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Sri lanka Crisis:महिंदा राजपक्षे की 5 गलतियां,जिनकी वजह से उनके ही घर में लगी आग

Sri lanka में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के घर पर हमला किया

वकार आलम
दुनिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Sri lanka Crisis:महिंदा राजपक्षे की गलतियों में नए PM के लिए सबक, दुनिया भी देखे</p></div>
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Sri lanka Crisis:महिंदा राजपक्षे की गलतियों में नए PM के लिए सबक, दुनिया भी देखे

फोटो- क्विंट हिंदी

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श्रीलंका (Sri Lanka) इस वक्त भयानक आर्थिक संकट (Sri lanka Economic Crisis) और राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे समेत पूरा मंत्रिमंडल इस्तीफा दे चुका है और कोलंबो की सड़कों पर अराजकता का माहौल रहा. प्रदर्शनकारी लगातार हंगामा भी करते रहे हैं जिससे निपटने के लिए श्रीलंका सरकार को देखते ही गोली मारने का आदेश भी देना पड़ा था. अब श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति गोटाबाया राजापक्षे के घर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया. और उन्हें अपना घर छोड़कर भागना पड़ा.

लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये है कि श्रीलंका आखिर इस स्थिति तक कैसे पहुंचा. लगभग भारत के साथ आजादी पाने वाले पड़ोसी देश की इस हालत के लिए किसकी और कौन सी गलतियां जिम्मेदार हैं.

श्रीलंका महीनों से आर्थिक संकट का शिकार है, उसकी ये हालत एक दिन में नहीं हुई है लेकिन लगातार हालात को संभालने का दावा करने वाली सरकार ने कुछ दिन पहले हाथ खड़े कर दिये और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने 19 अप्रैल को माना कि हमारी गलतियों के कारण श्रीलंका इन हालातों का सामना कर रहा है. हालांकि उन्होंने कोविड-19 और विदेशी कर्ज को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया. लेकिन सरकार के आलोचक कहते हैं कि इन हालातों के पीछे सबसे बड़ा हाथ महिंद्रा राजपक्षे का है. जिनकी गलतियों की सजा अब श्रीलंका भुगत रहा है. हालांकि उन्होंने कभी गलती नहीं मानी लेकिन जिन गलतियों का जिक्र 19 अप्रैल को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने किया था वो भी महिंद्रा राजपक्षे की सरकार ने ही की थीं.

पहली गलती- विदेशी कर्ज का गलत इस्तेमाल

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे भी मानते हैं कि श्रीलंका को आर्थिक संकट में घेरने के लिए विदेशी कर्ज भी जिम्मेदार है. लेकिन उनके आलोचक ये कहते हैं कि विदेशी कर्ज का गलत इस्तेमाल देश पर भारी पड़ा है. गैरजरूरी इनफ्रास्ट्रक्चर पर कर्ज लेकर खर्च किया गया.

इसे एक उदाहरण से समझ सकत हैं. श्रीलंका ने 2010 में चीन से हंबनटोटा पोर्ट के विकास के लिए 1.26 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था. जिसके जरिए सरकार औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देना चाहती थी लेकिन उम्मीद से उलट इस पोर्ट को 6 साल में करीब 30 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ. जिसके बाद 2017 में इसे एक चीनी कंपनी को 99 साल के पट्टे पर दे दिया गया.

रिपोर्ट्स के मुताबिक इसी तरह हंबनटोटा पोर्ट के पास चीन से करीब 20 करोड़ डॉलर का कर्ज लेकर राजपक्षे हवाई अड्डा बनाया गया, जिसका इस्तेमाल इतना कम है कि वो अपना बिजली का बिल कवर करने में भी असफल रहा है.

श्रीलंका सरकार ने कोलंबो के पास 665 एकड़ में आर्टिफीशियल पोर्ट सिटी की परियोजना बनाई थी जिसे सरकार दुबई के मुकाबले में एक फाइनेंशियल हब के तौर पर विकसित करना चाहती थी लेकिन ये परियोजना भी फेल हो गई.

श्रीलंका पर कितना विदेशी कर्ज?

चीन पर 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है. जिसमें चीन की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत की है.

दूसरी गलती- कई सामानों के आयात पर रोक

श्रीलंका सरकार विदेशी मुद्रा भंडार के कम होने का कारण कोरोना महामारी को बताती है, जिसके पीछे उसका तर्क था कि कोविड के चलते टूरिज्म पर बुरा असर पड़ा और विदेशी मुद्रा भंडार कम होता गया. जिससे उबरने के लिए श्रीलंका सरकार ने क्या किया कि केमिकल फर्टिलाइजर के आयात पर रोक लगा दी, ताकि विदेशी मुद्रा के भंडार को बाहर जाने से रोका जा सके. लेकिन इसका असर उल्टा पड़ गया. रासायनिक खाद नहीं आया तो फसलें खराब हो गई और विदेश से खाने पीने की चीजें मंगानी पड़ी.

इस फैसले को लेकर श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने कहा भी कि, उन्हें 2020 में केमिकल फर्टिलाइजर पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर अफसोस है, जिसके कारण देश में खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई और देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए.

