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रूस-यूक्रेन युद्ध की आंच भारत तक- राशन, ईंधन, AC-फ्रिज समेत ये चीजें हुईं महंगी

Russia Ukraine War की वजह से गाड़ी से लेकर थाली तक पड़ेगा असर, राहत नहीं मिलेगी रुपया गिरने से आगे और बढ़ेगी महंगाई.

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Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को लगभग 40 दिन हो चुके हैं. इस युद्ध से न केवल रूस और यूक्रेन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों पर इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम देखने को मिल रहे हैं. भारत में इस युद्ध के असर पर बात करें तो इससे जहां एक ओर महंगाई में उछाल होने वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले रुपया धड़ाम हो रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आने वाले समय में उपभोक्ताओं की जेब पर और भी बुरा असर देखने को मिल सकता है. इसके साथ ही कंपनियां कच्चे माल का दाम बढ़ने पर कीमतों का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल रही हैं. आइए जानते हैं क्या हैं रुपये और महंगे होते उत्पादों के हाल...

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1. युद्ध के दौर में $ के मुकाबले ₹ सबसे निचले स्तर को छू आया, आगे 80-82 तक जाने का अनुमान 

डॉलर के मुकाबले रुपये की बात करें तो पिछले कुछ महीनों से यह गिरता हुआ दिख रहा है. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 7, 8 और 9 मार्च 2022 को यह 77 पार का स्तर छूकर वापस आ गया था. 8 मार्च को तो रुपया अपने न्यूनतम स्तर (77.22) तक पहुंच गया था.

7 मार्च के दिन डॉलर के मुकाबले 1.05 फीसदी की गिरावट के बाद ₹ 76.97/$ पर बंद हुआ, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है. यह गिरावट का पांचवां ऐसा मौका रहा जब रुपया दिन में 1 फीसदी से अधिक गिरा. रुपये में पिछली ऑल टाइम निम्नतम स्तर की बात करें तो 16 अप्रैल 2020 को इसने निचला स्तर छुआ था. तब यह डॉलर के मुकाबले 76.87 पर बंद हुआ था.

हाल ही में इकोनॉमिक टाइम्स ने 14 ब्रोकरेज, बैंकों और ट्रेजरी डिपार्टमेंट्स के बीच एक पोल करवाया था जिसमें पार्टिसिपैंट्स ने अनुमान लगाया कि इस कैलेंडर वर्ष में रुपया 77.93 तक गिर सकता है. वहीं दो प्रतिभागियों का मानना है कि इस साल रुपया प्रति डॉलर 80-82 तक गिर सकता है.

जेनिथ फिनकॉर्प के सीईओ सौरभ गोयनका का मानना है कि “कैलेंडर वर्ष 2022 में हम रुपये को प्रति डॉलर 80 के स्तर तक गिरता देखते हैं.”

क्यों हुई रुपये की ये हालत?

कच्चे तेल की कीमतों में आए उछाल के चलते मार्केट में महंगाई का डर बढ़ गया है. महंगाई के साथ ही देश के व्यापार और चालू खाते घाटे में बढ़ोत्तरी का डर अलग से है. इन्हीं बातों का असर रुपये पर देखने को मिला है जिसके परिणाम स्वरूप यह डॉलर के मुकाबले गिरा.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में रशियन क्रूड ऑयल के निर्यात में गिरावट की संभावना देखी जा रही है जिसके चलते कच्चे तेल की कीमतें लंबे समय तक उच्च स्तर पर बनी रह सकती है. ग्लोबल क्रूड मार्केट में भारी असंतुलन के चलते अगले 6-9 महीने में क्रूड की कीमतें हाई लेवल पर बने रहने की संभावना है.
  • बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारतीय मुद्रा (रुपया) ने एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन किया है, जिसकी वजह से इसमें 3.42 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है.

  • भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए 80 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें इन दिनों वृद्धि हो रही है इसलिए रुपये की हालत और खराब हो सकती है.

  • रुपया कमजोर होने से विदेशों में पढ़ाई करना महंगा हो जाएगा. आयात होने वाली वस्तुओं की कीमतों में तेजी आएगी. पेट्रोलियम उत्पाद, मोबाइल फोन, खाने का तेल, दलहन, सोना-चांदी, रसायन और उर्वरक का महंगा होगा.

