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मैदान में गरबा, पार्टी हॉल में गरबा, मुंबई के मरीन ड्राइव पर गरबा, लोकल ट्रेन में भी गरबा!!
साफ है... ये जो इंडिया है ना... यहां हम सभी भारतीय इस गरबा फीवर में हिस्सा ले रहे हैं... लेकिन, एक मिनट... क्या सच में हम सभी इसमें हिस्सा ले रहे हैं?
और, सलमान खान के बारे में क्या ? वो गणेश चतुर्थी में गणेश आरती करते हैं . क्या सलमान खान को जाकर बताना चाहिए कि बजरंग दल अब उनके पीछे भी आ सकता है? क्योंकि अब, अगर कोई मुस्लिम गरबा नहीं कर सकता, तो वो गणेश पूजा भी नहीं कर पाएगा... और इसके बाद, दिवाली पर पटाखे फोड़ना और होली खेलना भी भारतीय मुस्लिम नहीं कर पाएंगे...
लेकिन क्या हम ऐसा ही भारत चाहते हैं? बिल्कुल भी नहीं.
मेरे हिसाब से, अगर लोग मुंबई के मरीन ड्राइव या लोकल ट्रेन पर गरबा करते हैं, तो हमें इसका स्वागत करना चाहिए. उसे बिल्कुल लाइक करो, शेयर करो. और इसी तरह, अगर कोई महिला प्रयागराज के अस्पताल में किसी बीमार रिश्तेदार के लिए नमाज कर रही है, तो उसे ट्रोल करने के बजाय, उसका भी स्वागत करना चाहिए. और सलमान खान का गणेश आरती करना या मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का भी स्वागत किया जाना चाहिए.
तो क्यों बजरंग दल मुस्लिमों को गरबा में जाने से रोक रहा है? हम क्यों सुनते हैं कि मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर और भोपाल से बीजेपी की सांसद प्रज्ञा ठाकुर कह रही हैं कि मुस्लिमों को गरबा कार्यक्रम से दूर रखा जाए?
जहां तक हम जानते हैं उनकी वजहें बेहद बेतुकी है. उनका कहना है कि हिंदु लड़कियों को लव जिहाद से बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. अरे भाई अगर कोई मुस्लिम लड़का और हिंदु लड़की गरबा के कार्यक्रम पर बिलकुल फिल्मी तरीके से एक दुसरे को पसंद करने भी लगे तो वो कौन से भारतीय कानून को तोड़ रहे हैं ? इसमें गलत या अनलॉफुल क्या है? कुछ भी नहीं! तो हम क्यों इन लोगों को यह कहने दे रहे हैं कि भारत में गरबा कौन कर सकता है और कौन नहीं?
फिर एक दूसरा सवाल- एक तरफ हिंदुत्ववादी नेता कहते हैं कि हिंदू कोई धर्म नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की शैली है, हमने मोहन भागवत को यह भी कहते हुए सुना कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है. आरएसएस प्रमुख की राय इस तरह से हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति को बयां करते हैं, जो बहुत हद तक समावेशी है.
तो फिर इसका मतलब जमीन पर यह होना चाहिए कि हर भारतवासी को गरबा जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना चाहिए, लेकिन हम असल में क्या देख रहे हैं कि मुस्लिमों को गरबा से दूर रहने की चेतावनी दी जाती है, हमने देखा कि अगर मुस्लिम गरबा में चले जाते हैं, तो उनकी पिटाई होती है. तो हमें पूछना चाहिेए कि हिंदुत्व की थ्योरी और प्रैक्टिस में यह अंतर क्यों है? आखिर आरएसएस चीफ की बात में और बजरंग दल या वीएचपी जो कर रही है, उसमें यह अंतर क्यों है? अगर इनकी गतिविधियां हिंदुत्व के "समावेशी" मूल्यों के खिलाफ हैं, तो उन्हें क्यों नहीं रोका जाता है?
ये जो इंडिया है ना... यहां चाहे कोई बीजेपी का सीनियर लीडर हो या बजरंग दल का मेंबर, वो इस गरबा में सिर्फ एक मैसेज देना चाहते हैं. वो एक ऐसा भारत बनाना चाहते हैं, जो मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यकों के खुलकर खिलाफ हो, जो खुलकर सेक्यूलर ना हो. लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि इस साल जब आरएसएस प्रमुख अपननी विजयदशमी का भाषण देंगे, तो वे इस नफरत के खिलाफ खुलकर बोलेंगे.
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