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ऑटो बिक्री के खराब आंकड़े बिगड़ती इकनॉमी का संकेत हैं?

नीति-निर्माताओं को पहले स्वीकार करना होगा कि रोजगार एक बड़ी समस्या है, तभी वे इसका हल निकालने की पहल करेंगे

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देश की नंबर वन कार कंपनी मारुति सुजुकी का शेयर 20 दिसंबर 2017 के दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर 10,000 रुपये तक पहुंचा था, जो इसका लाइफ टाइम हाई लेवल है. कंपनी का शेयर पिछले शुक्रवार को 6,668.35 रुपये पर बंद हुआ. इस बीच शेयर प्राइस में 33 पर्सेंट की गिरावट के साथ कंपनी, ऑटो इंडस्ट्री और इकनॉमी के लिए बहुत कुछ बदल गया है.

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स्लोडाउन का हॉर्न

मारुति की बिक्री अप्रैल महीने में 19.6 पर्सेंट गिरी, जो 7 साल में सबसे बड़ी गिरावट है. वित्त वर्ष 2019 में देश में कंपनी ने 17.53 लाख गाड़ियां बेचीं, जो एक साल पहले से 6.1 पर्सेंट अधिक थी. कंपनी के लिए दोहरे अंकों में ग्रोथ का दौर काफी पीछे छूट गया है, जबकि कार इंडस्ट्री के लिए वित्त वर्ष 2019 में सेल्स ग्रोथ 2014 के बाद सबसे कमजोर रही.

दोपहिया कंपनियों का हाल तो और भी बुरा है. देश की टॉप 6 दोपहिया कंपनियों की बिक्री अप्रैल में 15.8 लाख यूनिट्स घट गई, जो एक साल पहले के इसी महीने में 18.8 लाख थी.
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50 पर्सेंट आमदनी रूरल मार्केट से हासिल करने वाली सबसे बड़ी टू-व्हीलर कंपनी हीरो मोटोकॉर्प की सेल्स में इस महीने 15 पर्सेंट और होंडा मोटरसाइकल एंड स्कूटर्स इंडिया में 32 पर्सेंट की गिरावट आई.

ट्रैक्टरों का भी यही हाल है. वित्त वर्ष 2019 में ट्रैक्टर सेल्स में 10.24 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई, जो 2018 में 20.52 पर्सेंट थी यानी साल भर में इसकी ग्रोथ आधी रह गई है. इससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग तेजी से घटी है.

रूरल डिमांड की हवा निकली

देश में कंजम्पशन ग्रोथ का पैमाना मानी जाने वाली हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) की वॉल्यूम ग्रोथ जनवरी-मार्च तिमाही में 7 पर्सेंट रही, जो डेढ़ साल की सबसे कम ग्रोथ है. पिछले साल की जनवरी-मार्च तिमाही में एचयूएल की वॉल्यूम ग्रोथ 11 पर्सेंट थी.

कंपनी ने रूरल डिमांड में कमी को इसकी वजह बताया है. देश के ग्रामीण क्षेत्रों से करीब आधी आमदनी हासिल करने वाली एक और एफएमसीजी कंपनी डाबर की वॉल्यूम ग्रोथ जनवरी-मार्च तिमाही में 4.3 पर्सेंट रही, जो पौने दो साल की सबसे कमजोर ग्रोथ है. एक और एफएमसीजी कंपनी गोदरेज कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स लिमिटेड की आमदनी मार्च तिमाही में 3.06 पर्सेंट गिरकर करीब 2,482 करोड़ रही.

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अल निनो का रिस्क

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मॉनसून सीजन में सामान्य बारिश बहुत जरूरी होती है, लेकिन इस मोर्चे से भी बिल्कुल आश्वस्त करने वाली खबर नहीं आई है. भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल मॉनसून सीजन में बारिश लगभग सामान्य रहेगी, लेकिन प्राइवेट एजेंसी स्काईमेट इससे सहमत नहीं है. उसने मॉनसून सीजन में सामान्य से कम बारिश का अनुमान लगाया है.

स्काईमेट का कहना है कि अल निनो की वजह से इस साल बारिश कम होगी. भारतीय मौसम विभाग ने भी अल निनो की आशंका से इनकार नहीं किया है. अगर ऐसा होता है तो रूरल डिमांड और कमजोर पड़ सकती है.

