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वैक्सीन से मौत, WhatsApp का सीक्रेट अपडेट- झूठे दावों की पड़ताल

इस हफ्ते ये झूठा दावा किया गया कि हर वो शख्स दो साल में मर जाएगा जिसने वैक्सीन लगवाई है.

टीम वेबकूफ
वेबकूफ
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<div class="paragraphs"><p>इस हफ्ते कोरोना वैक्सीन और WhatsApp से जुड़े झूठा दावे किए गए</p></div>
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इस हफ्ते कोरोना वैक्सीन और WhatsApp से जुड़े झूठा दावे किए गए

(फोटो: Altered by The Quint)

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देश में कोरोना महामारी का कहर अभी जारी है. सरकार और दुनियाभर के एक्सपर्ट्स लगातार वैक्सीन लगवाने की सलाह दे रहे हैं. फिर भी, कुछ फेक न्यूज पैडलर्स वैक्सीन को लेकर झूठी और गलत अफवाहें फैला रहे हैं. तो वहीं दूसरी ओर बंगाल चुनाव के नतीजे आए काफी समय होने के बाद भी बंगाल से जुड़ी राजनैतिक और सांप्रदायिक ऐंगल के साथ झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं.

पूर्व नोबल पुरस्कार विजेता मॉन्टैनियर के एक इंटरव्यू में की गई बातों को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि वैक्सीन लगवाने वालों की अगले 2 सालों में मौत हो जाएगी. यूपी का एक वीडियो बंगाल का बताकर शेयर कर झूठा दावा किया गया कि वहां 'पाकिस्तान जिंदाबाद' नारे लगाए गए. न्यूयॉर्क टाइम्स का फेक स्क्रीनशॉट वायरल कर ये भी दावा किया गया कि मोदी की तुलना मगरमच्छ के आंसुओं से की गई है. इन फेक न्यूज पैडलर्स ने WhatsApp की प्राइवेसी सेटिंग को भी लेकर गलत दावे किए.

इस हफ्ते के ऐसे सभी झूठे दावों का सच जानिए वेबकूफ राउंडअप में एक नजर में.

कोरोना वैक्सीन लगवा चुके लोग 2 साल में मर जाएंगे? झूठा है दावा

फ्रांसीसी वायरोलॉजिस्ट लूक मॉन्टैनियर (Luc Montagnier) के नाम से सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है. इसमें दावा किया जा रहा है कि जिन-जिन लोगों को कोविड वैक्सीन लग चुकी है वो सभी ''दो सालों के अंदर मर जाएंगे'' और उनके बचने की कोई गुंजाइश नहीं है.

हालांकि, हमने पाया कि मॉन्टैनियर के ये दावे निराधार हैं और इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण या डेटा नहीं है. लोगों के मरने वाले बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है. हालांकि, इस 11 मिनट के इंटरव्यू में, पूर्व नोबेल पुरस्कार विजेता ने टीकों के खिलाफ बात की है और दावा किया है कि इसका प्रभाव 2 से 3 साल बाद पता चलेगा. ये दावे किए जा रहे हैं

  • ''जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है, वो सभी 2 साल में मर जाएंगे''
  • ''आगे आने वाले समय में पता चलेगा, कि वैक्सीन की वजह से ही नए वैरिएंट बने हैं.''
  • ''कई एपिडेमियोलॉजिस्ट ये बात जानते हैं और ''एंटीबॉडी डिपेंडेंट इनहैंसमेंट (ADE)'' की समस्या के बारे में चुप हैं''

ये दावे WhatsApp पर काफी शेयर हो रहे हैं

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/WhatsApp)

हमने पूरा इंटरव्यू देखा, लेकिन हमने मॉन्टैनियर को ये कहते हुए नहीं सुना कि वैक्सीन ले चुके लोग दो साल में मर जाएंगे. हालांकि, उन्होंने ये जरूर कहा कि इसके दुष्प्रभाव 2 से 3 सालों में दिखेंगे.

इसके अलावा, दूसरा दावा कि वैक्सीनेशन से नए वैरिएंट सामने आएंगे, ये भी गलत निकला. क्योंकि अगर हम यूके में पाए गए वैरिएंट के लिहाज से देखें, तो वहां टीकाकरण दिसंबर में शुरु हुआ था लेकिन सरकार ने घोषणा की थी कि पहली बार सितंबर में ये वैरिएंट पाया गया था. यानी टीकाकरण के भी 3 महीने पहले.

