ADVERTISEMENTREMOVE AD

नौकरी का डब्बा गोल, बिहार के युवा बजाएं ढोल?

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने दिया युवाओं को ढोल बजाने का टास्क

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

बिहार (Bihar) के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद सुशील मोदी (Sushil Modi) ने बिहार के युवाओं को एक टास्क दिया है. टास्क ये है कि गांव के युवक सुबह-शाम खुले में शौच करने जा रहे लोगों के पीछे ढोल बजाते हुए पूरे गांव को बताएं कि ये लोग शौच करने जा रहे हैं. दरअसल सुशील मोदी बिहार के हाजीपुर में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, वहां उन्होंने पीएम मोदी के तमाम काम गिनाए. उन्होंने बताया कि 12 करोड़ शौचालय बनवाकर पीएम मोदी ने किस कदर कमाल किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

युवाओं को ढोल बजाने का काम?

यूं तो कागजों में पूरा देश ही खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है, बिहार के ODF बनने की प्रक्रिया तो सरकारी फाइलों में और भी तेजी से चली थी, फिर इस तरह की अपील के क्या मायने? और मान भी लें कि सरकारी दावे झूठे हैं फिर भी युवाओं को इस तरह का काम सौंपने का क्या मतलब बनता है? इस काम का क्या नतीजा निकलेगा वो तो जब ढोल बजेगा तब पता चलेगा लेकिन क्या अब बिहार के युवाओं का यही काम रह गया है. खुले में शौच के खिलाफ जागरूकता जरूरी है लेकिन युवा नौकरी ढूंढें या शौच के खिलाफ ढोल बजाएं?

0

नौकरियों का है बुरा हाल

कोरोना की वजह से बीते डेढ़ साल में लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं, अनगिनत लोग बेरोजगार हो गए. Centre for Monitoring Indian Economy यानी CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ही देश मे 10 मिलियन यानी एक करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं, इनमें से लाखों लोगों को तो अब तक दोबारा कोई नौकरी भी नहीं मिल पाई है.

CMIE के आंकड़ों के मुताबिक अकेले 2021 के अगस्त महीने में ही 1.5 मिलियन यानी 15 लाख लोगों की नौकरी चली गई और इनमें से 13 लाख लोग ग्रामीण इलाकों के हैं. तो युवाओं को नौकरी चाहिए, न कि ढोल बजाने का काम.

सुशील मोदी लंबे समय तक बिहार के उपमुख्यमंत्री होने के साथ ही वित्त मंत्री भी रहे, प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के लिए चल रही योजनाओं के लिए बजट बनाने का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर रहा. लेकिन बिहार में कितने लोगों को रोजगार मिल पाया? आइए पता करते हैं...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रोजगार दिलाने वाले दफ्तर खुद बेहाल

एक RTI के जवाब में सरकार ने बताया है कि पूरे राज्य में 52 इम्पलॉयमेंट एक्सचेंज हैं, जहां मात्र 144 अधिकारी और कर्मचारी काम करते हैं. यानी हर इम्पलॉयमेंट एक्सचेंज पर औसतन महज 2 से 3 लोग ही नौकरी कर रहे हैं. बीते 10 सालों में इन इम्पलॉयमेंट एक्सचेंज को चलाने में करीब 115 करोड़ रुपये से खर्च किए गए. यानी बिहार में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जिन रोजगार दफ्तरों की है, वो तो खुद बेरोजगार नजर आ रहे हैं.

RTI के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच 10 सालों में सरकार ने 794 जॉब कैम्प आयोजित किए, जहां 14 लाख 79 हजार 692 लोगों ने अपना बायोडेटा जमा किया और उनमें से 5 लाख 90 हजार 793 लोगों को ही रोजगार मिल पाया. लेकिन इनमें से कितने लोगों की नौकरी या रोजगार नौकरी अभी भी है, इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लाखों लोगों को रोजगार का इंतजार

आंकड़े बता रहे हैं कि साल 2015 से 2020 के बीच रोजगार के लिए आए आवेदनों की संख्या दोगुनी हो चुकी है. नेशनल करियर सर्विस के आंकड़ों के मुताबिक जून 2021 तक बिहार में 12 लाख 23 हजार से ज्यादा लोग अभी भी रोजगार के इंतजार में थे. और ये सरकारी आंकड़ा है, असलियत कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है क्योंकि गांवों में तो कई सारे लोगों को पता तक नहीं कि रोजगार कार्यालय जैसी भी कोई चीज होती है.

इसी साल जनवरी में बिहार विधान परिषद में चपरासी के 96 पदों के लिए 1 लाख से ज्यादा आवेदन आए थे जिनमें बीटेक, एमटेक, बीएससी, एमएससी और हजारों ग्रेजुएट पास अभ्यर्थी चपरासी बनने के लिए कतार में खड़े थे. 19 लाख रोजगार देने का वादा करके सत्ता में आई एनडीए सरकार अगर नौकरी नहीं भी दे सकती तो कम से कम ढोल बजाने के बदले ही कुछ सैलरी दे दे, ताकि बेरोजगारों का घर परिवार चल सके.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें