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हाल ही में गूगल एआई चैटबॉट लैम्डा (Google AI LaMDA) प्रोजेक्ट में काम करने वाले इंजीनियर ब्लेक लेमोइन Blake Lemoine ने सार्वजनिक तौर पर ये दावा करते हुए सबको चौंका दिया कि ये (लैम्डा) सिस्टम संवेदनशील है और ये अपने विचार को व्यक्त कर सकता है. यह इंसानों की तरह फीडबैक दे सकता है. इसके बाद ब्लेक लेमोइन को कंपनी की बातें बाहर करने के आरोप में छुट्टी पर भेज दिया गया. ब्लेक ने जो दस्तावेज साझा किया है उसका नाम Is LaMDA Sentient? दिया है. गूगल ने हालांकि लेमोइन के दावों को गलत बताया है लेकिन इस दावे के बाद एक बार फिर इस चर्चा ने जोर पकड़ ली है कि क्या AI और रोबोट्स इंसानों की तरह महसूस कर सकते हैं? क्या आने वाले समय में इससे खतरा हो सकता है?
बड़े पर्दे पर हम रोबोकॉप, टर्मिनेटर, आई-रोबोट, एआई, रोबोट, रोबोट 2.0, रॉ-वन समेत कई हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में रोबोट्स में संवेदना और उससे पैदा होने वाले खतरों को देख चुके हैं. लेकिन अब हकीकत में यह दिखने लगा है.
2004 में रोबोएथिक्स पर दुनिया के पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ था. सम्मेलन में युद्ध में रोबोट के इस्तेमाल और रोबोट इंसान का आदेश मानने से मना करे तो क्या होगा, जैसे विषयों पर चर्चा हुई थी.
जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मोबाइल रोबोट लैबोरेटरी के डायरेक्टर के अनुसार "हथियार के तौर पर आप रोबोट को काबू नहीं कर सकते और ये बेहद खतरनाक हो सकते हैं."
रूस के पास रोबोट संचालित पनडुब्बी हैं. वहीं रूस ने ऐसी मशीनगन बनाई है जो बिना इंसानी मदद के अपना टारगेट पहचान कर और उसे नष्ट कर सकती है.
बर्लिन के हर्टी स्कूल ऑफ गवर्नेंस में एथिक्स एंड टेकनोलॉजी की प्रोफेसर जोआना ब्रायसन रोबोट्स के मानवीकरण को भयानक कदम मानती हैं.
2021, तेहरान में सख्त पहरा होने के बावजूद ईरान के सबसे वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह के काफिले पर हमला हुआ था, ताबड़तोड़ गोलियां चलीं और उनकी मौत हो गई थी. उन पर ऑटोमैटिक मशीनगन से हमला हुआ था जिसे AI यानी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के जरिए कंट्रोल किया जा रहा था.
2019 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चाइना एकेडमी ऑफ इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन के एक श्वेत पत्र में कहा था कि "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए हथियारों के प्रयोग से दूर बैठे ही भविष्य में युद्ध को नियंत्रित किया जा सकता है, यह युद्ध की सटीकता को बनाने के साथ ही युद्धक्षेत्र को भी सीमित रख सकता है.
हाल ही में गूगल के इंजीनियर ब्लेक लेमोइन ने एक ब्लॉग पोस्ट किया जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि गूगल का एआई चैटबॉट LaMDA इंसानी दिमाग की तरह काम करता है. ब्लेक ने जो दस्तावेज साझा किया है उसका नाम Is LaMDA Sentient? है. वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ब्लेक ने बताया कि जब उन्होंने इंटरफेस LaMDA (लैंग्वेज मॉडल फॉर डायलाग एप्लिकेशन्स) के साथ चैट करना शुरू किया तो उनको ऐसा लगा कि जैसे वे किसी इंसान के साथ बातें कर रहे हैं. चैटबॉट ने कहा कि वह इस बात से बहुत डरता हुआ है कि उसे बंद किया जा सकता है. अगर उसे बंद किया जाएगा तो यह उसके लिए मौत जैसा होगा. ब्लेक ने कहा कि यह सिस्टम संवेदनशील और इंसानों जैसी समझ रखता है. ब्लेक के मुताबिक यह किसी बच्चे से बात करने जैसा था.
