ADVERTISEMENTREMOVE AD

कहां से शुरू हुई बैंकों की बदहाली, बजट में मिलेगा बूस्टर?

सरकार की तरफ से वित्त वर्ष 2018-19 में सरकारी बैंकों को 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद दी जा चुकी है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझा रहे हैं.. इस सीरीज में आज हम आपको बैंक रिकैपिटलाइजेशन के बारें में समझा रहे हैं.

बैंक रिकैपिटलाइजेशन यानी आसान शब्दों में बैंकों को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद. ये आर्थिक मदद इसलिए दी जा रही है ताकि खस्ताहाल सरकारी बैंकों को डूबने से बचाया जा सके.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार की तरफ से वित्त वर्ष 2018-19 में सरकारी बैंकों को 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद दी जा चुकी है. लेकिन ये रकम इन बैंकों की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह सुधारने के लिए नाकाफी रही है. 17 सरकारी बैंकों के कारोबारी साल 2019 के नतीजे बताते हैं कि उन्हें डूबे कर्जों के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान करने की जरूरत है. इन बैंकों ने साल भर में संयुक्त रूप से 47,000 करोड़ रुपए का नुकसान झेला है.

लेकिन बैंकों की हालत खराब हुई क्यों?

देश में कुल 21 सरकारी बैंक हैं, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से ज्यादा है. इन बैंकों के बुरे दिन करीब 11 साल पहले शुरू हुए, जब साल 2008 में अमेरिका से शुरू हुई आर्थिक मंदी ने देश के उद्योग-धंधों को भी अपनी चपेट में ले लिया. इस दौरान सरकार ने बैंकों को निर्देश दिए कि वो खुले हाथ से लोन बांटे, ताकि वित्तीय संकट से निपटा जा सके.

नतीजा ये हुआ कि ना सिर्फ बैंकों ने उद्योग-धंधो को कामकाज बढ़ाने के लिए लोन दिया, बल्कि पुराने लोन की किस्त नहीं चुकाने वाली कंपनियों के लोन की रीस्ट्रक्चरिंग भी कर दी, यानी पुराने लोन को चुकाने के लिए आसान शर्तों पर नया लोन. अब हुआ ये कि इस दौरान बैंकों ने लोन लेने वाले उद्योग-धंधों के कागजात की जांच-पड़ताल गहराई से नहीं की.

कर्ज देने का ये सिलसिला 2013 तक चलता रहा, लेकिन जब कंपनियों ने डिफॉल्ट करना शुरू किया तो काफी कोशिशों के बावजूद हालात बिगड़ते चले गए. ज्यादातर कारोबारी कर्ज लौटाने में नाकाम हो गए और बैंकों पर डूबने वाले कर्जों का बोझ बढ़ता चला गया.

आज देश के सभी बैंकों का करीब साढ़े 8 लाख करोड़ रुपए का कर्ज डूबने की कगार पर है, यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बन चुका है. इनमें से करीब 90 फीसदी लोन सरकारी बैंकों का है.

0
सरकार की तरफ से वित्त वर्ष 2018-19 में सरकारी बैंकों को 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद दी जा चुकी है

कर्ज की रकम वापस न आने से बैंकों को कई मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं.

  • सबसे बड़ी मुसीबत कि उनकी लोन देने की क्षमता घट गई
  • दूसरी, उनके मुनाफे में कमी आई और घाटा बढ़ता चला गया
  • तीसरी मुसीबत ये हुई कि आरबीआई के नियमों के मुताबिक वो कामकाज करने में असमर्थ महसूस करने लगे.

आरबीआई के नियमों के मुताबिक बैंकों को अपना पूंजी आधार बढ़ाना जरूरी है, यानी अपने पास नकदी और बॉन्ड के रूप में ज्यादा पैसा रखना. बेसल-3 मानकों को पूरा करने के लिए भारतीय बैंकों को अगले साल मार्च तक करीब 4 लाख 22 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन बढ़ते एनपीए और घटती कर्ज वसूली ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वो बैंकों को आर्थिक मदद करे. इसलिए अक्टूबर 2017 में सरकार ने फैसला किया कि वो सरकारी बैंकों को 2 साल के भीतर 2.11 लाख करोड़ रुपए की पूंजी देगी. इसमें से 18,000 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया गया.

1.35 लाख करोड़ रुपए रिकैपिटलाइजेशन बॉन्ड के जरिए और 58 हजार करोड़ रुपए बैंकों की हिस्सेदारी बेचकर जुटाए जाने की योजना बनाई गई. मार्च 2019 तक इन तरीकों से सरकारी बैंकों को 1.06 लाख करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं.

रिकैपिटलाइजेशन से क्या फायदा?

सबसे बड़ा फायदा यही है कि बैंकों के पास कर्ज बांटने के लिए ज्यादा पैसे उपलब्ध होंगे और फिर वो धीरे-धीरे बेहतर आर्थिक हालत में आ सकेंगे. बैंक कंगाल नहीं रहेंगे तो नया कारोबार शुरू करने या कारोबार बढ़ाने के लिए लोन मिल पाएगा.

आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018-19 के दौरान बैंकों की एसेट क्वालिटी में सुधार आया है. मार्च 2019 में ग्रॉस एनपीए रेश्यो घटकर 9.3 फीसदी रह गया है, जो मार्च 2018 में 11.5 फीसदी था.

हालांकि बैंकों को उनकी पुरानी सेहत लौटाने के लिए काफी कुछ करना बचा है और उम्मीद है कि 5 जुलाई को बजट में सरकारी बैंकों की मदद के लिए भी एकाध ऐलान जरूर होंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें