साल 1994 की हिंदी फिल्म 'विजयपथ' का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था, ‘देर लगी आने में तुमको, शुक्र है फिर भी आए तो…’ अगर आपने वित्त वर्ष 2018-19 की टैक्स प्लानिंग नहीं की है और अब इस बारे में सोच रहे हैं, तो यकीन मानिए आपका पैसा भी यही गीत गुनगुना रहा होगा.
लेकिन अब चूंकि ये वित्त वर्ष खत्म होने में बस करीब डेढ़ महीने का समय बचा है, तो आपके लिए जरूरी है कि टैक्स प्लानिंग की हड़बड़ी में आप कुछ गड़बड़ी न कर दें. यानी टैक्स बचाने के लिए किसी ऐसी जगह पैसे न लगा दें, जहां कोई खास फायदा न मिले. इसलिए हम आपको बताते हैं कि कैसे आप लास्ट मिनट की टैक्स प्लानिंग सही-सही कर सकते हैं.
सबसे पहले अपना टैक्स स्लैब जानिए
शुरुआत अपने इनकम टैक्स स्लैब को जानने से करें, ताकि आपको अंदाजा मिल जाए कि टैक्स कितना देना पड़ सकता है. 60 साल से कम उम्र वालों के लिए वित्त वर्ष 2018-19 का इनकम टैक्स स्लैब कुछ इस तरह हैः
टैक्स की इन दरों के अतिरिक्त हर करदाता को टैक्स पर 4 फीसदी हेल्थ और एजुकेशन सेस भी देना होता है. साथ ही अगर आपकी आय 50 लाख रुपए से ज्यादा, लेकिन एक करोड़ से कम है, तो 10 फीसदी का अतिरिक्त सरचार्ज देना होगा.
एक करोड़ रुपए से ज्यादा कमाने वालों को 15 प्रतिशत का सरचार्ज देना होगा. इन बदलावों के बाद अलग-अलग आय सीमा के लोगों के लिए टैक्स की प्रभावी दर इस तरह होगी. यहां आय का मतलब है टैक्सेबल इनकम, यानी वो इनकम जो हर तरह की टैक्स छूट के बाद आपको मिलती है.
कम आय वालों को अतिरिक्त छूट
3.5 लाख रुपये तक की टैक्सेबल इनकम वालों को 2,500 रुपए तक की अतिरिक्त टैक्स छूट मिलेगी. ये छूट मिलती है सेक्शन 87ए के तहत और इसे आपके टैक्स की गणना के बाद घटाया जाता है.
उदाहरण के लिए, अगर आपकी टैक्सेबल इनकम 3.5 लाख रुपए है, तो स्लैब के हिसाब से आप पर टैक्स की देनदारी बनेगी 5,200 रुपए. लेकिन सेक्शन 87ए की छूट के बाद टैक्स देनदारी हो जाएगी सिर्फ 2,600 रुपए. तीन लाख रुपए तक की टैक्सेबल इनकम वालों को कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा.
निवेश करके टैक्सेबल इनकम घटाएं
अब तक आप समझ गए होंगे कि अगर आपकी टैक्सेबल इनकम कम होती है, तो आपकी टैक्स देनदारी भी घट जाती है. नौकरीपेशा होने के नाते आपकी टैक्स देनदारी कम करने के कई उपाय हैं. आपकी सैलरी इनकम में बेसिक सैलरी, हाउस रेंट अलाउंस और स्पेशल अलाउंस जैसे कंपोनेंट होते हैं. किराये पर रहने वालों को हाउस रेंट अलाउंस यानी एचआरए पर एक खास फॉर्मूले के तहत टैक्स छूट मिलती है.
इसके अलावा साल 2018-19 के लिए 40,000 रुपए का स्टैंडर्ड डिडक्शन भी आपको मिलेगा. एचआरए का कैलकुलेशन करें, दूसरे टैक्स-फ्री अलाउंस और स्टैंडर्ड डिडक्शन की रकम इसमें जोड़ें और कुल रकम को अपनी सैलरी इनकम में से घटा दें.