न्यूज रिपोर्ट्स और WHO के मुताबिक, कोविड 19 का B.1.617 वैरिएंट, जो भारत में सबसे प्रमुख वैरिएंट बन गया है, पहली बार इसकी पहचान अक्टूबर 2020 में हुई थी. यानी देश में टीकाकरण अभियान शुरू होने से बहुत पहले ही ये वैरिएंट पाया गया था.

हमने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में बायोलॉजिकल साइंसेज डिपार्टमेंट में प्रोफेसर संध्या कौशिका से भी बात की, जिन्होंने हमें बताया कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो ये बताता हो कि वैक्सीन की वजह से कोरोनावायरस के अलग-अलग वैरिएंट सामने आए हैं.

तीसरा दावा ये है कि एपिडेमियोलॉजिस्ट ''एंटीबॉडी डिपेंडेंट इनहैंसमेंट (ADE)'' समस्या के बारे में जानने के बावजूद चुप हैं. ये दावा भी गलत निकला. MedPage Today में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, वैक्सीन के विकास के शुरूआती चरणों में ही वैज्ञानिकों ने उस SARS-CoV-2 प्रोटीन को निकाला जिससे ADE होने की संभावना सबसे कम थी.

मतलब साफ है, मॉन्टैनियर के दावे न केवल निराधार और अप्रमाणिक हैं, बल्कि वो इस तरह के बयान पहले भी देते रहे हैं.

क्या होता है ADE

एंटीबॉडी-डिपेंडेंट इनहैंसमेंट से मतलब उस बायोलॉजिकल तथ्य से है जिसमें एक रोगाणु (इस मामले में, एक वायरस) खुद को एक एंटीबॉडी से जोड़कर, उन कोशिकाओं को प्रभावित करने की क्षमता हासिल कर लेता है जिन्हें पहले प्रभावित नहीं कर सकता था. एंटीबॉडी, रोगाणु के लिए एक वाहक के रूप में काम करने लगती हैं. इससे रोगाणुओं में होस्ट कोशिकाओं में प्रवेश करने की क्षमता बढ़ जाती है और रोग और खतरनाक हो जाता है.

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WhatsApp ने ग्रुप सेटिंग में नहीं किया कोई ‘सीक्रेट अपडेट’

एक वायरल मैसेज में, WhatsApp ग्रुप के लिए प्राइवेसी सेटिंग में ''नए सीक्रेट अपडेट'' से जुड़ा दावा किया जा रहा है. वायरल मैसेज में दावा किया जा रहा है कि WhatsApp की ग्रुप सेटिंग में बदलाव करके 'सभी' (everyone) को ऐड करने की सेटिंग जोड़ दी गई है. जिसका मतलब ये है कि जो लोग आपको नहीं जानते वो भी बिना आपकी जानकारी के आपको किसी ग्रुप में जोड़ सकते हैं. इन ग्रुप में स्कैमर, लोन देने वाले लोग आदि शामिल हो सकते हैं.

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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)

दावे में जिस सेटिंग के बारे में बात की जा रही है उसे WhatsApp ने 2019 में ही पेश कर दिया था, जबकि वायरल मैसज में ये कहा जा रहा है कि ये सेटिंग अभी पेश की गई है. ये सेटिंग तभी से डिफॉल्ट सेटिंग के तौर पर इस्तेमाल हो रही है. इसके अलावा, ये दावा कि बिना किसी की जानकारी के उसे किसी ग्रुप में जोड़ा जा सकता है, गलत है. क्योंकि जितनी बार किसी को किसी ग्रुप में जोड़ा जाता है WhatsApp उतनी बार उसे नोटिफिकेशन भेजता है.

हमने एंड्रॉयड और आईओएस डिवाइसों पर WhatsApp के लेटेस्ट वर्जन में ग्रुप सेटिंग चेक करके भी देखी, लेकिन हमें सेटिंग्स में कोई भी ऐसा बदलाव नहीं दिखा जो एकतरफा हो यानी WhatsApp की ओर से कर दिया गया हो.

हमने क्लैरिफिकेशन के लिए WhatsApp से संपर्क किया, जिसके प्रवक्ता ने क्विंट को बताया, ‘’ये सेटिंग 2011 से ही डिफॉल्ट है और इससे जुड़ा किया जा रहा दावा झूठा है. 2019 में हमने उन लोगों के लिए नए कंट्रोल जोड़े, जो इस बात की सीमा निर्धारित करना चाहते थे कि कौन उन्हें ग्रुप में जोड़ सकता है और कौन नहीं.’’

