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प्रॉपर्टी की ज्वाइंट ओनरशिप पर कैसे होगी ‘मैक्सिमम’ टैक्स बचत

ज्वॉइंट ओनरशिप और ज्वॉइंट होम लोन के जरिए आप ज्यादा से ज्यादा इनकम टैक्स बचा सकते हैं

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घर खरीदने के लिए होम लोन का सहारा लेना आजकल आम बात है, क्योंकि होम लोन ना सिर्फ आपके घर का सपना पूरा करने में मदद करता है, बल्कि इनकम के एक हिस्से पर टैक्स छूट भी दिलाता है. अगर थोड़ी समझदारी से काम लिया जाए और इनकम टैक्स कानून के नियमों का ख्याल रखा जाए तो टैक्स छूट में अच्छी-खासी बढ़त हासिल की जा सकती है. इसके लिए आपको अपनी प्रॉपर्टी के साथ दो चीजें जोड़नी पड़ेंगी- ज्वॉइंट ओनरशिप और ज्वॉइंट होम लोन.

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क्या होती है ज्वॉइंट ओनरशिप?

इनकम टैक्स एक्ट का सेक्शन 26 कहता है कि अगर किसी प्रॉपर्टी पर दो या दो से ज्यादा लोगों का मालिकाना हक है, और प्रॉपर्टी में उनकी हिस्सेदारी (शेयर) सुनिश्चित की जा सकती है, तो वो सभी लोग ज्व\इंट ओनर या को-ओनर होंगे. उस प्रॉपर्टी से जुड़े टैक्स के नियम भी सभी को-ओनर्स पर बराबरी से लागू होंगे. यह बात याद रखनी होगी कि सभी को-ओनर्स के नाम प्रॉपर्टी के कागजात पर होने चाहिए, साथ ही उस प्रॉपर्टी की खरीदारी में उनका योगदान भी स्पष्ट होना चाहिए. को-ओनर पति-पत्नी, बच्चे, माता-पिता या भाई-बहन में से कोई भी हो सकता है.

ज्वॉइंट होम लोन जरूरी क्यों ?

इनकम टैक्स की छूट के लिए जरूरी है कि को-ओनर होम लोन के को-बॉरोअर या ज्वॉइंट एप्लिकेंट भी हों. उनका नाम होम लोन एग्रीमेंट में होना चाहिए. ये याद रखें कि अगर प्रॉपर्टी के को-ओनर होम लोन के ज्वॉइंट बॉरोअर नहीं हैं तो उन्हें टैक्स बेनेफिट नहीं मिलेंगे. यही नहीं, टैक्स बेनेफिट के लिए को-बॉरोअर को प्रॉपर्टी की खरीद की पेमेंट में भी भागीदार होना जरूरी है. अगर को-बॉरोअर के बैंक खाते से घर के डाउन पेमेंट या होम लोन की ईएमआई का भुगतान नहीं होता है तो उसे टैक्स बेनेफिट नहीं मिलेंगे.

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ज्वॉइंट ओनरशिप और ज्वॉइंट होम लोन के जरिए आप ज्यादा से ज्यादा इनकम टैक्स बचा सकते हैं
इनकम टैक्स की छूट के लिए जरूरी है कि को-ओनर होम लोन के को-बॉरोअर या ज्वॉइंट एप्लिकेंट भी हों.
(फोटो: iStock)

ज्वाइंट प्रॉपर्टी पर मिलने वाले टैक्स बेनेफिट

स्नैपशॉट

1. प्रॉपर्टी के सभी को-ओनर्स स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन चार्ज, होम लोन के ब्याज और प्रिंसिपल रिपेमेंट पर टैक्स छूट हासिल कर सकते हैं.

2. प्रॉपर्टी के सभी को-ओनर्स इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 24(बी) के तहत होम लोन के ब्याज पर सालाना 2 लाख रुपए तक का डिडक्शन अलग-अलग क्लेम कर सकते हैं. ब्याज में उनकी हिस्सेदारी प्रॉपर्टी की खरीद में उनके कंट्रीब्यूशन के अनुपात में तय होती है.

3. सेक्शन 80सी के तहत हर को-ओनर को होम लोन के प्रिंसिपल रिपेमेंट, स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज पर सालाना अधिकतम 1.5 डेढ़ लाख तक का डिडक्शन क्लेम करने का अधिकार है. ये डिडक्शन भी प्रॉपर्टी की ओनरशिप में उनकी हिस्सेदारी के अनुपात में होनी चाहिए.

4. सेक्शन 80ईई का फायदा उन लोगों के लिए है जिन्होंने अपना पहला घर खरीदा है. इसके तहत होम लोन के ब्याज पर सालाना 50,000 रुपए तक का एक्स्ट्रा डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है, यानी सेक्शन 24(बी) में मिलने वाले 2 लाख के बेनेफिट के अलावा. हालांकि इसके लिए नीचे की शर्तों का पूरा होना जरूरी है:-

5. घर की कीमत 50 लाख रुपए से ज्यादा ना हो

6. घर के लिए होम लोन 35 लाख रुपए से ज्यादा ना हो

7.होम लोन किसी बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी से लिया गया हो

8. होम लोन को मंजूरी 1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 के बीच मिली हो.

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ज्वॉइंट प्रॉपर्टी को बेचने पर कैपिटल गेन्स के नियम

अगर ज्वॉइंट प्रॉपर्टी को बेचने पर कैपिटल गेन्स होते हैं तो सभी को-ओनर्स को इसका खुलासा करना जरूरी है. प्रॉपर्टी को बेचने से मिली रकम सभी को-ओनर्स के बीच उनके ओनरशिप शेयर के अनुपात में बांटी जाएगी, और फिर कैपिटल गेन्स की गणना की जाएगी. यहां ये बात याद रखिए कि कैपिटल गेन्स टैक्स की गणना के लिए प्रॉपर्टी के को-ओनर्स का होम लोन का को-बॉरोअर होना जरूरी नहीं है. यानी प्रॉपर्टी का को-ओनर भले ही होम लोन का ज्वाइंट एप्लिकेंट ना हो, वो किसी तरह की टैक्स छूट क्लेम ना करता हो या इनकम टैक्स के दायरे में ना आता हो, प्रॉपर्टी बेचने पर मिली रकम पर अगर उसे कैपिटल गेन होता है तो फिर वो इनकम टैक्स के दायरे में आ जाएगा.

कैपिटल गेन्स टैक्स को बचाने के लिए प्रॉपर्टी के सभी को-ओनर अपने-अपने हिस्से का दोबारा निवेश कर सकते हैं. ये भी जरूरी नहीं है कि सभी को-ओनर फिर से एक साथ निवेश करें. को-ओनर अपने-अपने कैपिटल गेन का निवेश एक से ज्यादा प्रॉपर्टी में भी कर सकते हैं. अगर प्रॉपर्टी पर हुआ कैपिटल गेन किसी दूसरे घर को खरीदने या उसे बनाने में खर्च किया जाता है तो उस कैपिटल गेन पर सेक्शन 54 के तहत टैक्स छूट मिलती है. अगर घर बनाने या खरीदने की योजना नहीं है तो टैक्स बचाने के लिए कैपिटल गेन की रकम को आप सेक्शन 54ईसी के तहत चुनिंदा बॉन्ड में लगा सकते हैं. इसकी अधिकतम निवेश सीमा हर को-ओनर के लिए 50 लाख रुपए है. अगर कैपिटल गेन का दोबारा निवेश नहीं करते हैं तो फिर आपको उस पर 20 प्रतिशत लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (इंडेक्सेशन के बाद) देना होगा.

साफ है कि प्रॉपर्टी की को-ओनरशिप के जरिए आप टैक्स बेनेफिट को मैक्सिमाइज कर सकते हैं. लेकिन एक बार फिर याद दिलाएं कि प्रॉपर्टी पर हर तरह की टैक्स छूट के दो मूल मंत्र हैं- प्रॉपर्टी की को-ओनरशिप, और उसी प्रॉपर्टी के लोन पर ज्वाइंट बॉरोइंग.

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