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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम
टूटी हड्डियां, लहूलुहान जुबान के साथ 15 दिनों तक मौत से लड़ने के बाद 29 सितंबर को हाथरस (Hathras case) की पीड़िता की मौत हो गई. घरवालों का आरोप है कि 14 सितंबर को गांव में चार लोगों ने उसका रेप(Rape) किया.
1 अक्टूबर को यूपी के एडीजी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला है कि पीड़िता की मौत गर्दन में लगी चोट के कारण हुई. एसएफएल रिपोर्ट में स्पर्म नहीं पाया गया है, जिससे साबित होता है कि बलात्कार नहीं हुआ.
हाथरस की खबर सुर्खियों में आ गई. यूपी से लेकर दिल्ली तक लोग इस जघन्य अपराध के खिलाफ बोले.
लेकिन क्या ये खबर वाकई चौंकाने वाली है?
क्योंकि हकीकत तो ये है कि हाथरस के बाद चंद घंटों में यूपी के ही बलरामपुर, आजमगढ़, बुलंदशहर, बागपत, आगरा से रेप या गैंगरेप की खबरें आ गईं. राजस्थान से खबर आ गई. मध्य प्रदेश के खरगोन से खबर आ गई. और ये वो खबरें हैं जो सुर्खियां बनीं, जो मामले रिपोर्ट हुए.
अगर हम हाथरस की खबर से शर्मसार हैं तो हमें हर मिनट शर्मसार होना चाहिए क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं हमारे देश में हर दिन हो रही हैं.
2019 में राजस्थान में सबसे ज्यादा 5,997 रेप के मामले दर्ज हुए, इसके बाद यूपी का नंबर आता है जहां 3,065 रेप के मामले सामने आए. 2,485 मामलों के साथ मध्य प्रदेश तीसरा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा रेप केस दर्ज हुए.
हाथरस का मामला सुर्खियों में आ गया. लेकिन सच्चाई तो ये है कि मीडिया के लिए ये मुमकिन नहीं है कि वो हर एक केस रिपोर्ट करे लेकिन पुलिस के लिए ये संभव है कि वो हर मामले में सख्त कार्रवाई करे. क्योंकि हर जगह थाना है, एक पूरा तंत्र और सेटअप तैयार है, जिनका काम ही है कि वो अपराध पर लगाम लगाए.
अगर हाथरस की घटना पर नजर डालें तो यकीन मानें उम्मीद लगाना बेमानी सी लगेगी.
हाथरस की वारदात होने के बाद मामला दर्ज होने में ही 5 दिन लग गए. परिवार का कहना है कि बुरी तरह जख्मी लड़की को लेकर जब वो थाने गए तो थाना प्रभारी ने कहा है कि “ये नौटंकी कर रही है, ले जाओ यहां से.”
जब थाना प्रभारी ये कह रहा था तो लड़की थाने के कैंपस में ही एक पत्थर के चबूतरे पर लहूलुहान पड़ी थी. जो सरकार लड़की को इंसाफ दिलाने की कसमें खाती दिखी उसने इस थानेदार पर क्या एक्शन लिया जानते हैं? उसे लाइन हाजिर कर दिया गया. ये एक्शन के नाम पर लीपापोती नहीं तो क्या है?
परिवार ने मीडिया से गुहार लगाई कि इसे हाइलाइट कीजिए तब जाकर मदद मिलनी शुरू हुई.
पुलिस के लिए किसी क्राइम के मामले में तत्परता दिखाना क्या इतना मुश्किल है? ये सिस्टम बार-बार क्यों फेल होता है? विक्टिम-सर्वाइवर के प्रति ऐसा रवैया क्यों है कि सामने लाश में तब्दील होती, पत्थर पर पड़ी एक जान कराह रही होती है और पुलिस कहती है नौटंकी मत करो.
2019 में छपी मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में प्रति 100,000 आबादी के लिए 100 से कम पुलिस कर्मचारी हैं. कम स्टाफ, ‘काम के बोझ तले दबी’ पुलिस के लिए महिला सुरक्षा क्या सबसे निचले पायदान पर आती है.
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