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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई
(वीडियो देखने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.
धन्यवाद - टीम वेबकूफ)
कोरोना महामारी ने सबसे ज्यादा प्रभावित सुदूर इलाकों में रह रही उन महिलाओं को किया जिन तक न तो पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच थी, न ही वायरस और वैक्सीन से जुड़ी सही जानकारियों का कोई साधन. इस पर वैक्सीन से जुड़ी अफवाहों ने महिलाओं के वैक्सीनेशन को और ज्यादा मुश्किल बना दिया था.
कहीं वैक्सीन लेने से संतानहीनता होने का डर, तो कहीं मौत का. क्विंट की वेबकूफ टीम ने वैक्सीन से डराते ऐसे तमाम भ्रामक दावों की पड़ताल कर और इनका सच महिलाओं तक पहुंचाया, अपने खास प्रोजेक्ट के तहत, जो विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के लिए ही शुरू किया गया था.
इस वीडियो में ऐसी ही कुछ महिलाएं अपने अनुभव साझा करते हुए बता रही हैं कि कैसे वे पहले अफवाहों को सच मानकर वैक्सीन लेने से हिचक रही थीं, लेकिन जैसे ही उन्हें हमारी फैक्ट चेक स्टोरी और अलग-अलग जागरुकता कार्यक्रमों के जरिए सच पता चला, डर को दूर भगाकर उन्होंने वैक्सीन लगवाई.
उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर की रहने वाली राधा बताती हैं कि पहले उन्हें वैक्सीन से डर लगता था. उन्होंने सुन रखा था कि कोरोना वैक्सीन लेने से मौत हो सकती है. फिर द क्विंट के कैंपेन से जुड़े पम्पलेट्स को राधा ने पढ़ा और समझा कि ये सब अफवाहें हैं, अपने डर से आगे बढ़कर फिर राधा ने वैक्सीन लगवाई.
एक चुनौती तो उन महिलाओं के सामने थी, जिन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही थी, लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती उन महिलाओं के सामने थी जिन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचानी थीं. वो आशा कार्यकर्ता जिनपर जिम्मा था ग्रामीण इलाके की महिलाओं को कोरोना और वैक्सीन को लेकर जागरुक करना. लेकिन, ये सुनने में जितना आसान है जमीनी स्तर पर इस काम को अंजाम देना उतना ही मुश्किल था.
एक आशा कार्यकर्ता ने क्विंट से बातचीत में कहा ''हम लोगों को बहुत संघर्ष करना पड़ा. जिसके घर वैक्सीनेशन के लिए जाते थे वो मना करते थे. वैक्सीन से बच्चा नहीं होगा, सरकार को सिर्फ वोट चाहिए, हम नहीं लगवाएंगे, इस तरह की कई बातें सुनने को मिलती थीं. अब काफी बदला है. आप लोगों ने जो वैक्सीन को लेकर जागरुकता का प्रचार प्रसार किया, उससे काफी फर्क आया''
सरिता अपना वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाते हुए कहती हैं कि ''पहले मैंने नहीं लगवाई थी, आप लोगों के प्रचार के बाद डर खत्म हुआ, इसलिए सुई लगवा ली''. ऐसी एक नहीं कई कहानियां हैं, जब क्विंट के फैक्ट चेक प्रोजेक्ट ने अफवाहों का सच महिलाओं तक पहुंचाया और डर से बाहर आकर उन सबने वैक्सीन लगवाई.
महिलाओं की टोली के बीच खड़ी एक वृद्ध महिला के हाथ में क्विंट की फैक्ट चेक रिपोर्ट से जुड़ा पम्पलेट है, वे कहती हैं ''पहले मैं खुद वैक्सीन नहीं लगवा रही थी पर जब जागरुकता कार्यक्रम देखा, ये पर्चे पढ़े, समझने की कोशिश की तब मेरे दिल में जीत हो गई और मैंने वैक्सीन लगवा ली''.
(ये वीडियो क्विंट के COVID-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)
(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9643651818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं )
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