इकनॉमिक स्लोडाउन की वजह से 2020 का बजट बेहद अहम हो गया है. जीडीपी ग्रोथ में लगातार गिरावट है.निजी निवेश घट गया है और डिमांड का बुरा हाल है. लेकिन कुछ अहम ग्लोबल फैक्टर भी इस बार के बजट पर बड़ा असर डालेंगे. फिलहाल ऐसे तीन ग्लोबल फैक्टर ऐसे हैं जो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट का गणित बिगाड़ सकते हैं.
ईरान-अमेरिका तनाव
दरअसल ईरान और अमेरिका के बीच तनाव से अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम को लेकर चिंता बनी हुई है. हालांकि भारत ने ईरान से अपना तेल आयात काफी घटा लिया है लेकिन खाड़ी में कोई भी तनाव इसके दाम बढ़ा सकता है. इससे भारत के इम्पोर्ट बिल में काफी इजाफा हो सकता है.
2017-18 के इकनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि कच्चे तेल के दाम में दस डॉलर का इजाफा जीडीपी ग्रोथ को 0.2 से 0.3 फीसदी तक नीचे गिरा सकता है. इससे थोक मूल्य सूचकांकों पर आधारित महंगाई 1.7 फीसदी बढ़ सकती है और सरकारी खजाने पर दस अरब डॉलर तक का बोझ बढ़ सकता है. इसलिए कच्चे तेल का दाम भारत के बजट का गणित बिगाड़ सकता है.
चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर
भले ही चीन और अमेरिका के बीच पहले फेज की ट्रेड डील से ग्लोबल अर्थव्यवस्था ने राहत महसूस की हो लेकिन अभी भी दोनों के बीच के कारोबारी तनाव बरकरार हैं. अगर चीन इसके तहत अपना कोई भी वादा नहीं निभा पाया तो ट्रेड वॉर और भड़क सकता है.
आईएमएफ का कहना है कि सिर्फ अमेरिका और चीन के ट्रेड वॉर का तनाव ही ग्लोबल अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगा, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका का कारोबारी तनाव भी इस पर असर डालेगा. भारत के भी अमेरिका से कारोबारी विवाद रहे हैं. दोनों कोई लिमिटेड ट्रेड डील करने में नाकाम रहे हैं. अगर ट्रेड टेंशन बढ़ा तो यह भारत के लिए ऐसे वक्त में और घातक होगा जब इसका निर्यात लगातार पांचवें महीने गिरा है. इससे जीडीपी ग्रोथ और टैक्स कलेक्शन पर सीधा असर होगा.
डब्ल्यूटीओ में विवाद का असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड डब्ल्यूटीओ के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं. उन्होंने डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटारा के शीर्ष संगठन में नियुक्तियों को रोक दिया है. इस वजह से इसका कामकाज लगभग ठप है. ट्रंप ने चीन और भारत दोनों पर व्यापार नियमों का बेजा फायदा उठाने का आरोप लगाया है. अगर डब्ल्यूटीओ के नियम भारत के खिलाफ बदले जाते हैं तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने की उसकी ताकत और कमजोर होगी.
भारत के कमजोर निर्यात को देखते हुए यह और बड़ी मुसीबत साबित होगी. इससे भारत का रेवेन्यू घटेगा और खजाने पर बोझ पड़ेगा, सरकार के पास रेवेन्यू की कमी है. अगर हालात ज्यादा बिगड़े तो बजट में योजनागत खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है. या फिर इन्हें पूरा करने में मुश्किल आ सकती है.
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