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जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के पुंछ (Poonch) में शनिवार, 4 मई को सुरनकोट के शाहसीतार इलाके में भारतीय वायु सेना (India Air Force) के जवानों पर हुए हमले से पता चलता है कि कैसे आतंकवादी समूह वामपंथ चरमपंथियों (LWEs) के कार्यप्रणाली की नकल कर रहे हैं. लोगों से उनके अलगाव का फायदा उठाना, जंगलों में रहना, घने पेड़ों को अपना कवर बनाना और सुरक्षा बलों के खिलाफ हमलों की साजिश बनाते वक्त रडार से दूर रहना.
सुरक्षा संस्थान के सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि अगर भारतीय वायुसेना के जवान जवाबी गोलीबारी नहीं करते तो नुकसान और अधिक हो सकता था.
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, "जवानों ने साइट से करीब 300 गोलियों के खोखे बरामद किए हैं. यह आतंकवादियों के तरफ से की गई ताबड़तोड़ फायरिंग को दर्शाता है."
हमला पिछले हफ्ते शाम करीब सवा छह बजे हुआ था जब वायुसेना के तीन वाहन सुरनकोट के तरनवाली इलाके से शाहसितार स्थित वायुसेना बेस की ओर लौट रहे थे. माना जा रहा है कि आतंकवादी ऊंची जगह से अंदर आ गए और काफिले पर अंधाधुंध गोलीबारी की.
7 मई तक सुरक्षाबलों ने पुंछ के शाहसितार, गुरसाई, सिनाई और शींदारा टॉप के जंगलों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया. इसके अलावा जम्मू के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आनंद जैन ने मीडिया को बताया कि हेलीकॉप्टर के जरिए क्षेत्र में निगरानी की जा रही है.
पुलिस ने कहा कि उन्होंने हमले के बाद कई संदिग्धों को हिरासत में लिया है और दो आतंकवादियों के स्केच जारी किए हैं. इनमें से दोनों को पाकिस्तानी मूल का बताया जा रहा है. सुरक्षाबलों ने हमलावरों को पकड़ने में मदद करने वाले किसी भी सूचना के लिए 20 लाख रुपये के नकद इनाम की घोषणा की है.
शनिवार की गोलीबारी कई मायनों में यह भी याद दिलाती है कि पीर पंजाल में स्थिति वर्तमान में स्वीकार की गई स्थिति से अधिक संवेदनशील हो सकती है. पुंछ और राजौरी जिलों का यह क्षेत्र पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) के पास है.
ये जिले घने जंगल वाले पहाड़ी इलाके में फैले हुए हैं, जिससे आतंकवादियों के लिए न केवल खुली सीमा पार करना आसान हो जाता है, बल्कि जंगल में छिपकर आने वाले सुरक्षाकर्मियों का पीछा करना और फिर घात लगाकर हमला करना भी आसान हो जाता है.
पिछले साल, द क्विंट ने बताया था कि कैसे कश्मीर में आतंकवाद का ग्राफ गिरने के बावजूद पीर पंजाल में तेजी से हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं
पिछले साल 21 दिसंबर को आतंकवादियों ने भारतीय सेना की 48 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) यूनिट के जवानों को ले जा रहे वाहनों पर इसी तरह का हमला किया था. पुंछ जिले के डेरा की गली और बुफलियाज क्षेत्रों के बीच धतियार मोड़ इलाके के पास हुए हमले में पांच सैन्यकर्मी मारे गए थे.
हमले के कुछ देर बाद सेना ने दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया था, इनमें से तीन की हिरासत में टॉर्चर की वजह से मौत हो गई थी.
बुफलियाज में कत्लेआम 2023 में सुरक्षाबलों पर इस तरह का चौथा घातक हमला था. इससे पहले नवंबर में पुंछ के कालाकोट इलाके में इसी तरह घात लगाकर किए गए हमले में सेना के कम से कम पांच जवान शहीद हो गए थे. पिछले साल मई में राजौरी जिले के कंडी वन क्षेत्र के पास तलाशी अभियान के दौरान पांच अन्य मारे गए थे.
अप्रैल 2023 में हुए एक घातक हमले के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों का पता लगाने में भारतीय जवान जुटे हैं. इस हमले में पांच जवान शहीद हुए थे.
यह हमला पीएम मोदी द्वारा आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई पर जोर देते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा घरेलू मैदान पर आतंकवादियों को खत्म करने में संकोच न करने की टिप्पणी के कुछ दिनों बाद हुआ है. पीएम मोदी के बयान में पाकिस्तान के खिलाफ टिप्पणी भी शामिल थी. उन्होंने कहा था कि अगर किसी आतंकवादी हमले की योजना बनाई गई तो वह सीमा के परे भी जाकर उसपर कार्रवाई करेंगे.
शिखर सम्मेलन के दौरान एस जयशंकर ने कड़े लहजे में कहा था, "जब दुनिया कोविड और उसके परिणामों से जूझ रही थी, आतंकवाद का खतरा बदस्तूर जारी था." उन्होंने कहा, अपनी नजर हटाना हमारे सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदेह होगा. हमारा दृढ़ विश्वास है कि आतंकवाद को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता और सीमा पार से आतंकवाद के सभी प्रयासों को रोका जाना चाहिए."
लगातार हो रहे इन हमलों ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या इससे भारतीय पक्ष की ओर से संभावित जवाबी कार्रवाई हो सकती है. जैसा कि फरवरी 2019 में हुआ था, जब दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ा गया था. बता दें कि एक आत्मघाती हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों की मौत के बाद नई दिल्ली और इस्लामाबाद युद्ध के कगार पर आ गए थे.
एक वरिष्ठ सुरक्षा सूत्र ने द क्विंट को बताया, "यह टाइमिंग की बात है कि आतंकवादी इस तरह से हमला करते हैं जब हमले में ज्यादा से ज्यादा नुकसान संभव हो. "
उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में हुए हमले इस बात का संकेत हैं कि पहल हमेशा आतंकवादियों ने की है. "वो जानते हैं कि अधिक सेना बल आने और जवाबी कार्रवाई होने में एक घंटा लग जाएगा. तब तक उन्हें जंगलों में भागने के लिए पर्याप्त मौका मिल जाता है. उनके लिए, यह कम सौदे में ज्यादा मुनाफा वाली रणनीति है."
मोहम्मद अमीन बट, उर्फ जहांगीर सरूरी जम्मू-कश्मीर में सबसे पुराना जीवित आतंकवादियों में से एक है. और वह अबतक किश्तवाड़ क्षेत्र के मारवां और दछान के घने जंगलों में छिपे रहने कि अपनी राणनीति की वजह से ही बचा हुआ है.
इसी तरह, सलाहुद्दीन नाम का एक आंतकवादी (यह वह सलाहुद्दीन नहीं है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में यूनाइटेड जेहाद काउंसिल (UJC) का प्रमुख है), जो 2004 और 2005 के बीच उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा क्षेत्र में सक्रिय था, वह अब तक जिंदा है क्योंकि वह हमेशा अंडरकवर रहता है. फिलहाल वह कथित तौर पर अब दुबई में है.
एक अधिकारी ने कहा, वो घर में घुस के आपके मारने का इंतजार नहीं कर रहे हैं, वे जंगल में हैं और उनसे लड़ने की जिम्मेदारी आपकी है.
नई दिल्ली के संघर्ष प्रबंधन संस्थान में कार्यकारी निदेशक अजय साहनी ने कहा, "जंगलों में किलेबंद स्थानों में उनके बसने का कारण यह है कि सुरक्षा बलों के अधिक संपर्क में आने से उनके लिए शहरों, बस्तियों और चहल पहल वाले जगहों पर काम करना मुश्किल हो गया है."
उन्होंने आगे कहा, "कभी-कभार नुकसान करने के अलावा, यह किसी नई रणनीति का सबूत नहीं है. उनके बस में सिर्फ इतना ही करना संभव है."
(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने द वायर, आर्टिकल 14 लाइव, कारवां मैगजीन, फर्स्टपोस्ट, द टाइम्स ऑफ इंडिया और बहुत प्लेटफॉर्म पर लिखा है. वह @shakirmir पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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