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बढ़ते फेक न्यूज के संकट के बीच, आलम ये है कि संविधान (Constitution of India) से जुड़े भ्रामक दावों की भी भरमार है. क्विंट हिंदी की फैक्ट चेकिंग टीम 'वेबकूफ' लगातार ऐसे दावों की पड़ताल करती है और सच आप तक पहुंचाती है. 26 जनवरी गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर जानिए संविधान से जुड़े ऐसे ही भ्रामक दावों का सच.
संविधान स्कूलों में कुरान, बाइबल पढ़ने की इजाजत देता है पर गीता नहीं ?
सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले एक मैसेज में ये दावा किया जाता है कि भारत के संविधान की धारा 28,29 और 30A के मुताबिक, स्कूलों में इस्लाम धार्मिक ग्रंथ कुरान पढ़ने की इजाजत है, लेकिन हिंदू धार्मिक ग्रंथ गीता, रामायण पढ़ने की नहीं.
वायरल मैसेज में संविधान की धारा 30A का जिक्र है, जबकि भारत के संविधान में धारा 30A है ही नहीं. संविधान के अनुच्छेद 30 का उप खंड (Sub Claus) अनुच्छेद 30 (1A) है. केंद्र सरकार के विधायी विभाग (Legislative Department) की ऑफिशियल वेबसाइट पर उपलब्ध संविधान की कॉपी में हमने अनुच्छेद 30 देखा. यहां अनुच्छेद 30 के बाद 30(A) जैसा कुछ नहीं है.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षण संस्थान (Educational Institute) खोलने और उनका संचालन करने का अधिकार देता है. कुरान या धार्मिक ग्रंथ पढ़ाए जाने का कोई जिक्र इस आर्टिकल में नहीं है.
वहीं अनुच्छेद 30(1A) में अल्पसंख्यक समूहों के शुरू किए गए शैक्षणिक संस्थान का अधिग्रहण होने की स्थिति में लागू होने वाले नियमों का जिक्र है.
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पंडित नेहरू ने राष्ट्रपति का इंतजार किए बिना उनसे पहले कर दिए थे संविधान पर हस्ताक्षर?
हाल में एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में दावा किया है कि जब भारत का संविधान बना, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को नजरअंदाज करते हुए जल्दबाजी में संविधान पर पहले हस्ताक्षर कर दिए. ये दावा मध्यप्रदेश के भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने किया था.
इंटरव्यू में 31:45 मिनट बाद प्रज्ञा ठाकुर को ये दावा करते हुए सुना जा सकता है.
ये सच है कि भारत के संविधान पर पहले हस्ताक्षर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किए. लेकिन, ये मामला वैसा नहीं था जैसा प्रज्ञा ने दावा किया है. नेहरू ने इस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को नजरअंदाज करते हुए हस्ताक्षर नहीं किए.
बल्कि राष्ट्रपति ने ही खुद हस्ताक्षर करने से पहले संविधान सभा के सदस्यों को हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित किया था. चूंकि नेहरू प्रधानमंत्री थे इसलिए उन्हें सदस्यों में सबसे पहले आमंत्रित किया गया. इस बात का सबूत हैं, संविधान सभा की आखिरी बैठक के रिकॉर्ड, जिसकी एक कॉपी आप नीचे देख सकते हैं.
प्रज्ञा ठाकुर का कहना है कि राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जगह ना मिलने पर नीचे हस्ताक्षर करने पड़े, ये भी सच नहीं. संविधान की ओरिजनल कॉपी में देखा जा सकता है कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर सबसे ऊपर हैं.
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बंगाली मुस्लिमों के वोटों से अंबेडकर को मिला संविधान लिखने का मौका?
एक मैसेज में ये दावा किया जाता है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान लिखने का मौका बंगाल के 48% मुस्लिमों के वोटों की वजह से मिला था. मैसेज में कहा गया है कि अगर बंगाल के मुस्लिमों के वोट अंबेडकर को नहीं मिलते, तो वो संविधान नहीं लिख पाते.
राज्यसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा में बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र की तरफ से शामिल हुए थे. पश्चिम बंगाल निर्वाचन क्षेत्र से गए सदस्यों की लिस्ट में अंबेडकर का नाम यहां नहीं है.
साल 2015 में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बीच संसद में इस बात को लेकर बहस हुई थी कि डॉ. अंबेडकर बंगाल से चुनकर संविधान सभा में गए थे या नहीं. फिर इतिहासकार और टीएमसी सदस्य सुगाता बोस ने मामले को संभालते कहा था-
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