इसलिए, ये दावा भ्रामक है कि WhatsApp ग्रुप के लिए गोपनीयता सेटिंग में गुप्त रूप से बदलाव किया जा रहा है. ये 2019 से ही डिफॉल्ट सेटिंग है.

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बंगाल में रोंहिग्याओं ने नहीं लगाए ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे

एक वायरल वीडियो शेयर कर दावा किया जा रहा है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव जीतेने के बाद पश्चिम बंगाल में 'रोहिंग्याओं' ने एक 'धन्यवाद' रैली निकाली और 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए.

हालांकि, क्विंट की वेबकूफ टीम ने पाया कि ये दावा झूठा है और वीडियो बंगाल का नहीं बल्कि यूपी के बहराइच जिले का है. इसके अलावा, रैली में शामिल लोग पाकिस्तान जिंदाबाद के नहीं हाजी साहब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. ये रैली हाल में हुए यूपी पंचायत चुनाव में हाजी अब्दुल कलीम के जीतने पर निकाली गई थी.

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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)

हमने वीडियो को ध्यान से देखा. वीडियो के 50वें सेकेंड में हमें 'भूमि वस्त्रालय' नाम की एक दुकान दिखी. हमें गूगल मैप्स का इस्तेमाल करके देखा और पाया कि ये दुकान यूपी के बहराइच जिलमें के रुपईडीहा में स्थित है.

वायरल वीडियो को ध्यान से सुनने पर हमने पाया कि भीड़ 'हाजी साहब जिंदाबाद' के नारे लगा रही थी. वीडियो के 11वें से 18वें सेकेंड में आप ये नारा सुन सकते हैं: "हमारा प्रधान कैसा हो? हाजी साहब जैसा हो.” हाजी अब्दुल कलीम बहराइच के केवलपुर गांव के नवनिर्वाचित प्रधान हैं.

क्विंट की वेबकूफ टीम ने डीएसपी डॉ जंग बहादुर यादव से संपर्क किया, जिन्होंने पुष्टि करते हुए बताया कि भीड़ 'हाजी साहब जिंदाबाद' के नारे लगा रही थी.

ये वीडियो (जो अभी वायरल है) और दूसरा वीडियो जिसमें हम एक लड़के को मास्क पहने देख सकते हैं, दोनों को फोरेंसिक के लिए भेजा गया है. दोनों वीडियो एक ही दिन के हैं. अपनी शुरुआती जांच में हमने पाया कि भीड़ ‘हाजी साहब जिंदाबाद’ के नारे लगा रही थी. दूसरे वीडियो में शूटिंग कर रहे लड़के ने भी हमसे इसकी पुष्टि की. हमने इसे फोरेंसिक साइंस लैब में यह देखने के लिए भेजा है कि क्या किसी ने वीडियो के साउंड के साथ छेड़खानी करके, नारों को ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसा सुनाई देने वाला बना दिया है.’’
डॉ जंग बहादुर यादव, डीएसपी

मतलब साफ है कि यूपी का वीडियो बंगाल का बताकर इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि रोहिंग्याओं ने बंगाल में चुनाव जीतने का जश्न मनाया और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए.

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PM मोदी के रोने की तुलना मगरमच्छ से करने वाला NYT का आर्टिकल फेक

'The New York Times' के फ्रंट पेज की एक एडिटेड फोटो वायरल हुई. जिसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दावा किया गया कि भारत की हालिया स्थिति को New York Times ने अच्छे तरीके से पेश किया है. इस वायरल फोटो में एक मगरमच्छ की फोटो देखी जा सकती है. जिसके ऊपर लिखा है, ''India’s PM cried.'' यानी इस वायरल स्क्रीनशॉट में ये दावा किया जा रहा है कि न्यू-यॉर्क टाइम्स ने पीएम मोदी के रोने की तुलना मगरमच्छ के आंसुओं से की है.

ये फोटो ऐसे समय में शेयर की गई थी जब पीएम मोदी ये कहते हुए भावुक हो गए थे कि कोविड 19 की दूसरी लहर ने हेल्थ सिस्टम को प्रेशर में डाल दिया है और हमें कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी है.

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)

जरूरी कीवर्ड इस्तेमाल करके, हमने पीएम नरेंद्र मोदी के रोने पर New York Times का आर्टिकल सर्च किया. हमें ऐसा कोई भी सर्च रिजल्ट नहीं मिला.

वायरल इमेज में जो तारीख दी हुई है वो है शुक्रवार, 21 मई. साथ ही, इसे इंटरनेशनल एडिशन के तौर पर शेयर किया जा रहा है. इसलिए, हमने NYT की ऑफिशियल वेबसाइट पर इसी तारीख का संबंधित एडिशन खोजा. हमने पाया कि वायरल फोटो में दिख रही मगरमच्छ की फोटो और पीएम मोदी पर की गई कोई स्टोरी, दोनों ही NYT के ऑफिशियल एडिशन पर कहीं भी नहीं है.

आप यहां दोनों के बीच तुलना देख सकते हैं.

बाएं वायरल फोटो, दाएं NYT के फ्रंट पेज का ऑफिशियल एडिशन

(फोटो: Altered by The Quint)

इसके अलावा, हमें ‘The Daily New York Times’ नाम का एक ट्विटर अकाउंट मिला. इस अकाउंट ने अपनी पहचान पैरोडी हैंडल के तौर पर की है. इसी ट्विटर अकाउंट से इस वायरल फोटो को ट्वीट किया गया था. हालांकि, बाद में खुद इस हैंडल ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है कि इसे गंभीरता से न लें, ये केवल एक व्यंग्य था.

मतलब साफ है कि New York Times के इंटरनेशनल एडिशन में न तो मगरमच्छ की फोटो लगाई गई है और न ही पीएम मोदी के रोने को लेकर कोई स्टोरी की गई है. फोटो को एडिट कर गलत दावा किया जा रहा है.

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मार्क जकरबर्ग और इजरायल के पीएम की ये फोटो फर्जी है

इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और आर्मी की वर्दी पहने फेसबुक के को-फाउंडर मार्क जकरबर्ग की एक फोटो वायरल हो रही है. जिसमें दोनों साथ में बैठ देख रहे हैं.

हालांकि, क्विंट की वेबकूफ टीम की पड़ताल में ये फोटो एडिटेड निकली. ओरिजिनल फोटो में बेंजामिन नेतन्याहू के साथ इजरायल डिफेंस फोर्स (IDF) के चीफ ऑफ स्टाफ अवीव कोहावी बैठे हुए हैं. जिनके चेहरे के ऊपर मार्क जकरबर्ग का चेहरा लगा दिया गया है. ओरिजिनल फोटो नवंबर 2019 में तेल अवीव में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान की है.

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)

हमने Yandex पर फोटो को रिवर्स इमेज सर्च करके देखा. हमें जॉर्जिया की न्यूज एजेंसी ‘InterPressNews’ में पब्लिश एक आर्टिकल मिला जिसमें ऐसी ही एक फोटो का इस्तेमाल किया गया था.

ये आर्टिकल 12 नवंबर 2019 को पब्लिश हुआ था. जिसमें लिखा है कि पीएम नेतन्याहू ने इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) के चीफ ऑफ स्टाफ अवीव कोहावी और 'शिन बेट' के चीफ नदव अर्गमन के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की.

IDF प्रमुख की तस्वीर में मार्क जकरबर्ग का चेहरा लगाकर इसे बदल दिया गया है. हमें दोनों फोटो में एक जैसी कई चीजें नजर आईं, जैसे दोनों फोटो में एक ही आर्मी ड्रेस देखी जा सकती है.

वायरल फोटो में दिख रहे बैकग्राउंड में फेसबुक का लोगो भी एडिट करके जोड़ा गया है, जबकि असली फोटो का बैकग्राउंड इससे अलग है.

(सोर्स: InterPressNews/Altered by The Quint)

वायरल फोटो (बाएं), ओरिजिनल फोटो (दाएं)

हमने मार्क जकरबर्ग और नेतन्याहू की मीटिंग से जुड़ी हाल की न्यूज रिपोर्ट भी ढूंढी, लेकिन हमें ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं मिली.

मतलब साफ है कि इजरायल-फिलिस्तीन के बीच चल रहे तनाव के बीच एक पुरानी फोटो को एडिट कर ये गलत दावा किया जा रहा है कि इजरायल के पीएम और फेसबुक के को-फाउंडर मार्क जकरबर्ग को एक साथ मीटिंग करते देखा जा सकता है. इस फोटो में मार्क जकरबर्ग का चेहरा एडिट करके जोड़ा गया है.

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