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UP मदरसा कानून को रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले पर SC की रोक, बेंच ने कहा- "गलती हुई"

UP Madrasa law: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट के कानून के प्रावधानों को समझने में गलती की है.

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भारत
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट रद्द (UP Madarsa Education Act) करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के आदेश पर रोक लगा दी है. 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया है.

चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ , जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कानून के प्रावधानों को समझने में गलती की, जो नियामक प्रकृति के हैं. 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद लगभग 17 लाख छात्रों के शिक्षा पाठ्यक्रम को प्रभावित करेंगे. 

पीठ ने आदेश में कहा, "अधिनियम को रद्द करने में हाईकोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों को गलत समझ लिया है. अधिनियम में किसी धार्मिक शिक्षा का प्रावधान नहीं है. इस कानून का मकसद प्रकृति में नियामक है."

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले मदरसा बोर्ड के चेयरमैन?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि रमजान में अलविदा के दिन SC के फैसले का स्वागत है. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा, "मैं इस केस से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं. इसके अलावा मदरसे के छात्रों प्रधानाचार्य टीचरों को मुबारकबाद देता हूं."

उन्होंने कहा, "मदरसे देश और प्रदेश की साक्षरता दर को बढ़ाने का काम कर रहे हैं. रमजान के बाद उत्तर प्रदेश के मदरसे खुलेंगे. मदरसे प्रधानमंत्री के सपने को साकार करेंगे. हम एक हाथ में कुरान एक हाथ में कंप्यूटर की तर्ज पर काम करेंगे."

मदरसे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति  को शिक्षित करने का कार्य कर रहे हैं. मदरसे आगे भी इसी दिशा में कार्य करते रहेंगे. 
डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद, मदरसा बोर्ड के चेयरमैन

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में क्या था?

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने 22 मार्च 2024 को दिए फैसले में मदरसा बोर्ड को 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था. 

ये फैसला जस्टिस सुभाष विद्यार्थी और जस्टिस विवेक चौधरी की बेंच ने सुनाया था. तब हाईकोर्ट ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है, इसलिए मदरसा अधिनियम 2004 संविधान के इसी सिद्धांत का उल्लंघन करता है. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने तब राज्य सरकार को ये आदेश भी दिया था कि वे मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों के लिए अलग से स्कूलों की व्यवस्था करें. 

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सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार और केंद्र सरकार ने क्या कहा? 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए अंजुम कदारी, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया (यूपी), ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया (नई दिल्ली), मैनेजर एसोसिएशन अरबी मदरसा नई बाजार और टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया कानपुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

5 अप्रैल को सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए इसे जुलाई 2024 के दूसरे सप्ताह में अंतिम सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को मानते हुए मदरसा अधिनियम 2004 पर रोक लगाई थी. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमाणी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन किया.

'17 लाख छात्रों पर पड़ेगा असर' 

लाइव एंड लॉ के मुताबिक, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया (यूपी) की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंधवी ने अदालत में दलील दी कि मदरसा अधिनियम 120 सालों से चला आ रहा है. इस पर रोक लगाने से 17 लाख छात्र और 10 हजार शिक्षकों पर असर पड़ेगा. 

अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा, "इतने बड़े पैमाने पर छात्रों को एकाएक राज्य की शिक्षा व्यवस्था में एडजस्ट करना मुश्किल है."

सिंधवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष का खंडन किया कि मदरसों में आधुनिक विषय नहीं पढ़ाए जाते हैं और कहा कि गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी की पढ़ाई होती हैं.

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