मोदी सरकार 2.0 ने संसद में अपना पहला बजट पेश किया. इस बजट का पूरा मतलब क्या है? देश के लिए, भविष्य के लिए, अर्थव्यवस्था के लिए और आम आदमी के लिए...क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से समझिए.
सबसे पहले, बजट को ‘बहीखाता’ बोलने के पीछे के मॉडल को समझना होगा. मॉडल ये है कि ‘ईज ऑफ लिविंग’ के लिए सरकार क्या कर सकती है और इस देश को चलाने के लिए सरकारी खर्चे पर क्या किया जा सकता है. इस बजट से मैसेजिंग दी जा रही है कि बजट अमीरों को तकलीफ देगी इसलिए गरीबों के लिए काफी अच्छा होगा ये बजट. सरकार ये बताना चाहती है कि उनकी एंटी-रिच पॉलिटिक्स और प्रो-पूअर पॉलिटिक्स जारी रहेगी.
संजय के मुताबिक, इकनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि एक्सपोर्ट पर बड़ा फोकस होगा. इस बजट में ऐसा नहीं दिखता. एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए प्राइवेट सेक्टर का साथ देना पड़ता है क्योंकि वो सामान बनाते हैं, वही बेचते हैं. इस ग्लोबल स्लोडाउन में सरकार एक्सपोर्ट का रूट भी नहीं ले रही है तो कमाई कैसे बढ़ेगी?
उनका कहना है कि इस बजट से एक अच्छा सिग्नल ये मिला है कि बाहर से विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ा सकते हैं जो अब तक कम है. हालांकि, इसका पिछला अनुभव अच्छा नहीं रहा है.
सरकारी मैसेजिंग वाला बजट
संजय पुगलिया के मुताबिक, इस बजट में पब्लिक एक्सपेंडिचर के बदौलत ग्रोथ लाने का एहसास है. इसमें ये नहीं है कि प्राइवेट एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा मिले. स्टार्ट-अप, एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए बातें तो कही गई हैं लेकिन ये सब काफी छोटे कंपोनेंट हैं, जो 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
400 करोड़ तक की कंपनी पर 25% का कॉर्पोरेट टैक्स रहेगा. पहले ढाई सौ करोड़ तक की कंपनी पर था. इसका मतलब 99.3% टैक्सपेयर कंपनी इससे बाहर हो जाएंगी और सिर्फ 0.7% लोग होंगे जिनपर उनसे अधिक टैक्स लगेगा. इसका मतलब ये कुछ हजार लोगों की छोटी सी आबादी है. इसे टारगेट करने से बहुत ज्यादा अमाउंट नहीं आ पाएगा. टैक्स की भूख मिटाने के और तरीके हो सकते हैं. लेकिन वो एक बड़ी आबादी को प्रभावित कर सकती है. तो मैसेजिंग के लिए ऐसे फैसले लिए गए ये असरदार नहीं हैं.
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