इसके बाद की रकम में से आप अपने निवेश की उन राशियों को घटाएं, जो इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 सी, 80 डी, 80 सीसीडी-1बी और 80 टीटीए में आते हैं. अगर आप अपने घर में रहते हैं, जिसके होम लोन की ईएमआई आप दे रहे हैं, तो ब्याज के मद में 2 लाख रुपए तक की राशि पर आपको टैक्स छूट मिलेगी. उसे भी अपनी इनकम में से घटाएं, तो अब आपके पास जो रकम आएगी वो है आपकी टैक्सेबल इनकम.
अभी तक निवेश नहीं किया है तो...
अगर आपने सेक्शन 80 सी के तहत 1.5 लाख तक का निवेश पूरा नहीं किया है, तो पहले पता लगाएं कि आपको कितना निवेश करने की जरूरत पड़ेगी. याद रखें कि सेक्शन 80 सी में ईपीएफ में आपका कंट्रीब्यूशन, बच्चों की स्कूल फीस और होम लोन का मूलधन वाला हिस्सा भी मान्य होता है. हो सकता है कि इन चीजों से आपकी 80 सी की छूट सीमा पूरी हो जाती हो. अगर इसके बाद भी डेढ़ लाख की सीमा पूरी नहीं होती, तो फिर निवेश की तैयारी कर लीजिए.
केवल टैक्स बचाने के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी न लें
अक्सर लोग टैक्स बचाने के मकसद से लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी या यूलिप ले लेते हैं. लेकिन आप ऐसा बिलकुल न करें. इन पॉलिसी की मियाद कई सालों की होती है और उनमें मिलने वाला रिटर्न भी कम होता है.
टैक्स बचाने के लिए ही निवेश करना है, तो भी वहां पैसे लगाएं, जहां आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता हो, जैसे ईएलएसएस, सुकन्या समृद्धि स्कीम, एनपीएस यानी नेशनल पेंशन सिस्टम और पीपीएफ. डेढ़ लाख की लिमिट पूरी करने के बाद अगर आप एनपीएस में निवेश करते हैं, तो 50,000 रुपए तक निवेश पर अतिरिक्त टैक्स छूट भी पाएंगे.
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेकर आप न सिर्फ अपने परिवार के लिए एक सुरक्षा चक्र हासिल करते हैं, बल्कि टैक्स में अतिरिक्त कटौती भी.
माता-पिता के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने पर अधिकतम 50,000 रुपए और अपना, अपने परिवार, पार्टनर और बच्चे के लिए अधिकतम 25,000 रुपए तक टैक्सेबल इनकम में से घटाए जा सकते हैं.
कहां से करें पैसे का इंतजाम
हम उम्मीद करते हैं कि आपने टैक्स प्लानिंग के मकसद से निवेश के लिए पैसे का इंतजाम कर रखा होगा. अगर ऐसा नहीं है, तो आप इन उपायों की मदद ले सकते हैं:
- उन इंश्योरेंस पॉलिसी की पहचान कीजिए, जिन्हें जारी रखना आपके लिए फायदेमंद नहीं है. उन्हें सरेंडर कीजिए और उस पैसे का इस्तेमाल नए निवेश में कीजिए.
- अगर आपके पास कोई एफडी या आरडी है, तो उससे टैक्स सेविंग प्रोडक्ट में निवेश के लिए पैसे निकालिए.
- अगर आप पहले से ईएलएसएस में निवेश कर रहे हैं, तो देखिए कि क्या उस निवेश का लॉक-इन पीरियड खत्म हो गया है. आप उस पैसे को निकालकर दोबारा निवेश कर दें. इससे आपको इस साल भी टैक्स छूट मिल जाएगी.
- अगर अपनी कंपनी से पिछले महीनों के रिइंबर्समेंट क्लेम न किए हों, तो उनका क्लेम करके आप निवेश के लिए पैसे का इंतजाम कर सकते हैं.
आप इनमें से कोई भी तरीका अपनाइए, सही जगह निवेश कीजिए और अपनी टैक्सेबल इनकम घटाकर टैक्स बचाइए. और हां, अगले साल से टैक्स प्लानिंग के लिए अंतिम मिनट का इंतजार मत कीजिएगा.
(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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