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रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) संकट हर दिन गहराता जा रहा है. रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है. इससे पहले रूस ने यूक्रेन के दो अलगाववादी राज्यों को मान्यता दे दी. जिसके बाद यूक्रेन ने UNSC की बैठक में कहा कि हम झुकेंगे नहीं. और अमेरिका ने इस बैठक में कहा कि, हम और हमारे सहयोगी इस मुद्दे पर स्पष्ट हैं कि यूक्रेन पर और आक्रमण करने के लिए रूस को गंभीर प्रतिक्रिया दी जाएगी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि, अगर बड़ी जंग होती है तो उसका नतीजा क्या हो सकता है. ये समझने के लिए हमें दोनों देशों की पावर को आंकना होगा.
रूस दुनिया की सबसे बड़ी मिलिट्री पावर में से एक है. जबकि यूक्रेन एक छोटा देश है और मिलिट्री पावर में भी रूस के सामने कहीं नहीं टिकता.
FAS की सूची के मुताबिक रूस के पास कुल 6,257 परमाणु बम हैं. इनमें से 1600 बमों को तैनात किया गया है जबकि 4,497 बम रिजर्व में रखे गए हैं. जबकि यूक्रेन के पास कोई परमाणु हथियार नहीं है.
रूस के पास 70 पनडुब्बी हैं और यूक्रेन के पास एक भी नहीं है.
रूस के पास 3391 मोबाइल रॉकेट प्रोजेक्टर हैं जबकि यूक्रेन के पास 490
रूस के पास 12,420 टैंक हैं और यूक्रेन के पास 2596 टैंक हैं
4.4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन का सैन्य बजट 45 हजार करोड है जबकि 14 करोड की आबादी वाले रूस का डिफेंज बजट 6.63 लाख करोड़ से ज्यादा है
ये आंकड़े देखकर सवाल उठता है कि यूक्रेन रूस से इतना कमजोर दिखता है तो वो कैसे उसके सामने जंग के लिए तैयार है. तो इसका जवाब पिछले कुछ दिनों में अमेरिका और नाटो के आये बयान हैं. अमेरिका लगातार यूक्रेन को बैक कर रहा है और हर कदम साथ देने की बात कर रहा है. यही वो वजह है जिसके बल पर यूक्रेन रूस जैसी ताकत के सामने खड़ा है. और अमेरिका अकेला यूक्रेन के साथ नहीं है. ब्रिटेन, फ्रांस औऱ जर्मनी जैसे ताकतवर देश भी इसका हिस्सा हैं. जो मित्र देश कहलाते हैं. अमेरिका और नेटो पहले ही रूस को परिणाम भुगतने की चेतावनी दे चुके हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव की वजह को नेटो की सदस्यता से जोड़कर देखा रहा है लेकिन बात इतनी भर नहीं है. दोनों देशों के बीच पहले भी कई बार संघर्ष हो चुका है, जिसमें 2014 की जंग भी शामिल है जिसमें क्रीमिया को अलगाववादियों ने छीन लिया और रूस पर उनकी मदद के अरोप लगे. इस पूरे विवाद की सतह को सामने लाने के लिए हमें अतीत के पन्नों को खंगालकर इतिहास समझवना होगा.
यूक्रेन पहले रूस का ही हिस्सा हुआ करता था लेकिन 1991 में रूसी साम्राज्य जब टूटा तो यूक्रेन एक अलग देश बना. इसके बाद भी यूक्रेन में रूस का थोड़ा बहुत दखल था. लेकिन यूक्रेन ने रूस की छत्रछाया से निकलने के लिए पश्चिमी देशों से नजदीकियां बढ़ाना शुरू कर दी.
लेकिन साल 2010 आते-आते इसमें थोड़ा बदलाव तब हुआ जब विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने और उन्होंने रूस से बेहद क़रीबी संबंध बनाए. इन संबंधों की बुनियाद पर उन्होंने यूरोपीय संघ में शामिल होने के समझौते को ख़ारिज कर दिया. इसकी प्रतिक्रिया ये हुई कि भारी विरोध प्रदर्शन के कारण साल 2014 में उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
यहां से ही हालात बिगड़ते चले गए रूस यूक्रेन के खिलाफ सख्त होता रहा और नतीजा 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया गया. इस हिस्से पर यूक्रेन के अलगाववादियों ने कब्जा कर लिया जिनकी मदद के आरोप रूस पर लगे, हालांकि रूस ने हमेशा इन आरोपों को नकारा.
बहरहाल 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने मिलकर एक समझौता कराया जिससे जंग तो रुक गई लेकिन कोई राजनीतिक हल नहीं निकल पाया.
2021 से ही रूस ने अपनी सीमा पर युद्ध अभ्यास शुरू कर दिया था जो हाल ही में खत्म हुआ. इस युद्ध अभ्यास के बाद अलगाववादियों और यूक्रेन के बीच सीजफायर उल्लंघन की खबरें बढ़ने लगी.
रूस ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन ने 2015 के शांति समझौते का पालन नहीं किया. इसके अलावा रूस यूक्रेन के नेटो में शामिल होने पर भी आपत्ति जताता है. रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नेटो का सदस्य बना तो नेटो के ठिकाने उसकी सीमा के नज़दीक खड़े कर दिए जाएंगे. हालांकि नेटो ने रूस को भरोसा दिलाया है कि उससे उसको कोई ख़तरा नहीं है. यूक्रेन रूस से बचाव के लिए नेटो का सदस्य बनना चाहता है.
नाटो 30 देशों का संगठन है. इन देशों के बीच ये समझौता है कि अगर कोई देश इन सदस्य देशों में से किसी पर भी हमला करता है तो सब मित्र देश मिलकर उसका सामना करेंगे. और वो पूरे संगठन का दुश्मन होगा, फिलहाल यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं है लेकिन फिर भी नेटो के कई सदस्य देश खुलकर यूक्रेन के समर्थन में आये हैं. रूस को ये चिंता है कि अगर यूक्रेन इस संगठन का हिस्सा हो गया तो उसके लिए परेशानी बढ़ सकती है.
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