वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
जब अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही हो तो ऐसे समय में बजट पर लोगों की उम्मीदें ज्यादा टिकी रहती हैं .बजट पेश करने अब वित्त मंत्री ब्रीफकेस नहीं बही-खाता लेकर पहुंचती हैं.
इस बार के बही-खाते पर नजर इसलिए है क्योंकि सब देखना चाहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मिडिल क्लास की घटती हुई परचेजिंग पॉवर और सेविंग को कैसे बैलेंस करती हैं? ताकि देश के कंज्यूमर के हाथ में पैसा बचे, न कि टैक्स के रूप में पैसा कटे .
1. टैक्स घटाओ सरकार!
मंदी का तोड़ है- कंजम्पशन बढ़े यानी लोग सामान खरीदें, इस्तेमाल करें, डिमांड बनाएं तभी तो अर्थव्यवस्था का चक्का घूमेगा. लेकिन कंजम्पशन तो तभी बढ़ेगी जब लोगों के हाथ में पैसा होगा. टैक्स घटाकर बजट के जरिये लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा पहुंचाया जा सकता है. लंबे समय से इनकम टैक्स की बेसिक एगजेंप्शन लिमिट के बढ़ने का इंतजार कंज्यूमर कर रहे हैं. आखिरी बार मोदी सरकार के पहले टर्म में 2014 के जुलाई बजट में इसे 2-2.5 लाख किया गया था.
रोजाना के खर्चों ने बैंड बजा रखी है तो कौन नहीं चाहेगा कि टैक्स कम करे सरकार.
मौजूदा टैक्स दर है 5% , 20% और 30% जिसमें 2.5 लाख तक निल टैक्स है और इसके बाद की आय पर टैक्स लगता है. कंज्यूमर को उम्मीद है कि 2.5 लाख की ये बेसिक एग्जेंप्शन को बढ़ाकर 5 लाख कर दिया जाए लेकिन सीधे 5 लाख करने का मतलब है कि सरकार के लिए रेवेन्यू लॉस. इसलिए थोड़ा कंजर्वेटिव होते हुए बेसिक एगजेंपशन को अगर 3 लाख भी कर दिया जाए तो आपके हाथ में पैसे बचेंगे.
2.5 से 5 लाख की पहली एग्जेंपशन स्लैब में 5% के हिसाब से टैक्स का मतलब है करीब 12,500 रुपये का टैक्स. लेकिन अगर 2.5 की जगह ये स्लैब 3 लाख- 5 लाख कर दिया जाए तो इसपर 5% टैक्स का मतलब है 10,000 रुपये- यानी 2500 का फायदा.
वैसे डायरेक्ट टैक्स को रिव्यू करने के लिए बनी कमिटी ने भी टैक्स की दरों को बदलने की सलाह दी थी. खबरों की मानें तो उनके मुताबिक 2.5 से 10 लाख की आय पर 10% टैक्स लगना चाहिए फिर 20,30,35% की दर से टैक्स लागू होना चाहिए.
कई सालों तक हर बजट में हमें बताया गया कि डायरेक्ट टैक्स को बदला जा रहा है इसलिए बजट में टैक्स से छेड़छाड़ नहीं करेंगे लेकिन समिति ने अब अपनी रिपोर्ट सौंप दी है जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. इस समिति का लक्ष्य था कि टैक्सपेयर्स की जिन्दगी आसान बने लेकिन टैक्स पेयर्स ने अभी तक इसका मुंह तक नहीं देखा है लेकिन अब कंज्यूमर किसी समिति की रिपोर्ट से ज्यादा अपने ऊपर से टैक्स के बोझ को घटते देखना चाहते हैं. इकनॉमी के स्लोडाउन के बीच टैक्स की एग्जेंप्शन लिमिट में बढ़ोतरी कंज्यूमर के लिए गुड न्यूज साबित हो सकती है.
2. टैक्स छूट बढ़ाओ सरकार
बढ़ती महंगाई सेविंग्स पर भी प्रेशर डालती है. भारत की हाउसहोल्ड सेविंग के ट्रेंड कमी की तरफ इशारा कर रहे हैं. 2011-12 में हाउसहोल्ड सेविंग 23.6% पर थी जो 2017-18 में 17.2% पर आ गई है. डोमेस्टिक सेविंग जब बढ़ती है तो सरकार को भी इन्वेस्ट करने के लिए फंड मिलता है. सरकार और कंज्यूमर दोनों के लिए ये विन-विन बन सकता है, अगर चैप्टर VI-A के 80 सी डिडक्शन के दायरे को बढ़ाया जाए.
इस डिडक्शन में 1.50 लाख तक के निवेश पर आप फुल टैक्स छूट क्लेम करते हैं यानी इसे आप अपनी इनकम से डिडक्ट करते हैं और फिर बाकी की आय टैक्सेबल होती है. मसलन अगर आपकी आय 12 लाख है और आप 80 सी के तहत 1.50 लाख का पूरा निवेश करके उसे फुल्ली क्लेम करेंगे तो टैक्सबल इनकम 10.5 लाख बन जाएगी .
इसके तहत आप लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, PPF अकाउंट, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट यानी NSC, Ulip , ELSS, होमलोन का प्रिंसिपल, सुकन्या समृद्धि स्कीम, बच्चों की ट्यूशन फीस जैसे पेमेंट पर छूट पाते हैं.
लेकिन 80 सी डिडक्शन को पूरी तरह से निचोड़ने के बाद भी कई सारी चीजें छूट जाती हैं. कभी EPF के जरिये ही ये आधा से ज्यादा फुल हो जाता है तो कभी होमलोन का प्रिंसिपल पेमेंट ही इतना बड़ा होता है कि कोई और निवेश दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. 1.50 लाख की ये लिमिट तुरंत ही फुल हो जाती है. 2014 में इसे आखिरी बार बदला गया था. 1.50 लाख अगर 3 लाख तक स्ट्रेच नहीं हो सकता तो कम से कम इसे 2 लाख के राउंड फिगर पर पहुंचा दिया जाए तो कंज्यूमर को लिए बचत विंडो बड़ा हो जाएगा.
इस बार बजट में बाबा आदम के जमाने से चले आ रहे अलाउंसेस को बाय-बाय करने का वक्त आ गया है जिनपर मोटी धूल भी चढ़ गई है. 20 साल से चले आ रहे इन अलाउंसेस को हममें से कई तो जानते ही नहीं और कई क्लेम करना ही भूल जाते हैं, ऐसा लगता है कि सरकार भी इन अलाउंसेस को भूल गई है. 100 रुपये पर मंथ एजुकेशन अलाउंस यानी साल के 1200 रुपये और 300 रुपये पर मंथ हॉस्टल अलाउंस जिसके बनते हैं- सालाना 3600 रुपये. सवाल ये तो है ही नहीं कि ये इतना कम क्यों है. सवाल तो ये उठता है कि क्या किसी स्कूल के खर्चे का ये नाममात्र भी है? फिर इसे क्यों ढोया जाए ?
3. कम हो LTCG टैक्स
पिछले साल ही सरकार ने शेयर्स से होने वाले गेन्स पर टैक्स लगाना शुरू किया है. 1 साल तक होल्ड करने के बाद शेयर्स को बेचने पर हुए मुनाफे पर 10% लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. पर 1 लाख तक का मुनाफा टैक्स फ्री है. इस टैक्स को लेकर सरकार के यू-टर्न का सब इंतजार ही करते रह गए. इस LTCG टैक्स की वजह से बाजार से लेकर बड़े इन्वेस्टर्स का मूड भी काफी खराब हुआ लेकिन इस टैक्स को हटाया नहीं गया .
1 लाख के गेन्स पर जो टैक्स छूट मिलती है इसे बढ़ाने की जोरदार मांग हो रही है. यानी 1 लाख के गेन्स अभी तक माफ हैं तो क्यों न इस 1 लाख को 3 लाख कर दिया जाए और होल्डिंग पीरियड को भी 1 साल से 3 साल करने की मांग है. इस कदम से विदेशी और घरेलू निवेशेक दोनों राहत की सांस लेंगे और लंबी अवधि में शेयर्स पर होने वाले टैक्स फ्री मुनाफे को एन्जॉय भी करेंगे.
4. सपनों के घर पर टैक्स छूट की छत चाहिए
वो कंज्यूमर जो अपने घर का सपना पूरा करना चाहते हैं लेकिन होम लोन लेने से कतरा रहे हैं उन्हें बाजार तक लाने के लिए इंसेटिव चाहिए. सेक्शन 24 के तहत इंटरेस्ट पर केवल 2 लाख की छूट मिलती है . हालांकि पिछले साल 2 सेल्फ ऑक्यूपाइड घर होने पर डीम्ड रेंट मानकर वसूले जाने वाले टैक्स को माफ कर दिया लेकिन घर पर अच्छा खासा इंटरेस्ट देने वालों को केवल 2 लाख की छूट ही मिलती है.
इसे अगर बढ़ाया जाए तो घर खरीदने वालों को बड़ी राहत मिलेगी. होमलोन जैसे-जैसे ज्यादा पुराना होता है उसका प्रिंसिपल कॉम्पोनेंट बड़ा होता जाता है और इसके पे आउट पर छूट को 80 सी के दायरे में रखा गया है. लेकिन होमलोन की मोटी-मोटी EMI पे करने वालों की बल्ले-बल्ले हो जाएगी अगर प्रिंसिपल पेमेंट पर छूट को 80 सी के दायरे से बाहर ले आया जाए और अलग से इस पर छूट मिले. इससे लोन लेने की सुस्त चाल को भी पुश मिलेगा .
हाउसिंग फॉर ऑल के लक्ष्य को मद्देनजर रखते हुए 2019 के बजट में सेक्शन 80इइए की एक नई छूट इंट्रोड्यूस की गई थी. इसके तहत पहली बार घर खरीदने वालों को सेक्शन 24 के इंट्रेस्ट पर छूट के अलावा होमलोन के इंट्रेस्ट पर अतिरिक्त 1.5 लाख की छूट मिलेगी. इसे पाने के लिए घर की कीमत 45 लाख तक हो, 35 लाख का होमलोन होना चाहिए और घर खरीदने वाले का ये पहला घर हो. 80इइए की ये छूट 31 मार्च 2020 को खत्म हो रही है हालांकि इसे पिछले साल भी 1 साल का एक्सटेंशन मिला था इसलिए बजट घर खरीदार इस डेडलाइन को बढ़ते हुए देखना चाहेंगे.
एक जोरदार आइडिया जो कई न्यूज रिपोर्ट्स में दिख रहा है कि कॉर्पोरेट टैक्स कट का जो मॉडल पिछले साल नजर आया था जिसमें कंपनियों का टैक्स 30% से 22% पर ला दिया गया लेकिन मायनस सारे टैक्स छूट यानी बगैर किसी टैक्स एग्जेंपशन के. तो क्या इस आधार पर देश के इंडिविज्युअल टैक्सपेयर को भी होमलोन के इंट्रेस्ट पर छूट, अफोर्डेबल घर खरीदने पर छूट, 80सी डिडक्शन, अलाउंसेस, स्टैंडर्ड डिडक्शन को भूलकर एक फ्लैट लेकिन कम टैक्स रेट मंजूर होगा? इसके जवाब के लिए तो अब 1 फरवरी का इंतजार करना ही पड़ेगा.
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