सभापति पद के लिए दावेदारी कर रही पूर्व केंद्रीय मंत्री दशईं चौधरी की पत्नी गणपति देवी की भी हार हुई है. वहीं मोहनिया से RJD विधायक संगीता देवी की मां को सिर्फ 29 वोट मिले और वे सातवें पायदान पर रहीं.

निकाय चुनाव में मंत्री-सांसदों के परिजनों की हार पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि, "ये दर्शाता है कि जनता उनके काम से खुश नहीं है और उन्हें आत्म चिंतन की जरूरत है."

नहीं चला दिग्गजों का फेस वैल्यू

इन चुनावों में बड़े नेताओं के परिवारवालों की हार के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि लोग नहीं चाहते कि सभी जगहों पर एक ही परिवार का कब्जा हो जाए. वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि, "जनता इन नेताओं को विधायक-सांसद बनाकर पहले ही सेवा का मौका दे चुकी है, ऐसे में वो स्थानीय स्तर पर नए चेहरे चाहते हैं."

बड़े नेताओं के परिवारवालों के हार के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रहा है कि निकाय चुनाव में कोई पार्टी अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है. ऐसे में एक ही पार्टी से संबंधित कई उम्मीदवार मैदान में खड़े हो गए, जिसकी वजह से वोट बंटा. इन चुनावों में हार-जीत का मार्जिन बहुत कम होता है.

हालांकि, गौर करने वाली बात है कि इसी बिहार की जनता ने 2020 विधानसभा चुनाव में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल को सबसे ज्यादा 75 सीटें जीताईं थी. RJD पर लगातार परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं. RJD फिलहाल प्रदेश की सत्ता में भी है.

चुनाव प्रक्रिया में बदलाव भी बड़ा कारण

चुनाव प्रक्रिया में बदलाव से भी कई उम्मीदवारों को झटका लगा है. दरअसल, बिहार में अभी तक निकायों में मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता था. पहले तक जनता अपने वार्ड में पार्षद चुनती थी और पार्षद ही मुख्य पार्षद और उप-मुख्य पार्षद चुनते थे. लेकिन इस बार प्रक्रिया में बदलाव से सभी का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से हुआ है.

ऐसे में वो उम्मीदवार जो अब तक अप्रत्यक्ष रूप से जीतते आए थे. उन्हें झटका लगा है. इसके साथ ही अप्रत्यक्ष चुनाव में नेता-मंत्री अपने रसूख का इस्तेमाल कर अपने उम्मीदवारों को जीता देते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका और डायरेक्ट वोटिंग में उन उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा.

0

नए चेहरों पर जनता ने जताया भरोसा

नगर निकाय चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि वोटर्स ने पुराने चेहरे या फिर बड़े नेताओं के साथ जाने की बजाय नए चेहरों पर भरोसा जताया है. यही कारण है कि पहले चरण में 90 फीसदी सीटों नए उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है.

राजधानी पटना के 12 में से 9 नगर निकायों में मुख्य पार्षद पद पर नए चेहरे काबिज हुए हैं. वहीं उप मुख्य पार्षद पद पर 12 नए चेहरों पर जनता ने विश्वास जताया है. कुल 327 पदों के लिए चुनाव हुए थे, जिनमें से 231 पदों पर नए चेहरों ने जीत दर्ज की है.

वहीं गया जिले में नवगठित तीन नगर परिषद और तीन नगर पंचायतों के सभी 12 मुख्य और उपमुख्य पार्षद पद पर नए चेहरे चुने गए हैं. रोहतास के पांच नगर निकायों के चुनाव में मुख्य और उप मुख्य पार्षद के 10 पदों में से नौ पर नए चेहरों को जनता ने मौका दिया है. इनमें सात महिलाएं हैं. ऐसे ही ज्यादातर निकायों में जनता ने नए उम्मीदवारों पर ही भरोसा जताया है.

नतीजों के क्या हैं मायने?

बहरहाल, निकाय चुनाव को विधानसभा चुनाव या फिर लोक सभा चुनाव से जोड़कर देखना सही नहीं होगा. निकाय चुनावों में स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेताओं की लोकप्रियता बहुत मायने रखती है. लेकिन शहरी सरकार के रण ने साफ कर दिया है कि जो जनता की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, लोग उन्हें नकार देंगे. वहीं जिन नेता, मंत्रियों और सांसदों के परिवार वाले हारे हैं, जरूरत है कि वो भी अपने काम का मूल्यांकन करें.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×