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सिंधिया के गढ़ में कैसे हारी BJP,ओवैसी ने किस सीट पर कांग्रेस को हराया?

Madhya Pradesh Municipal Election Results 2022: मेयर पद की सभी घोषित 11 नतीजों का विश्लेषण

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मध्य प्रदेश नगरीय निकाय चुनाव (Madhya Pradesh Mayor Election) के पहले फेज की वोटिंग की काउंटिग हो चुकी. मध्य प्रदेश मेयर चुनाव के पहले दौर के नतीजे आ चुके. अजब एमपी की गजब बात ये है कि इन नतीजों को देखकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों खुश हैं. और तो और सिर्फ एक सीट जीतकर केजरीवाल की पार्टी AAP और ओवैसी भी खुश हैं. लेकिन सच ये है कि छोटी लड़ाई बता रही है कि 2023 की बड़ी लड़ाई यानी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 की लड़ाई के लिहाज से बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही अच्छी खबर नहीं है. अब सवाल ये है कि कांग्रेस ने कैसे बीजेपी से तीन सीटें झटकने में कामयाबी पाई? आम आदमी पार्टी को कैसे एमपी की राजनीति में एंट्री मिल गई और साथ ही ये भी बताएंगे कि ये नतीजे अगले साल मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के बारे में क्या संकेत दे रहे हैं? ये भी समझने की कोशिश करेंगे कि 2023 के समर में केजरीवाल और ओवैसी की भूमिका क्या हो सकती है?

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पहले चरण में 133 निकाय में चुनाव हुआ था जिसमें 11 नगर निगम थे बाकी नगर पालिका और नगर परिषद. इन 11 नगर निगमों में से 7 पर बीजेपी और 3 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है, वहीं एक पर आम आदमी पार्टी ने अपना खाता खोला है. दरअसल बीजेपी खुश है कि उसे पहले चरण में सात सीटें मिली हैं. कांग्रेस खुश है कि उसने बीजेपी से तीन सीटें ले लीं और केजरीवाल खुश हैं कि एमपी में एंट्री मिली.

किसे फायदा किसे नुकसान?

सबसे पहले इस चुनाव में किसे फायदा हुआ है और किसे नुकसान वो समझा देते हैं. इस चुनाव में बीजेपी को 4 नगर निगम सीट का नुकसान हुआ है क्योंकि इससे पहले जो चुनाव हुआ था उसमें सभी नगर निगम पर बीजेपी का कब्जा था.

इंदौर, भोपाल, बुरहानपुर, उज्जैन, सतना, खंडवा और सागर में बीजेपी को जीत मिली है. कांग्रेस के खाते में छिंदवाड़ा, ग्वालियर और जबलपुर की नगर निगम गई हैं. सिंगरौली से 'आप' उम्मीदवार रानी अग्रवाल ने जीत दर्ज की है.

मध्यप्रदेश में दो चरणों 6 जुलाई और 13 जुलाई को 313 नगरीय निकाय का चुनाव संपन्न हुआ है. जिसमें 16 जुलाई को पहले चरण के चुनाव का परिणाम आया है. इस चुनाव में चाहे सत्तारूढ़ दल बीजेपी हो या फिर कांग्रेस दोनों ही दलों ने अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, इसके अलावा आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी एंट्री की है. प्रदेश की एक नगर निगम में महापौर और नगर पालिका, नगर परिषद में आम आदमी पार्टी के 17 पार्षद बने हैं, वहीं AIMIM ने भी अपना खाता खोलते हुए 3 पार्षद सीटें हासिल की हैं.

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सब खुश, तो नुकसान किसे हुआ?

मध्यप्रदेश में बीजेपी को 7 महापौर सीट जीतने पर टॉप लीडरशिप ने सीएम शिवराज सिंह चौहान की पीठ थपथपाई है. पीएम मोदी ने टवीट करते हुए लिखा,

"मध्य प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा पर अपना विश्वास जताने के लिए सभी मतदाताओं का बहुत-बहुत आभार. यह जीत राज्य की शिवराज सरकार में जनता-जनार्दन के अटूट भरोसे का प्रतीक है. पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सभी विजयी उम्मीदवारों को ढेरों शुभकामनाएं.