अब बात करते हैं कहां कट रही है और कहां कटेगी उपभोक्ताओं की जेब?

कच्चे तेल में तेजी होने से रुपया गिर रहा है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, फिलहाल अचानक से कच्चे तेल में काेई गिरावट का दौर नहीं देखा जा रहा है. ऐसे में रुपये के और कमजोर होने की संभावना है अगर रुपया कमजोर होता है तो इसका सीधा सा मतलब यह है कि महंगाई बढ़ेगी. कमजोर रुपये का असर देश में आयात होने वाली वस्तुओं पर पड़ेगा और कंप्यूटर, इम्पोर्टेड मोबाइल और गोल्ड महंगा होगा. जैसे ही रुपया और नीचे गिरेगा वैसे ही पेट्रोल, डीजल के साथ-साथ अन्य उत्पादों के दाम ज्यादा तेजी से बढ़ेंगे. वहीं रुपया गिरने की वजह से RBI ब्याज दरों में इजाफा कर सकता है. कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से सीमेंट, एयरलाइंस, पेंट बनाने वाली कंपनियों, एफएमसीजी और ऑटो सेक्टर भी प्रभावित होंगे. मारुती सुजकी और जेएसडब्ल्यू जैसी कंपनियां कच्चे माल और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई का बोझ कंज्यूमर्स पर डाल रही हैं.

मार्केट एक्सपर्ट्स के अनुसार भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त के चलते देश के व्यापार और चालू खाते में घाटा देखने को मिल सकता है जिससे रुपये में और कमजोरी आने के साथ ही महंगाई बढ़ती नजर आ सकती है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन कीमतों में इजाफा हुआ है. इसके अलावा धातुओं, कागज, उर्वरक तथा गेहूं के दाम भी बढ़े हैं क्योंकि रूस और यूक्रेन इन उपयोगी उत्पादों के प्रमुख उत्पादक हैं.

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटी की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर क्रूड ऑयल की औसत कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो भारतीय इकोनॉमी पर 70 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जो GDP का 1.9 फीसदी होगा. अगर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी बनी रहती है तो भारत में महंगाई बढ़ती नजर आएगी और देश की ग्रोथ पर नेगेटिव असर पड़ेगा.

2. ईंधन के दामों में लग रही है 'आग' 

कुछ दिनों पहले ही वित्त विधेयक 2022 पर चर्चा के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आपूर्ति शृंखला बाधित हो रही है जिससे ईंधन की कीमतों में तेजी आई है.

होली के बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. पिछले 14 दिनों में 12 वीं बार फिर दाम बढ़े हैं. भारतीय तेल कंपनियां पिछले 14 दिनों में लगभग 8.40 रुपये प्रति लीटर तक कीमतें बढ़ा चुकी है. इसके साथ ही नेचुरल गैस PNG की कीमतें हों या फिर LPG-CNG के दाम, युद्ध से इनके दाम भी तेजी से ऊपर चढ़े हैं. ईंधन के दाम बढ़ने से खाने-पीने की चीजों से लेकर दूसरी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होना तय है और इससे महंगाई की मार ज्यादा जोर से पड़ेगी. एक अनुमान के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोत्तरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 8000-10,000 करोड़ का बोझ बढ़ जाता है. इसका साफ मतलब है कि बढ़ी कीमतों का असर आपकी जेब पर सीधे पड़ेगा.
  • कुछ दिन पहले ही घरेलू सिलेंडर में 50 रुपये की बढ़त देखने को मिली थी जिससे कुछ शहरों में इसका दाम 1000 से पार हो गया. इससे रसोई बजट में बढ़त हो गई.

  • वहीं कॅमर्शियल सिलेंडर में 250 रुपये की बढ़त हुई है, जिससे होटल व रेस्टोरेंट का खाना महंगा हो सकता है.

  • दिल्ली-एनसीआर में पाइप से घरों में पहुंचाई जाने वाली रसोई गैस (PNG) की कीमतों में भी इजाफा हुआ है. हर यूनिट पर करीब 5.85 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है.

