क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझा रहे हैं. इस सीरीज में आज हम आपको सब्सिडी के बारे में समझा रहे हैं.
सब्सिडी सरकार की तरफ से दी जाने वाली आर्थिक सहायता होती है, जो किसी व्यक्ति, व्यवसाय या संस्था को दी जा सकती है. आमतौर पर भारत में सब्सिडी किसानों, उद्योग-धंधों और कंज्यूमर्स को ध्यान में रखकर दी जाती है. ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में हो सकती है.
क्यों दी जाती है सब्सिडी?
प्रत्यक्ष सब्सिडी में लोगों को नकद भुगतान कर दिया जाता है जिसका उदाहरण है एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी. परोक्ष सब्सिडी में टैक्स कटौती के जरिए आर्थिक मदद दी जाती है जिसका उदाहरण है होम लोन के ब्याज भुगतान पर मिलने वाली टैक्स छूट.
सब्सिडी का मकसद होता है लोगों के वित्तीय बोझ को कम करना या किसी विशेष सेवा या उत्पाद को बढ़ावा देना. अंततः किसी भी सब्सिडी का मकसद आमतौर पर सामाजिक या आर्थिक नीतियों को बढ़ावा देना ही होता है, इसलिए सरकारी सब्सिडी को सिर्फ एक सरकारी खर्च (या राजस्व के नुकसान) की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.
सब्सिडी पर बढ़ सकता है सरकार का खर्च
अंतरिम बजट 2019-20 की घोषणा के मुताबिक, सब्सिडी पर केंद्र सरकार का खर्च 2018-19 के संशोधित अनुमानों के मुकाबले 11.7 फीसदी बढ़ सकता है. ये खर्च 3.34 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. इसमें फूड सब्सिडी का हिस्सा 1.84 लाख करोड़ रुपये रहेगा. वहीं फर्टिलाइजर सब्सिडी के 75 हजार करोड़ रुपये रहने का अनुमान सरकार ने जताया है.
पेट्रोलियम सब्सिडी भी 37,500 करोड़ रुपये दी जाएगी, वहीं ब्याज सब्सिडी पर केंद्र सरकार ने 2019-20 में 25,100 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान जताया है.
मोटे तौर पर सरकार की तरफ से दी जाने वाली कुल सब्सिडी का करीब 50 फीसदी फूड सब्सिडी पर खर्च होता है. ये खर्च गरीबों को दिए जाने वाले सस्ते अनाज पर किया जाता है. फूड सब्सिडी पर सरकार का खर्च पिछले 5 साल में काफी बढ़ चुका है. जहां साल 2014-15 में फूड सब्सिडी का खर्च 1.15 लाख करोड़ रुपए था, वो अब बढ़ते हुए 1.84 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है.
हालांकि, बीच के दो कारोबारी सालों में सरकार को कुल सब्सिडी पर कम खर्च करना पड़ा था, लेकिन पिछले साल इसमें काफी बढ़ोतरी हुई, और ये बढ़ोतरी चालू कारोबारी साल में भी जारी रहने का अनुमान है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)