गुरुवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में साफ कह दिया है कि जनगणना में ओबीसी जातियों की गिनती एक लंबा और कठिन काम है इसलिए 2021 की जनगणना में इसे शामिल नहीं किया जाएगा. महाराष्ट्र सरकार की तरफ से दायर याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने ये फैसला सोच समझकर लिया है.
यानी इतना तो साफ है कि फिलहाल केंद्र सरकार एससी-एसटी को छोड़कर दूसरी पिछड़ी जातियों की गणना करने के पक्ष में नहीं है. जबकि खुद सत्ताधारी दल बीजेपी और उनके सहयोगी दलों के कई नेताओं ने जातीय जनगणना की मांग की है. उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक तमाम राज्यों से जाति आधारित जनगणना के लिए आवाज उठ चुकी है. लेकिन बिहार में तो ये मांग सत्ता और विपक्ष दोनों की तरफ से लगातार की जाती रही है.
लेकिन अब केंद्र के रुख के बाद बिहार में राजनीति फिर गर्म हो गई है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'जनगणना में सांप-बिच्छू, तोता-मैना, हाथी-घोड़ा, कुत्ता-बिल्ली, सुअर-सियार सहित सभी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे गिने जाएंगे लेकिन पिछड़े-अतिपिछड़े वर्गों के इंसानों की गिनती नहीं होगी. वाह!
"BJP/RSS को पिछड़ों से इतनी नफरत क्यों? जातीय जनगणना से सभी वर्गों का भला होगा. सबकी असलियत सामने आएगी." - तेजस्वी यादव
बीते मानसून सत्र में विपक्ष के दबाव में नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से मिलने का समय मांगा और 23 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मुलाकात की.
पीएम से मुलाकात के बाद नीतीश और तेजस्वी ने उम्मीद जताई थी कि प्रधानमंत्री उनकी मांगों पर ध्यान देंगे और 2021 की जनगणना में पिछड़ी जातियों की भी गणना होगी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के रुख के बाद अब एक बार फिर केंद्र सरकार के साथ ही नीतीश विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सीएम नीतीश कुमार को 3 दिन का समय दिया है और मांग की है कि सीएम अपना रुख स्पष्ट करें. तेजस्वी पहले भी मुख्यमंत्री से ये मांग कर चुके हैं कि अगर केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराती है तो राज्य सरकार अपने खर्चे पर जाति आधारित जनगणना कराए.
हालिया सालों में ये एकमात्र मुद्दा रहा है, जिसपर बिहार के सभी राजनीतिक दलों की एक राय रही है. जातीय जनगणना कराने को लेकर बिहार विधानमंडल से दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पारित हो चुका है. नीतीश और तेजस्वी एक साथ जाकर पीएम से भी मिल चुके लेकिन केंद्र के रुख के बाद एकजुट दिख रही बिहार की पार्टियां अब फिर से एक-दूसरे के खिलाफ आ चुकी हैं.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर देश में विपक्षी दलों को एकजुट करने और उनके साथ की मांग करते हुए 33 नेताओं को चिट्ठी लिखी है. केंद्र के फैसले पर तेजस्वी ने मीडिया से बात करते हुए आरोप लगाया कि "केंद्र की बीजेपी सरकार और आरएसएस नहीं चाहते कि पिछड़ी जातियों की असली संख्या सामने आए. जबकि जातीय जनगणना राष्ट्रीय हित में है. बिहार से प्रस्ताव पास हुआ है, इसलिए ये बिहार के 12 करोड़ लोगों का अपमान है. अगर जातीय जनगणना होती तो पिछड़ों की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगता और उनके उत्थान के लिए काम होता. वहीं बीजेपी जातीय जनगणना के मुद्दे पर दोहरा रवैया अपना रही है. जब बिहार विधानमंडल से दो बार जातीय जनगणना के मुद्दे पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ तब बीजेपी ने भी साथ दिया था. पीएम मोदी से सर्वदलीय मुलाकात में बीजेपी का भी प्रतिनिधि था. लेकिन अब केंद्र के रुख को देखते हुए बिहार में बीजेपी नेताओं ने भी सुर बदल दिए हैं."
बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल ने केंद्र के फैसले को सही बताते हुए कहा है कि 2011 की जनगणना में 4 लाख 28 हजार जातियों के बारे में पता चला और उस डेटा में भी कई सारी गलतियां हैं. फिर से वही गलतियां करना संभव नहीं है. बीजेपी सांसद ने कहा कि जातीय जनगणना कराना प्रैक्टिकल नहीं है क्योंकि सब कुछ कंप्यूटराइज होना है और जातियों के लिए 4 लाख 28 हजार कॉलम नहीं बनाए जा सकते. संजय जायसवाल ने राज्य सरकार को खुद से जातीय जनगणना कराने के विकल्प का भी सुझाव दिया.
नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ीं
केंद्र के जातीय जनगणना न कराने के फैसले से सबसे ज्यादा मुश्किल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए खड़ी हो गई है. एक तरफ वो जातीय जनगणना की पुरजोर मांग करते रहे हैं, हाल ही में पीएम मोदी से मुलाकात भी कर चुके हैं. लेकिन दूसरी तरफ केंद्र सरकार जातीय जनगणना कराने से इनकार कर रही है जबकि नीतीश कुमार केंद्र में भी एनडीए का हिस्सा हैं. जेडीयू की पार्लियामेंट्री बोर्ड के चेयरमैन उपेन्द्र कुशवाहा तो कई बार कह चुके हैं कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना के मुद्दे पर राष्ट्रीय चेहरा हैं.
लेकिन केंद्र के रुख के बाद सवाल ये है कि नीतीश कुमार अब क्या करेंगे? उनके पास फिलहाल दो रास्ते नज़र आते हैं. पहला ये कि वो अपनी मांगों को ठंडे बस्ते में डालकर एनडीए के साथ बने रहें. दूसरा ये कि वो जातीय जनगणना के मुद्दे पर एनडीए से अपनी राहें अलग करें. नीतीश कुमार पहले भी नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए से अलग हो चुके हैं.
लेकिन 2017 में वापस एनडीए में आने के बाद वो हर मौके पर पीएम मोदी का नेतृत्व स्वीकार करते हुए दिखाई पड़े हैं. 17 सितंबर को नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर हस्ताक्षर करते हुए पीएम मोदी को जन्मदिन की बधाई दी, लेकिन जातीय जनगणना के मुद्दे पर पीएम मोदी ने जो रिटर्न गिफ्ट नीतीश कुमार को दिया है, उससे नीतीश कुमार के लिए काफी असहज स्थिति पैदा हो गई है.
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