  • पिछले लगभग एक महीने में सीएनजी की कीमतों में छह बार वृद्धि हो चुकी है. इस दौरान कुल मिलाकर दरें लगभग चार रुपये प्रति किलो बढ़ गई हैं.

  • एक्सपर्ट्स का मानना है कि पेट्रोल-डीजल के दामों में 25 रुपए तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है. वहीं LPG-CNG में आने वाले दिनों में 10-15 रुपए का और इजाफा हो सकता है.

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3. रसोई पर भारी पड़ रहा युद्ध तेल, दूध, सब्जियां हो रहीं महंगी 

ईंधन के दाम बढ़ने से ट्रांपोर्टेशन का खर्च बढ़ा जिससे खाने-पीने जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम में तेजी देखी जा सकती है. ट्रांसपोर्ट चार्ज बढ़ने से मंडी से ही सब्जियां महंगी मिलने लगती हैं जोकि खुदरा बाजार में आते-आते 20-25 प्रतिशत और महंगी हो जाती हैं.

  • अमूल, पराग, वर्का, सांची और मदर डेयरी जैसी कंपनियों ने इनपुट कॉस्ट के नाम पर दूध के दाम 2 रुपये बढ़ा दिए हैं.

  • हाल ही में कुछ जगह पर नींबू के दाम 200 के पार देखने को मिले.

  • मिर्ची, धनिया के दामों में 40 से 60 फीसदी इजाफा दिखा है. वहीं नींबू 200-250, भिंडी 100-120, परवल 120-130, बंद गोभी 40-60, लौकी 50-60, अदरक 60-70 और गाजर 40-50 रुपये प्रति किलो के भाव छू रहे हैं. हर सब्जियों के दाम में 5 से 50 रुपये तक बढ़त पिछले कुछ दिनों में देखने को मिली है.

सोयाबीन के तेल से लेकर सूरजमुखी और पाम ऑयल जैसे तमाम खाद्य तेल हम आयात करते हैं. भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है. आंकड़ों की बात करें तो भारत खाद्य तेलों की अपनी कुल खपत का लगभग 56% हिस्सा विदेशों से मंगाता है. इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों से खाद्य तेल आयात किया जाता है. खाद्य तेलों के खुदरा रेट की बात करें तो पिछले तीन सालों में मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम ऑयल के दामों में लगातार बढ़त देखी गयी है.
  • यूक्रेन और रूस सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक हैं. युद्ध से इनके निर्यात में प्रभाव पड़ेगा.

  • खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 56% का अंतर है और यह आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है.

  • कोरोना काल में खाद्य तेल के दाम बढ़े थे लेकिन युद्ध के दौरान एक एक बार फिर से खाद्य तेलों के दाम में 25 से 35 रुपये प्रतिलीटर तक उछाल आ गया है.

  • युद्ध के पहले तेलों के दाम इन मूल्यों के आस-पास थे; सोयाबीन-140, सरसों-160, मूंगफली-155 और सनफ्लावर-150 जबकि कुछ दिनों पहले यही दाम बढ़कर इस तरह हो गए हैं. सोयाबीन-175, सरसों-200, मूंगफली-190और सनफ्लावर-210.

    (नोट: अलग-अलग शहरों के दामों के बदलाव हो सकता है.)

  • रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है. वहीं गेहूं उत्पादन के लिए यूक्रेन को ब्रेड बास्केट ऑफ यूरोप कहा जाता है. युद्ध की वजह से गेहूं और इससे संबंधित उत्पादों के दामों में वृद्धि दिख रही है.

  • पिछले कुछ दिनों में गेहूं के 3 व आटे के दाम 5 रुपए तक बढ़े हैं. चीनी के दाम भी 2 से 3 रुपये बढ़े हैं.

  • भारत की सबसे बड़ी बिस्कुट और कुकीज बनाने वाली कंपनी ब्रिटानिया ने कहा कि वे दामों में 7 फीसदी की वृद्धि का प्लान कर रहे हैं.

  • डाबर कंपनी की ओर से भी दामों की वृद्धि की घोषणा कर दी गई है. हेल्थ केयर प्रोडक्ट्स जैसे हनीटस, पुदीन हरा और च्वयनप्राश में 10 फीसदी का उछाल है.

  • नेस्ले ने मैगी, दूध और कॉफी पाउडर की रेंज में 3 से 16 फीसदी की बढ़त की है.

  • पार्ले कंपनी ने भी 10 से 15 फीसदी तक दामों को बढ़ाने की बात की है.

रिफाइंड ऑयल बनाने वाली कंपनियों ने सनफ्लावर यानी कि सूरजमुखी का कच्चा तेल 2150 डॉलर प्रति टन खरीदने का अनुबंध किया है जबकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले यह कीमत प्रति टन 1630 डॉलर थी. अगर सूरजमुखी तेल के दाम बढ़ेंगे तो उसकी देखा-देखी दूसरे तेलों के दाम भी बढ़ेंगे. सूरजमुखी अगर बढ़ेगा तो कनोला के रेट भी बढ़ेंगे और सोयाबीन तेल के दामों में भी बढ़त दिखेगी. ऐसे में आगे दाम और बढ़ेंगे.

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4. एसी-फ्रिज जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के 15 से 30% उछलेंगे दाम

  • रूस में दुनिया का करीब 10 फीसदी कॉपर भंडार है. साथ ही वहां एल्युमिनियम और निकेल का छह फीसदी भंडार है.

  • कार उत्पादन में एल्युमिनियम का इस्तेमाल होता है जबकि इलेक्ट्रिक कार बैटरी में निकेल की जरूरत होती है. ये दोनों धातुएं एक दशक के उच्चतम स्तर पर हैं.

  • इसके साथ ही रूस दुनिया में प्लेटिनम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसका इस्तेमाल कई इंडस्ट्रीज में होता है.

  • भारत में निकल के दाम में अब तक रिकॉर्ड 302% की तेजी आ चुकी है. वहीं, जिंक, लेड, कॉपर और एल्युमिनियम जैसे मेटल्स के दाम भी घरेलू मार्केट में 200% से ज्यादा बढ़ चुके हैं.

  • पिछले एक महीने में पेंट के दाम 50 फीसदी बढ़ गए हैं.

कॉपर, एल्यूमीनियम, स्टील और प्लास्टिक जैसे रॉ मेटेरियल के दाम और अधिक चढ़ने की चिंता बढ़ गई है जबकि पिछले कुछ महीनों में इनके रेट में पहले ही तेजी आ चुकी है. इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक ज्यादा प्रमुख ब्रांड कॉम्पोनेंट, मेटल, प्लास्टिक एवं अन्य चीजों की लागत में 25 से 500 फीसदी के उछाल की वजह से अप्लाइंसेज और इलेक्ट्रॉनिक्स के दाम पिछले एक साल में 15-30 फीसदी बढ़ा चुके हैं. मार्केट रिसर्च ग्रुप Techce की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की चिप इंडस्ट्री C4F6, नियॉन और पैलडियम के लिए काफी हद तक रूस और यूक्रेन पर निर्भर है. सेमीकंडक्टर बनाने में इनका व्यापक इस्तेमाल होता है. जबकि रूस दुनिया में पैलेडियम का सबसे बड़ा सप्लायर है. सेमीकंडक्टर्स का इस्तेमाल ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स सहित कई इंडस्ट्रीज में होता है. दुनिया पहले ही सेमीकंडक्टर्स की कमी से जूझ रही है ऐसे में युद्ध से हालात और खराब होंगे. इससे फ्रिज, टीवी, एसी, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स के दामों में इजाफा होगा.

  • उषा इंटरनेशनल ने इस साल अपने उत्पादों की कीमतों में 15 से 18 फीसदी की वृद्धि की थी. वहीं, उषा कंपनी एक अन्य दौर की मूल्य वृद्धि के तहत अपने उत्पादों की कीमतों में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि करने की योजना बना रही है.

  • कोडक, थॉमसन, ब्लूपंक्ट और वेस्टिंगहाउस जैसे ब्रांड के मालिक सुपर प्लास्ट्रॉनिक्स भी अपने उपभोक्ता अप्लायंसेज की कीमतों में करीब 5 फीसदी की वृद्धि करेगी.

