रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि, भारत में बैंकों ने वित्त वर्ष 2023 में 2.09 लाख करोड़ रुपये के बैड लोन को राइट ऑफ कर दिया है. इससे पिछले पांच सालों में कुल 10.57 लाख करोड़ का लोन बैंकों ने राइट ऑफ कर दिया है.
राइट ऑफ का मतलब बैंकों ने अपने अकाउंट से इन लोन की जानकारी को हटा दिया है, हालांकि इससे लोन रिकवरी की प्रक्रिया जारी ही रहेगी.
इंडियन एक्सप्रेस ने आरबीआई से ये जानकारी आरटीआई के जरिए मांगी है जो बताती है कि पिछले पांच सालों 10.57 लाख करोड़ रुपये एनपीए (नॉन पर्फॉर्मिंग एसेट) हो गया है.
एनपीए वो कर्ज हैं जिन्हें अब कर्जदार से वापस मिलने की उम्मीद नहीं है. बैंक जो पैसा कर्ज के रूप में देता है और अगर उस पैसे के मूलधन या ब्याज की किस्त 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती है तो उस लोन अकाउंट को नॉन परफॉर्मिंग एसेट माना जाता है. इसका मतलब देश की बैंकों ने जो 10.57 लाख करोड़ का लोन दिया था वो उन्हें वापस नहीं मिला.
वित्त वर्ष 2023 में ₹2,09,144 करोड़ का एनपीए बैंक ने राइट ऑफ किया
वित्त वर्ष 2022 में ₹1,74,966 करोड़
वित्त वर्ष 2021 में ₹2,02,781करोड़
राइट ऑफ की प्रक्रिया से बैंक अपनी अकाउंट की बुक्स से इन एनपीए को हटा देता है, जिससे बैंक की स्थिति सही दिखाई देती है.
कितना NPA रिकवर हुआ?
वित्त वर्ष 2021 में ₹30,104 करोड़
वित्त वर्ष 2022 में ₹33,534 करोड़
वित्त वर्ष 2023 में ₹45,548 करोड़
आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने बताया कि, पिछले तीन सालों में ₹5,86,891 करोड़ के एनपीए को राइट ऑफ किया गया और इसमें से बैंक्स केवल ₹1,09,186 करोड़ ही रिकवर कर पाए यानी रिकवरी रेट 18.60% रहा.
कर्ज को राइट ऑफ करने के बाद सारे बैंकों का टोटल एनपीए (GNPA- Gross Non-Performing Assets) 10 साल के निचले स्तर यानी 3.9% पर आ गई. पिछले कुछ सालों में, बैंकों का जीएनपीए वित्त वर्ष 2018 में ₹10.21 लाख करोड़ से घटकर मार्च 2023 तक ₹5.55 लाख करोड़ हो गया है, जिसका मुख्य एनपीए को राइट ऑफ करना है.
अर्थशास्त्री बतातें हैं कि बैंक की बुक से एनपीए की एंट्री को हटाना मतलब एनपीए की वसूली नहीं है. बता दें कि, आरबीआई के अनुसार, वित्त वर्ष 2012-13 से लेकर अब तक बैंकों ने 15,31,453 करोड़ रुपये की बड़ी रकम राइट ऑफ कर दी है. यानी 15 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज लोगों ने बैंकों को लौटाया ही नहीं है.
देश में लोन रिकवरी के लिए बनाए बैड बैंक
देश में एनपीए की एंट्री को बैंक हटा देते हैं लेकिन उसे वसूलने की प्रकिया भी जारी रहती है. लेकिन बैंक के पास कई काम होते हैं, जब उधार दिया हुआ पैसा NPA बन जाता है तो उसकी वसूली बैंक नहीं कर पाता और बैंक की बैलेंस शीट भी खराब होती है.
ऐसे में देश में बैड बैंक बनाए गए हैं. ये बैंक बैंकों से उनके कर्ज को खरीद लेते हैं और फिर खुद वसूली करते हैं. इनका काम ही वसूली का होता है. इससे बैंकों की बैलेंस शीट साफ हो जाती है. लेकिन कई अर्थशास्त्री का मानना है कि एक बैंक से दूसरे बैंक के खाते में कर्ज शिफ्ट हो रहा है, खत्म नहीं.
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