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चुनावी साल में SIP के जरिए म्‍यूचुअल फंड में बने रहना समझदारी है

शेयर बाजार के निवेशकों के मन में चिंता और डर को बढ़ावा दिया है.

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संवत 2074 यानी पिछली दिवाली से इस दिवाली तक का समय शेयर बाजार के लिए काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा. पिछले संवत की शुरुआत में जहां शेयर बाजार में ‘रैली’ का मूड था, इसके खत्म होते-होते वो मूड ‘संभलकर कदम रखने’ वाला हो गया. पूरे साल की बात करें तो संवत 2074 में सेंसेक्स ने सिर्फ 6 फीसदी और निफ्टी ने करीब 3 फीसदी का रिटर्न दिया है. निफ्टी 50 इंडेक्स तो अगस्त के शिखर से 10 फीसदी से नीचे आ गया.

जाहिर है, इन सब वजहों ने शेयर बाजार के निवेशकों के मन में चिंता और डर को बढ़ावा दिया है. और अब यही सवाल है कि क्या संवत 2075 शेयर बाजार के लिए शुभ साबित होगा?

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वैसे तो दिवाली के दिन हुई मुहूर्त ट्रेडिंग में संवत 2075 की शुरुआत काफी अच्छी रही. सेंसेक्स ने जहां 246 प्वॉइंट की बढ़त दिखाई, वहीं निफ्टी भी 68 प्वॉइंट ऊपर बंद हुआ. 2008 के बाद से मुहूर्त ट्रेडिंग के दौरान सेंसेक्स और निफ्टी में ये सबसे बड़ी बढ़त थी. लेकिन दिवाली की छुट्टी के बाद अगले दिन खुले शेयर बाजार में हल्की कमजोरी दर्ज की गई. साफ है कि सिर्फ नया संवत शुरू होने से बाजार में निवेशकों का भरोसा पूरी तरह लौटा नहीं है. क्योंकि महंगा कच्चा तेल, अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर और कमजोर रुपये जैसी चिंताएं पहले की तरह कायम हैं. जिस एक चीज ने निवेशकों के मन में सबसे ज्यादा सवाल खड़े किए हैं, वो है चुनावी साल.

अभी देश में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं और फिर अगले साल अप्रैल-मई में होंगे आम चुनाव. चुनावी साल होने की वजह से सरकार की तरफ से सुधारवादी कदमों पर ब्रेक लगने की आशंका है, साथ ही इस बात पर भी संदेह है कि 2019 के आम चुनावों के बाद क्या केंद्र में एनडीए सरकार पूरे बहुमत के साथ दोबारा आ पाएगी.

शेयर बाजार के जानकारों के मुताबिक, इस कारोबारी साल की तीसरी तिमाही में कंपनियों के नतीजे भी कमजोर आ सकते हैं. इसलिए कम से कम अगली दो से तीन तिमाहियों तक शेयर बाजार में संभलकर पैसे लगाना ही बेहतर है. जब तक आम चुनाव 2019 के नतीजे नहीं आ जाते, बाजार में स्थिरता की उम्मीद नहीं की जा सकती.

हालांकि जानकारों के बीच इस बात पर सहमति है कि पिछले दिनों के करेक्शन के बाद अच्छी कंपनियों के शेयर भी साल की शुरुआत के मुकाबले सस्ते हो चुके हैं. इसलिए उन चुनिंदा शेयरों में पैसे लगाने का ये अच्छा मौका है, खासकर उन निवेशकों के लिए जो कम से कम अगले 3-4 साल तक अपना निवेश बनाए रख सकते हैं. जानकार इस बात पर खासकर जोर दे रहे हैं कि शेयर बाजार में 3-6 महीनों की गिरावट देखकर इससे दूर रहने या अपने पैसे इक्विटी से बाहर निकालना समझदारी नहीं है. लंबी अवधि के निवेशकों को तो अपने निवेश सलाहकार की मदद से इस वक्त अच्छी कंपनियों के शेयरों में निवेश और बढ़ा देना चाहिए.

SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले क्या करें

जो निवेशक शेयर बाजार में सीधा निवेश नहीं करते बल्कि इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसे लगाते हैं, उनके मन में ये सवाल बार-बार आ रहा है कि रिटर्न निगेटिव हो गए हैं तो क्या SIP रोक देनी चाहिए? इस सवाल का जवाब ब्लूमबर्ग क्विंट से बातचीत में कोटक म्यूचुअल फंड के एमडी नीलेश शाह ने इस तरह दिया, “ जब विराट कोहली बैटिंग करने जाते हैं तो हर गेंद पर चौके या छक्के नहीं लगाते. इसी तरह आप अपने फंड मैनेजर से हर महीने एसआईपी में पॉजिटिव रिटर्न दिलाने की उम्मीद ना करें. ऐसे महीने भी होंगे जब रिटर्न निगेटिव होंगे. लेकिन अगर आप लंबी अवधि (कई दिवाली) तक निवेशित रहेंगे तो आपको एक अच्छी इनिंग देखने को मिलेगी. हो सकता है कि उस इनिंग में हाफ सेंचुरी लगे, सेंचुरी या फिर डबल सेंचुरी भी. इसलिए ये समय एसआईपी रोकने का नहीं, बल्कि उसे दोगुना करने का है.”

इस बात को समझने में आपको नीचे दिए गए आंकड़े मदद कर सकते हैं. ये बात हम बार-बार कहते रहे हैं कि शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन आपका अनुशासन के साथ किया गया निवेश आपके लिए समृद्धि लेकर आता है. ये उतार-चढ़ाव कई बार पिछले 10 सालों में भी शेयर बाजार में आए हैं. और इस दौरान सेंसेक्स 253 फीसदी और निफ्टी 256 फीसदी बढ़ चुके हैं, यानी ढाई-ढाई सौ परसेंट से ज्यादा. ऐसे कई म्यूचुअल फंड स्कीमें हैं, जिन्होंने 10 साल के दौरान बेहतरीन रिटर्न दिए हैं. (देखें ग्राफिक्स)

 शेयर बाजार के निवेशकों के मन में चिंता और डर को बढ़ावा दिया है.

साफ है कि अगर अच्छी स्कीमों में आपने लंबी अवधि के लिए निवेश किया है तो फिर आपको बाजार के उतार-चढ़ाव या किसी चुनावी साल की अस्थिरता से चिंतित होने की जरूरत नहीं है. हां, इस वक्त अगर आप अपना निवेश बढ़ाना चाहते हैं या फिर आप नए निवेशक हैं तो अपनी कुल रकम का 40-50% ही शेयर बाजार या इक्विटी फंड में लगाएं, बाकी रकम आप डेट फंड, बॉन्ड या फिर बैंक एफडी में रखने को प्राथमिकता दें.

(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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