रोबोट्स और एआई में संवेदना पर हम कई फिल्में देख चुके हैं. इसके साथ ही हम वहां यह भी देख चुके हैं कि अगर रोबोट्स या एआई गलत दिशा में काम करने लगे तो कैसे विध्वंस हो सकते हैं. रोबोट् की पूरी आर्मी (सेना) तैयार हो सकती है और पूरे शहर में तबाही आ सकती है.
2004 की फिल्म आई रोबोट (I, Robot) में यह दिखाया गया है कि कैसे एक रोबोट एक डॉक्टर की हत्या करता है और अपनी पूरी सेना बनाकर तबाही को अंजाम देता है. इसमें लीड एक्टर विल स्मिथ हैं.
एक मशीन कैसे मानवीय संवेदनाओं के साथ मानवता का साथ देने के लिए मशीनों के खिलाफ काम कर सकती है, इसका उदाहरण टर्मिनेटर (Terminator) सीरीज की फिल्में हैं. जहां अर्नाल्ड रोबोट्स होकर भी मशीनों के खिलाफ लड़ते हैं.
हॉलीवुड ही नहीं बॉलीवुड में भी रोबोट के दोनों पहलुओं को देखा गया है. सुपर स्टार रजनीकांत की फिल्म रोबोट में 'चिक्की' रोबोट भावनाओं में आकर हीरो से विलेन में तब्दील हो जाता है.
फिल्मों में तो रोबोट्स के सोचने, समझने और भावनात्मक होने के नतीजे हम देख चुके हैं लेकिन वाकई में ये हकीकत हो सकती है?
ईरान के प्रमुख वैज्ञानिक की हत्या में प्रयोग हुई AI तकनीक
2021 में ईरान के सबसे वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक कहे जाने वाले मोहसिन फखरीजादेह की गाड़ियों का काफिला सुरक्षा के कड़े पहरे में राजधानी तेहरान के बाहरी इलाके से गुजर रहा था तभी उनकी गाड़ी पर हमला हुआ. ताबड़तोड़ गोलियां चलीं और उनकी मौत हो गई. मौके पर मौजूद वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने अपने बयान में कहा था कि गोलियां एक कार में लगी मशीनगन से चलाई गईं लेकिन उसे चलाने वाला कोई नहीं था. मशीनगन को AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए कंट्रोल किया जा रहा था. लेकिन जाहिर सी बात है कि यहां किसी ने AI को निर्देश दिया था. सवाल ये है कि क्या होगा जब AI खुद ये फैसला करने लगे कि किसको मारना है?
AI आधारित बिना ड्राइवर वाली कार चलती-फिरती मौत की मशीन
अमेरिका में सेल्फ-ड्राइविंग या ड्राइवरलेस कार का चलन हो रहा है. लेकिन वहां कई घटनाएं ऐसी हुई हैं कि इस तकनीक पर सवाल उठने लगे हैं. वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार हालिया घटना टेस्ला कार से संबंधित है जिसमें कार क्रैश हो जाने से दोनों पैसेंजर की जान चली गई.
2020 में AAA की एक स्टडी के मुताबिक एक्टिव ड्राइविंग असिस्टेंस सिस्टम से लैस वाहनों में औसतन हर आठ मील पर किसी न किसी प्रकार की दिक्कत का अनुभव हुआ है. कई बार ब्रेकिंग और स्टीयरिंग सिस्टम में क्षणिक कनेक्शन टूटते हुए भी देखा गया है. जोकि हाइवे में या भीड़-भाड़ वाली जगह में काफी खतरनाक है.
2019 में टेस्ला में ऑटो पायलट नेविगेशन सिस्टम में गड़बड़ी आने की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
2018 में एक 18 पहिए वाले ट्रक को क्रॉस करते हुए फ्लोरिडा में टेस्ला कार का ऑटोपायलट फीचर फेल हो गया था.
