advertisement
रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग (Russia Ukraine war) छेड़ दी है. इसे केवल दो देशों के बीच आपसी लड़ाई का मामला मत मानिए. इस जंग के हालात पूरी दुनिया को तबाही के कगार पर झोंक सकते हैं. दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियां अमेरिका और रूस (America and Russia) इस मामले पर आपस में टकरा रही हैं इसलिए यह जंग तीसरे विश्व युद्ध (World War III) के हालात भी खड़े कर सकती है. यूक्रेन (Ukraine) की ओर से किसी एक अन्य पक्ष के उतरने के साथ ही तीसरे विश्व युद्ध की यह आशंका सच होती दिखने लगेगी. यहां हम आपको ऐसे 8 ठोस कारण बता रहे हैं जिसके कारण दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध (Third World war) का डर सता रहा है.
तीसरे विश्व युद्ध की बात कहने का सबसे बड़ा कारण रूस का 30 देशों के संगठन नाटो से उलझना है. रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के फैसले के खिलाफ है. यूक्रेन की स्थिति उसके साथ बिल्कुल वैसी ही है, जैसे बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे देशों की हमारी सीमा पर है. जब तक ये देश भारत के दुश्मनों के साथ मिलकर उकसावे वाले कदम नहीं उठाते तब तक हमारा उनसे कोई इश्यू नहीं होता, लेकिन मान लीजिए यदि भूटान, बांग्लादेश या नेपाल सीधे तौर पर हमारे दुश्मन मुल्कों से मिलकर उनकी सेनाओं को अपनी जमीन पर उतार कर हमारी सीमाओं पर तैनात करवा दें तो इससे हमारे देश के कई सारे राज्य और एक बड़ा हिस्सा असुरक्षित हो जाएंगे. ऐसी स्थिति को रूस सहन करने के मूड में नहीं है. वह यही तर्क दे रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल कराके नाटो सेनाओं उसकी सीमा खड़ी होकर रूस पर दवाब बनाना चाहती हैं. वह यूक्रेन पर कब्जा कर के उसके नाटो में जाने वाले मामले को ही खत्म कर देना चाहता है.
अमेरिका फिर भी इस मामले में सैन्य कार्रवाई से बचने की कोशिश कर रहा था, पर जिस आक्रामक अंदाज में रूस ने उसके हर वाक्य की धज्जियां उधेड़ी हैं और खुलेआम चुनौती देकर युद्ध छेड़ा है, उससे अमेरिका को भी सशस्त्र कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. वैसे भी विश्व की बड़ी महाशक्ति होने के नाते अमेरिका का इस मामले से दूर रहना संभव नहीं हो पाएगा और अगर अमेरिका ने और रूस के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तो इसका सीधा परिणाम तीसरा वर्ल्ड वार ही होगा.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों व यूरोपियन पड़ोसियों को इस मामले से दूर रहने की खुलेआम धमकी दे डाली है. उन्होंने कहा कि यूक्रेन मामले में अगर कोई बाहरी देश घुसता है तो उसे तुरंत ऐसा जवाब मिलेगा जैसा इतिहास ने पहले कभी नहीं देखा होगा. उनका यह बयान दूसरे राष्ट्रों के लिए बेहद उकसावे वाला है. किसी की हस्ती को चुनौती देने वाले ऐसे फिजूल बयानों की वजह से ही दुनिया दो बड़ी लड़ाई पहले ही देख चुकी है.
चीन का मामला इस जंग में बहुत अहम होने जा रहा है. चीन ने अभी से ही रूस के समर्थन में बयान देना शुरू कर दिए हैं और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर बनाए जा रहे दबाव को ही जंग भड़काने का कारण बताया है. अमेरिका और चीन के बीच पिछले काफी समय से तनातनी चलती आ रही है. कोरोना वायरस के फैलाव का पूरा आरोप अमेरिका ने चीन पर मढ़ा है. चीन को उसने वैश्विक स्तर पर घेर रखा है. चीन का सामना करने के लिए अमेरिका भारत, ताइवान, जापान सबकी मदद को खुलकर सामने आया था. हांगकांग के मुद्दे पर भी अमेरिका ने हमेशा चीन को चुनौती दी है. अमेरिका को चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत भी खटकती है. अब यदि अमेरिका रूस के खिलाफ युद्ध के मैदान में उतरता है तो यह चीन को अमेरिका से हिसाब चुकाने का अच्छा मौका होगा.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने रूस की सैन्य कार्रवाई की और उसके रुख की जबरदस्त निंदा की है. महासचिव एंतोनियो गुतारेस (Antonio Guterres) ने इसे संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांतों के विरुद्ध और मिंस्क समझौते (Minsk Agreement) का उल्लंंघन बताया है. रूस वैसे भी अब किसी चौधरी संस्था को भाव देने के मूड में लग नहीं रहा है तो वह यूएनओ के इन नियमों का क्या परवाह करेगा? रूस संयुक्त राष्ट्र संघ को भी ललकारने और सीधे तौर पर अवहेलना करने का साहस कर रहा है.
दुनिया की पहले की दो बड़ी लड़ाइयों को भड़काने में कुछ सनकी तानाशाहों ने काफी रोल निभाया था, ऐसा ही एक सनकी राष्ट्राध्यक्ष इस चिंगारी को ज्वालामुखी बना सकता है, जिसका किसी पर ध्यान नहीं है. यह सनकी है बेलारूस का तानाशाह राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेंको (Alexander Lukashenko) जिसने हाल ही में उनकी सीमा के पास आने वाले किसी भी गैर मुल्की को परमाणु हथियारों से उड़ाने की धमकी दे डाली थी. लुकाशेंको इस जंग में खुलकर रूस के साथ है. लंबे समय से सत्ता पर बैठे लुकाशेंको और पुतिन भी गहरे दोस्त हैं.
भारत के दृष्टिकोण से देखें तो उसके लिए यह परिस्थिति बेहद अजीब होगी, क्योंकि उसके रूस और अमेरिका दोनों से ही अच्छे संबंध रहे हैं. जब अमेरिका और रूस में सीधे जंग छिड़ जाएगी तो भारत के लिए किसी एक पक्ष में आना बेहद कठिन हो जाएगा. भारत का पक्ष इस बात पर निर्धारित होगा कि उसके विरोधी चीन और पाकिस्तान इस मामले में कैसा बर्ताव कर रहे हैं. यदि चीन ने रूस का शस्त्र समर्थन करने के साथ ही भारत को भी धमकी देना शुरू किया तब स्थिति भारतीय उपमहाद्वीप में भी गंभीर हो जाएगी.
मध्य पूर्व के कुछ मुस्लिम देशों से अमेरिका के सदैव कटु संबंध रहे हैं. ईरान, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान आदि इस मौके को अमेरिका को घेरने के साथ ही उसके परंपरागत सहयोगी इजराइल से बदला लेने के अवसर के तौर पर देखेंगे. इजराइल सैन्य शक्ति की दृष्टि से संभवत: दुनिया के टॉप मुल्कों में शुमार होता है. वैसे भी इस समय उसका सीरिया, फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठनों, ईरान और इजिप्ट के साथ तनाव बना हुआ है. हिजबुल्ला व हमास जैसे आतंकवादी संगठन इजराइल पर आए दिन पटाखानुमा मिसाइल छोड़ते रहते हैं, तो इजराइल इन छुटपुट पटाखों पर इतना ध्यान नहीं देता, लेकिन अगर गलती से भी रूस-अमेरिका तनाव के दौरान उसके यहां हमास की कोई मिसाइल आ गिरी तो मध्य-पूर्व व मिडिल ईस्ट को तीसरे विश्वयुद्ध में झोंकने वाली चिंगारी साबित हो सकती है. एक छोटी सी घटना कब अरब राष्ट्रों से इजराइल की जंग करा दे कहा नहीं जा सकता.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)