मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पैरोल, सत्संग और चुनाव का संयोग: राम रहीम के जेल से निकलने में एक पैटर्न है

पैरोल, सत्संग और चुनाव का संयोग: राम रहीम के जेल से निकलने में एक पैटर्न है

Ram Rahim को परोल ऐसे वक्त दी गई है जब हरियाणा में पंचायत और उपचुनाव हैं वहीं 12 नवंबर को हिमाचल में भी चुनाव हैं

नीलांजन मुखोपाध्याय
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Baba Ram Rahim Parole: इस साल तीसरी बार जेल से बाहर निकला बाबा राम रहीम</p></div>
i

Baba Ram Rahim Parole: इस साल तीसरी बार जेल से बाहर निकला बाबा राम रहीम

(फोटो : अरूप मिश्रा/क्विंट)

advertisement

जब खबर आई कि हरियाणा में जिला स्तर के कई बीजेपी नेता बदनाम डेरा सच्चा सौदा के उस वर्चुअल सत्संग में शामिल हुए जिसे इसके प्रमुख और बलात्कार के दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह ने संबोधित किया था और इन लोगों ने उसका 'आशीर्वाद' भी मांगा तो तब इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी.

इस अपवित्र बाबा को 'विशेष' आध्यात्मिक शक्तियां धारण किए हुए एक गॉडमैन यानी इंसानी भगवान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. यहां तक ​​​​कि सबसे शक्तिशाली लोग भी बाबा के सामने खड़े होते थे, ये लोग किसी 'इलाज' या 'उपचार' के लिए उनका स्पर्श नहीं पाना चाहते बल्कि अपने समर्थकों की नजरों में अच्छा बनना चाहते हैं ताकि इस तरीके से वे अपना वोट बढ़ा सकें.

  • हरियाणा में जिला-स्तर के कई बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता बदनाम डेरा सच्चा सौदा द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन या वर्चुअल सत्संग में शामिल हुए थे. इस सत्संग को डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख, बलात्कार के दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह द्वारा संबोधित किया गया था.

  • प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा में विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले अक्टूबर 2014 में सिरसा में एक बीजेपी रैली को संबोधित करते हुए, पहले ही विवादित गुरमीत राम रहीम सिंह की तारीफ कर चुके हैं.

  • दो साध्वियों के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने के आरोप में सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) ने इस बाबा के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था.

  • इसके अलावा डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह और सिरसा के पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्याओं में कथित संलिप्तता के मामलों में मुकदमे का भी सामना बाबा राम रहीम को करना पड़ रहा था. राम चंदर छत्रपति एक साहसी व्हिसिलब्लोअर-संपादक और स्थानीय समाचार पत्र के प्रकाशक थे.

  • तीन साल पहले केंद्रीय गृह मंत्री ने देशवासियों को "क्रोनोलॉजी समझने" की सलाह दी थी. वर्तमान में बाबा को दी गई पैरोल के संदर्भ में भी इसे (क्रोनोलॉजी) स्वीकार करना चाहिए.

  • हिमाचल प्रदेश विधान सभा का चुनाव काफी अहम है, जोकि 12 नवंबर को होना है. यह एक ऐसा राज्य है जहां पंजाब से सटे इलाकों में डेरा सच्चा सौदा और बाबा का व्यक्तिगत रूप से काफी प्रभाव माना जाता है.

पीएम मोदी के साथ राम रहीम की बातचीत

ऐसा नहीं है कि राजनीतिक गलियारे में लोग इस बात से अनजान थे, लेकिन मोदी ने यह उल्लेख करने में सावधानी बरती कि 1990 के दशक के मध्य में जब केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उन्हें हरियाणा में बीजेपी की गतिविधियों का समन्वय करने के भेजा गया था तब उन्होंने उन्होंने बाबा से बातचीत की थी. लेकिन पूर्व में रिपोर्ट की गई बातचीत उनकी पार्टी के लिए लाभ हासिल करने के इरादे से नहीं थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अक्टूबर 2014 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले सिरसा में बीजेपी की एक रैली को संबोधित करते हुए पहले ही विवादित गुरमीत राम रहीम सिंह की तारीफ कर चुके हैं. उन्होंने (पीएम मोदी ने) जय-जयकार के बीच घोषणा करते हुए कहा था कि संप्रदाय (डेरा सच्चा) के प्रमुख को प्रणाम करता हूं. साफ तौर ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि इस राज्य में बाबा की फॉलोइंग नगण्य नहीं है.

इस प्रशंसा के बदले में बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह ने उसी महीने की शुरुआत में प्रधान मंत्री द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन की प्रशंसा की थी. यहां पर परेशान करने वाली बात यह है कि जब मोदी ने बाबा के साथ उपस्थिति दर्ज कराई, तब दो साध्वियों के साथ कथित तौर पर बलात्कार के आरोप में सीबीआई द्वारा आरोप-पत्र दायर किए हुए सात साल से अधिक का वक्त बीत चुका था.

इसके अलावा डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह और सिरसा के पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्याओं में कथित संलिप्तता के मामलों में मुकदमे का भी सामना बाबा राम रहीम को करना पड़ रहा था. राम चंदर छत्रपति एक साहसी व्हिसिलब्लोअर-संपादक और स्थानीय समाचार पत्र के प्रकाशक थे.

बाबा जमानत पर बाहर था और पंचकूला में सीबीआई की अदालत में बलात्कार और हत्या के मुकदमे का सामना कर रहा था, इस तथ्य के बावजूद संदेहास्पद रूप से मोदी ने बाबा की 'विशेष' शक्तियों का समर्थन किया.

बीजेपी की क्रोनोलॉजी पॉलिटिक्स बाबा के मामले में भी दिखनी चाहिए

इस मीटिंग के दो साल से भी कम समय के बाद, पहली बार राज्य में बीजेपी की सरकार बनी और इसके बाद स्पेशल सीबीआई कोर्ट के जज जगदीप सिंह ने एक बड़ा फैसला सुनाया : "दोषी ने अपने पवित्र शिष्यों को भी नहीं बख्शा और एक जंगली जानवर की तरह बर्ताव किया# वह उदारता या दया के लायक नहीं है."

बाबा के लिए किसी तरह की दया 'नहीं' में 30.2 लाख रुपये का जुर्माना और बीस साल जेल की सजा शामिल थी. बाबा को जघन्य आरोपों में दोषी ठहराए जाने के बाद भी, अभी तक बीजेपी ने अपने नेताओं और पार्टी का अनुसरण करने वाली भीड़ को बाबा से दूरी बनाए रखने का निर्देश नहीं दिया. जिसका नतीजा यह है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन सत्संगों का सिलसिला लगातार जारी है.

यदि यह लगातार पैरोल पर रिहा किए गए बाबा के राजनीतिक "कनेक्शन" और बीजेपी की चुनावी रणनीति में उनके महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित नहीं करता है, तो आगे और भी बहुत कुछ है.

तीन साल पहले केंद्रीय गृह मंत्री ने देशवासियों को "क्रोनोलॉजी समझने" की सलाह दी थी. वर्तमान में बाबा को दी गई पैरोल के संदर्भ में भी इसे (क्रोनोलॉजी) स्वीकार करना चाहिए.

चुनाव में क्या राम रहीम के पास मौका है?

हिमाचल प्रदेश विधान सभा का चुनाव काफी अहम है, जोकि 12 नवंबर को होना है. यह एक ऐसा राज्य है जहां पंजाब से सटे इलाकों में डेरा सच्चा सौदा और बाबा का व्यक्तिगत रूप से काफी प्रभाव माना जाता है.

3 नवंबर को हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है, यह भी काफी अहम है. चूंकि बीजेपी ने दो बार के सांसद और चार बार के विधायक कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को मैदान में उतारा है, इसलिए इस चुनाव को पार्टी के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. भव्य बिश्नोई हरियाणा के तीन बार के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के पोते भी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में हिसार से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले भव्य को असफलता का सामना करना पड़ा था.

इस सीट (आदमपुर विधानसभा सीट) पर उपचुनाव कराने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इस सीट पर कब्जा करने वाले कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस थामन छोड़कर भगवा पार्टी में जाने के लिए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया था. यह निर्वाचन क्षेत्र हिसार जिले में आता है जहां बाबा की महत्वपूर्ण मौजूदगी है और बीजेपी को उम्मीद है कि बाबा के कुछ अनुयायी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट लाने के लिए वोटर्स को प्रभावित करेंगे.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

गॉडमैन के लिए जेल ब्रेक लेकिन राजनीतिक कैदी अभी भी पिंजड़े में बंद हैं

इसके अलावा, हरियाणा में अक्टूबर के अंत से वोटर्स पंचायत निकायों के लिए भी मतदान करेंगे. 15 अक्टूबर को चालीस दिन के पैरोल पर राम रहीम को जेल से रिहा किया गया था. ऐसे में जब तक एक आजाद (मुक्त) व्यक्ति के तौर पर उसकी वर्तमान पारी समाप्त होगी, तब तक पंचायत चुनावों की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी होगी.

गौरतलब है कि इस साल यह तीसरा (2 बार पैरोल पर और एक बार फरलो पर) मौका है जब राम रहीम सिंह जेल से बाहर है. जिन्हें नहीं पता है उनको बता दें कि कानूनी तौर पर जेल अधिकारियों द्वारा अति-आवश्यकता या संकटकाल के लिए पैरोल दी जाती है जबकि फरलो जेल से एक सामान्य ब्रेक है.

बाबा को पहले फरवरी में रोहतक की सुनारिया जेल से तीन सप्ताह और उसके बाद जून में एक महीने के लिए स्वतंत्र रूप से घूमने की आजादी दी गई थी. वहीं 2021 में बाबा को तीन बार पैरोल पर रिहा किया गया.

वहीं इसकी तुलना में कई बुजुर्ग और बीमार राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार कर दिया जाता है. ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें उन आरोपों पर कैद किया गया है जिसके बारे में सार्वभौमिक रूप से माना जाता है कि वर्तमान राजनीतिक शासन से भिन्न दृष्टिकोण रखने के कारण उन पर झूठा आरोप लगाया जाता है और संचय किया जाता है.

यदि यह स्पष्ट पक्षपात पर्याप्त नहीं था तो यह गौर करने योग्य है कि जबकि पैरोल "आमतौर पर व्यवहार के अधीन है" और "अधिकार का मामला नहीं है" वहीं फरलो को अधिकार का मामला माना जाता है जोकि "समय-समय पर बिना अपेक्षा या किसी हवाला के दिया जाता है और सिर्फ कैदी को पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने में सक्षम बनाने के लिए दिया जाता है."

ऑनलाइन सत्संग के जो सबसे हालिया वीडियो शेयर किये गए है और राम रहीम सिंह के उसके 'अनुयायियों' के कई पिछले फुटेज यह दर्शाते हैं कि बाबा अपने फॉलोवर्स या अनुयायियों के साथ 'पारिवारिक' संबंध साझा करता है. बाबा के अनुयायियों द्वारा उसे पिताजी कहा जाता है और बाबा उन्हें अपने बच्चों के रूप में संदर्भित करता है.

2022 में पिछली बार जब बाबा को पैरोल दी गई थी तो यह चुनाव के साथ हुआ था. यकीकन यह संयोग से नहीं है. फरवरी में जब बाबा बाहर आया तब पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए और जून में जब बाहर निकला तब हरियाणा की 46 नगर पालिकाओं में महत्वपूर्ण चुनाव हुए.

क्या बीजेपी बाबा को सपोर्ट करेगी?

निश्चित तौर पर बीजेपी अपनी 'डबल इंजन' सरकार वाली स्थिति का फायदा उठाती है, जबकि बाबा अपने समर्थकों, जिनमें बीजेपी के नेता भी हैं, को एक अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए संकेत देते हैं.

इस वक्त, सारी चाबियां बीजेपी के पास हैं, लेकिन अतीत में बाबा द्वारा कांग्रेस को सपोर्ट करने की घटना भी देखने को मिली है, उदाहरण के लिए 2007 के पंजाब चुनाव में. जिस जन सभा में मोदी के साथ राम रहीम सिंह दिखाई दिए थे उस सभा के बाद राम रहीम ने अक्टूबर 2014 के विधानसभा चुनावों में अपने अनुयायियों से बीजेपी को वोट देने का आह्वान किया था.

इसके बाद राज्य में (हरियाणा में) बीजेपी ने पहली बार बहुमत हासिल करते हुए अपने दम पर सरकार बनाई थी. इसके बाद जीतने वाले 47 विधायकों में से लगभग आधे ने कथित तौर पर बाबा के समर्थन के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए उससे (राम रहीम से) मुलाकात की थी. राजनीतिक नेताओं और गॉडमैन (और उनकी महिला समकक्षों) और आध्यात्मिक गुरुओं के बीच गठजोड़ के इतिहास में चाटुकारिता और गुलामी का ऐसा प्रदर्शन अभूतपूर्व था.

ऐसे एक नहीं असंख्य उदाहरण हैं जब व्यक्तिगत राजनीतिक नेताओं ने खुद के लिए व्यक्तिगत रूप से या अपनी पार्टी के लिए चुनाव से पहले आशीर्वाद मांगा है. राजनीतिक नेताओं के ऐसे अनगिनत उदाहरण भी हैं, जब वो ऐसे लोगों की ओर खिंचे चले गए हैं, जिन्हें वे दैवीय अंतर्दृष्टि और जादुई शक्तियों से संपन्न मानते थे, या उन्हें ऐसा लगता है कि उनके पास कठिन आध्यात्मिक मुद्दों को समझने का एक सीधा सरल तरीका है, जिनकी वे जांच कर रहे हैं.

स्वयंभू साधुओं से बीजेपी का सम्मोह

2014 से पहले मोदी को बाबा जैसे गॉडमैन की ओर आकर्षित होने के लिए नहीं जाना जाता था, लेकिन वे पांडुरंग शास्त्री आठवले के प्रति आकर्षित थे. पांडुरंग शास्त्री आठवले स्वतंत्र भारत के पहले आध्यात्मिक गुरुओं में से एक बन गए थे, उन्हें दादाजी के नाम से भी जाना जाने लगा था. उन्होंने स्वाध्याय आंदोलन और स्वाध्याय परिवार की स्थापना की थी.

मोदी ने मुझे बताया कि गीता की शिक्षाओं के माध्यम से आठवले ने लोगों का हृदय परिवर्तन करने की कोशिश की थी : “जब भी वे हमारे गांव आते थे तब मैं उनका व्याख्यान सुनने जाता था. उनकी बात करने की शैली आज भी मुझे याद है - जिस तरह से वे बात करते थे - उस उम्र में मेरे दिमाग की ग्रहण करने की शक्ति अच्छी थी.”

प्रधान मंत्री अपने बचपन के गुरु के प्रति निष्ठावान रहे हैं, लेकिन अक्टूबर 2003 में उनकी (आठवले की) मृत्यु के बाद, खास तौर पर संगठन के विवादों में फंसने के बाद, मोदी ने दूरी बनाए रखी है. निश्चित तौर पर चुनावी कारणों से डेरा और उसके विवादित प्रमुख (बाबा राम रहीम) के संबंध में ऐसा नहीं हुआ है.

भारत जैसे देश में जहां आस्था या धार्मिक निष्ठा व्यक्तिगत स्थान तक सीमित नहीं है और राजनीतिक क्षेत्र में भी फैली है, वहां 'स्वीकार्य' धर्म और रूढ़िवादी विश्वास के बीच अंतर करना मुश्किल है. यदि यह संभव है कि राजनीतिक क्षेत्र या लोगों की राजनीतिक (या चुनावी) पसंद पर प्रभाव डालने वाले गॉडमैन या गुरुओं की लिस्ट को जुटाया जाए तो ऐसा करने के लिए लंबा समय लगेगा और काफी प्रयास करना होगा.

भारत जैसे देश में आस्था एक राजनीतिक अंतराल का काम करती है

हालांकि, राजनीतिक दलों और उनके नेतृत्व द्वारा एक रेखा खींची जानी चाहिए. जिन गॉडमैन या गुरुओं या बाबाओं पर आपराधिक कृत्यों का आरोप लगाया गया है यदि उनकी सार्वजनिक रूप से आलोचना नहीं कर सकते हैं, तो ऐसे व्यक्तियों से दूरी बनाते हुए शुरुआत की जा सकती है. और निश्चित तौर पर कभी भी दोषियों के साथ मेल-मुलाकात नहीं करनी चाहिए.

एक सत्तारूढ़ पार्टी के तौर पर बीजेपी एक उदाहरण स्थापित करने में विफल रही है. निश्चित रूप से वैज्ञानिक सोच और लोगों की सवाल करने की भावना को मजबूत करना सरकार और प्रधान मंत्री का उद्देश्य नहीं रहा है.

(लेखक दिल्ली स्थित एक लेखक और पत्रकार हैं. उन्होंने ‘द आरएसएस: आइकन्स ऑफ द इंडियन राइट’ और ‘नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स’ जैसी किताबें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @NilanjanUdwin है. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT