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पाकिस्तान चुनाव: सेना के 'दुलारे' नवाज इंतजार में, इमरान रेस से बाहर नहीं- अभी हैं कतार में

Pakistan Election 2024: पाकिस्तानी सेना अब यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि इमरान खान की अपार लोकप्रियता चुनावों में दिखाई न दे.

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>नवाज शरीफ और इमरान खान</p></div>
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नवाज शरीफ और इमरान खान

(फोटो: अरूप मिश्रा/द क्विंट)

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पाकिस्तान (Pakistan) में 8 फरवरी को किस तरह का संसदीय चुनाव (Pakistan Parliamentary Election 2024 ) होगा, यह पिछले सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) और उनकी पत्नी बुशरा बीबी (Bushra Bibi) को दो मामलों में सुनाई गई कठोर जेल की सजा के बाद स्पष्ट हो गया है. इमरान और उनकी पत्नी को तोशाखाना और सिफर मामले में जेल की सजा सुनाई गई है.

पिछले दिसंबर में, इमरान खान को पहले की सजा के आधार पर चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

जेल से इमरान खान ने घोषणा की है कि चुनाव "सभी चयनों/सेलेक्शंस की जननी" होगी. खान जेल से ही नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनते हुए देखेंगे. जैसे 2018 में नजाव शरीफ को भी सेना द्वारा इमरान खान के "चयन" को सलाखों के पीछे से देखना पड़ा था.

8 फरवरी को, पाकिस्तान एक बार फिर एक ऐसे प्रधानमंत्री को "चयन" करने की नई/पुरानी राह पर आगे बढ़ेगा, जिसे इस बात पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि देश में फैसले कौन लेगा.

इमरान खान के प्रभाव को खत्म करने के लिए सेना प्रतिबद्ध

इमरान खान को अप्रैल 2022 में सत्ता से बाहर होना पड़ा. लेकिन तनाव जून 2023 में चरम पर पहुंच गया जब उन्होंने सेना पर अपनी पार्टी- पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका पर भी सेना के साथ मिलीभगत कर उनकी सरकार गिराने का आरोप लगाया.

मई 2023 में उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों द्वारा अलग-अलग सैन्य ठिकानों पर हमला करने के बाद जिस तरह से पाकिस्तानी सरकार ने खान और उनकी पार्टी को खत्म करने की मांग की है, उसे देखते हुए अदालत के फैसले में कोई आश्चर्य नहीं है.

सेना अब यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि इमरान खान की अपार लोकप्रियता चुनावों में दिखाई न दे. उनकी पार्टी के लगभग सभी प्रमुख लोगों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया है या फिर गिरफ्तार कर लिया गया है. मीडिया कवरेज पर रोक के साथ-साथ उनके समर्थकों की रैलियों पर भी प्रतिबंध है.

चुनाव के दिन PTI को बेअसर करने के लिए सेना और क्या करेगी, यह पता नहीं है.

क्या नवाज शरीफ प्रधानमंत्री के रूप में वापसी कर सकते हैं?

हालांकि, इमरान खान और उनके कई समर्थकों ने हार नहीं मानी है.

फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, वो मतदाताओं को एकजुट करने के लिए AI और टिकटॉक रैलियों सहित अपरंपरागत तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. PTI अपने वकीलों के जरिए जेल से भेजे जा रहे नोट्स से AI की मदद से भाषण तैयार कर रही है.

टिकटॉक पर डिजिटल रैलियां हो रही हैं और उनके फेसबुक पेज पर एक चैटबॉट उन उम्मीदवारों की सूची बना रहा है जिन्हें PTI अपना मानती है.

यह एक विडंबना है कि कैसे इमरान खान की दुर्दशा पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए सत्ता में लौटने का अवसर बन जाएगी. याद रहे कि खान को सेना के समर्थन से 2018 में "निर्वाचित" किया गया था.

एक साल पहले 2017 में नवाज शरीफ को पनामा पेपर्स के आरोपों के आधार पर सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. मामले में दोषी और अयोग्य ठहराए जाने के बाद वो निर्वासन में चले गए थे.

1999 में तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) के तख्तापलट के बाद जिस तरह से उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा, उसे देखते हुए शरीफ के मन में सेना के प्रति कोई प्रेम नहीं रह गया है, इस घटना का इमरान खान ने स्वागत किया था.

बाद में उन पर मुकदमा चलाया गया और यहां तक ​​कि उन्हें मौत की सजा का भी सामना करना पड़ा. सऊदी अरब ने उन्हें बचाया, जहां निर्वासन में उन्होंने एक दशक से अधिक समय बिताया. हालांकि, बाद में उन्होंने पाकिस्तान की प्राथमिक सत्ता दलाल- यानी सेना- के साथ उन्होंने समझौता कर लिया और 2013 में अपनी पार्टी के साथ सत्ता में लौटे.

पनामा पेपर्स मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद, वह 2019 में फिर से निर्वासन में चले गए और 2023 तक लंदन में रहे. चुनावों से कुछ महीने पहले, पिछले साल नवंबर में वो अपने खिलाफ फैसले को पलटवाने में सफल रहे.

इसलिए अब एक बार फिर उन्होंने सेना के जूनियर पार्टनर का दर्जा स्वीकार कर लिया है.

सेना यह सुनिश्चित कर सकती है कि बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, जो सिंध में मजबूत बनी हुई है, एक जूनियर पार्टनर के रूप में शरीफ सरकार में शामिल होगी. शरीफ साल 1990 में मूल रूप से सेना रचना थे, जिनका उद्देश्य बेनजीर भुट्टो की भारी लोकप्रियता को रिप्लेस करना था.

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इमरान के प्रधानमंत्री कार्यकाल के अच्छे और बुरे पहलू

जहां तक ​​इमरान का सवाल है, उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में काफी अच्छा प्रदर्शन किया. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मदद से भुगतान संतुलन और ऋण संकट से निपटा और रक्षा खर्च पर अंकुश लगाया, टैक्स क्लेक्शन और निवेश बढ़ाने के लिए नीतियों को बढ़ावा दिया जिसके परिणामस्वरूप कुछ आर्थिक विकास हुआ.

शायद COVID ने उनके कार्यकाल को प्रभावित किया और एक आर्थिक संकट पैदा किया, जो इंडेमिक (endemic) हो गया है.

प्रधानमंत्री के रूप में, इमरान खान, एक पठान, ने पाकिस्तानी और अफगान तालिबान का समर्थन करने और पाकिस्तान के जनजातीय क्षेत्रों से पाकिस्तानी सेना की वापसी की मांग करने जैसा अलोकप्रिय रुख अपनाया. उन्होंने तालिबान के खिलाफ ड्रोन हमलों को लेकर अमेरिका पर हमला बोला. आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत का स्वागत किया और उनकी पाकिस्तानी शाखा के साथ शांति बनाने की मांग की.

खान को आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने के लिए वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) द्वारा पाकिस्तान पर लाए गए दबाव से भी निपटना पड़ा. वह जून 2021 तक 27 में से 26 बिंदुओं पर अनुपालन प्राप्त करने में सक्षम थे. अप्रैल 2022 में इमरान को सत्ता से बेदखल किए जाने से ठीक पहले, सरकार लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद को 31 साल जेल की सजा सुनाने में सफल रही.

विदेश नीति की बात करें तो उन्होंने फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण के बिना पाकिस्तान द्वारा इजरायल को मान्यता देने की बात को जोरदार ढंग से खारिज कर दिया. उन्होंने खाड़ी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे और पाकिस्तान की आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए उनकी सहायता भी हासिल की.

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के दौरान इमरान खान मास्को की यात्रा पर थे. उन्होंने जिन संबंधों को बढ़ाने की कोशिश की उनमें एक महत्वपूर्ण घटक रूसी ऊर्जा आपूर्ति से संबंधित था.

इन सबकी वजह से वो अमेरिका और उसके समर्थक पाकिस्तानी सेना के लिए आंखों की किरकिरी बन गए.

अमेरिका के साथ भारत-पाक के खट्टे-मीठे रिश्ते

लीक हुए एक गोपनीय पाकिस्तानी दस्तावेज में कहा गया है कि अमेरिका ने इमरान खान को सत्ता से बाहर निकालने की वकालत की थी. यह दस्तावेज यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के दो सप्ताह बाद अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत और विदेश विभाग के दो अधिकारियों के बीच एक बैठक से जुड़ा था.

बैठक में दक्षिण एशिया से संबंधित विदेश विभाग के शीर्ष अधिकारी, सहायक सचिव डोनाल्ड लू ने पाकिस्तान के रुख पर अमेरिका की नाखुशी व्यक्त की, जिसे खान ने "तटस्थ" बताया था.

इस बैठक की पाकिस्तानी रिपोर्ट एक अमेरिकी पत्रिका में लीक हो गई थी और खान पर इसे लीक करने और एक राजनीतिक रैली में सार्वजनिक करने का भी आरोप लगाया गया था.

खान के कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध मिलाजुला रहा. पुलवामा आतंकी हमला के बाद भारत ने बालाकोट पर बमबारी की और उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हवाई झड़प हुई.

इस बात की भी पुख्ता रिपोर्ट है कि कैसे उन्होंने भारत के साथ एक समझौता करने की कोशिश की लेकिन आर्टिकल 370 के कारण संबंधों में खटास आ गई. वहीं, प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान यात्रा और ऐतिहासिक हिंगलाज मंदिर दौरे की योजना भी थी, जिसे आर्मी ने मंजूरी दी थी. इसको लेकर फरवरी 2021 में जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर सीजफायर भी हुआ था.

अर्थव्यवस्था हो या सुरक्षा, पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दे दबाव डाल रहे हैं

पाकिस्तान में किसी भी सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या उसकी आर्थिक स्थिति है. दो साल की बढ़त के बाद 2023 में अर्थव्यवस्था गिर गई. मुद्रास्फीति 40 प्रतिशत के करीब है, घाटा बढ़ रहा है, कर्ज आसमान पर है, और निवेश दुर्लभ है, विकास रुका हुआ है.

जो भी सरकार सत्ता में आएगी उसे एक बार फिर IMF और खाड़ी देशों के साथ मिलकर काम करना होगा.

वैसे भी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के साथ बातचीत की कोशिशें नाकाम रही हैं. TTP ने खैबर पख्तूनख्वा से पाकिस्तानी सेना की वापसी और वहां इस्लामी कानून की घोषणा सहित कठिन शर्तें रखीं, जो सेना को बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं थीं.

दिसंबर में पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख असीम मुनीर ने अमेरिका का दौरा किया और TTP से लड़ने के लिए अमेरिकी सैन्य और आर्थिक सहायता मांगी. लेकिन वाशिंगटन अब TTP को खतरे के रूप में नहीं देखता है.

अमेरिका तालिबान और अफगानिस्तान में उनके ठिकानों से पैदा होने वाले इस्लामिक स्टेट के बढ़ते खतरे को प्रबंधित करने को लेकर अधिक चिंतित है.

जैसा कि पाकिस्तानी टिप्पणीकार आयशा सिद्दीका ने कहा, उनकी यात्रा सिर्फ एक सेना प्रमुख के रूप में नहीं थी, बल्कि "एक वास्तविक मार्शल लॉ प्रशासक" के रूप में थी जो पाकिस्तान के राजनीतिक और आर्थिक भविष्य को निर्देशित कर रहा है.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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