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कोविड वैक्सीन नहीं लगवाने की सलाह वाली एडवाइजरी के सभी दावे भ्रामक

इस एडवाइजरी में किए गए दावे स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन से मेल नहीं खाते.

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वैक्सीन न लगवाने का पक्ष रखने वाले कुछ डॉक्टर्स ने एक एडवाइजरी शेयर की है. इस एडवाइजरी में कहा गया है कि अविवाहित महिलाओं, बच्चों, ऐसे लोग जिन्हें सांस से संबंधित कोई समस्या हो और ऐसे लोग जो स्मोकिंग करते हों या शराब के सेवन करते हों, उन्हें कोविड-19 की वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. इसमें ये भी बताया गया है कि उन लोगों को भी ये वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए जिन्हें न्यूरल समस्या हो या फिर जो डायबिटिक हों.

हालांकि, हमने पाया कि कुछ दावे भ्रामक हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) और वैक्सीन निर्माताओं ने इस बारे में गाइडलाइन जारी की हैं कि किन्हें टीका लगवाना है और किन्हें नहीं. इस गाइडलाइन में उन प्वाइंट्स के बारे में नहीं लिखा गया है जो वायरल दावे में बताए गए हैं.

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दावा

दावे को एक एडवाइजरी के तौर पर शेयर किया गया है. इसका टाइटल है, ''वैक्सीन किसे 'नहीं' लगवाना है?''

इस एडवाइजरी में 6 तरह की कैटेगरी बताई गई हैं कि किसे वैक्सीन नहीं लगवाना है. इसमें बताया गया है कि अविवाहित महिलाओं को वैक्सीन लगवाने से भविष्य में संतानहीनता हो सकती है. बच्चों को भी वैक्सीन न लगवाने की सलाह दी गई, क्योंकि इससे उन्हें आगे चलकर गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.

इसके अलावा, सांस से जुड़ी बीमारी और डायबिटीज के मरीजों को भी वैक्सीन से दूरी बनाए रखने के लिए बोला गया है, क्योंकि इससे उनकी मौत हो सकती है. स्मोकर्स और शराब पीने वालों के साथ-साथ मानसिक और न्यूरल समस्याओं के मरीजों को भी वैक्सीन न लगवाने की सलाह दी गई है.

इस एडवाइजरी में नीचे कुछ डॉक्टरों के नाम लिखे हैं, जिनमें से डॉ. तरुण कोठारी और डॉ. बिश्वरूप रॉय चौधरी का भी नाम है. इन्हें मेडिकल से जुड़ी गलत सूचना फैलाने और कॉन्सपिरेसी थ्योरी के लिए जाना जाता है.

ऐसे ही अन्य पोस्ट के आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

पड़ताल में हमने क्या पाया

कई बार फैक्ट चेक किए जाने के बावजूद डॉ. कोठारी और डॉ. चौधरी नोवल कोरोना वायरस के अस्तित्व पर ही सवाल उठाया है और इसे किसी फ्लू जैसा ही मानते हैं. वो अब भी ऐसा करना जारी रखे हुए हैं. इससे पहले उनके कुछ दावों को FIT ने खारिज किया है.

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दावा 1: अविवाहित महिलाएं हो सकती हैं संतानहीन

भारत में टीकाकरण के लिए अप्रूव हो चुकी वैक्सीन कोवैक्सीन और कोविशील्ड से संबंधित सुरक्षा और प्रभाव से जुड़े डेटा के मुताबिक, स्टडी में वैक्सीन के साइड इफेक्ट में संतानहीनता नहीं है.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक की जारी फैक्ट शीट में भी ऐसा नहीं बताया गया है कि अविवाहित महिलाओं को वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए.

ANI से बातचीत में ड्रग कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया के डायरेक्ट वीजी सोमानी ने कहा कि ‘’कोविड-19 वैक्सीन लगवाने के बाद मामूली बुखार, दर्द, एलर्जी जैसे मामूली साइड इफेक्ट हो सकते हैं, लेकिन प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाला दावा गलत है.’’

इसी तरह का दावा फाइजर की वैक्सीन को लेकर भी किया गया था जिसे FIT ने खारिज किया था.

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दावा 2: बच्चों का न लगवाएं वैक्सीन, भविष्य में हो सकती हैं बीमारियां

अभी तक, MoHFW ने 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए ही वैक्सीन की अनुमति दी है. 18 साल से कम उम्र के लोग वैक्सीन के लिए सुरक्षा और प्रभावकारिता परीक्षण का हिस्सा नहीं थे.

एडवाइजरी में किया गया ये दावा बेतुका है, क्योंकि जब 18 साल से कम उम्र के लोगों पर इसका परीक्षण ही नहीं हुआ है तो ये दावा नहीं किया जा सकता कि वैक्सीन से भविष्य में बीमारियां हो सकती हैं.

इसके अलावा, इंट्रानेजल वैक्सीन बनाने के लिए स्टडी और टेस्ट किए जा रहे हैं ताकि बच्चों को आसानी से वैक्सीन दी जा सके. एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने हाल में ही एक इंटरव्यू में कहा, ''बच्चों के लिए वैक्सीन बाद में आ सकती हैं... भारत बायोटेक एक नेजल वैक्सीन की मंजूरी लेने की कोशिश कर रहा है. इस तरह की वैक्सीन बच्चों को देने में काफी आसानी होगी. क्योंकि ये एक स्प्रे है न कि इंजेक्शन, इसलिए ये उनके लिए अनुकूल भी रहेगी.''

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दावा 3: जिन्हें सांस से जुड़ी कोई समस्या या बीमारी हो

MoHFW और वैक्सीन निर्माताओं ने ऐसा नहीं कहा है कि सांस से जुड़ी बीमारी वाले लोग वैक्सीन न लें. हमें ब्रिटिश लंग फाउंडेशन की वेबसाइट में पब्लिश एक रिपोर्ट भी मिली जिसमें कहा गया है कि ऐसे लोग जिन्हें लंग से जुड़ी समस्याएं हैं वो वैक्सीन ले सकते हैं.

हालांकि, MoHFW की जारी गाइडलाइन में बताया गया है कि ऐसा कोई जो किसी भी तरह की बीमारी की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती है या गंभीर रूप से बीमार है, उसे वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए. किसी भी तरह की गंभीर बीमारी से ग्रसित होने के मामले में अपने चिकित्सक से परामर्श करना उचित रहेगा.

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दावा 4: स्मोकिंग या शराब पीने वालों को वैक्सीन से कैंसर हो सकता है

पिछले दावों की तरह ही सरकार और वैक्सीन निर्माताओं ने अपनी गाइडलाइन में इस तरह की कोई बात नहीं बताई है.

इसके उलट स्मोकिंग करने वालों को अमेरिका में वैक्सीन लगाने में वरीयता दी जा रही है, क्योंकि उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है.

दावा 5: न्यूरल समस्याओं से ग्रसित लोगों को वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए

ऑक्सफोर्ड की एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल रोकना पड़ा था क्योंकि स्टडी के दौरान एक मरीज में न्यूरोलॉजिकल लक्षण दिखे थे. बाद में बताया गया कि मरीज को एक रेयर लेकिन गंभीर, रीढ़ की हड्डी में सूजन से जुड़ी बीमारी (स्पाइनल इनफ्लेमेटरी डिसऑर्डर) थी जिसे ट्रांसवर्स मायलाइटिस कहा जाता है.

यह भी सलाह दी जाती है कि गंभीर रूप से बीमार होने पर वैक्सीन लेने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें.

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दावा 6: डायबिटीज के मरीज न लगवाएं वैक्सीन

स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक, 45 से 59 साल के ऐसे लोग जिन्हें 10 साल से ज्यादा समय से डायबिटीज है या डायबिटीज की वजह से कोई परेशानी हुई है और जिन्हें हाइपरटेंशन की समस्या है, उन्हें भी 60 साल की उम्र से ऊपर वाले लोगों के साथ-साथ वैक्सीन लगाने की अनुमति दी गई है.

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने कहा कि ऐसे लोग जिन्हें टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज है उनमें कोविड 19 की वजह से गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए, ये जरूरी है कि वायरस से बचने के लिए डायबिटीज से ग्रसित लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाएं.

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सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कुछ खास तरह के लोगों को वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. इनमें गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाएं और एनाफिलेक्टिक या एलर्जिक रिएक्शन का इतिहास रखने वाले लोगों के साथ-साथ ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें इंजेक्शन लगाने जैसी थेरेपी से समस्या होती है. साथ ही उन्हें भी ये वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए जिन्हें फार्मा प्रॉडक्ट्स से एलर्जी होती है.

इसके अलावा, ऐसे लोगों को जिनमें SARS-CoV-2 के लक्षण दिखे हों, उन्हें भी वैक्सीन लेने से पहले 2-4 सप्ताह तक इंतजार करना चाहिए.

कोविड-19 और इसकी वैक्सीन से जुड़ी बातें लोगों को तेजी से पता तो चल रही हैं. लेकिन इस तरह के भ्रामक दावे से बचने की जरूरत है. वायरल एडवाइजरी में किए गए दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और ये दावे भ्रामक हैं.

(येे स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 से जुड़े प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)

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