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तीसरी गलती- टैक्स में छूट

साल 2019 में जब राजपक्षे सत्ता में आये तो उनकी सरकार ने टैक्स में बड़ी छूट का ऐलान किया. जिसका सीधा असर देश के खजाने पर पड़ा और तभी कोरोना महामारी आ गई जिससे टूरिज्म सेक्टर बैठ गया और श्रीलंका गड्ढे में जाता रहा.

चौथी गलती- जनता के विरोध को सही से हैंडल नहीं किया

जब श्रीलंका में महंगाई आसमान छूने लगी तो जनता सड़कों पर उतर आई लेकिन राजपक्षे सरकार ने जनता से सही ढंग से संवाद नहीं किया. जिसकी वजह से कन्फ्यूजन बढ़ता गया और आखिर में महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा. प्रशासनिक और शासन के कुप्रबंधन का एक उदाहरण ऐसे समझिए कि जिस दिन महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दिया उस दिन उनके घर के बाहर सैकड़ों समर्थक इकट्ठा हो गए जो चाहते थे कि राजपक्षे इस्तीफा ना दें. रॉयटर्स के मुताबिक कुछ ही वक्त बाद पीएम के समर्थन में पहुंचे लोगों ने शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दी और जो लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे उनकी पिटाई कर दी.

यहां तक की सत्ता पक्ष के सांसद अमरकीर्ति अथुकोराला ने एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी और फिर खुद को भी गोली मार ली.

पांचवी गलती- महामारी के बाद टूरिज्म को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया

श्रीलंका की GDP में करीब 10 प्रतिशत टूरिज्म की हिस्सेदारी है. लेकिन कोरोना से पहले भी श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर लगातार नीचे जाता रहा. और कोरोना के बाद तो हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो गए.

2021 में किस देश के कितने पर्यटक?

  • भारत- 56,268

  • ब्रिटेन- 16,646

  • रूस- 16,268

  • यूक्रेन- 7,037

  • फ्रांस- 6,549

  • अमेरिका- 6,124

  • कजाकिस्तान- 5,754

  • कनाडा- 5,079

  • चीन- 2,417

श्रीलंका के इस आर्थिक संकट से बाकी विकासशील और कर्जदार देश कई सबक ले सकते हैं. मसलन अगर किसी देश के सामने इस तरह का आर्थिक संकट आता है तो कब क्या कदम उठाये जा सकते हैं?

श्रीलंका की स्थिति से दुनिया के लिए सबक?

गरीबी और राजनीतिक अस्थिरता को कम करें

श्रीलंका में एक ब्रिटिश शैली की समाज कल्याण प्रणाली है जो मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा प्रदान करती है और साथ ही 1.2 मिलियन परिवारों के लिए एक समृद्धि गरीबी कम करने की पहल करती है. हालांकि, बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति और भोजन-ईंधन की कमी पर बढ़ती गरीबी और सामाजिक असंतोष को रोकने के लिए ये तंत्र अपर्याप्त थे. एक आदर्श दुनिया में, बुनियादी भोजन और ईंधन के लिए एक अस्थायी राशन प्रणाली को संकट की शुरुआत में पेश किया जाना चाहिए, इसके बाद सबसे गरीब लोगों को लक्ष्य रखकर नकद पैसा ट्रांसफर करना चाहिए.

संकट से बचने के लिए मजबूत आर्थिक संरचना

श्रीलंका का सेंट्रल बैंक श्रीलंका के नियामक ढांचे के केंद्र में है. हालांकि, स्वायत्तता की कमी का मतलब है कि सेंट्रल बैंक की मौद्रिक नीति और विनिमय दर के फैसले अल्पकालिक राजनीतिक दबावों से प्रभावित थे. न केवल सेंट्रल बैंक के गवर्नर को श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा छह साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है, बल्कि सेंट्रल बैंक का प्रबंधन करने वाले मौद्रिक बोर्ड में ट्रेजरी के सचिव भी शामिल होते हैं. जिससे बैंक की नीतियों पर सरकारी दबाव होता है जो आर्थिक नीतियों के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि सरकारें और सोच बदलती रहती है.

ईमानदारी से जनता के साथ संवाद

श्रीलंका के नागरिकों और सरकार के बीच भरोसेमंद संवाद की बेहद कमी दिखी. जिसने लोगों के बीच भ्रम की स्थिति को फैलाया और गलतफहमियों ने भी घर कर लिया. जनता सोशल मीडिया के सहारे सूचनाएं लेने लगी जिसमें कई तरह की गलत जानकारियां भी तैरती रहती हैं. इसीलिए जब भी संकट की घड़ी आये ध्यान रखना चाहिए कि जनता तक सत्य और सही संदेश पहुंचे. उससे संवाद किया जाता रहे.

हालांकि हर देश की स्थिति अलग हो सकती है और हर देश के लिए एक जैसे उपाय काम नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़े कई देशों के लिए श्रीलंका की स्थिति से कई सबक हो सकते हैं.

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Published: 16 May 2022,07:02 PM IST

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