वहीं पीएम मोदी के ट्वीट पर सीएम शिवराज ने रिप्लाइ में लिखा, "प्रधानमंत्री जी, आशीर्वाद स्वरुप आपके बधाई संदेश जनसेवा, गरीब कल्याण एवं विकास के लिए नई ऊर्जा देते हैं. लोककल्याण के संकल्प से परिष्कृत अंत्योदय की प्राप्ति हेतु आपकी योजनाएं व विकास कार्य मध्यप्रदेश को नई पहचान दे रहे हैं, जिस पर नगरीय निकाय चुनावों में नागरिकों ने मुहर लगाई है. नगरीय निकाय चुनावों के पहले चरण में BJP ने 11 में 7 नगर निगम, 36 में 27 नगर पालिका, 86 में 64 नगर परिषद पर विजय प्राप्त कर चुकी है. आपके नेतृत्व में देश का अभूतपूर्व विकास, विश्व पटल पर भारत का गौरव और मध्यप्रदेश की विकास की गति तेज हुई है, जिसे अपार जनसमर्थन मिल रहा है."

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'57 साल बाद ग्वालियर नगर निगम में कांग्रेस की जीत'

दूसरी तरफ मध्य प्रदेश कांग्रेस अपने इस प्रदर्शन से काफी उत्साहित और खुश दिखाई दे रही है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और पीसीसी चीफ कमलनाथ ने प्रदेश के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बधाई दी है और बीजेपी पर आरोप लगाया है कि उसने पुलिस पैसा प्रशासन के दम पर बाकी सीटें जीती हैं. प्रियंका गांधी ने कहा,

मप्र नगर निकाय चुनावों में सराहनीय व साहसी प्रदर्शन के लिए मप्र कांग्रेस के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को बधाई. बीजेपी सरकार के चौतरफा हमलों, धन-बल के बावजूद आपकी जी-तोड़ मेहनत ने आज ग्वालियर नगर निगम में 57 साल बाद और जबलपुर में 23 साल बाद कांग्रेस का झंडा गाड़ कर इतिहास रच दिया. जनमुद्दों पर संघर्ष व जनसेवा के मूलमंत्र के साथ मैदान में डटे रहिए, आने वाले समय में गांव-गांव, नगर-नगर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जनहितैषी व देश को जोड़ने वाली विचारधारा का परचम लहराएगा.

बता दें कि ग्वालियर को बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. मेयर के नामांकन के लिए खुद सीएम शिवराज आए थे, इसके अलावा केंद्रीय मंत्री सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर ने बीजेपी उम्मीदवार के लिए प्रचार भी किया था. लेकिन बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.

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कहां कौन कितने वोट से और क्यों जीता?

1. भोपाल- बीजेपी की मालती राय ने कांग्रेस की विभा पटेल से 86 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है. भोपाल में नगरीय क्षेत्र में 6 विधानसभाएं हैं जिनमे से 3 कांग्रेस और 3 बीजेपी के पास हैं. यहां पर बीजेपी के कब्जे वाली गोविंदपुरा विधानसभा और हुजूर विधानसभा से बड़ी लीड ली. जबकि कांग्रेस मुस्लिम बहुल उत्तर विधानसभा और मध्य से ही लीड ले पाई. भोपाल में मतदान से ठीक पहले धार्मिक ध्रुवीकरण से बीजेपी की राह आसान हो गई. भोपाल में BJP और संघ की निचली इकाइयों का दमखम दिखा. साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी काफी मेहनत की.