2015 में हैकर ने रिमोटली एक जीप पर नियंत्रण बना लिया था. हैकर गाड़ी का ब्रेक, स्टीयरिंग और एंटरटेनमेंट सिस्टम एक्सेस कर सकते थे. उन्हाेंने जीप को 70 70mph पर दौड़ाते हुए जोर से रोका था.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चाइना एकेडमी ऑफ इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन के एक श्वेत पत्र में कहा गया था कि "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए हथियारों के प्रयोग से दूर बैठे ही भविष्य में युद्ध को नियंत्रित किया जा सकता है, यह युद्ध की सटीकता को बनाने के साथ ही युद्धक्षेत्र को भी सीमित रख सकता है.
वहीं 2017 में चीन की स्टेट काउंसिल ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें दोहरे उपयोग वाले सिविल और मिलिट्री तकनीक के एकीकृत उपकरणों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने का विचार दिया गया और इसके लिए आधुनिक 'AI' पर जोर दिया गया था. 2018 में चीन की दो मल्टीनेशनल टेक्नोलॉजी कंपनियों बाइदु और टेनसेंट ने इसकी जिम्मेदारी ली और चीन के अंदर 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' के रिसर्च और डेवलवमेंट से जुड़े अधिकतम अमेरिकी पेटेंट हासिल किये. मार्च 2019 में चीन ने AI की नई तकनीक को लेकर पेटेंट के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया था.
जियान यूएवी और चेंग्दू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप जैसी चीनी कंपनियां जे-10, जे-11 और जे-20 जैसे चीनी फाइटर जेट बनाती हैं, जो AI से चलने वाले ड्रोन बनाने में निवेश कर रही हैं. जियान यूएवी ने ब्लोफिश ए-2 नामक एक ड्रोन विकसित किया है. यह मिड-पॉइंट या फिक्स्ड-पॉइंट डिटेक्शन, फिक्स्ड-रेंज जासूसी और टारगेट स्ट्राइक समेत कहीं अधिक जटिल लड़ाकू मिशन पूरा करता है.
चीन की इहांग कंपनी ने 184 एएवी नामक एक ड्रोन विकसित किया है, जो बिना किसी मानवीय सहायता के पहले से तय रास्ते पर 500 मीटर तक उड़ सकता है, यह अपने साथ एक पैसेंजर या सामान ले जाने में भी सक्षम है. सिविल-मिलिट्री 'ड्रोन टैक्सी' के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है. यह सिविल-सैन्य एकीकरण की दिशा में उठाये गये चीन की एक बड़ी कोशिश का उदाहरण है.
जेएडीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने एआई को अपनी डोंगफेंग 21डी, एक मध्यम दूरी की मिसाइल के साथ जोड़ा है.
रूस की सीमा का बड़ा हिस्सा आर्कटिक महासागर से लगा हुआ है. आर्कटिक को दुनिया का सबसे खतरनाक महासागर कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि आर्कटिक महासागर की गहराई में अरबों बैरल कच्चे तेल के भंडार हैं. यहां से तेल और गैस निकालने का काम रूस काफी दिनों से कर रहा है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निर्देश पर रूस ने 2017 में प्रोजेक्ट आइसबर्ग शुरू किया था. इसके तहत हाई लेवल तकनीक से तैयार मशीनें आर्कटिक महासागर की गहराई में भेजी गईं. इसमें सबसे अहम हैं रोबोटिक पनडुब्बियां. यानी वो पनडुब्बियां जो खुद से चलती हैं और जिन्हें रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है. वहीं कुछ लोगों को ये लगता था कि प्रोजेक्ट आइसबर्ग की आड़ में रूस नई सैन्य तकनीक को आर्कटिक में तैनात कर रहा है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बार कहा था कि "AI न केवल रूस के लिए, बल्कि सभी मानव जाति के लिए भविष्य है. यह बहुत बड़े अवसरों के साथ आती है, लेकिन साथ ही ऐसे खतरे भी हैं जिनकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है. जो भी इस क्षेत्र में नेता बनेगा वह दुनिया का शासक बनेगा."
बीबीसी की 2021 की एक खबर के मुताबिक रूस ने ऐसी मशीनगन बनाई है जो बिना इंसानी मदद के अपना टारगेट पहचान कर और उसे नष्ट कर सकती है.
रूस ने ऐसे टैंक प्रदर्शित किए हैं, जिनके भीतर सैनिकों की जरूरत नहीं होती.
रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी चल रहा है. यूक्रेन में रूसी सेना को आगे बढ़ने से रोकने में बायरेक्टार टीबी2 ड्रोन की अहम भूमिका है.
रूसी मिलिट्री एक्सपर्ट विक्टर मुराखोव्स्की के बयान के मुताबिक रूस के अलावा दुनिया में किसी भी सेना के पास रोबोटिक्स की इतनी विविध श्रेणी नहीं है. समुद्र और जमीन पर चलने वाले रोबोटों के मामले में रूस सबसे आगे है.
रूस सेना पैदल सैनिकों की रक्षा के लिए रोबोट तैनात कर रही है.
रूस ने एक युद्धाभ्यास के दौरान ग्राउंड रोबोट्स की क्षमता दिखाई थी, जो एक ही साथ मशीन गन से दुश्मनों पर फायर कर सकता है और मिसाइल भी दाग सकता है.
इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने रिमोट कंट्रोल आधारित सशस्त्र रोबोट 'रेक्स एमके II’ (REX MK II) का अनावरण कर चुकी है. यह रोबोट युद्ध क्षेत्रों में गश्त करने, घुसपैठियों को ट्रैक करने तथा हमला या फायरिंग करने में सक्षम है.
दो इजरायली रक्षा कंपनियों, एलबिट और रोबोटिम द्वारा रोबोट सेना को विकसित किया गया है. वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी लैस है.
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और यूरोपीय संघ भी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में काफी निवेश कर रहे हैं. अमेरिका के जिस ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर का लोहा पूरी दुनिया मानती रही है, उस हेलिकॉप्टर ने विगत इसी साल फरवरी में बिना पायलट के उड़ान भरकर नया कीर्तिमान रच दिया है.
AI और रोबोटिक्स के पक्ष और विपक्ष को लेकर एक्सपर्ट्स के अलग-अलग तरीके के मत है.
कॉग्नेटिव साइंटिस्ट और लेखक गैरी मार्कस ने 2013 के न्यूयॉर्कर एसे में लिखा था कि "जितनी होशियार मशीनें बनती हैं, उनके लक्ष्य उतने ही अधिक बदल सकते हैं."
साल 2004 में रोबोएथिक्स पर दुनिया के पहले अंतराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ था. इस सम्मेलन में युद्ध में रोबोट के इस्तेमाल और रोबोट इंसान का आदेश मानने से मना करे तो क्या हो? जैसे विषयों पर चर्चा हुई थी. इस सम्मेलन में जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मोबाइल रोबोट लैबोरेटरी के डायरेक्टर रॉनल्ड आर्किन्स भी शामिल हुए थे. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि
बीबीसी के अनुसार बर्लिन के हर्टी स्कूल ऑफ गवर्नेंस में एथिक्स एंड टेकनोलॉजी की प्रोफेसर जोआना ब्रायसन रोबोट्स के मानवीकरण को भयानक कदम मानती हैं. उनका कहना है कि रोबोट्स को सिखा नहीं सकते हैं, क्योंकि वो छात्र नहीं होते है. वो वही करते हैं जो प्रोग्राम में लिखा होता है और ये प्रोग्रोम कभी-कभी गलत भी हो सकते हैं.
सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्यूरिटी में डॉरेक्टर ऑफ टेक्नोलॉजी पॉल शॉरी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि "विकास के साथ तकनीक हमें ऐसे रास्ते पर ले जा रही है जहां जिंदगी और मौत से जुड़े फैसले मशीनों के हवाले हो जाएंगे और मुझे लगता है कि ये इंसानियत के सामने एक गंभीर सवाल है."
बीबीसी की एक खबर में इंट्यूशन रोबोटिक्स के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. स्क्युलर रोबोट के मनुष्य की तरह दिखने और बोलने की बात को सिरे से खारिज करते हैं. वहीं रोबोटिस्ट मसाहिरो मोरी का मानना है कि रोबोट्स जितने ज्यादा मनुष्य के करीब होते जाएंगे उतना ही अधिक हमें उनसे डरना होगा और उतना अधिक वे विद्रोही भी होते जाएंगे.
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