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बॉन्ड यील्ड चढ़ा और गिरने लगे बाजार, निवेशकों पर क्या होगा असर?

गवर्नमेंट या सरकारी बांड्स को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है.

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दुनिया भर के शेयर बाजारों में 26 फरवरी को बड़ी गिरावट देखी गई. भारत में भी सेंसेक्स और निफ्टी बेंचमार्क इंडेक्स करीब 3.75% टूटे. US, जापान जैसे विकसित देशों के लांग टर्म बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के कारण मार्केट में काफी प्रॉफिट बुकिंग हुई. जब-जब बॉन्ड यील्ड बढ़ती है तो शेयर बाजार लड़खड़ाने लगता है. आइए समझते हैं क्या है बॉन्ड यील्ड? शेयर बाजार से इसका क्या है संबंध और आगे क्या है उम्मीद?

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क्या होते हैं बॉन्ड?

बॉन्ड बाजार से पैसे जुटाने के लिए प्रयुक्त फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट होते हैं. आमतौर पर सरकारें विभिन्न जरूरतों के लिए पैसे जुटाने के लिए बॉन्ड जारी करती हैं. साथ ही अनेक कंपनियां भी कॉर्पोरेट बांड्स की मदद से पैसे जुटाती हैं. लोन की तरह ही सरकार या कंपनियां बॉन्ड पर तय ब्याज देती है. बॉन्ड की अवधि 3 महीने से लेकर 10 वर्ष या उससे ज्यादा भी हो सकती है.

बॉन्ड यील्ड का क्या है मतलब?

बॉन्ड से मिलने वाले ब्याज को बॉन्ड यील्ड कहा जाता है. कूपन बांड्स यानी सालाना ब्याज वाले बॉन्ड के अलावा कुछ बॉन्ड फेस वैल्यू की तुलना में डिस्काउंट यानी छूट पर भी जारी किए जाते हैं. उदाहरण के लिए 1000 रूपये के बॉन्ड को 800 की दर पर जारी किया जा सकता है. मेच्योरिटी पर निवेशक को फेस वैल्यू यानी 1000 रुपये लौटाए जाते हैं. इस तरह निवेशकों को एक खास दर पर पैसे में वृद्धि मिलती है.

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एक बार सरकार या बॉन्ड जारी करने वाली संस्था से खरीद के बाद ऐसे बांड्स का व्यापार सेकेंडरी बॉन्ड मार्केट में भी किया जा सकता है. विभिन्न फैक्टरों के आधार पर इनके भाव खरीद बिक्री की प्रक्रिया में बढ़ते घटते रहते हैं. इसका स्वाभाविक तौर पर प्रभाव बॉन्ड से मिलने वाले रिटर्न पर भी होता है.

बॉन्ड के दाम अगर बढ़ते हैं तो निवेशकों को मिलने वाले रिटर्न में कमी आती है. यह स्थिति बॉन्ड यील्ड कम होने की स्थिति होती है. इसके विपरीत अगर बॉन्ड मार्केट में बॉन्ड सस्ते हो जाते हैं तो यह बॉन्ड यील्ड में इजाफा होता है.

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शेयर बाजार से क्या है संबंध?

निवेशक सर्वाधिक मुनाफे के लिए सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट में निवेश करना पसंद करते हैं. इक्विटी यानी शेयर मार्केट में रिस्क के साथ ही रिटर्न की भी अच्छी संभावना होती है. वहीं डेट या बॉन्ड मार्केट में रिस्क नहीं या काफी कम होता है और निवेशक एक तय रिटर्न प्राप्त करते हैं. कोरोना से उबरने के माहौल में निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में बड़ा भरोसा जताया गया है.

कुछ जानकारों के अनुसार इस ट्रेंड के कारण बाजार अपने सही वैल्यूएशन से काफी आगे निकल गया है. बॉन्ड मार्केट में यील्ड के बढ़ने से भी इस तर्क को ज्यादा जोर मिला है. इससे पता चलता है कि निवेशक बॉन्ड और अन्य मार्केट में भरोसा ना जताते हुए इक्विटी की तरफ बेहताशा आए हैं. साथ ही अब बांड्स में अच्छे रिटर्न के कारण निवेशक शेयर बाजार से डेब्ट मार्केट की तरफ जा सकते हैं. इस तरह बॉन्ड यील्ड और इक्विटी मार्केट में विपरीत संबंध होता है.

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आने वालों दिनों में इसका क्या होगा बाजार पर असर?

विकसित देशों जैसे US, जापान में बॉन्ड यील्ड बढ़ने से विदेशी निवेशकों (FII) द्वारा भारत जैसे बाजारों से पैसे निकाले जा सकते हैं. बाजार की हालिया तेजी में FII निवेश का बड़ा योगदान रहा है. हाल में भारत का 10 वर्षों का बॉन्ड यील्ड भी 5.76% से 6.20% पे आ गया है. विदेशी निवेशक अगर भारतीय बाजार में रहते हुए भी अगर अपने पैसे को डेट मार्केट में डालते हैं तब भी शेयर बाजार पर नकारात्मक असर दिखेगा.

2013 में US में ‘टेपर टैंटरम’ की घटना का उदाहरण देकर भी लोग इस स्थिति को बताने की कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान US में ट्रेजरी यील्ड में बढ़ोतरी का मार्केट पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव हुआ था.
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RBI से क्या करें उम्मीद?

रिजर्व बैंक लांग टर्म बॉन्ड यील्ड को 6% के पास रखने की कोशिश करेगा. बॉन्ड यील्ड के बढ़ने से सरकार के बाजार से पैसे जुटाने की योजना पर बड़ा असर पड़ेगा. बजट में इस वर्ष और आने वाले वर्षों में सरकार द्वारा बॉन्ड मार्केट से बड़ी रकम उठाने का ऐलान किया गया है. हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों संबंधी बदलाव की संभावना कम है. RBI ओपन मार्केट ऑपरेशन और ऑपरेशन ट्विस्ट की सहायता से बॉन्ड यील्ड में कटौती की कोशिश कर सकता है. ऑपरेशन ट्विस्ट के अंतर्गत केंद्रीय बैंक बिना लिक्विडिटी को प्रभावित किए लांग टर्म बॉन्ड यील्ड में कमी लाने की कोशिश करता है.

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