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कमोडिटी ट्रेडिंग के लिए 2 कंपनियां अयोग्य,बाकी धंधों का क्या होगा?

सेबी के फैसले से शेयर ब्रोकिंग कंपनियों में हड़कंप मच गया

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फाइनेंशियल और शेयर ट्रेडिंग कंपनियों के लिए टेंशन वाले दिन हैं. सेबी ने दो बड़ी शेयर ब्रोकिंग कंपनियों को कमोडिटी ट्रेडिंग के लिए नाकाबिल ठहरा दिया है. लेकिन बाजार को इससे भी बड़ी फिक्र हो गई है कि अगर इनके ब्रोकिंग और फाइनेंस धंधे को भी अयोग्य कर दिया गया, तो क्या होगा?

यही नहीं, दूसरी 3 ब्रोकिंग कंपनियों को भी कमोडिटी ट्रेडिंग के अयोग्य ठहराए जाने की तलवार लटक गई है, क्योंकि उनके खिलाफ जांच अभी जारी है.

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सेबी के फैसले से शेयर ब्रोकिंग कंपनियों में हड़कंप मच गया. बाजार में डर है कि कहीं ये उनके दूसरे धंधों पर भी तो नहीं लागू होगा.

कमोडिटी ट्रेडिंग से बाहर की गईं कंपनियां

  • इंडिया इंफोलाइन कमोडिटीज
  • मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज

ये दोनों शेयर ब्रोकिंग में काफी बड़ी कंपनियां हैं और लंबे वक्त से शेयर ट्रेडिंग में काम कर रही हैं.

किसने बैन लगाया

शेयर बाजार और कमोडिटी बाजार की रेगुलेटर SEBI (सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज) ने बैन लगाने का आदेश दिया है. अब सेबी शेयर और कमोडिटी बाजार के दोनों का रेगुलेटर है.

बैन क्यों लगाया गया

NSEL घोटाले में गड़बड़ी में इन दोनों कंपनियों का नाम आया और सेबी ने जांच के बाद दोनों को कमोडिटी ट्रेडिंग के लिए अयोग्य करार दिया.

सेबी के आदेश में दो अहम बातें

  • बिजनेस में प्रतिष्ठा का बहुत महत्व है. लेकिन इन दोनों कंपनियों के रवैये से इनकी प्रतिष्ठा पर बहुत बुरा असर हुआ है.
  • डायरेक्टर, प्रोमोटर और मैनेजमेंट में बैठे लोगों की ईमानदारी बेहद जरूरी है.

क्या था NSEL घोटाला?

2013 में 5500 करोड़ रुपए का NSEL (नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड) घोटाला हुआ था. इसमें कई शेयर और कमोडिटी ब्रोकिंग कंपनियों पर सवाल उठे थे और सेबी उनके खिलाफ जांच कर रहा था. अब सेबी ने दो कंपनियों को अयोग्‍य ठहरा दिया है और बाकी चार कंपनियों के खिलाफ जांच जारी है.

शेयर बाजार और फाइनेंशियल सर्विस कंपनियों की फिक्र

सबसे बड़ी फिक्र की वजह यही है कि शेयर बाजार का रेगुलेटर और फाइनेंशियल सर्विस कंपनियों के रेगुलेटर रिजर्व बैंक कहीं इन्हीं कंपनियों के दूसरे बिजनेस में फिट एंड प्रॉपर का पैमाना न लगा दें. ऐसा हुआ, तो तमाम शेयर ब्रोकिंग कंपनियां मुश्किल में आ जाएंगी.

क्या-क्या बिजनेस करती हैं ये कंपनियां

कमोडिटी में ट्रेडिंग करने के अलावा शेयर ब्रोकिंग कंपनियां कई बिजनेस चलाती हैं, जिसमें से कुछ सेबी के दायरे में हैं और कुछ रिजर्व बैंक के दायरे में.

  • शेयर ब्रोकिंग
  • गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां
  • म्यूचुअल फंड
  • पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस

पुराने फैसलों को देखें, तो सेबी के नियम किसी भी कंपनी के सभी सेगमेंट पर लागू होते हैं. मतलब ये हुआ कि कंपनियों के शेयर ब्रोकिंग और फाइनेंशियल सर्विस का बिजनेस भी बंद पड़ने का खतरा है.

जानकारों के मुताबिक, ऐसा नहीं हो सकता कि ब्रोकर के तौर पर कोई अनफिट हो और मर्चेंट बैंकर के तौर पर फिट. लेकिन अपने आप लाइसेंस शायद अभी रद्द नहीं होगा, बल्कि जब रिन्यूअल की बारी आएगी, तब लाइसेंस पर सेबी फैसला लेगा.

बैकिंग लाइसेंस रिजर्व बैंक देता है और वो स्थायी लाइसेंस है, लेकिन बाकी बिजनेस के लिए समय समय पर रिन्यूअल कराना होता है.

सेबी की जांच के दायरे में ब्रोकर

अभी तक 300 ब्रोकरों के खिलाफ जांच की जा रही है और जल्द ही उन पर फैसला होने की उम्मीद है. इसके अलावा 3 दूसरी बड़ी कंपनियों पर भी जांच की तलवार लटकी है.

  • आनंद राठी कमोडिटीज
  • जियोफिन कॉम ट्रेड
  • फिलिप कमोडिटीज

हालांकि मोतीलाल ओसवाल और इंडिया इंफोलाइन ने अलग-अलग बयान जारी करके भरोसा दिया है कि इससे उनके ग्रुप के दूसरे बिजनेस पर असर नहीं पड़ेगा. लेकिन शेयर बाजार में घबराहट साफ दिख रही है.

इंडिया इंफोलाइन और मोतीलाल ओसवाल, दोनों के शेयरों में करीब 4 परसेंट गिरावट आई, क्योंकि कानून के जानकार कह रहे हैं कि सेबी के आदेश का मतलब है कि जब प्रोमोटर एक बिजनेस करने के लिए अनफिट हैं, तो दूसरा कैसे करेंगे?

अब सबको इंतजार है सेबी की सफाई का.

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