2. इंदौर- बीजेपी के पुष्यमित्र भार्गव ने कांग्रेस के संजय शुक्ला को 1 लाख 33 हजार 992 वोट से हराया. 18 लाख से ज्यादा वोटरों में से करीब 11 लाख मतलब 60.88 प्रतिशत लोगों ने ही वोट दिए थे. बीजेपी ने इंदौर के 85 वार्डों में से 64 पर जीत हासिल की है. वहीं कांग्रेस के 18 पार्षद जीते हैं. इंदौर में मराठी वर्ग के बीच बीजेपी की पकड़ मजबूत है, इंदौर को सबसे साफ शहर का तमगा भी मिला हुआ है, ऐसे में बीजेपी को लेकर वहां के वोटरों में नाराजगी नहीं दिखी. इस सीट पर कांग्रेस ने अपने विधायक को उतारा था लेकिन कुछ खास फायदा नहीं हुआ.

3. ग्वालियर- कांग्रेस की शोभा शिकरवार ने बीजेपी की सुमन शर्मा को 28805 वोट से हराया. हालांकि परिषद यहां भी भाजपा की रहेगी क्योंकि भाजपा के ज्यादा पार्षद जीते हैं. ग्वालियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना काल से ही ऐसा गढ़ रहा है, जहां बीजेपी को हराना नामुमकिन माना जाता रहा है, यहां से बीजेपी के कई दिग्गज चेहरे आते हैं. सिंधिया परिवार की विजया राजे सिंधिया के वक्त से अब तक बीजेपी का दबदबा रहा है. केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाले एविएशन मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया यहीं से आते हैं.

बीजेपी की हार के पीछे एक वजह उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी में अंदुरूनी लड़ाई भी मानी जा रही है. सुमन शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे से आती हैं, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते थे कि पूर्व मंत्री माया सिंह को मैदान में उतारा जाए. सिंधिया का पक्ष कमजोर करने के लिए ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देने की मांग उठाई गई, लेकिन सिंधिया ने भी रास्ता निकाला और पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की पत्नी शोभा मिश्रा का नाम प्रस्तावित किया. हालांकि सिंधिया की नहीं चली. माना जा रहा है कि ग्वालियर में कांग्रेस की जीत का असर आगे के चुनावों में भी पड़ सकता है.
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4. जबलपुर- महाकौशल क्षेत्र के केंद्र जबलपुर में कांग्रेस के जगतप्रताप सिंह ने बीजेपी के जितेंद्र जामदार को 44339 वोट से हराया है. जबलपुर से पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह चार बार के सांसद हैं. इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का सुसराल है. साथ ही संघ का क्षेत्रीय मुख्यालय भी है. बताया जा रहा है कि बीजेपी के डाॅक्टर जितेंद्र जामदार को लेकर पार्टी में स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, लेकिन आरएसएस के करीबी होने की वजह से उन्हें एक बार फिर मौका दिया गया.

महाकौशल क्षेत्र में आदिवासियों की भी बड़ी आबादी रहती है. इसके अलावा 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को यहां झटका लगा था. जबलपुर की आठ विधानसभा सीटों में से चार पर कांग्रेस का कब्जा है. जबलपुर में 23 साल बाद कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है. हालांकि 79 वार्डों में से 44 वार्ड बीजेपी के खाते में गए है इसलिए पार्टी की नगर सरकार बनेगी लेकिन महापौर कांग्रेस का होगा.
जबलपुर में ही AIMIM का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा है यहां पर ओवैसी की पार्टी को दो पार्षद सीट मिली हैं.

5. छिंदवाड़ा- कांग्रेस के विक्रम अहांके ने बीजेपी के अनन्त धुर्वे को 3786 वोट से हराया. कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में सालों बाद महापौर की कुर्सी पर कब्जे को कांग्रेस करिश्मा नहीं मान सकती, लेकिन वापसी से कांग्रेस में थोड़ी उम्मीद तो जगी है. यहां मौजूद 48 वार्डों में से कांग्रेस 26, बीजेपी 18 और बाकी 3 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है

बता दें कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई थी, बीजेपी को बड़ा झटका लगा था. छिंदवाड़ा के सात विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था. इसके साथ ही लोकसभा सीट भी कांग्रेस के पास है.

6. सिंगरौली- सिंगरौली में आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में अपनी एंट्री की है. बीजेपी के गढ़ में आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल ने बीजेपी की चंद्रप्रकाश विश्वकर्मा को 9352 वोट से हराया. आम आदमी पार्टी की इस जीत के पीछे तीन वजह मानी जा रही है. एक जातीय समीकरण, दूसरा बीजेपी के अंतर्कलह और तीसरा न कांग्रेस न बीजेपी वाला ऑप्शन. कहा जाता है कि सिंगरौली में ब्राह्मण वोटर करीब 37 हजार हैं, लेकिन यहां बीजेपी ने चंद्र प्रताप विश्वकर्मा पर दांव लगाया. इससे ब्राह्मण वोटरों में नाराजगी दिखी. वहीं रानी अग्रवाल बीजेपी से इस्तीफा देकर आप में शामिल हुई थीं, रानी अग्रवाल ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए थे.

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7. बुरहानपुर- बीजेपी की माधुरी पटेल ने कांग्रेस की शहनाज अंसारी को 542 वोट से हराया. पटेल की जीत में AIMIM का अहम रोल रहा है. यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की शाइस्ता हाशमी ने 10274 वोट हासिल किए. उसकी उम्मीदवार ने 10 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस को कुर्सी से दूर कर दिया, लेकिन नगर निगम की परिषद में अध्यक्ष को लेकर पेंच फंसेगा. यहां 48 वार्डों में से बीजेपी ने 24 और कांग्रेस ने 23 जीते हैं, जबकि एक सीट AIMIM के खाते में गई है.

8. खण्डवा- बीजेपी की अमृता यादव ने कांग्रेस की आशा मिश्रा को 19765 वोट से हराया. यह सीट करीब 8 साल बाद दोबारा बीजेपी के खाते में आई है. इस सीट पर भी AIMIM प्रत्याशी साकिरा बी को लगभग 9 हजार 500 वोट मिले हैं।

9. उज्जैन- बीजेपी के मुकेश टटवाल ने कांग्रेस के महेश परमार को महज 736 वोट से हराया. माना जाता है कि मंदिर शहरों में बीजेपी और संघ की इकाइयों का बोलबाला रहता है. इस सीट पर भी मुख्यमंत्री शिवराज सहित कई बड़े नेताओं का जमावड़ा रहा. ऐसे में ये जीत बीजेपी के लिए अच्छी खबर है लेकिन महज 736 वोट से जीत चिंता की वजह.

10. सागर- बीजेपी की संगीता तिवारी ने कांग्रेस की निधि जैन को 12714 वोट से हराया. इनके पति सुशील तिवारी पहले कांग्रेस की टिकट पर दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, हालांकि जीत से दूर रहे थे.

11. सतना- बीजेपी के योगेश ताम्रकर ने कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाह को 24916 वोट से हराया. सतना में टिकट बंटवारे के चलते खफा हुए कांग्रेस के सईद अहमद ने गाड़ी बदलते हुए BSP की टिकट पर महापौर चुनाव लड़ा था और इसी के चलते कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाह के भारी मात्रा में वोट कटे जिसके चलते उनकी हार हुई.

अभी तक के नतीजों को देखकर समझ आ रहा है कि 2023 की लड़ाई में कांटे की टक्कर होने वाली है. कांग्रेस-बीजेपी खुश तो हैं लेकिन संकेत मिल रहे हैं 2023 में लड़ाई एकतरफा नहीं होने वाली. ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. इससे पहले हम एमपी पंचायत चुनाव नतीजों में भी यही ट्रेंड देख चुके हैं. भल ही वहां पार्टी सिंबल पर लड़ाई नहीं हुई लेकिन कांग्रेस ने खुद को 875 में से 386 और बीजेपी को 360 सीट मिलने का दावा किया है. ये भी संकेत मिल रहे हैं कि मुख्य लड़ाई तो बीजेपी-कांग्रेस में होगी लेकिन केजरीवाल और ओवैसी भी अहम भूमिका निभा सकते हैं. और अगर ये भूमिका वाकई अहम हुई तो कांग्रेस के लिए अच्छी बात नहीं होगी

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