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LIC के ‘महा’ IPO पर सबकी नजर, लेकिन बहुत कठिन है डगर

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बजट 2020 में फैसला किया गया है कि सरकार देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का विनिवेश करेगी और इसे स्टॉक मार्केट में लिस्ट कराएगी. सरकार LIC का विनिवेश करके बाजार से पैसा जुटाना चाहती है. लेकिन LIC की लिस्टिंग इतनी आसान नहीं है. जब भी LIC का IPO आएगा वो हाल फिलहाल के जमाने का सबसे बड़ा IPO हो सकता है.

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सरकार का विनिवेश को लेकर इतिहास, रेगुलेटरी दिक्कतें, LIC का सरकारी रवैया और कर्मचारियों का रुख देखें तो LIC का विनिवेश आसान नहीं होने वाला है.

सरकार का विनिवेश में रिकॉर्ड सही नहीं है

अगर LIC का IPO सफलतापूर्वक आता है तो ये मोदी सरकार को वित्तीय मोर्चे पर राहत पहुंचाएगा. सरकार की LIC में विनिवेश से 90,000 करोड़ जुटाने की योजना है. लेकिन पुराना रिकॉर्ड उठाकर देखें तो सरकार ने हमेशा वादे बड़े किए हैं और उसे पूरा करने में पीछे रही है. मॉर्गन स्टैनली के मुताबिक सरकार ने पिछले 6 सालों में से सिर्फ 2 सालों में अपने तय विनिवेश के लक्ष्य को पूरा किया.

SEBI को करने होंगे बदलाव

LIC डील करने के लिए सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) को कुछ रेगुलेटरी बदलाव करने पड़ेंगे. आम तौर पर जो 25% फ्लोटिंग रेट है. अगर LIC में इतना विनिवेश होगा तो ये आईपीओ अरामको से भी बड़ा होगा और ये अब तक की सबसे बड़ा आईपीओ होगा. भारतीय बाजारों के ट्रेडिंग वॉल्यूम के लिहाज से देखें तो ये एक सपने जैसा है. 2010 में जो कोल इंडिया की लिस्टिंग हुई थी उससे सरकार 2.1 बिलियन डॉलर ही जुटा पाई थी. हालांकि कुछ बड़ी कंपनियों को 10% तक ही हिस्सेदारी बेचने की इजाजत दी जाती है.

LIC को अपनी आदतें बदलनी पड़ेंगी

LIC की पुरानी आदतें भी इसकी लिस्टिंग में दिक्कतें पैदा कर सकती हैं. सरकारी इंश्योरेंस कंपनी अपने कैपिटल को गोल्ड से लेकर कैश तक में रखती है. यहां तक कि LIC, IDBI बैंक और कोल इंडिया तक के शेयर खरीदने तक से नहीं हिचकती. इससे ये संदेश जाता है कि वो अपना भविष्य देखे बिना, सरकार के हुक्म बजाती है.

LIC कर्मचारी कर सकते हैं विनिवेश का विरोध

LIC में काम करने वाले कर्मचारियों का लिस्टिंग के फैसले पर क्या रुख होगा कहना मुश्किल है. लेकिन जब भी सरकारी कंपनियों में विनिवेश की बात हुई है. अक्सर कर्मचारियों के विरोध का सामना करना पड़ा है. LIC केस में अगर ऐसा हुआ तो विनिवेश में देरी होगी.

सऊदी अरामको को लगे थे 3 साल

अरामको का आईपीओ आने में 3 साल का वक्त लगा था. सऊदी ने मोहम्मद बिन सलमान के हस्तक्षेप के बाद इसका प्राइस टैग 2 ट्रिलियन डॉलर रखा. इसकी वजह से विदेशी निवेशक इसमें निवेश से दूर रहे. विदेशी निवेशकों ने इसका थोड़ा सा हिस्सा खरीदा. LIC के विनिवेश करते वक्त भी भारत के सामने इसी तरह की दिक्कत खड़ी हो सकती है.

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