मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019TMC के खिलाफ BJP का अपमानजनक विज्ञापन: कलकत्ता HC की फटकार चुनाव आयोग के लिए चेतावनी

TMC के खिलाफ BJP का अपमानजनक विज्ञापन: कलकत्ता HC की फटकार चुनाव आयोग के लिए चेतावनी

कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले ने टीएमसी के खिलाफ किसी भी तरह के अपमानजनक प्रचार को छापने से बीजेपी को रोक दिया है.

सायंतन घोष
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>TMC के खिलाफ BJP का अपमानजनक विज्ञापन: कलकत्ता HC की फटकार चुनाव आयोग के लिए चेतावनी </p></div>
i

TMC के खिलाफ BJP का अपमानजनक विज्ञापन: कलकत्ता HC की फटकार चुनाव आयोग के लिए चेतावनी

क्विंट हिंदी

advertisement

कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) को निशाना बनाने वाले अपमानजनक विज्ञापनों के मामले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई करने में "फेल" होने पर चुनाव आयोग (EC) को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने ये फटकार 2024 लोकसभा चुनाव कैंपेन के दौरान बीजेपी द्वारा आदर्श आचार संहिता (MCC) के कथित उल्लंघन पर लगाई है.

लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रियाओं की पवित्रता वह आधार है, जिस पर शासन की इमारत खड़ी होती है. चुनाव आयोग अपने वैधानिक आदेश के मुताबिक इस पवित्रता का संरक्षक है, जिसे निष्पक्षता और अखंडता के साथ चुनाव कराने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है. फिर भी, कलकत्ता हाई कोर्ट की इस हालिया नाराजगी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल है, और ये एक ऐसा घटनाक्रम है, जो चिंताजनक और निराशाजनक दोनों है.

विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप निराधार नहीं हैं. ऐसे उदाहरण हैं, जहां चुनाव आयोग को सत्ताधारी दल के अपराधों के सामने या तो सहभागी है या नहीं तो कम से कम एक मूक दर्शक के रूप में पाया गया है और इसे नजरअंदाज करना बहुत ही भयावह है. जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य द्वारा दिया गया कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश इस परेशान करने वाली प्रवृत्ति का प्रमाण है.

ये मामला तब सामने आया, जब टीएमसी ने चुनाव आयोग के पास कई शिकायतें दर्ज कीं, जिसमें बीजेपी पर चुनावी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले आपत्तिजनक विज्ञापन प्रसारित करने का आरोप लगाया गया. कथित तौर पर इन विज्ञापनों में सत्तारूढ़ दल को नकारात्मक रूप में दिखाया गया था, झूठे आरोप लगाए गए और व्यक्तिगत हमले किए गए. इन शिकायतों के बावजूद, चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया में समयबद्धता और प्रभावशीलता दोनों की कमी पाई गई, जिससे टीएमसी को न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करनी पड़ी.

कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य ने मामले की समीक्षा करते हुए बीजेपी को ऐसे किसी भी विज्ञापन को प्रकाशित करने से रोक दिया जिसे टीएमसी के प्रति अपमानजनक या निंदनीय माना जा सकता है. अदालत का फैसला मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की पवित्रता को बताता है, जो राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को गलत दावों या झूठ के आधार पर आलोचना करने से रोकता है.

MCC के जरिए सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले कंटेंट पर साफ तौर से रोक लगाया जाता है. फिर भी, टीएमसी के आरोपों से पता चलता है कि बीजेपी के विज्ञापन जो टीएमसी को सनातन विरोधी (परंपरा-विरोधी) कहते हैं, न केवल इस संहिता का उल्लंघन करते हैं बल्कि धार्मिक ध्रुवीकरण के खतरनाक खेल में भी शामिल होते हैं. ऐसे दांवपेंच न सिर्फ नैतिक रूप से संदिग्ध हैं बल्कि वे भारत के बहुलवादी समाज के ढांचे को खतरे में डालते हैं और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं.

यहां बीजेपी के विज्ञापन का शीर्षक है, ''सनातन विरोधी तृणमूल.''

(फोटो: एक्स)

इसके अलावा, इन विज्ञापनों का दायरा पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है. इसी तरह के कंटेंट महाराष्ट्र में भी सामने आए हैं, जो चुनावी विकल्पों और राष्ट्रीय पहचान के बीच एक अतिशयोक्तिपूर्ण समानता दर्शाती है. यह संकेत देती है कि विपक्ष को दिया एक वोट भारत को पाकिस्तान में बदलने के बराबर है. यह न केवल एक विशेष समुदाय को बदनाम करता है बल्कि बंटवारे के बीज भी बोता है, जो एकता की उस भावना के उलट है जिसे चुनावों में शामिल किया जाना चाहिए.

यहां बीजेपी के विज्ञापन का शीर्षक कहता है, ''आपके वोट का जश्न भारत या पाकिस्तान में मनेगा?''

(फोटो: एक्स)

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्या ये विज्ञापन MCC का उल्लंघन नहीं करते? चुनाव आयोग को न केवल संहिता लागू करनी चाहिए बल्कि चुनावी प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिए तेजी से और निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए. यह जरूरी है कि चुनाव आयोग MCC को कायम रखने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि चुनाव सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और गलत सूचना के दाग से मुक्त होकर लोगों की इच्छा का प्रतिबिंब बनी रहे.

जब प्रधानमंत्री ने भारतीय नागरिकों के एक वर्ग के लिए घुसपैठिया शब्द का इस्तेमाल किया तो चुनाव आयोग की चुप्पी से लगा जैसै उसने अपने कान बंद कर लिए हों. इसी तरह, जब हैदराबाद से एक बीजेपी उम्मीदवार ने एक धार्मिक जुलूस के दौरान उत्तेजक इशारा किया तो चुनाव आयोग की कड़ी कार्रवाई की कमी साफ दिखी. दूरदर्शन पर विपक्ष के खिलाफ सेंसरशिप के आरोप पक्षपात के परेशान करने वाले पैटर्न को बढ़ाते हैं.

ये घटनाएं अकेली नहीं हैं, बल्कि चुनाव आयोग द्वारा अपने कर्तव्य को निभाने में बार-बार विफल होने की कहानी बताती हैं. कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश चुनाव आयोग के लिए आत्मनिरीक्षण करने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति अपने समर्पण की पुष्टि करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसकी रक्षा के लिए वह बना है.

निष्पक्षता और सही प्रोसेस के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिए चुनाव आयोग को तत्काल और निर्णायक कदम उठाने चाहिए. ऐसा करने में फेल होना न सिर्फ चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को कमजोर करेगी बल्कि उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी खतरे में डाल देगी जिसकी रक्षा के लिए इसे बनाया गया है.

चुनाव आयोग को याद रखना चाहिए कि चुनावी युद्ध का मैदान एक समान खेल का मैदान बना रहे, यह सुनिश्चित करने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है जहां लोगों की इच्छा बिना किसी डर या पक्षपात के व्यक्त की जाती है, ऐसा न हो कि लोकतंत्र की किरण संदेह और अविश्वास के बादलों के नीचे मंद हो जाए.

(लेखक, एक स्तंभकार और रिसर्च स्कॉलर हैं, सेंट जेवियर्स कॉलेज (स्वायत्त) कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT