Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019नीतीश कुमार को जातीय जनगणना पर नहीं मिला ‘दोस्त’ सुशील मोदी का साथ

नीतीश कुमार को जातीय जनगणना पर नहीं मिला ‘दोस्त’ सुशील मोदी का साथ

JDU और बीजेपी के बीच जातीय जनगणना के कारण दूरियां बढ़ती जा रही हैं

उत्कर्ष सिंह
न्यूज
Updated:
<div class="paragraphs"><p>बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी सांसद सुशील मोदी</p></div>
i

बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी सांसद सुशील मोदी

(फोटो: PTI/IANS)

advertisement

जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार और बीजेपी की दूरियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने भी सुप्रीम कोर्ट में दिए केंद्र सरकार के हलफनामे के आधार पर साफ कह दिया है कि केंद्र सरकार के लिए अब जातीय जनगणना कराना संभव नहीं है. अगर राज्य सरकारें चाहें तो अपने स्तर पर जातिगत जनगणना करा सकती हैं.

यह व्यावहारिक नहीं कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना कराए. इस बार की जनगणना डिजिटल तरीके से होने वाली है और जनगणना की तैयारी 3 साल पहले से शुरू हो जाती है. उसका मैन्युअल छप चुका है, टाइम टेबल बन चुका है, ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है. 2011 में जब जनगणना हुई थी तब 46 लाख जातियों की सूची मिली थी, जबकि देश में मुश्किल से 7-8 हजार जातियां होंगी. केंद्र ने लिए जातिगत जनगणना कराना संभव नहीं है. अगर कोई राज्य चाहता है तो तेलंगाना और कर्नाटक की तरह जातीय जनगणना कर सकता है.
सुशील मोदी (पूर्व उपमुख्यमंत्री, बिहार)

सुशील मोदी ने गुरुवार को विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि आरजेडी के लोग कहते हैं कि सिर्फ एक कॉलम जोड़ देना है. लेकिन ऐसा नहीं है, सिर्फ एक कॉलम जोड़ देने भर से जातीय जनगणना नहीं हो सकती. सुशील मोदी ने सलाह देते हुए कहा कि राज्य सरकार जातीय जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र है. यानी सुशील मोदी ने सीधे तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नसीहत दी है. कभी नीतीश कुमार के खास कहे जाने वाले और हमेशा उनके पक्ष में खड़े रहने वाले सुशील मोदी की बातों से बीजेपी का स्टैंड बिल्कुल साफ नजर आ रहा है.

एक दिन पहले ही नीतीश कुमार ने कहा था कि वो जल्द ही बिहार में सर्वदलीय बैठक करेंगे जिसमें जातीय जनगणना के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दिए केंद्र के हलफनामे पर आगे की रणनीति तय होगी. लेकिन बीजेपी नेताओं की तरफ से आ रहे बयानों से साफ हो चुका है कि बीजेपी किसी भी कीमत पर जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इससे पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी बोल चुके हैं कि जातिगत जनगणना कराना प्रैक्टिकल नहीं है. जिसके जवाब में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि अगर कोई कहता है कि 2011 की Socio Economic Caste Census की रिपोर्ट सही नहीं थी तो जातीय जनगणना नहीं हो सकती, ये बात उचित नहीं है. नीतीश कुमार केंद्र सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की भी मांग कर चुके हैं.

जातिगत जनगणना की मांग क्यों हो रही?

देश के तमाम राज्यों में राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. बिहार में तो सभी पार्टियां एक सुर में जातिगत जनगणना की मांग लेकर पीएम मोदी से मिल भी चुकी हैं. खुद बीजेपी के भी कई नेता जातिगत आधार पर जनगणना के पक्ष में बोल चुके हैं. तेजस्वी यादव ने तो इसके आधार पर पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाने तक की भी मांग की हुई है. दरअसल राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे देश की राजनीति में पिछड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका बड़ी वजह बता रहे हैं.

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 17.24 करोड़ परिवारों में से 44.4 फीसदी परिवार ओबीसी हैं. तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, केरल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के गांवों में तो ओबीसी परिवारों की संख्या 50 फीसदी से भी ज्यादा है. जबकि शहरी इलाकों में भी ओबीसी अच्छी-खासी तादाद में रहते हैं. ऐसे में देश और प्रदेशों के राजनीतिक समीकरण में ओबीसी सबसे ज्यादा अहम हो जाते हैं. जानकार मानते हैं कि राजनीतिक दल जातिगत जनगणना के जरिए देश में पिछड़ों की असली संख्या जानने और उसके आधार पर अपनी राजनीतिक रणनीतियां बनाने को लेकर ज्यादा उत्सुक दिखाई पड़ रहे हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 30 Sep 2021,08:07 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT