मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019लाउडस्पीकर और सार्वजनिक जगहों पर तेज आवाज पर क्या कहता है कानून?

लाउडस्पीकर और सार्वजनिक जगहों पर तेज आवाज पर क्या कहता है कानून?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक मस्जिद हो या मंदिर, कहीं लाउडस्पीकर नहीं बजना चाहिए

अनूप भटनागर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>लाउडस्पीकर और सार्वजनिक जगहों पर तेज आवाज पर क्या कहता है कानून?</p></div>
i

लाउडस्पीकर और सार्वजनिक जगहों पर तेज आवाज पर क्या कहता है कानून?

फोटो- क्विंट

advertisement

जनता के हितों, विशेषकर बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों के स्वास्थ्य और बच्चों की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए बनाए गए ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमों पर पूरी ईमानदारी से अमल की बजाय इसे राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग देने का ज्वलंत उदाहरण ‘अजान बनाम हनुमान चालीसा’ का पाठ है.

मस्जिदों से अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के मुद्दे ने जिस तरह से राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग लिया है उससे सहसा ही कर्नाटक के उडुपी की एक शिक्षण संस्थान की क्लास में हिजाब पहनने की कुछ छात्राओं के आग्रह से शुरू हुए विवाद का वर्तमान स्वरूप याद आ रहा है.

सार्वजनिक जगहों पर रात 10 से सुबह 6 बजे लाउडस्पीकर पर रोक

ध्वनि प्रदूषण नियमों के नियम 5 (2) के तहत पहले से ही सभागार जैसे स्थानों से इतर सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकर जैसे ध्वनि विस्तारक उपकरणों के इस्तेमाल पर रात 10 बजे से सवेरे 6 बजे तक प्रतिबंध है और दिन में पूर्व अनुमति के बगैर लाउडस्पीकर और ऐसे ही अन्य उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

लेकिन हकीकत में इस नियम को धड़ल्ले से दुरुपयोग होता है और अक्सर ही तमाम तरह के आयोजनों मे ध्वनि नियंत्रण की निर्धारित सीमा से कहीं तेज कान फोड़ू गानों के लिए लाउडस्पीकर, उच्च कोटि के संगीत उपकरण और हाईफाई एंपलीफायर का इस्तेमाल हो रहा है.

वैसे तो ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण का मुद्दा अस्सी के दशक में ही जोर पकड़ने लगा था लेकिन 1998 में बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की की चीखें एक धार्मिक आयोजन के दौरान बहुत ही तेज बज रहे लाउडस्पीकर की आवाज में डूब गई थीं. इस नाबालिग लड़की ने इसके बाद आत्मदाह कर लिया था.

इस घटना के बाद धार्मिक कार्यक्रमों, भजन संध्या और ऐसे ही दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रमों में बहुत तेज आवाज में लाउडस्पीकर और दूसरे वाद्य यंत्रों के इस्तेमाल का मसला प्रमुखता से उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लाया गया था.

शीर्ष अदालत ने जुलाई 2005 मस्जिदों में अजान के लिए और धार्मिक कार्यक्रमों सहित अन्य आयोजनों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल में इनकी आवाज की एक सीमा निर्धारित करने के साथ ही कहा था कि ऐसे कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर और दूसरे तेज ध्वनि पैदा करने वाले संगीत उपकरणों का इस्तेमाल रात में दस बजे से सवेरे छह बजे के दौरान नहीं किया जाएगा. इस नियम का उल्लंघन होने पर प्रशासन को ऐसे उपकरण जब्त करने के भी निर्देश दिये गए थे.

लेकिन आज अक्सर ही देखा जा सकता है कि तमाम धार्मिक आयोजनों, समागमों और जागरण के अलावा शारदीय नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा माता की चौकी की स्थापना के लिए मां दुर्गा की प्रतिमा ले जाने के दौरान ही नहीं बल्कि शिव भक्तों की कांवड़ यात्रा में कान फोड़ू डीजे का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है. इनकी तेज आवाज पर आपत्ति किये जाने पर मारपीट तक की नौबत आ जाती है और पुलिस तनाव फैलने की आशंका की आड़ में मूकदर्शक बनी रहती है.

ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के नियम 3 (1)और 4 (1) में विभिन्न क्षेत्रों के लिए ध्वनि मानक इस प्रकार हैं:

  • औद्योगिक क्षेत्रों में दिन के समय 75 डीबी (ए) और रात के समय 70 डीबी (ए)

  • वाणिज्यिक क्षेत्रों में दिन में 65 डीबी और रात के समय 55 डीबी

  • आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय 55 डीबी और रात के समय 45 डीबी ध्वनि मानक निर्धारित है.

  • शांत क्षेत्रों में दिन के समय 50 डीबी और रात के समय 40 डीबी (ए) ध्वनि मानक निर्धारित है.

  • नियमों में स्पष्ट किया गया है कि दिन के समय का तात्पर्य सवेरे छह बजे से रात 10 बजे तक है.

  • रात के समय का मतलब रात दस बजे से सवेरे छह बजे तक है.

शांत क्षेत्र का तात्पर्य अस्पताल, शिक्षण संस्थान, अदालत, धार्मिक स्थान या सक्षम अधिकारी द्वारा घोषित किए गए ऐसे स्थान के आसपास के कम से कम एक सौ मीटर के दायरे से है, जहां सामान्य से कम ध्वनि मानक बनाए रखने की आवश्यकता है. शांत क्षेत्र में हॉर्न का उपयोग करने और शोर करने वाली निर्माण मशीनों और पटाखे फोड़ने पर भी प्रतिबंध है.

अगर कहीं कोई मिश्रित क्षेत्र है तो सक्षम अधिकारी स्थिति के अनुसार इन श्रेणियों में से किसी एक को ध्वनि मानक घोषित कर सकते हैं.

इसी तरह, लाउडस्पीकर या ध्वनि विस्तारक उपकरणों के उपयोग के बारे में सक्षम अधिकारी से आवश्यक अनुमति प्राप्त होने के बावजूद इसकी आवाज एक सीमा तक नियंत्रित करनी होगी.

लाउडस्पीकर और ऐसे ही दूसरे सार्वजनिक संबोधन या ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल, सभागार, सम्मेलन कक्ष, सामुदायिक कक्ष जैसे बंद परिसर या सार्वजनिक आपात स्थिति के अलावा रात में 10 बजे से सवेरे छह बजे के दौरान नहीं करने का नियम है.

इसी प्रकार सार्वजनिक स्थान जहां लाउडस्पीकर या ध्वनि विस्तारक उपकरणों का उपयोग किया जा रहा हो तो उसकी चारदीवारी में ध्वनि का स्तर संबंधित क्षेत्र के लिए निर्धारित स्तर 10 डीबी (ए) या 75 डीबी (ए) जो भी कम हो, उससे अधिक नहीं होगा.

इसी तरह, किसी निजी चारदीवारी में निजी स्वामित्व की ध्वनि प्रणाली या उपकरण का इस्तेमाल हो रहा हो तो यहां के लिए निर्धारित ध्वनि मानक के 5 डीबी (ए) से अधिक नहीं होगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इन नियमों के बावजूद इनका धड़ल्ले से उल्लंघन होता है. धार्मिक मामलों में तो मारपीट तक की स्थिति पैदा हो जाती है. धार्मिक स्थलों में तेज आवाज में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का विरोध होने पर अदालतों में तर्क दिये गए हैं कि इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन होता है लेकिन न्यायालय ने इनकी इस दलील को ठुकरा दिया. यही नहीं, पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद सरीखे जैसे नेताओं ने तो अजान के लिए मस्जिदों में लाउडस्पीकर की अनुमति को संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त धार्मिक आजादी से भी जोड़ने का असफल प्रयास किया था.

लेकिन, इलाहाबाद उच्च न्यायालय उनके इस तर्क से भी सहमत नहीं था. उच्च न्यायालय ने मई 2020 में कहा कि किसी भी हालत में ध्वनि विस्तारक उपकरणों के माध्यम से अजान नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करने से ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन होता है.

इससे पहले, चर्च ऑफ गॉड के मामले में 2000 में उच्चतम न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के संदर्भ में कहा था कि नि:संदेह, कोई भी धर्म दूसरों की शांति भंग करके प्रार्थना करने या ध्वनि विस्तारक उपकरणों अथवा ढोल नगाड़े बजाकर प्रार्थना करने का उपदेश नहीं देता है

न्यायालय ने कहा था कि सभ्य समाज में धर्म के नाम पर इस तरह की गतिविधियों की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भोर पहर या दिन के समय वृद्ध या अशक्त व्यक्तियों, छात्रों और बच्चों की नींद में खलल डाले. हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि नवजात शिशुओं को भी शांतिपूर्ण वातावरण में सोने का स्वाभाविक अधिकार प्राप्त है.

शीर्ष अदालत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आर सी लाहोटी की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश पाने के लिए न सिर्फ लाउडस्पीकर और उच्च शक्ति वाले एंपलीफायर के इस्तेमाल को नियंत्रित करना होगा बल्कि सहन करने की सीमा से बाहर बजने वाले ढोल नगाड़े, बिगुल, भोंपू और इसी तरह के दूसरे उपकरणों के इस्तेमाल को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है.

न्यायालय ने अधिकारियों को कानूनों का उल्लंघन कर परेशान करने वाली तेज ध्वनि पैदा कर रहे लाउडस्पीकर और ध्वनि विस्तारक संयंत्रों और ऐसे ही दूसरे उपकरणों को कानूनी प्रावधानों के तहत जब्त करने का भी निर्देश दिया था.

महाराष्ट्र में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने जिस तरह से मस्जिदों में पांच वक्त की नमाज के वास्ते अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का विरोध करके लाउडस्पीकर पर सार्वजनिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा की, उसने ध्वनि प्रदूषण के सवाल को पीछे छोड़ इसे राजनीतिक और सांप्रदायिक बना दिया.

देखते देखते विभिन्न राजनीतिक दल भी इसमें कूद पड़े और यह लाउडस्पीकर से अजान देने में निकलने वाली ध्वनि की सीमा नियंत्रित करने के सवाल को पीछे छोड़ गया. महाराष्ट्र सरकार ने अब इस विवाद को हल करने की मंशा से कुछ निर्देश जारी किए तो मदरसों और अनधिकृत मस्जिदों में लग लाउडस्पीकर हटाने की मांग इनमे जुड़ गई.

महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश सरकार सहित कुछ अन्य राज्य सरकारें भी ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण की आड़ में इस विवाद में कूद पड़ी और उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर और दूसरे ध्वनि विस्तारक उपकरणों के इस्तेमाल और इनकी लिखित में अनुमति के बारे मे आदेश जारी करना शुरू कर दिया.

राज्य सरकारों ने भले ही ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमों के तहत नये निर्देश जारी कर दिये लेकिन अभी भी यह बड़ा सवाल है कि इन निर्देशों पर अमल कैसे होगा. धार्मिक समागमों, जागरण और ऐसे ही दूसरे आयोजनों में अत्यधिक तेज ध्वनि से बज रहे डीजे पर कौन रोक लगाएगा? क्या स्थानीय पुलिस प्रभावी तरीके से ऐसा कर सकेगी?

फिलहाल तो यह देखना है कि मनसे द्वारा मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लिए छेड़ी गई इस मुहिम का सद्भावपूर्ण समाधान कब और कैसे होगा और क्या राजनीतिक दल ध्वनि प्रदूषण को प्राथमिकता देने की बजाए अजान बनाम हनुमान चालीसा के नाम पर अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते रहेंगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT