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UP Municipal Elections पर हाई कोर्ट ने क्यों लगाई रोक, कहां फंसा आरक्षण का पेंच?

UP Municipal Elections Explained: यूपी निकाय चुनाव की तारीखों के एलान पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर तक लगाई रोक

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उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव (UP Municipal Elections) की तारीखों के एलान पर अब इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 20 दिसंबर रोक दिया है. राज्य सरकार को भी आदेश दिया कि 20 दिसंबर को जारी अंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत अंतिम आदेश जारी न करे. बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय मांगा, जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.

इस एक्सप्लेनर में हम आपको बताते हैं कि इलाहबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव पर यह फैसला क्यों दिया है? इस मामले में याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार पर क्या आरोप लगाए हैं? इससे पहले राज्य सरकार ने निकाय चुनाव के लिए क्या नोटिफिकेशन जारी किए थे?

UP Municipal Elections पर हाई कोर्ट ने क्यों लगाई रोक, कहां फंसा आरक्षण का पेंच?

  1. 1. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव पर यह फैसला क्यों दिया है?

    कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाते हुए जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिसपर डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई कर यह आदेश दिया है.

    बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने जवाबी हलफनामा देने के लिए तीन दिन का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया.

    बीते 3 दिनों से लगातार हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में यूपी निकाय चुनाव को लेकर हो रही सुनवाई बुधवार को जवाब दाखिल करने के लिए राज्य सरकार ने समय मांगा है. ओबीसी आरक्षण को लेकर निकाय चुनाव में जवाब देने के लिए यूपी सरकार ने 20 दिसंबर तक हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से समय मांगा. हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर तक निकाय चुनाव के एलान पर रोक लगाते हुए जवाब देने का समय मंजूर किया है.
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  2. 2. याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार पर क्या आरोप लगाए हैं?

    रायबरेली के रहने वाले याचिकाकर्ता वैभव पांडे ने ओबीसी आरक्षण को लेकर अपनी आपत्तियों को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल किया है. वैभव पांडे की तरफ से रायबरेली में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने का विरोध किया गया. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण लागू किया जाना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनवाई के बाद पूरे मामले में यूपी सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश जारी किया है.

    मामले में याची का यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती, तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता. जबकि यह औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी थी.

    वहीं, सरकार की ओर से कहा गया कि 5 दिसंबर की अधिसूचना महज एक ड्राफ्ट आदेश है. इस पर सरकार ने आपत्तियां मांगी हैं. व्यथित अपनी आपत्तियां दाखिल कर सकता है. इस तरह अभी यह याचिका समय पूर्व दाखिल की गई है.

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  3. 3. राज्य सरकार ने निकाय चुनाव के लिए क्या नोटिफिकेशन जारी किए थे?

    इससे पहले राज्य सरकार ने 760 नगर निकायों में 762 में मेयर और चेयरमैन के लिए सीटों के आरक्षण की अनंतिम अधिसूचना जारी की थी. इनमें 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायत अध्यक्ष पद शामिल हैं.

    हालांकि सभी 762 नगर निकायों के लिए आरक्षण तय कर दिया गया है. लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद समेत मेयर की आठ सीटों को अनारक्षित रखा गया है. 2017 में ये तीनों सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं.

    प्रदेश सरकार ने नगर निकायों में मेयर व अध्यक्षों का कार्यकाल खत्म होने की स्थिति में प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए हैं. इसके मुताबिक जैसे-जैसे नगर निकायों में कार्यकाल खत्म होगा, उसी क्रम में प्रशासकीय व्यवस्था लागू होती जाएगी. यानी नगर निगमों में नगर आयुक्त और पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों के पास सारा अधिकार चला जाएगा. निकायों के बोर्ड का कार्यकाल पांच साल के लिए निर्धारित होता है. 2017 में हुए निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद बोर्ड का गठन 12 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच हुआ था. इस लिहाज से मेयर व अध्यक्षों का कार्यकाल इसी बार उस तिथि को समाप्त होगा जिस दिन बोर्ड की पहली बैठक हुई थी.

    (Input- IANS)

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव पर यह फैसला क्यों दिया है?

कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाते हुए जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिसपर डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई कर यह आदेश दिया है.

बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने जवाबी हलफनामा देने के लिए तीन दिन का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया.

बीते 3 दिनों से लगातार हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में यूपी निकाय चुनाव को लेकर हो रही सुनवाई बुधवार को जवाब दाखिल करने के लिए राज्य सरकार ने समय मांगा है. ओबीसी आरक्षण को लेकर निकाय चुनाव में जवाब देने के लिए यूपी सरकार ने 20 दिसंबर तक हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से समय मांगा. हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर तक निकाय चुनाव के एलान पर रोक लगाते हुए जवाब देने का समय मंजूर किया है.
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याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार पर क्या आरोप लगाए हैं?

रायबरेली के रहने वाले याचिकाकर्ता वैभव पांडे ने ओबीसी आरक्षण को लेकर अपनी आपत्तियों को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल किया है. वैभव पांडे की तरफ से रायबरेली में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने का विरोध किया गया. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण लागू किया जाना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनवाई के बाद पूरे मामले में यूपी सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश जारी किया है.

मामले में याची का यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती, तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता. जबकि यह औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी थी.

वहीं, सरकार की ओर से कहा गया कि 5 दिसंबर की अधिसूचना महज एक ड्राफ्ट आदेश है. इस पर सरकार ने आपत्तियां मांगी हैं. व्यथित अपनी आपत्तियां दाखिल कर सकता है. इस तरह अभी यह याचिका समय पूर्व दाखिल की गई है.

राज्य सरकार ने निकाय चुनाव के लिए क्या नोटिफिकेशन जारी किए थे?

इससे पहले राज्य सरकार ने 760 नगर निकायों में 762 में मेयर और चेयरमैन के लिए सीटों के आरक्षण की अनंतिम अधिसूचना जारी की थी. इनमें 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायत अध्यक्ष पद शामिल हैं.

हालांकि सभी 762 नगर निकायों के लिए आरक्षण तय कर दिया गया है. लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद समेत मेयर की आठ सीटों को अनारक्षित रखा गया है. 2017 में ये तीनों सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं.

प्रदेश सरकार ने नगर निकायों में मेयर व अध्यक्षों का कार्यकाल खत्म होने की स्थिति में प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए हैं. इसके मुताबिक जैसे-जैसे नगर निकायों में कार्यकाल खत्म होगा, उसी क्रम में प्रशासकीय व्यवस्था लागू होती जाएगी. यानी नगर निगमों में नगर आयुक्त और पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों के पास सारा अधिकार चला जाएगा. निकायों के बोर्ड का कार्यकाल पांच साल के लिए निर्धारित होता है. 2017 में हुए निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद बोर्ड का गठन 12 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच हुआ था. इस लिहाज से मेयर व अध्यक्षों का कार्यकाल इसी बार उस तिथि को समाप्त होगा जिस दिन बोर्ड की पहली बैठक हुई थी.

(Input- IANS)

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