  • बिजनेस स्टैंटर्ड के मुताबिक सुपर प्लास्ट्रॉनिक्स के सीईओ अवनीत सिंह मारवाह ने कहा कि कीमतों में अस्थिरता के कारण कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता अब हर 15 दिनों में अपने अनुबंधों पर नए सिरे से बातचीत करते हैं.

  • कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाइंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (CEMA) के अनुसार, 'इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री पहले ही जनवरी में कीमतों में इजाफा देख चुकी है. वहीं कमोडिटी के रेट चढ़ने से हम इस तिमाही में रेट में पांच फीसदी की बढ़ोत्तरी की उम्मीद कर रहे हैं.'

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5. खेती-किसानी पर महंगाई का प्रहार खादों के दाम पर होगा वार

दुनिया में दो तिहाई अमोनियम नाइट्रेट का उत्पादन रूस में होता है. रूस इसका सबसे बड़ा निर्यातक है. युद्ध की वजह से इसकी आपूर्ति बाधित होने से दुनियाभर में फसलों का उत्पादन महंगा हो सकता है. इससे खाद्य महंगाई के बढ़ने की आशंका है. भारत यूक्रेन से बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद का आयात करता है. इसकी सप्लाई बाधित होने से देश में खाद की किल्लत हो सकती है. इतना ही नहीं, खाद बनाने वाले अधिकांश प्लांट अब कोयले के बजाय गैस पर शिफ्ट हो गए हैं. जिसके दाम वैसे भी बढ़ रहे हैं. खाद बनाने में काम आने वाले कच्चे माल के दाम में तेज बढ़ोत्तरी होने के कारण उर्वरक कंपनियों ने इसका बोझ किसानों पर डालना शुरू कर दिया है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर में बताया गया है कि उर्वरक क्षेत्र की दिग्गज कंपनी इफको ने डीएपी की कीमत 1,200 रुपये प्रति 50 किलो बोरी से बढ़ाकर 1,350 रुपये प्रति बोरी कर दिया है. यह 12.5 प्रतिशत की वृद्धि है.

  • एनपीकेएस की कीमत 1,290 रुपये प्रति बोरी से 8.5 प्रतिशत बढ़ाकर 1,400 रुपये प्रति बोरी की गई है.

  • एनपीके उर्वरक की अन्य किस्मों एनपीके-1 और 2 की कीमत में 20 रुपये प्रति बोरी की मामूली बढ़ोतरी की गई है और यह 1,470 रुपये प्रति बोरी है.

इफको के बाद अन्य निजी कंपनियां भी या तो गैर यूरिया उर्वरक की खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी पर विचार कर रही हैं, या पहले ही ऐसा कर चुकी हैं.

  • भारत में डीएपी की सालाना खपत का एक बड़ा हिस्सा, करीब आधे का आयात किया जाता है.

  • यूरिया की सालाना मांग का एक तिहाई हिस्सा आयात किया जाता है.

  • फरवरी के आखिर में तैयार डीएपी का आयात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन से बढ़कर करीब 1050 से 1100 डॉलर प्रति टन हो गया है और इसमें 17 से 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

  • वहीं फास्फोरिक एसिड का आयात मूल्य, जिसका निर्धारण तिमाही आधार पर किया जाता है, जनवरी मार्च तिमाही में 1,530 डॉलर प्रति टन हो गया है, जो इसके पहले की तिमाही में 1,330 डॉलर प्रति टन था. इसमें करीब 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

  • रूस-यूक्रेन टकराव के पहले अमोनिया की कीमत 900 डॉलर प्रति टन थी, जो अब बढ़कर 1,050 से 1,100 डॉलर प्रति टन हो गई है. यह 1995 के बाद से अमोनिया की सर्वाधिक कीमत है.

  • सल्फर की कीमत वैश्विक ब्रेंट क्रूड के मुताबिक होती है. इसकी बिक्री युद्ध के पहले करीब 300 डॉलर प्रति टन के भाव होती थी वहीं अब इसका भाव 450 से 500 डॉलर प्रति टन पहुंच गया है और इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.

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