कृषि संकट पर सरकार का कबूलनामा


वित्त मंत्रालय ने भी अपनी मंथली इकनॉमिक रिपोर्ट में माना है कि वित्त वर्ष 2019 में इकनॉमिक ग्रोथ में कुछ सुस्ती आई है. उसके मुताबिक, प्राइवेट कंजम्पशन, फिक्स्ड इनवेस्टमेंट में सुस्त बढ़ोतरी और निर्यात क्षेत्र में सुस्ती की वजह से ऐसा हुआ है. इस सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि एग्रीकल्चर सेक्टर में ग्रोथ तेज करना और इंडस्ट्री की ग्रोथ को बनाए रखना चुनौती है. यह एक तरह से कृषि क्षेत्र के संकट पर सरकार का कबूलनामा है.

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ग्रोथ और घटी


सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) का भी मानना है कि जनवरी-मार्च 2019 तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 6.5 पर्सेंट रहेगी, जो इससे पिछली तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर 2018 में 6.6 पर्सेंट थी. वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी ग्रोथ 7 पर्सेंट रहने का अनुमान लगाया गया है, जो मई 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से सबसे कम ग्रोथ होगी.


आगे का सीन क्या है?


कार कंपनियों का कहना है कि कमजोर मार्केट सेंटीमेंट, पेट्रोल-डीजल के दाम में उतार-चढ़ाव और बीएस VI एमिशन नॉर्म्स लागू होने से गाड़ियों के दाम में बढ़ोतरी के चलते वित्त वर्ष 2020 भी चुनौतीपूर्ण रह सकता है. इस साल मारुति 5-8 पर्सेंट सेल्स ग्रोथ की उम्मीद कर रही है, जबकि पैसेंजर व्हीकल इंडस्ट्री की औसत ग्रोथ 3-5 पर्सेंट रहेगी.

दोपहिया कंपनियों की ग्रोथ वित्त वर्ष 2020 में 5-7 पर्सेंट रहने का अनुमान है. यानी हालात पिछले साल से बुरे होने वाले हैं. एफएमसीजी कंपनी एचयूएल का कहना है कि मार्केट में जल्द ही रिकवरी हो सकती है, लेकिन मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन का कहना है कि साल 2019 में इंडस्ट्री की ग्रोथ पिछले साल से 2 पर्सेंट कम यानी 12 पर्सेंट रहेगी.

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कहां है रोजगार?


कंजम्पशन डिमांड बढ़ाने में रोजगार की बड़ी भूमिका रहती है, लेकिन इस मामले में तो स्थिति और भी खराब है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की लीक्ड रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में देश की बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे अधिक थी. वैसे सरकार ने इसे ड्राफ्ट रिपोर्ट कहकर खारिज कर दिया था.


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों से पता चलता है कि फरवरी 2019 में देश में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.2 पर्सेंट हो गई, जो एक साल पहले 5.9 पर्सेंट थी. इसके मुताबिक, इस साल फरवरी में देश में 3.12 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे, जबकि पिछले साल जुलाई में इनकी संख्या 1.4 करोड़ थी.  देश में 75 पर्सेंट लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों को कृषि, कंस्ट्रक्शन और छोटी कंपनियों में रोजगार मिला हुआ है. नवंबर 2016 की नोटबंदी और जुलाई 2017 में लागू हुए जीएसटी ने इन क्षेत्रों को काफी नुकसान पहुंचाया.

बेंगलुरू की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी लागू होने के बाद के दो साल में देश में 50 लाख नौकरियां खत्म हो गईं. रियल एस्टेट मार्केट में सुस्ती और टेलीकॉम सेक्टर में कंसॉलिडेशन से लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए.

नीति-निर्माताओं को पहले स्वीकार करना होगा कि रोजगार एक बड़ी समस्या है, तभी वे इसका हल निकालने की पहल करेंगे. इसके लिए श्रम आधारित उद्योगों और निर्यात को बढ़ावा देने के साथ कुशल पेशेवरों की फौज तैयार करनी होगी, जो भारत की कंजम्पशन आधारित अर्थव्यवस्था के लिए स्तंभ का काम करेगा.

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